समकालीन जनमत
कविता

फ़रीद इस समय की कविता के प्रखर स्वर हैं : आलोक धन्वा

पटना। “फ़रीद इस समय की कविता के प्रखर स्वर हैं। इधर अच्छी कविताएँ लिखीं जा रहीं हैं, कविताएँ लिखी जानी चाहिए। ये कविताएँ सामने आ रही हैं, यह सुखद है। वर्तमान दौर में कविता का ही सबसे भ्रष्ट मूल्यांकन हो रहा है, इसपर गम्भीरता से बात होनी चाहिए। “

ये बातें वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा ने फ़रीद ख़ाँ की कविता-संग्रह ‘गीली मिट्टी पर पंजो के निशान’ पर बात करते हुए कही। अवसर था जन संस्कृति मंच और नटमंडप के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित फ़रीद खाँ की कविता संग्रह ‘ गीली मिट्टी पर पंजों के निशान ‘ पर चर्चा और कविता पाठ का।

इस दौरान उक्त कविता संग्रह को लोकार्पित भी किया गया। इस अवसर पर युवा कवि अंचित ने कहा कि बहुत समय बाद कोई ऐसा संग्रह आया है जिस पर विस्तार से बात होनी चाहिए। अपने अंतर्विरोधों के साथ जिस मुखरता के साथ फ़रीद की कविताओं में समय प्रस्तुत होता है वह अपने आप में महत्वपूर्ण है। वे उस तरह के कवियों में हैं जो बने बनाये कविता के स्वरूप को तोड़ते हैं अथवा उसे तोड़ते हुए दिखते हैं और इसलिए वे अपने समकालीनों में अलग हैं। अपने व्यक्तव्य के दौरान फ़रीद की कविता ‘ माफी ‘, रोहित वेमुला पर लिखी कविता ‘ आत्महत्या ‘ और ‘ छिपकर रहता हूँ ‘ का उन्होंने विशेष तौर पर उल्लेख किया।

इसके बाद युवा कवि नरेन्द्र कुमार ने कहा कि फ़रीद की दृष्टि, मिजाज़ और उद्देश्य बहुत साफ़ है। वे आमजन के साथ हैं, पर उनकी आलोचना से भी बाज नहीं आते। कुछ कविताओं में फ़रीद खां का एक्टिविस्ट रूप भी देखने को मिलता है। कहीं कविता प्रवृत्ति से व्यक्ति की ओर मुड़ने लगती है। यह सब है तो समझिए वह मानव है। कविता किसकी है ? मानवता की ही न! उन्होंने कहा कि ‘ एक और बाघ ‘, ‘ गंगा मस्जिद ‘, ‘ अफवाह ‘ आदि उल्लेखनीय कविताएं हैं।

कार्यक्रम में फ़रीद खाँ ने अपनी कविताएँ भी पढ़ीं। इस दौरान उन्होंने ‘ एक और बाघ ‘, ‘ नानी का चश्मा ‘, ‘ लकड़-सुंघवा ‘, ‘ दादाजी साइकिल वाले ‘, ‘ गंगा मस्जिद ‘, ‘ मुस्कराहटें ‘, ‘ माफ़ी ‘, ‘ ईश्वर अपने प्रकट होने का इंतज़ार कर रहा है ‘, ‘ प्रकृति अपना हिसाब माँग रही है ‘, ‘ मादक ‘ और ‘ सारहीन ‘ कविता पढ़ी।

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए कवि निवेदिता ने कहा कि फ़रीद की कविताएँ भीतर ठहरती हैं। उनकी कविताओं का वितान बड़ा है। ऐसी कविताएँ वही लिख सकता है जिसके पास विस्तृत जीवन अनुभव हो, अपनी खास दृष्टि हो, सत्ता के षड्यंत्रों का खुला विरोध हो।

कवि-समीक्षक कृष्ण समिद्ध ने संग्रह पर अपनी बात रखते हुए बाघ कविता शृंखला की विशेष तौर से चर्चा की। उन्होंने कहा कि ये कविताएँ वैयक्तिक होते हुए भी समूह की कविताएँ हैं।

इस दौरान पटना कॉलेज के प्राचार्य और मानविकी संकाय के डीन प्रो. तरुण कुमार ने कहा कि फ़रीद की भाषा बहुत परिपक्व है। इनकी कविताओं में कई आवाज़ों की अनुगूंज है। बहुत कम शब्दों में बहुत गम्भीरता से फ़रीद अपनी बात कहते हैं। उनकी कविताओं में उनका अपना पता है। वो अपने पते से जुड़ी हुई हैं, लोक और मिट्टी से जुड़ी हुई हैं।

कार्यक्रम के अंत में अभिनेता जावेद अख्तर ने कहा कि फ़रीद की कविताओं में गुस्सा है। वे अपने स्वर में व्यंग्य करती हुई कविताएँ हैं। इस दौरान उन्होंने उसकी हथेली और हमारी बात कविता का पाठ भी किया।

इस अवसर पर आयोजक संस्थाओं और उपस्थित साहित्यकार, संस्कृतिकर्मियों की ओर से यौन शोषण के खिलाफ जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे महिला पहलवानों और उनके साथ अन्य खिलाड़ियों के समर्थन का प्रस्ताव लिया गया तथा कार्यक्रम में पढ़ी गई स्त्री अधिकारों पर केंद्रित कविताओं को उन्हें समर्पित किया गया। प्रस्ताव समता राय ने पढ़ा।

कार्यक्रम का संचालन कवि राजेश कमल ने और धन्यवाद ज्ञापन आकांक्षा ने किया। कार्यक्रम में आयशा नुमानी, राणा जमाल, आरएन ठाकुर, विशाल, दिव्यम, गालिब कलीम, मुसर्रत जहां, नित रंजन झा, सीमा फातिमा, डाक्टर शकील, अनामिका, विनय कुमार, हेमंत कुमार, बीनू कुमार, संतोष चंदन, इंदू रानी झा, नीतू, विकास, संजय, अनिमेष, संतोष आर्या, अर्पिता, बालमुकुंद, अभिनव, आज़ाद चांद, शिबली आदि उपस्थित थे।

तेज आंधी, ओले और बारिश की बौछार तथा शहर में हो रहे दो-तीन अन्य आयोजनों के बावजूद काव्यप्रेमियों की अच्छी मौजूदगी थी। बिजली गुल हो जाने के कारण शुरुआती चालीस-पचास मिनट कार्यक्रम मोमबत्ती की रोशनी में हुआ।

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