जयप्रकाश नारायण
लखीमपुर खीरी के किसान एक बार फिर संघर्ष के रास्ते पर कदम से कदम मिलाकर चल पड़े हैं। यह संघर्ष हजारों परिवारों की जिंदगी बचाने का संघर्ष है। समय की विडंबना देखिए। ऐतिहासिक किसानआंदोलन में लखीमपुर खीरी में हुआ किसानो का नरसंहार अंतरराष्ट्रीय चर्चा के केंद्र में आ गया था। जिस कारण राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकार के खिलाफ बने जन्म दबाव केकारण ही 3 कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था। आज फिर उसी निघासन तहसील में शारदा नदी के बाएं बाजू की तरफ बसे दर्जनों मजरों के किसान भूमि बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
वन विभाग और जिला प्रशासन द्वारा कई गांव के किसानों को उजाड़ने की नोटिस दी गई है। जनपद की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत मूड़ा बुजुर्ग इस संघर्ष का केंद्र बनता जा रहा है। मूडा बुजुर्ग के मौनी बाबा कुटी पर विगत 13 नवम्बर से किसान महासभा के नेतृत्व में सैकड़ों किसान अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। कारण यह है कि 17सौ किसान परिवार जो 945 एकड़ जमीन पर बसे हैं, वन विभाग ने उनको जमीन से हटाना चाहता है।
यहां पर किसानों के आबाद होने का इतिहास बहुत पुराना है। आजादी के पहले से पूर्वांचल और पंजाब के किसानों का यहां आना शुरु हुआ जो 60 के दशक तक जारी रहा। ये एक किसान परिवार तराई के खाली मैदानों में बसते चले गए थे। स्वतंत्रता पूर्व लखीमपुर-खीरी रियासतों द्वारा शासित जिला था। यह इलाका ओयल स्टेट के अधीन आता था। किसान ओयल के राजा को विभिन्न तरह के नजराने देकर और राजा की सहमति से यहां बसे हैं। बाद में किसी षड्यंत्र के तहत ओयल राज ने इस जमीन को किसानों को अंधेरे में रखते हुए वन विभाग के नाम कर दी। यह राजाओं, जमीदारों और सरकार के साथ मिलीभगत की एक अलग घिनौनी कहानी है।
लखीमपुर का तराई का यह इलाका वीरान घास के मैदानों व जंगलों का दुर्गम क्षेत्र था जो किसानों के बसने के बाद उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा उपजाऊ कृषि क्षेत्र में बदल गया है। इसलिए प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार आने के बाद से ही तराई को तनाव के क्षेत्र में बदलने की कोशिश चल रही है जिससे इस क्षेत्र की भूमि को कारपोरेट कंपनियों के हाथों सौंपा जा सके।
इसी रणनीति के तहत 2018 में ही हजारों किसान परिवारों को भू माफिया घोषित कर उनको भूमि खाली करने का फरमान जारी किया गया। इसी फरमान के तहत मूड़ा बुजुर्ग ग्राम पंचायत के 17 सौ से ज्यादा किसान परिवारों को भूमि खाली करने की नोटिस दी गई है। इस तरह के आदेश सैकड़ों गांवों जैसे पलिया तहसील के बसई नारंग काप टांडा सुआभोज जैसे अनेक गांव के किसानों को जारी किए गए हैं।
मेरी जानकारी के अनुसार अधिकांश किसान परिवार आजादी के पहले से बसे हैं जो पिछले 50 वर्ष से यहां लगातार प्रशासन और वन विभाग के हमले के खिलाफ कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से लड़ रहे हैं। वे अदम्य साहस के साथ प्रकृति और राज्य के जुल्म से लड़ते हुए यहां आबाद है।
