(31 जुलाई को प्रेमचंद की 140वीं जयंती के अवसर पर समकालीन जनमत 30-31 जुलाई ‘जश्न-ए-प्रेमचंद’ का आयोजन कर रहा है। इस अवसर पर समकालीन जनमत लेखों, ऑडियो-वीडियो, पोस्टर आदि की शृंखला प्रकाशित कर रहा है। इसी कड़ी में प्रस्तुत है रूपम मिश्र की यह कविता: सं।)
रूपम मिश्र की प्रेमचंद कृत उपन्यास ‘प्रेमाश्रम’ को केंद्र में रखकर लिखी कविता
प्रेमचंद तुमने तो ज्ञानशंकर को नदी में विसर्जित कर दिया था
पर वो मरा नहीं था !
अबकी वो तेजी से लौटा और अपने सामन्तवाद को भगवा रंग पहना दिया
उसने प्रेमशंकर को राष्ट्रद्रोह में जेल भेज दिया
किसी ने कुछ नहीं कहा
प्रेमचंद ! अब सब कहते हैं ईमान के डर से जान थोड़ी गवायेंगे!
प्रेमचंद तुम्हें पता है ! अब सारे मायाशंकर शिक्षा और त्याग छोड़कर
मिथकों में मर्यादा के प्रतीक के नाम पर अमर्यादित नारा लगाते हुए कट्टा लहराते हैं
सियासत के आह्वान पर नंगे हो जाते हैं
हालांकि पुरुष प्रपंच की यातना से विद्याएं अब भी विष पी लेती हैं!
हाँ, कुछ श्रद्धायें अब परम्परायें जल्दी तोड़ देती हैं!
पर अब अबोध गायत्रियों को ग्लानि नहीं होती
वो पाखंड ओढ़कर धर्म पहनकर खूब प्रलाप करती हैं ।
(कवयित्री रूपम मिश्र, पूर्वांचल विश्वविद्यालय से परस्नातक हैं और प्रतापगढ़ जिले के बिनैका गाँव की रहने वाली हैं. पत्र पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ प्रकाशित ।)
{फीचर्ड इमेज साभार भास्कर रौशन}