समकालीन जनमत
स्मृति

इतनी जल्दी नहीं जाना था आपको

“बेइंतहा दर्द हो रहा है। यह तो मालूम था कि दर्द होगा, लेकिन ऐसा दर्द ? अब दर्द की तीव्रता समझ में आ रही है। कुछ भी काम नहीं कर रहा है। न कोई सांत्वना और न कोई दिलासा। पूरी कायनात उस दर्द के पल में सिमट आयी थी। दर्द खुदा से भी बड़ा और विशाल महसूस हुआ।”

ये उस चिट्ठी का हिस्सा है जो इरफ़ान ख़ान ने अजय ब्रह्मात्मज को लिखी थी. ये दर्द अगर अब भी वैसा ही था तो शायद आपके लिये ठीक हुआ इरफ़ान। अगर बिना इस दर्द के जीना मुमकिन नहीं था और दर्द से निजात का कोई दूसरा रास्ता न था तो..…..शायद। हालांकि आप हार मानने वालों में से न थे। आप लड़ते रहे थे, लगातार अपनी रेस में दौड़ते रहे थे। ये ‘थे’ लिखना आपके लिए बहुत अखर रहा है इरफ़ान। मैं अपने तमाम व्यक्तिगत मामलों में नहीं रोया लेकिन आज सब्र मुश्किल हो रहा है। फिर भी यही कह रहा हूँ अगर ये दर्द आपके ख़ुदा से बड़ा और विशाल था, तो……आपके लिये ठीक ही हुआ कि आपको निजात मिली।

जिन्होंने व्यक्ति इरफ़ान को खोया है उनका दुःख किसी के बाँटे न बंटेगा। आपका न होना, आपका अभाव आपके परिवार और कुछ आत्मीय लोगों के जीवन में हमेशा बसा रहेगा। ताउम्र वहीं रहेगा। बाक़ी लोग …..कल से व्यस्त हो जाएंगे। मैं भी। क्या हुआ अगर आपको पर्दे पर देखते हुए, पढ़ते-सुनते हुए लगता रहा कि मैं आपको क़रीब से जानता हूँ, चंद्रकांता वाले बद्रीनाथ के टाइम से ! पर हम लोग दरअसल स्वार्थी लोग हैं इरफ़ान। हममें से बहुत से लोग इसलिए दुःखी हैं कि आप अब पर्दे पर नहीं दिखेंगे। ये पसंदीदा अभिनेता को अब कभी न देख पाने का दुःख भी है। सिनेमा की क्षति, कला की क्षति वग़ैरह वो मुहावरे हैं जो किसी कलाकार की मृत्यु के दिन के लिये बचाकर रखे जाते हैं। कलाकर की बरसों तक चली जद्दोजहद, उसके भीतर पसरे दुःख, नसों में दौड़ते दर्द से कितने लोगों का वास्ता होता है !

जिसे लोग आपकी एफर्टलेस ऐक्टिंग मानते हैं, मैंने आपको पर्दे पर देखने के बाद हर बार महसूस किया है उस क्राफ़्ट को पाने के लिए किये गये आपके एफ़र्ट्स को, आपकी मेहनत को, आपकी ख़ुद की ट्रेनिंग को और बरसों तक फैले उस इंतज़ार को। उन सारे एफ़र्ट्स का सिला अभी आपको बहुत कुछ मिलना था इरफ़ान ! आपको अभी बहुत बहुत प्यार, बहुत सारा सम्मान मिलना बाक़ी था। बहुत से मेयार ध्वस्त करने थे। इतनी जल्दी नहीं जाना था आपको।

काश आप उस दर्द की गिरफ़्त में न आते, काश कहीं कोई ख़ुदा होता !

किसी भी ब्रांड का कोई भी ईश्वर होता तो मेरे इस सवाल का जवाब ज़रूर देता कि जब दुनिया में इतने सारे हरामखोर अमानवीय होकर भी एक लंबी ज़िंदगी जीकर आराम से जाते हैं तो इरफ़ान जैसे लोगों को खुशी की लंबी उम्र देने में ईश्वर कांइयाँ टाइप बनियागिरी क्यों दिखा देता है, उम्र के पलड़े में दांडी क्यों मार देता है !

पान सिंह तोमर देखने के बाद यही सोचता रहा था कि काश आख़िरी सीन में पान सिंह को गोली न लगती। वो अपनी वो रेस जीत जाता ! आज भी एक ऐसा ही काश है मन में इरफ़ान। काश आप…..

आपका एक इनफॉर्मल स्टूडेंट

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