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लिटरेरिया 2021 : साहित्य का लोकतंत्र असल लोकतंत्र से अलग नहीं है-विजय चोरमारे

कोलकाता। नीलाम्बर का ‘ लिटरेरिया 2021 ‘ का आरंभ आज सियालदह के बी. सी. रॉय ऑडिटोरियम में हुआ । पहले दिन लेखकों -साहित्यकारों ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखे। प्रतिष्ठित मराठी साहित्यकार विजय चोरमारे ने ‘साहित्य में प्रजातंत्र : प्रजातंत्र में साहित्य’ विषय पर बोलते हुए कहा कि साहित्य का लोकतंत्र असल लोकतंत्र से अलग नहीं है।

कार्यक्रम के शुरुआत में नीलाम्बर के सचिव ऋतेश कुमार ने कहा कि लिटरेरिया साहित्यप्रेमियों की आकांक्षाओं का प्रतिफलन है। लिटरेरिया अकादमिक वर्ग के साथ-साथ घर और रसोई में युक्त लोगों तक के लिए गंभीर साहित्य को पहुंचाने का मंच है। अध्यक्षीय भाषण में यतीश कुमार ने नीलाम्बर के अब तक के सफर पर चर्चा की । साथ ही नीलांबर के उद्देश्यों को सबके समक्ष रखा। संस्था के संरक्षक मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जीवन जितना भी छंदहीन हो जाए पर लहू की गति और हृदय का स्पन्दन हमें रचनाशील बनाता है।

इस अवसर पर नीलांबर के ब्लॉग ‘सप्तपर्णी’ का अशोक वाजपेयी द्वारा उद्घाटन किया गया।

पहले दिन के कार्यक्रम की शुरुआत प्रबुद्ध बनर्जी, शुद्धेंदु हलदर और मृत्युंजय कुमार सिंह द्वारा ‘मेघदूत’ की संगीतमय प्रस्तुति के साथ हुई। आरंभिक सत्र का संचालन ममता पांडेय ने किया।

पहले दिन का सेमिनार सत्र लिटरेरिया 2021 के थीम विषय ‘ स्वप्न, प्रेम और त्रासदी’ पर केंद्रित था, जिसमें बीज वक्तव्य हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि एवं आलोचक अशोक वाजपेयी ने रखा। उन्होंने कहा कि दुनिया को बेहतर बनाने का जो स्वप्न था वह इतिहास के हाशिए पर पड़ा है। पर हम अपने को बेहतर बनाने में लगे हैं। जिस टैक्नोलॉजी को हम सुविधा मानते है वही घृणा फैलाने का काम कर रही है। आगे उन्होंने कहा कि प्रेम मनुष्यता का अनिवार्य पक्ष है। जो प्रेम नहीं करता वह मनुष्य नहीं होगा। तत्पश्चात नवरस जे. अफ्रीदी ने ‘इतिहास की त्रासदी उर्फ बासी भात में खुदा का साझा’ विषय पर बात रखते हुए कहा कि इतिहास लेखन पर प्रहार ही इतिहास की त्रासदी है। इतिहास का अध्ययन निष्पक्ष निर्णय लेने का है।

युवा लेखक आशुतोष भारद्वाज ने ‘नयी सदी के आंगन में हाशिये का गीत’ विषय पर बोलते हुए कहा कि अक्सर हाशिये को केंद्र के संदर्भ में देखा जाता है, वह स्थितियां या समुदाय जो केंद्र द्वारा उपेक्षित एवं अलक्षित रहे हैं। मैं इस मान्यता का प्रतिकार करता हूँ । हाशिया भी एक केन्द्र है । किसी भी व्यवस्था में, भले वह राजनैतिक हो या सामाजिक, अनेक केंद्र होते हैं।

प्रतिष्ठित मराठी साहित्यकार विजय चोरमारे ने ‘साहित्य में प्रजातंत्र : प्रजातंत्र में साहित्य’ विषय पर अपनी बात रखी और कहा कि जब हम अपने देश के बारे में सोचते है तो मन में एक सवाल आता है कि इस देश का प्रवक्ता कौन है? मेरा मानना है कि साहित्यकार ही प्रवक्ता है किन्तु उसे मंच मिलना चाहिए। साहित्य का लोकतंत्र असल लोकतंत्र से अलग नहीं है।

प्रसिद्ध नारीवादी लेखिका निवेदिता मेनन ने ‘स्त्री मुक्ति का राग और मुक्त स्त्री की छवि’ विषय पर अपनी बात केंद्रित रखते हुए कहा कि आजादी शब्द मायने रखता है । हम केवल अतीत से ही मुक्ति नहीं चाहते बल्कि भविष्य में विचारों की आजादी भी चाहते हैं। आजाद औरत की जो कल्पना है वह ऐसी दुनिया की है , जहाँ हमेशा परिवर्तन होते हैं ,बन्धन टूटते हैं।

सुपरिचित लेखक यतींद्र मिश्र ने ‘हिंदी में सिनेमा: सिनेमा में हिंदी’ को वक्तव्य के मूल में रखते हुए कहा कि जिस तरह का हमारा समय काल है सिनेमा में उसी तरह बदलाव आता है। सिनेमा हमारे समाज से सीखता है और समाज से सिनेमा भी प्रभावित होता है। इस दिन के सेमिनार सत्र का संचालन विनय मिश्र ने किया। इस दिन शाम को नीलांबर द्वारा निर्मित एवं ऋतेश कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘संवदिया’ का प्रीमियर शो दिखाया गया।इस सत्र का संचालन कल्पना झा और निर्मला तोदी ने किया । दिन के अंत में भावधारा संस्था के सहयोग से ओपन माइक सत्र रखा गया था जिसमें कई नई प्रतिभाओं ने प्रेम और उम्मीद से जुड़ी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। इस सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में द्वारिका प्रसाद उनियाल मौजूद थे । धन्यवाद ज्ञापन शैलेश गुप्ता ने किया।

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