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कोरोना के डर से बढती ख़ुदकुशी की घटनाएं

कोरोना वैश्विक महामारी ने तीन तरफ से हमला कर रखा है। एक ओर जहाँ उसने पूरे विश्व को संक्रमित करके बीमार बना रखा है तो दूसरी ओर संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वैश्विक लॉकडाउन के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही है। तीसरा कोविड-19 के संक्रमण से मौत का भय।

संक्रमण के भय ने सामाजिक विश्वास को खत्म कर दिया है। दरअसल कोरोना मरीजों का मीडिया और सरकारी तंत्र द्वारा अपराधीकरण कर दिया गया है। जैसे किसी ने जानबूझकर कोरोना को अपने शरीर में प्रश्रय दे रखा है। किसी व्यक्ति के संक्रमित पाए जाने की स्थिति में पूरा समाज या समाज का एक तबका उसे या उसके पूरे परिवार के साथ सामुदायिक दुश्मन या राष्ट्रद्रोही की तरह बर्ताव करने लगता है। कनिका कपूर और मरकज मामले में हमने इसका सबसे वीभत्स रूप देखा है।

प्रवासी मजदूरों द्वार शहरों से सैंकड़ो किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव पहुँचने के बाद गाँव में उनके साथ दुश्मन सा व्यवहार किया गया। कई गाँवो के लोगो ने तो गाँव-बंदी करके उन मजदूरों को गाँव में घुसने से रोक दिया भले ही वो अपने साथ मेडिकल स्कैनिंग का सर्टिफिकेट लेकर आए हों।

भारत सरकार कोरोना के खिलाफ़ लड़ाई में तीनों ही मोर्चे पर फेल हुई है। जहाँ चिकित्सीय मोर्चे पर सरकार के पास पर्याप्त टेस्टिंग किट, पीपीई किट, वेटिंलेटर नहीं हैं, वहीं सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर भी कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई है। गली मोहल्ले, फुटपाथ के छोटे दुकानदार सब बेहाल हैं। जबकि सरकार ने तीसरे मोर्चे यानि कोविड-19 के खिलाफ़ मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर लड़ाई लड़ने की ज़रूरत पर तो कभी सोचा ही नहीं। नतीजा ये है कि लगभग रोज ही आत्महत्या के नए नए मामले सामने आ रहे हैं।

आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं  

सोमवार की सुबह हरियाणा में एक अस्पताल की छठी मंजिल से कूदकर भागने की कोशिश में 55 वर्षीय कोरोना संदिग्ध शख्स की मौत हो गई। पानीपत के रहने वाले कोरोना संदिग्ध व्यक्ति को एक अप्रैल को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तब से उसे आइसोलेशन वार्ड में रखा गया था। उसके खून की जांच की रिपोर्ट आनी अभी बाकी थी। पुलिस के मुताबिक अस्पताल से भागने के लिए चादर और प्लास्टिक के पैकेट से रस्सी बनाकर उस रस्सी के सहारे वह उतरने की कोशिश कर रहा था। इस घटना के बाद से आइसोलेशन वार्ड की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

इससे पहले 4 अप्रैल को गुजरात के पालनपुर में एक व्यक्ति ने खुदखुशी कर ली। विनोदभाई पुरुषोत्तम भाई चौरसिया नामक व्यक्ति की उम्र 42 वर्ष थी। उन्हें 20 मार्च को 14 दिन के लिए क्वारंटीन में रखा गया था। शुक्रवार को उनकी क्वारंटीन की अवधि खत्म हो गई थी और उनकी कोरोना टेस्ट भी नेगेटिव आई थी।

वहीं 3 अप्रैल को पंजाब के अमृतसर में कोरोना वायरस होने की आशंका के चलते गुरजिंदर कौर और बलविंदर सिंह हैं नामक दंपति ने जहर खाकर आत्महत्या कर लिया। पति की उम्र 65 साल थी और पत्नी 63 वर्ष की थी। घटना अमृतसर के बाबा बकाला के सठियाला गांव की है। मृतक दंपत्ति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि हम कोरोना वायरस के कारण नहीं मरना चाहते हैं। हमें कोरोना से टेंशन हो गई थी। वहीं डॉक्टरों ने दंपत्ति के शवों का पोस्टमॉर्टम करने से इनकार करने का मामला भी सामने आया है।