अनिश्चितकालीन धरना का वर्तमान कारण
मूड़ा बुजुर्ग ग्राम पंचायत दर्जनों छोटे-छोटे मजरों से मिलकर बनी है। इसमें प्रतापगढ़, संकरी गौढी, महाराजगंज ,बबुरी सुतिया, त्रिशूली पुरवा, राघव पुरी, निषाद पुरवा, कामतानगर ,श्रीरामपुर ,घोसियाना ,चकलुआ सहित अनेक मजरे हैं । छह नवंबर को संकरी गौढी के किसान जगदीश महतिया के पुत्र रामप्रवेश यादव जो -ट्रैक्टर से किराए पर गन्ने की ढुलाई का काम करते हैं – जंगल नंबर 13 के श्री नारायण यादव के गन्ने को लेकर गुलरी पुरवा विशाल के कोल्हू पर गए थे। यह गन्ना डनलप गाड़ी पर लगा था जो वह मुंद्रिका यादव के राजस्व भूमि गाटा संख्या 02/ 37का था ।वहां अचानक सुबह 7 बजे वन विभाग के लोग पहुंचे। ट्रैक्टर के गन्ने को पलट दिया और ट्रैक्टर की चाबी साथ लेकर चले गए। गन्ने लदा ट्रैक्टर सीसीटीवी फुटेज में देखा जा सकता है।
बाद में पुलिस ने शीशम की लकड़ी से भरी डनलप गाड़ी दिखाकर ट्रैक्टर का चालान के साथ दो लड़कों को जेल भेज दिया है।
इसके पहले महीनों से वन विभाग के लोग गांवों में दहशत फैला रहे थे। किसानों से रबी की बुवाई न करने , खेतों को खाली रखने तथा तैयार गन्ना की फसलों को बिक्री रोकने का प्रयास कर रहे थे। वे चीनी मिलों पर दबाव डाल रहे हैं कि किसानों को गन्ने की पर्ची आवंटित न की जाए। चीनी मिले लंबे समय से किसानों के गन्ने की पेराई करती आ रही हैं। किसानों की भूमि चीनी मिलों के सर्वे में गन्ना सप्लाई के लिए पंजीकृत हैं।
छह नवम्बर की घटना नेआग में घी का काम किया और किसान संगठित होकर आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े। किसानों ने प्रशासन को मांग पत्र दिया और कहा कि अगर अत्याचार नहीं रुका तो 13 तारीख से अनिश्चितकालीन धरना शुरू होगा। घोषित तिथि से धरना शुरू हो गया। धरने में हजारों किसान भाग ले रहे हैं। किसान महासभा इस आंदोलन की अगुवाई कर रही है। धरने में भारतीय किसान यूनियन के साथ अन्य संगठन भी शामिल हो रहे हैं।
मूड़ा बुजुर्ग के किसानों पर जमीन पर उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश जारी किया गया है। किसानों के उत्पीड़न और उजाड़न पर प्रतिबंध लगा है लेकिन गन्ना वन विभाग के अधिकारी उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं।
किसान महासभा 2018 से ही सरकार के किसान उजाडू अभियान के खिलाफ आंदोलन चला रही है। कई बार सभा, प्रदर्शन और जुलूस द्वारा मांग पत्र दिए जाते रहे हैं। किसान अपनी जमीन बचाने के लिए एकजुट है जिससे अभी तक सरकार उजाड़ने में कामयाब नहीं रही है। लेकिन अब किसान आंदोलन की धार के थोड़ा कमजोर होने पर सरकार का मनोबल बढ़ गया है और वह क्रूरता पूर्वक किसानों के प्रतिरोध को कुचलने ,उन्हें उजाड़ने और उस जमीन पर कब्जा करने के लिए कटिबद्ध दिख रही है जिससे क्षेत्र में भारी तनाव और टकराव की स्थिति बनी हुई है ।
किसान महासभा ने बार-बार जिला प्रशासन से अनुरोध किया कि वह न वर्षों से आबाद किसानों को न उजाड़े और किसानों के जमीन पर उनके मालिकाना के हक की गारंटी करें और क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखें। धरने के चार दिन बाद किसानों ने 17 नवम्बर को निघासन तहसील तक मार्च निकाला।
