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‘ कबीर और नागार्जुन ने सामाजिक- राजनीतिक अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध खड़ा किया ’

दरभंगा. आज जन संस्कृति मंच की ओर से कबीर और आधुनिक कबीर नागार्जुन के जयंती समारोह का आयोजन लोहिया चरण सिंह महाविद्यालय, दरभंगा के डॉ राम सेवक यादव स्मृति सभागार में हुआ। इस मौके पर ‘संत कबीर एवं आधुनिक कबीर नागार्जुन की साझी सांस्कृतिक विरासत और हमारा समय’ विषय पर संगोष्ठी हुई जिसमें बनारस से आए प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक प्रो॰ चौथीराम यादव ने अपने विचार व्यक्त किये.

उन्होंने वर्तमान सामाजिक सरोकार से जुड़ी समस्याओं पर गंभीर चर्चा की और झूठ और भय के वातावरण को उत्पन्न करके सत्य को छिपाने का वर्तमान समय में चल रहे छल का भी पर्दाफाश किया। इस संदर्भ में उन्होंने कबीर की सार्थकता के औचित्य पर गंभीरता से ध्यान दिलाया। उन्होंने बताया कि प्रतिरोध की बात करने वालों को हमेशा हाशिए पर रखा जाता रहा है। कबीर और नागार्जुन सबसे बड़े प्रतिरोधी हैं, जिन्होंने सामाजिक- राजनीतिक अन्याय के खिलाफ खड़े होकर समतामूलक समाज के लिए व्यापक प्रयत्न किए। कबीर की निर्भीकता और जिंदादिली, उनका साहस और प्रतिबद्धता नागार्जुन में भी उसी तेवर के साथ दिखती है, इसीलिए नागार्जुन को आधुनिक कबीर कहना उन्होंने एकदम सार्थक बताया।

इन दोनों की सम्यक जयंती के उपलक्ष्य में उन्होंने कहा कि यह समय हमें इन दोनों महापुरुषों के माध्यम से स्वयंमेव प्रतिबद्ध चेतना के साथ खड़ा करती है और धार्मिक उन्माद, सांप्रदायिकता तथा लोक-भावना को विकृत करने वाली सोच से लड़ने को प्रेरित करती है।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में मुजफ्फरपुर से आए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ नन्दकिशोर नंदन ने कबीर एवं नागार्जुन को मनुष्यता के पक्ष में खड़ा सबसे बड़ा रचनाकार बताया। उन्होंने कहा कि कबीर और नागार्जुन को समझने के लिए सतह से ऊपर उठना ही होगा, फिर हम उनकी निर्भीक और साहसी चेतना से एकात्म स्थापित कर सकेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि होशियारी और मनुष्यता साथ-साथ नहीं चलती और कबीर ने मनुष्यता के मस्ती और उत्सव को अपनाया है, इसी से वे हमारे लिए जीवन-मर्म के कवि हैं।

कार्यक्रम में विषय का प्रवेश डॉ रामबाबू आर्य ने किया और कबीर तथा नागार्जुन को समाज सुधारक के रूप में उन्होंने चिन्हित किया। इस अवसर पर विधायक भोला यादव जी ने कबीर और नागार्जुन को सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़ा रचनाकार सिद्ध किया।

उमेश राय जी ने कबीर तथा नागार्जुन को मानसिक गुलामी को खत्म करने वाला रचनाकार बताया। डॉ रामदेव महतो का कहना था कि कबीर और नागार्जुन ने सामाजिक अंधविश्वास को खत्म किया है।धर्मेंद्र राय का कहना था कि वर्तमान समस्याओं के आलोक में कबीर और नागार्जुन की प्रासंगिकता सर्वोपरि है। इस अवसर पर डॉ स्नेहलता कुमारी एवं शंकर कुमार ने भी अपने अपने उद्गार व्यक्त किए।

कार्यक्रम का समारंभ मुख्य अतिथियों को पाग, माला एवं पुष्पगुच्छ से स्वागत के द्वारा हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं संचालन जसम के केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं ‘समकालीन चुनौती’ पत्रिका के संपादक डॉ सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में कबीर एवं नागार्जुन की प्रतिबद्ध चेतना के ओजस्वी स्वर को वर्तमान संदर्भ से जोड़कर आधुनिक स्थिति की भयावहता को स्पष्ट किया और कबीर एवं नागार्जुन की प्रासंगिकता को भी प्रकट किया।

कार्यक्रम का समापन कबीर तथा नागार्जुन के पदों के गायन के साथ हुआ। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोगों की सहभागिता रही।

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