2 अप्रैल गुरुवार को देर रात झारखंड की राजधानी रांची के अशोक नगर में एक युवक ने कोरोना से बीमार होने की आशंका में फंदे से झूलकर आत्महत्या कर ली। मृतक का नाम पप्पू कुमार सिंह है और वह मूल रूप से बिहार के भोजपुर जिले के पीरो का रहने वाला है। वर्तमान में वह अशोक नगर रोड नंबर चार में निखिल रंजन नामक व्यक्ति के मकान में किराए पर रहता था। पप्पू ऑटो चला कर परिवार का पालन पोषण करता था। पप्पू मानसिक रूप से बीमार था और उसका इलाज रिनपास में भी चल रहा था। कोरोना वायरस के खतरे को लेकर वह काफी डिप्रेशन में था।

उत्तर प्रदेश में कोरोना से भय के चलते आत्महत्या के कई मामले

उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के भय से अब तक कई लोगो ने आत्महत्या की है।  लखीमपुर में रह रहे और अपने परिवार से मिलने के लिए 23 साल का एक प्रवासी मजदूर ने दो अप्रैल को आत्महत्या कर ली. पीड़ित छह भाई-बहनों में सबसे छोटा था और वह 28 मार्च को गुरुग्राम से अपने राज्य लौटा था। सरकारी आदेश के मुताबिक उसे गांव के बाहरी इलाके में बने एक स्कूल में क्वारंटाइन में रखा गया था। पुलिस के अनुसार, वह अपने परिवार से मिलने के लिए दो बार क्वारंटाइन सेंटर से भाग गया था लेकिन दोनों बार अधिकारियों ने उसे ढूंढ निकाला था और उसे वापस केन्द्र में ले आए थे। इस मामले में पुलिस पर इस व्यक्ति की पिटाई का भी आरोप लगा है.

दूसरी घटना बुधवार 1 अप्रैल की है, उत्तर प्रदेश के शामली जिले के जिला अस्पताल के क्वारन्टाइन वार्ड में भर्ती कोरोना के एक संदिग्ध मरीज कर्मवीर ने खुदखुशी कर लिया था। 40 वर्षीय कर्मवीर दो दिन पहले यानि 30 मार्च दिल्ली से अपने गांव आया था। मृतक दिल्ली में सब्जी बेचा करता था। 30 मार्च को वह अपने गांव लौटा था। वह बीमार था। अगले दिन उसने स्वास्थ्य विभाग से संपर्क किया और खुद को अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा। बाद में उसे क्वारंटाइन वार्ड में भर्ती किया गया और टेस्ट के लिए सैंपल मेरठ लैब भेजा गया था। आज उसकी रिपोर्ट आनी थी लेकिन उसने पहले ही आत्महत्या कर ली। मृतक शामली के थाना कांधलाका, गाँव नानूपूरा का रहने वाला था।

एक अप्रैल बुधवार शाम को ही यूपी के सहारनपुर में एक 38 वर्षीय क्लर्क ने शेरमऊ इलाके में गन्ना विकास परिषद के ऑफिस में पंखे से लटककर जान दे दी। क्लर्क के पॉकेट से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है, जिसमें लिखा है कि वो अपनी मर्जी से आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित होने का डर था। वहीं इस मामले पर सहारनपुर एसएसपी दिनेश कुमार पी ने कहा कि आत्महत्या करने वाला शख्स डिप्रेशन में था।

31 मार्च मंगलवार को बुखार और सर्दी से पीड़ित मथुरा यूपी के एक किसान ने ‘अपने पूरे गांव को कोरोना वायरस से संक्रमित होने से बचाने’ के लिए आत्महत्या कर ली थी।

29 मार्च को उत्तर प्रदेश के हापुड़ थाना पिलखुवा क्षेत्र में एक शख्स ने कोरोना होने के शक में शेविंग ब्लेड से गला काटकर आत्महत्या कर ली। बता दें कि मृतक सुशील कुमार (35 वर्ष) अपनी मां, पत्नी और दो बच्चों के साथ पिलखुवा की मोहननगर कॉलोनी में पिछले 4 सालों से रह रहा था। इसी इलाके में उसकी सैलून की दुकान थी। परिवार ने बताया कि एक हफ्ते पहले सुशील को बुखार आया, फिर बुखार ना उतरने और गले में इन्फेक्शन होने पर उन्होंने कोरोना वायरस के डर से पहले सरकारी अस्पताल से दवा ली। आराम न मिलने पर मोदीनगर में एक डॉक्टर से इलाज करवाने लगा लेकिन फिर भी उन्हें आराम नहीं मिल रहा था। कोविड-19 के डर से सुशील ने परिवार से दूरी बना लिया, दुकान पर भी जाना बंद कर दिया और डिप्रेशन में रहने लगा। था। शनिवार रात भी जब वो अलग कमरे में सो गए थे। रविवार की सुबह जब परिवार वाले चाय लेकर पहुंचे तो सुशील का खून से लथपथ मृत शरीर को बेड पर पड़ा पाया। उसके पास से एक सुसाइड नोट बरामद हुई। सुशील ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि उसे कोरोना वायरस होने का डर है। यह बच्चों में ना हो जाए इसलिए खुदकुशी कर रहा हूं। मेरे बच्चों और मां का ध्यान रखना और उनका कोरोना का टेस्ट करवा देना। मेरे दोनों भाई विजय और ललित मेरे परिवार और मां का ध्यान रखना और आत्महत्या के लिए माफ कर देना।