मार्च के लिए सुबह से ही किसान लाल झंडे के साथ तैयारी करने लगे। किसानों का हुजूम सुबह से ही धरना स्थल मौनी बाबा की कुटी पर इकट्ठा होने लगा। आठ बजे ही हजारों की तादात में किसान इकट्ठा हो गया थे। यहां से हजारों की तादात में लाल झंडे के साथ किसान बबुरी बन होते हुए तारानगर चौराहे पहुंचे। जहां से सड़क के रास्ते झंडी स्टेट होते हुए 15 किलोमीटर का लोंग मार्च करते हुए किसान एक बजे तहसील निघासन पहुंचे।
लाल झंडे से सुसज्जित हजारों किसानों में महिलाओं की तादाद और उनका उत्साह देखने लायक था। लग रहा था कि कोई लाल सैलाब सड़कों से बहता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। रास्ते में गांव-गांव से पीड़ित किसानों का जत्था जुलूस में शामिल होता गया। लांग मार्च इस बात का संकेत है कि किसानों के अंदर सरकार की नीतियों के खिलाफ कितना सघन आक्रोश संघनित हो रहा है।
किसान नारा लगा रहे थे- ‘ उच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करो ‘, ‘ किसानों को उजाड़ना बंद करो ‘, किसानों पर दमन नहीं चलेगा, वन विभाग जिला प्रशासन गठजोड़ -मुर्दाबाद, ‘ जोर जुल्म नहीं सहेंगे , जमीन का टुकड़ा नहीं जाने देंगे ‘ , ‘ जो जमीन सरकारी है वह जमीन हमारी है ‘, ‘ हमारी जमीन का मालिकाना अधिकार दो ‘, ‘ वर्षों से आबाद किसानों को उजाडना बंद करो ‘, ‘ फर्जी मुकदमे वापस लो’ , ‘ किसानों की जमीन पर कारपोरेट का महल नहीं खड़ा होगा ‘।
तहसील प्रशासन ने किसानों के प्रतिनिधि मंडल से बातचीत करते हुए आश्वासन दिया कि यथास्थिति बनाए रखी जाएगी। साथ ही 19 तारीख को एक विस्तारित बैठक तहसील प्रशासन वन विभाग और किसान नेताओं के साथ होगी। इसमें समस्या निदान की कोशिश की जाएगी। इस समयावधि में वन विभाग या कोई भी अधिकारी किसानों के साथ किसी भी तरह का उत्पीड़न या आतंक फैलाने की कोशिश नहीं करेगा। किसान रबी की बुवाई और गन्ने की सप्लाई जारी रखेंगे।
किसान आंदोलन दोलन की अगुवाई भाकपा माले के केंद्रीय कमेटी सदस्य कृष्णा अधिकारी, महासभा के राज्य उपाध्यक्ष रामदरश, रंजीत सिंह, रामप्रसाद, तपेश्वरी देवी, सरला देवी, राम केवल , दिनेशसहित दर्जनों युवा महिला किसान और भारतीय किसान यूनियन के नेता कर रहे थे।
अखिल भारतीय किसान महासभा ने लखीमपुर जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश का सम्मान किया जाए, किसानों की भूमि पर उनका मालिकाना हक बहाल किया जाए, किसानों को उजाड़ना बंद किया जाए, अवैध रूप से खींच कर ले जाए गए किसान जगदीश महतिया के ट्रेक्टर को तुरंत छोड़ा जाए,
मुकदमा वापस लिया जाए, झूठी साजिश रचने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, किसानों के गन्ने की सप्लाई पहले की तरह जारी रखी जाए, जिला प्रशासन और वन विभाग रवी की फसलों की बुवाई में बाधा न पैदा करे तथा किसानों को शांतिपूर्वक जीने के अधिकार की गारंटी करें।
( जयप्रकाश नारायण अखिल भारतीय किसान महासभा, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष हैं)