प्रेमचंद एक ऐसे रचनाकार हैं जो हर समय-समाज में समकालीन रहे हैं। उनकी कहानियां भारतीय समाज का एक जीता-जागता चित्र हैं। प्रेमचन्द की एक कहानी है -मनोवृत्ति। इस कहानी में प्रेमचंद स्त्री स्वतंत्रता के जिस मुद्दे को उठाते हैं वह आज तक भी हल नहीं हो पाया है।
हमारे समाज में पुरुष चाहे जहाँ ,जिस रूप में भी रहें उस पर प्रश्न नहीं खड़े किए जाएंगे लेकिन एक स्त्री को यदि मजबूरीवश भी कभी कहीं बाहर रहना पड़ जाए तो उसके चरित्र पर अनेक सवाल खड़े किए जाने लगेंगे। आज भी यदि कोई अकेली स्त्री कहीं घूमती हुई दिख जाए तो हम तुरन्त उसे करेक्टर सर्टिफिकेट देने लग जाते हैं। इस बात को उस समय भी प्रेमचंद बहुत गहरे महसूस कर रहे थे।प्रेमचंद जयंती के अवसर पर उन्हें याद करते हुए कोरस के साथियों द्वारा प्रेमचंद की इसी कहानी मनोवृति का नाट्य रूपांतरण आप सभी लोगों के लिए प्रस्तुत है