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लखनऊ के लेखकों, संस्कृतिकर्मियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाई

लखनऊ। प्रगतिशील शायर कैफ़ी आज़मी के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर लखनऊ के लेखकों, संस्कृतिकर्मियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तीन कृषि कानूनों की प्रतियों को आग के हवाले किया और किसान आंदोलन के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित की। कार्यक्रम इप्टा ऑफिस के प्रांगण में संपन्न हुआ। इसका आयोजन इप्टा, प्रलेस, जलेस, जसम और साझी दुनिया ने संयुक्त रूप से किया था। इस मौके पर ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य और साहित्य में किसान चेतना संदर्भ कैफ़ी आज़मी की विरासत’ विषय पर संवाद का आयोजन किया गया।

अध्यक्षता प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा ने की। संचालन किया जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष व कवि कौशल किशोर ने।
संवाद का आरम्भ करते हुए कवि कौशल किशोर ने कहा कि कैफ़ी आज़मी प्रगतिशील आंदोलन की देन थे। उन जैसे शायरों ने जिस हिंदुस्तानियत और मूल्यों के लिए संघर्ष किया, आज उसे नष्ट भ्रष्ट किया जा रहा है। कैफ़ी साहब ताउम्र सांप्रदायिकता और गैर बराबरी के खिलाफ आजादी और इंसाफ के लिए संघर्ष किया और इसके लिए लोगों के उठ खड़े होने की बात की। आज हम सब लोगों के लिए उठ खड़े होने का समय है। किसान आंदोलन की राह पर हैं। यह मात्र तीन कृषि कानूनों को लेकर के संघर्ष नहीं है बल्कि यह मोदी सरकार द्वारा स्थापित कंपनी राज के खिलाफ संघर्ष है।

अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड अतुल कुमार अंजान ने किसान आंदोलन के इतिहास का विस्तृत विवेचन करते हुए तीन कृषि कानूनों पर प्रकाश डाला और बताया कि यह किस प्रकार किसान विरोधी है । उनके अनुसार किसान सिर्फ भूमिधर नहीं है बल्कि वे सब लोग जो खेत मजदूर हैं, वो जो कुकुट पालन, मत्स्य पालन या वो कार्य करते हैं जो कृषि से संबंधित हैं, वह सभी किसान हैं । इन नए कानूनों का इन सब पर ही असर नहीं पड़ रहा है बल्कि साधारण जनता पर भी पड़ रहा है। इसलिए यह लड़ाई कॉर्पोरेट और पेट की बीच की लड़ाई है। जमीन का कारपोरेटीकरण करना, देश, संविधान, लोकतंत्र, गांव किसान और खेती को बचाने का यह जन अभियान है।

परिसंवाद में दिल्ली में सिंघु और टीकरी बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में देश भर के लेखकों और कलाकारों के साथ हिस्सेदारी के बाद लौटे इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने बताया कि किसान वहां आंदोलन की एक नई इबारत लिख रहे हैं। किसानों के एक हाथ मे नानक और सूफी संतों की करुणा का ग्रंथ है तो दूसरे हाथ मे भगतसिंह की क्रांति की तलवार है जिसकी धार विचारों की सान पर तेज होती है। कैफ़ी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनका पूरा जीवन और कृतित्व किसानों और मजदूरों को समर्पित रहा।

सुप्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि यह वर्ष किसान समस्या पर प्रेमचंद के पहले उपन्यास ” प्रेमाश्रम “का शताब्दी वर्ष है। साहित्य में किसान चेतना कबीर, प्रेमचंद, राहुल सांकृत्यायन, नागार्जुन, कैफ़ी आज़मी से होती हुई आज के संदर्भों से जुड़ती हुई आज जेल में बंद वरवर राव, आनंद तेलतुबंड़े, गौतम नवलखा तक अपना विस्तार करती है।

प्रो सूरज बहादुर थापा ने साहित्य में किसान चेतना के संदर्भ में कबीर और तुलसी की कई कविताओं का उदाहरण देते हुए कैफ़ी को किसान चेतना के शायर के रूप में याद किया। कवि राजेन्द्र वर्मा ने कहा कि आज सरकार निजीकरण की प्रक्रिया में खेती को भी निजी कंपनियों के हवाले करने की साजिश कर रही है उससे लड़ने के लिए व्यापक एकता की जरूरत है।

कार्यक्रम के आरंभ में जाने माने युवा गायक कुलदीप सिंह ने कैफ़ी की नज़्म “आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है ” की प्रस्तुति की तथा शावेज़ ने गौहर रज़ा की किसान आंदोलन पर लिखी नज़्म पेश की। सभा मे उत्तर प्रदेश किसान समन्वय समिति की ओर से शिवाजी राय तथा रामकृष्ण, एटक से सदरुद्दीन राना, डॉ वी के सिंह,चंद्र शेखर, यू पी बैंक इम्प्लॉइज यूनियन से अनिल श्रीवास्तव, सुभाष बाजपेयी, एस के संगतानी, जनवादी महिला समिति से मधु गर्ग, जसम से विमल किशोर व अशोक श्रीवास्तव, महिला फेडरेशन से बबिता, छात्र नेत्री शिवानी, वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कपूर, वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, कथाकार प्रताप दीक्षित, वेदा राकेश, ज्ञान चंद्र शुक्ला, सुशील बनर्जी, शहज़ाद रिज़वी, एडवोकेट अभिषेक दीक्षित, रिजवान अली आदि उपस्थित रहे।

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