29 मार्च को मथुरा के थाना हाईवे क्षेत्र में कोरोना के डर से एक युवक ने कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली। उसे खासी-जुखाम था। इस कारण उसने मान लिया कि वह कोरोना संक्रमित हैं। परिवार वालों को भी संक्रमण न फैल जाए, यह सोच कर उसने आत्महत्या कर ली।

27 मार्च को लखीमपुर में नंदापुर गांव में एक किसान ने कोरोना के डर से खेत में जाकर आत्महत्या कर ली। कोरोना की तमाम अफवाहों के बीच उसे भ्रम हो गया था कि वह भी इससे संक्रमित है। इस डर से उसने खुद को फांसी लगा कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।

24 मार्च को ही उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में सचेंडी थाना क्षेत्र के बिनौर गांव में एक सप्ताह पूर्व खजुराहो से घूम कर आए मनीष तिवारी (28) ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। बड़े भाई आशीष ने बताया कि जब से भाई लौटकर घर आया था उसे खांसी आ रही थी, उसने इसका जिक्र भी किया था। सोमवार देर रात उसने घर की दूसरी मंजिल पर बने कमरे में पंखें के सहारे फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मनीष तीन भाइयों में सबसे छोटा था। दो अन्य बड़े भाई आशीष और श्रीष है जबकि बहन रेखा की शादी हो चुकी है। आशीष ने बताया कि कोरोना की बढ़ रही घटनाओं का जिक्र अक्सर करता था। इसको लेकर भी वह परेशान चल रहा था।

23 मार्च को बरेली जंक्शन पर एक युवक ने मालगाड़ी से कटकर जान दे दी। युवक को कई दिनों से बुखार था। बताते हैं वह जंक्शन पर आया उसने कहा भी कि मुझे कोरोना है। मुझे बचा लो। किसी ने ध्यान नहीं दिया। युवक ट्रैक पर लेट गया, इसी बीच मालगाड़ी आ गई। जब तक लोग उसे बचाने दौड़े।  उसके पेट के ऊपर से मालगाड़ी का पहिया चढ़ गया। जिससे उसकी मौत हो गई।  मृत युवक की पहचान नहीं हो पाई है। आरपीएफ जीआरपी मामले की जांच कर रही है।

22 मार्च को हापुड़ के पिलखुवा में एक युवक ने गर्दन रेतकर आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में युवक ने कोरोना के कारण आत्महत्या लिखी है। मौत के बाद स्वास्थ विभाग की टीम ने जाकर घर को सेनेटराइज कराया है। एडीएम ने कहा पोस्टमार्टम के बाद सैंपल लखनऊ सेंपल भेजा जाएगा।
पिलखुवा निवासी तीस वर्षीय सुशील को कई रोज पहले बुखार आया था। जो मोदीनगर में इलाज करा रहा था। लेकिन बुखार न उतरने और गले में इंफेक्शन होने पर उसको शक हो गया। जिसके बाद वह सरकारी अस्पताल भी पहुंचा। लेकिन कोई सेंपलिंग न होने और खासी बुखार होने के कारण लोग बचने लगे। जिससे युवक डिप्रेशन में पहुंच गया। जिसने अपने दोनो बच्चो और पत्नी को अलग कमरे में सुला दिया। युवक ने रात को कमरे में गर्दन काटकर आत्म हत्या कर ली। जिसके पास सुसाइड नोट रखा हुआ था। जिसमे लिखा था कि कोरोना के कारण उसने मौत को गले लगा लिया। सूचना से जिले में हड़कंप मच गया। पालिका और स्वास्थ्य विभाग की टीम मौके पर पहुंच गई। युवक का शव पुलिस ने कब्जे में लेकर पोसटमार्टम के लिए भेज दिया है। मृतक के परिवार को आइसोलेट करते हुए घर को सेनेटाईज कराया जा रहा है। एडीएम जयनाथ यादव का कहना है कि उसकी कोई पुष्टि या सेंपल नहीं हुआ था। अब बुखार में ही उसने आत्म हत्या कर सुसाइड नोट लिख दिया। इसका पोस्टमार्टम के बाद लखनऊ सेंपल भेजा जा रहा है।

