दरभंगा (बिहार)। एल.सी.एस. काॅलेज, दरभंगा में महाविद्यालय तथा ‘जन संस्कृति मंच,दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में 141 वें प्रेमचंद-जयंती समारोह के अवसर पर ऑनलाइन तथा ऑफलाइन माध्यम से राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका विषय था -“मौजूदा चुनौतियाँ और प्रेमचंद के सपनों का भारत।” जसम, दरभंगा के जिला अध्यक्ष प्रो.अवधेश कुमार सिंह और एल.सी.एस.कालेज, दरभंगा के प्रधानाचार्य डाॅ. शिवनारायण यादव ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की।
संगोष्ठी का आरंभ जन संस्कृति मंच, दरभंगा के जिला सचिव डाॅ. रामबाबू आर्य के स्वागत भाषण से हुआ। समकालीन चुनौती के संपादक और जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डाॅ. सुरेन्द्र प्रसाद सुमन ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आज की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति में प्रेमचंद की रचनाएँ संपूर्ण राष्ट्र के लिए ऊर्जा का स्रोत हैं। प्रेमचंद गुलाम भारत में उत्पन्न आजाद भारत के प्रथम परिकल्पक थे। वे जीवनपर्यंत भारत की मूलभूत आजादी के लिए संघर्ष करते रहे। प्रेमचंद ने उस समय में दलितों और स्त्रियों के उद्धार की कामना की जब दलित विमर्श और स्त्री-विमर्श की चर्चा भी नहीं हुई थी। आज प्रेमचंद और भगतसिंह के सपनों के साथ ही संविधान एवं लोकतंत्र पर खतरा है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में किसानों-मजदूरों और शोषितों के जीवन के यथार्थ का चित्रण किया है। उनके साहित्य से प्रेरणा ग्रहण कर मौजूदा खूंख्वार फासिस्ट सत्ता से दो-दो हाथ करते हुए मुकम्मल आजाद भारत के प्रेमचंद के सपनों को साकार किया जा सकता है।
इस अवसर पर डाॅ. एस.एस. सिंह (वरीय क्षेत्रीय निदेशक, इग्नू, दरभंगा ) ने कहा कि ‘प्रेमचंद के साहित्य को पढ़कर भारत को संपूर्णता के साथ जाना जा सकता है। वे समतामूलक समाज की स्थापना के लिए रचनात्मक स्तर पर जीवनभर लड़ते रहे। आज की पीढ़ी के लिए उनकी रचनाएँ किसी प्रकाश-पुंज से कम नहीं है। प्रेमचंद का जीवन अत्यंत अभावों में बीता था, जिसकी अमिट छाप उनकी रचना पर परिलक्षित होती है।’
संगोष्ठी के प्रमुख वक्ता, सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि ‘प्रेमचन्द जहाँ एक ओर सामंतवादी शक्ति से लड़ रहे थे तो दूसरी ओर वे सामाजिक विषमता के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। प्रेमचंद बीसवीं सदी के सबसे बड़े रचनाकार हैं। उन्होंने ‘सोजे वतन’ लिखकर स्वाधीनता-संग्राम को गति देने की कोशिश की। प्रेमचंद ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति के यथार्थ चितेरा थे। उस समय किस प्रकार किसान चौतरफा शोषण को झेलते हुए किसान से मजदूर बन रहे थे, इसे प्रेमचंद ने यथार्थ रूप में रखा है।
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद युगद्रष्टा रचनाकार थे। इसीलिए उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। प्रेमचंद अंबेडकरवाद से बेहद प्रभावित थे, जिसके कारण उन्होंने उपन्यास ‘गोदान’ समेत अपनी अनेक कहानियों में दलित-प्रतिरोध को अभिव्यक्त किया है। प्रेमचंद ने हिन्दी कथा साहित्य के परंपरागत सौंदर्यशास्त्र को बदल दिया।’
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक और जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रोफेसर रविभूषण ने अपने वक्तव्य में कहा कि अभी जब हमारी अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगायी जा रही है, तब प्रेमचंद की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है। वे अंग्रेजी गुलामी के दौर में भी सच बोलने से बाज नहीं आए। आज राष्ट्र कई मौजूदा संकटों और चुनौतियों से गुजर रहा है। सबसे बड़ा संकट है आर्थिक विषमता। राजनीतिक निरंकुशता, गरीबी, बेरोजगारी, औद्योगिकीकरण आदि। आज गरीब,गरीबी की गर्त में समाता जा रहा है। दूसरी ओर करोड़पतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। आज की मौजूदा चुनौतियाँ यह है कि पूंजीवाद और बाजारवाद ने संपूर्ण सभ्यता को निगल लिया है। वैश्विक महामारी कोरोना भी एक तरह से अवसर के रूप में देखा जा रहा है। प्रेमचंद ने बहुत पहले ही इस संकट के प्रति भारतीयों को आगाह कर दिया था।
उन्होंने कहा कि पूंजीवाद के इस विकट दौर में हमारा प्रजातंत्र भीड़तंत्र बनकर रह गया है। पूंजीपतियों ने प्रजातंत्र की शुचिता को निगल लिया है। ‘गोदान’ में वर्णित महाजनी सभ्यता का प्रसार आज कार्पोरेट जगत के रूप में देखा जा सकता है। गोदान के सभी पात्र उस समय के प्रतिनिधि पात्र थे, जिसके माध्यम से अपने समय के सत्य का वे उद्घाटन करते हैं। डाॅ. रविभूषण ने कहा कि गोदान में प्रेमचंद ने ‘दलाल कल्चर’ पर भी करारा प्रहार किया, जो आज की सबसे बड़ी समस्या है। किस प्रकार बैंक किसानों और मजदूरों को लूट रहा है, यह प्रेमचंद ने स्पष्ट कर दिया है। वे कथनी और करनी की विषमता पर प्रहार करने वाले लेखक हैं। प्रेमचंद की रचनाओं का आज जो दलित पाठ या स्त्री पाठ किया जा रहा है, यह अनुचित है। प्रेमचंद की रचनाओं का मुकम्मल पाठ जरूरी है। उनकी रचनाओं का मुकम्मल पाठ ही राष्ट्र को उन्नत बना सकता है। मौजूदा चुनौतियों और संकटों से उबरने का मार्ग प्रेमचंद की रचनाएँ हो सकती हैं।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में छात्र नेता रोहित कुमार यादव, भोला जी, प्रो एम अंसारी तथा अनेक शोधार्थी,विद्यार्थी शिक्षकों सहित लगभग 150 ऑफलाइन तथा 100 ऑनलाइन की उपस्थिति दर्ज हुई। संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन डाॅ. सुरेन्द्र प्रसाद सुमन ने किया, जबकि उपस्थित वक्ताओं तथा स्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के वरीय प्राध्यापक डाॅ. मिथिलेश कुमार यादव ने किया।