मई दिवस अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है। इसकी प्रेरणा एक दिन में काम के घंटे तय करने के पहले बड़े संघर्ष से मिली। इस संघर्ष की मांग थी कि एक दिन में काम के आठ घंटे तय किये जायें।
आज भी मई दिवस काम के घंटों के बारे में है। खासकर भारत में तो आज के संदर्भ में इसका यही मतलब है। यहां कोरोना महामारी के चलते किये गये लॉकडाउन के बीच में सरकार एक दिन में काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 करने जा रही है।
मई दिवस सभी मजदूरों के लिए वेतन के साथ छुट्टी के अधिकार के बारे में है। लेकिन भारत में तो कई लाख मजदूर ऐसे हैं, जिन्हें मजदूर माना ही नहीं जाता।
यह मजदूर दिवस उन मजदूरों के बारे में भी है जो रोजमर्रा के जरूरी सामानों और सेवाओं से जुड़े हुए हैं। इस महामारी के चलते हुए लॉकडाउन के दौरान भी उन्हें कोई मोहलत नहीं मिली है।
डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी, ट्रांसपोर्ट में लगे मजदूर और पुलिस वालों समेत कई सारे क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के काम और काम के खतरे इस दौर में बहुत बढ़ गये हैं। ज्यादातर लोगों के पास तो इस खतरे का सामना करने के लिए सुरक्षा के सामान भी नहीं हैं। अगर उनकी बुनियादी और तात्कालित जरूरतें नहीं पूरी की जाती हैं तो उनके लिए ताली बजाने के मतलब केवल उनके जले पर नमक छिडकना है।
मई दिवस मजदूरों के सम्मान और काम की जगह पर सुरक्षा के बारे में है। लेकिन सीवर में उतरकर अपनी जान गंवाने वाले मजदूरों को न तो सम्मान मिला है और न ही सुरक्षा।
भारत में मजदूरों की बड़ी तादाद को अपने काम की जगहों पर हर दिन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इनमें जाति के आधार पर उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न भी शामिल है।
मई दिवस हमारे काम की पहचान, काम की सुरक्षित जगह और काम करने के लाकतांत्रिक और सम्मानजनक माहौल के लिए संघर्ष के बारे में है।
इस मई दिवस पर दुनिया भर में घर से काम करने पर चर्चा हो रही है और कई लोगों के लिए तो यह हकीकत बन चुका है। ऐसे समय में हमें अपने उन भाइयों और बहनों को याद करना चाहिए जिनके पास न तो घर है और न ही काम।
लाखों प्रवासी मजदूर अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं। उनके पास न तो काम है न ही कोई आय। असुरक्षा, अपमान, भूख और गरीबी ही उनके साथी हैं। इनमें घर बनाने वाले मजदूर हैं जिन्होंने अपनी मेहनत से घर बनाये और लोगों से कहा जा रहा है कि वे इन घरों में सुरक्षित रहें, एक दूसरे से दूर रहें। लेकिन घर बनाने वाले इन मजदूरों के पास अपना कोई घर नहीं है।
आज हमें उन महिलाओं और बच्चों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने हमेशा घरों में काम किया, जिन्होंने हमेशा घर से काम किया। लेकिन वे अदृश्य ही बने रहे, उनके योगदान पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया।
इस समय हमें आईटी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की बड़ी तादाद के बारे में भी सोचना चाहिए। उनके लिए घर और दफ्तर की सीमा मिट रही है। इसके चलते उनके तनाव का स्तर लगातार बढ़ रहा है। मई दिवस इन सारे मजदूरों के बारे में है। इनमें हमेशा घरों की चारदीवारी में कैद रहे लोगों से लेकर घर से काम करने की सुविधा देने के नाम पर काम के ज्यादा बोझ से दबे लोग तक शामिल हैं।
मई दिवस 2020 आने वाली मंदी के बारे में है। अर्थव्यवस्था इस विनाशकारी झटके और गतिरोध से कैसे उबरेगी? अभी ही लाखों लोग नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं। मजदूरी कम की जा रही है, मंहगाई भत्ता बढ़ने से रोक दिया गया है, ज्यादातर उद्योग बड़े पैमाने पर छंटनी के बारे में बात कर रहे हैं और रोजमर्रा की जरूरी चीजों के दाम अभी से आसमान छूने लगे हैं।
इस महामारी और आने वाली मंदी का बोझ पहले से ही बदहाली झेल रहे मजदूरों पर नहीं डाला जाना चाहिए। 2020 के मई दिवस पर हमारी मांग है कि अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने और लोगों को राहत पहुंचाने के लिए तत्काल कोविड संपत्ति कर लगाया जाये।
उत्पादन के केन्द्र में मजदूर होते हैं। प्रकृति द्वारा दिये गये संसाधन मनुष्य के श्रम के जरिये उपभोग के सामानों और सेवाओं में तब्दील किये जाते हैं। यही उत्पाद एक छोटे समुदाय के पास संपत्ति के रूप में इकट्ठा हो गये हैं। यही उत्पाद अपने निर्माता मजदूरों के खिलाफ युद्ध में हथियार की तरह इस्तेमाल किये जा रहे हैं।
मई दिवस 2020 के मौके पर हमें संपत्ति के इस उत्पादन, वितरण और संपत्ति पर कब्जे की इस पूरी व्यवस्था पर फिर से विचार करने की जरूरत है। हम लंबे समय से व्यापक जनता के लिए गरीबी और चंद लोगों के लिए अमीरी की व्यवस्था देख रहे हैं, हम मुनाफे के निजीकरण और घाटे को जनता के मत्थे मढ़ने की व्यवस्था देख रहे हैं और हम सामाजिक उत्पादन पर कॉरपोरेट के नियंत्रण की व्यवस्था भी देख रहे हैं। अब बहुत हो चुका।
कोविड-19 प्रकृति को बचाने और कॉरपोरेट लालच व लूट के शिकंजे से लोगों को मुक्त कराने की चेतावनी भी है। यह नयी और न्यायपूर्ण दुनिया की स्थापना का वक़्त है।
अंबेडकर ने कहा था कि जाति श्रम का नहीं श्रमिकों का विभाजन है। मई दिवस इन्हीं श्रमिकों की एकता का दिन है। यह पूरी दुनिया के मजदूरों और उत्पीडि़तों की एकता का दिन है।
पूरी दुनिया में कामगारों पर कोविड-19 की सबसे बुरी मार पड़ी है। इसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण और उनका व्यवस्थित विनाश मुख्य रूप से जिम्मेदार है। साथ ही ज्यादातर सरकारों ने इस महामारी से निपटने में बहुत ही क्रूर और संवेदनहीन रुख अपनाया।
सरकारें महामारी के समय में मजदूरों को दोषी ठहराने और उन्हें बांटने में लगी हुई हैं और अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुरा रही हैं। आज इस विभाजनकारी राजनीति को चुनौती देने की सबसे ज्यादा जरूरत है।
आज जब वैश्विक पूंजीवाद और मानव जाति के अस्तित्व के बीच का विरोध इतना साफ हो गया है तो एक नयी और बेहतर दुनिया बनाना न केवल जरूरी है बल्कि तुरंत बनाना जरूरी है। हमारे पास सच में एक नयी दुनिया बनाने और जीतने का अवसर है। एकताबद्ध जनता अजेय है।
(एमएल अपडेट, 28 अप्रैल- 4 मई 2020 से साभार)