दूसरे राज्यों में आत्महत्या की घटनाएं

30 मार्च  धमतरी जिले के आदिवासी अंचल नगरी सिहावा क्षेत्र में होम आईसोलेशन में रखे युवक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। बताया जाता है कि उक्त युवक 15 मार्च को बैंगलोर से अपने घर लौटा था और 20 मार्च से होम आईसोलेशन में था। मृतक के बारे में बताया जाता है कि पत्नी का पूर्व में देहांत हो चुका है और परिवार में वह अकेला  ही था। इसी के कारण मानसिक रूप से परेशान रहा करता था।

इसी कड़ी में नगरी सिहावा अंतर्गत आने वाले टांगापानी निवासी गणपत मरकाम 37 वर्ष जो बोरगाडी में काम करता था। 15 मार्च को बैंगलोर से अपना घर लौटा था स्वास्थ विभाग द्वारा संदेह के आधार पर  20 मार्च से उसे होम आईसोलेशन में रखा गया था। आज सुबह वो अचानक  घर से निकला और फांसी लगाकर जान दे दी।

18 मार्च को राजधानी दिल्ली में एक मरीज ने आत्महत्या कर ली। मरीज ने 7वीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। 35 वर्षीय मृतक हाल ही में सिडनी से वापस लौटा था। मरीज को रात 9 बजे आईजीआई एयरपोर्ट से एक संदिग्ध के तौर पर भर्ती करवाया गया था उसके सिर में दर्द भी था।

2 अप्रैल को दिल्ली के तबलीगी जमात के मरकज में पहुंचे एक शख्स ने भी आत्महत्या की कोशिश की। दरअसल, मरकज में पहुंचे कुछ लोगों को दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भी भर्ती करवाया गया है। जहां इनमें शामिल एक शख्स ने आत्महत्या करने की कोशिश की. शख्स अस्पताल की इमारत से नीचे कूदने की कोशिश कर रहा था. हालांकि समय रहते शख्स को बचा लिया गया।

 

कोरोना के खिलाफ़ काउंसिलिंग की ज़रूरत

सरकार कोरोना मामले को शुरु से ही बहुत हल्के में लिया है। अभी भी केंद्र और तमाम राज्य सरकारें इस संवेदनशील मसले को बहुत गंभीर तरीके से इस महामारी को हैंडिल करने की कोशिश नहीं कर रही हैं। आलम ये है कि लोग कोरोना से नहीं कोरोना कोरोना के डर से आत्महत्या करके मर रहे हैं। सरकार को क्वारंटाइन किये लोगो के काउंसिलिंग के लिए कार्यक्रम तक नहीं चला रही है।

प्रसिद्ध समाजशास्त्री इमाइल दुर्खीम ने आत्महत्या के सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कहा था – “आत्महत्या एक सामाजिक प्रक्रिया का परिणाम है।” कोविड-19 वैश्विक महामारी के इस समय सोशल आइसोलेशन और कोविड-19 के बारे में फैलाए गई तमाम अफवाहों के चलते तमाम समाज में तनाव और भय व्याप्त है।

दुर्खीम ने कहा था- “अगर किसी समूह में आपसी साहचर्य कि भावना कमजोर होगी तो उसके सदस्यों में नैतिक या मनोवैज्ञानिक समस्या पाए जाने की आशंकाए ज्यादा होंगी।”

ऐसे में आइसोलेशन या क्वारंटाइन में रखे गए लोगों को विशेष काउंसिलिंग की आवश्यकता है। इसके अलाव समाज के दूसरे तबकों तक सही जानकारी देकर उनके लिए भी टीवी और दूसरे मीडिया माध्यमों के जरिए लगातार क्लासेस चलाने की आवश्यकता है।

केरल की वामपंथी सरकार ने इस मामले में एक बेहतरीन दृष्टांत स्थापित किया है। केरल सरकार ने 241 कॉल सेंटर स्थापित किए हैं जहां अलग अलग 241 काउंसलर रखे गए हैं। इन काउंसिलिंग सेंटर ने अब तक केरल में 23 हजार काउंसलिंग सत्र आयोजित किए हैं। जो कोविड-19 महामारी की मौजूदा स्थिति से डरे या घबराए हुए हैं उनको उबारने में बेहद कारगार हथियार साबित हो रहा है। ज़रूरत है कि केंद्र और दूसरे राज्यों की सरकारें इस मसले में केरल सरकार का अनुसरण करें।

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