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मुकुल सरल की ग़ज़लें और नज़्म लोकतंत्र की स्थिति, मानवता और प्रेम को व्याख्यायित और पुनर्व्याख्यायित करती हैं

राज वाल्मीकि

नई दिल्ली। “इस किताब में बहुतों की आवाज़ शामिल है। इसमें मुल्क के आज के हालात को शामिल किया गया है। मुकुल सरल की ग़ज़लें सत्ता से सीधा सवाल पूछती हैं। वे सवाल पूछती हैं ग़रीब, किसान, मज़दूरों के हालात पर, सत्ता की ज़्यादती पर। मुकुल सरल की ग़ज़लें और नज़्में लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति, मानवता और प्रेम को व्याख्यायित और पुनर्व्याख्यायित करती हैं। इस के शीर्षक मे एकता और साझे का भाव निहित है। इस व्यवस्था पर बड़ा हस्तक्षेप हैं मुकुल सरल की रचनाएं।”

टिप्पणीकार कमला कुमारी ने उपरोक्त बातें मुकुल सरल की किताब ‘मेरी आवाज़ में है तू शामिल’ के संदर्भ में कहीं।

मुकुल सरल की इसी वर्ष 2023 में प्रकाशित उपरोक्त पुस्तक पर 29 अप्रैल को चर्चा रखी गई। चर्चा का आयोजन “गुलमोहर किताब” द्वारा सफाई कर्मचारी आंदोलन के कार्यालय, ईस्ट पटेल नगर मे किया गया।

सबसे पहले मुकुल सरल ने अपनी कुछ ग़ज़लों और नज़्मों का पाठ किया। उसके बाद वक्ताओं ने अपने विचार रखे। मुकुल ने पुस्तक से अपनी पसंद की कुछ ग़ज़लें-नज़्में सुनाईं-

सच कहने में सर कटने का ख़तरा है

चुप रहने में दम घुटने का ख़तरा है

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मुल्क मेरे तुझे हुआ क्या है

ये है अच्छा तो फिर बुरा क्या है!

उन्होंने “मां” पर अपनी मर्मस्पर्शी ग़ज़ल सुनाई। जिसे सभी ने सराहा। “अख़लाक़ का बेटा” ग़ज़ल भी काफी पसंद की गई। पुस्तक की शीर्षक ग़ज़ल लोगों को काफी अच्छी लगी।

कैसे कह दूं कि मैं तो टूट गया

जाने किस-किस का हौसला हूं मैं

मेरी आवाज़ मे है तू शामिल

तेरे होंठों से बोलता हूं मैं

कवि और कहानीकार शोभा सिंह ने मुकुल सरल को उनकी पुस्तक के लिए बधाई देते हुए कहा मुकुल सरल की रचनाओं मे विस्तार और व्यापकता दिखाई देती है। उनके लेखन का फलक बड़ा है। उनकी रचनाएं सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। साथ ही राजनीतिक के दुष्चक्र का भी आईना हैं। उन्होंने अपनी ग़ज़लों मे उर्दू के कठिन शब्दों को हिन्दी में भी दे दिया है जिससे पाठक को रचनाएं समझने मे आसानी हो गई है। उनकी प्रेम की ग़ज़लें भी बहुत सुंदर हैं। उत्कृष्ट हैं। जैसे वे एक ग़ज़ल में कहते हैं-‘मैं जो लोहे-सा हूं, सीसे-सा पिघल जाता हूं/ साथ उसके जो मैं होता हूं बदल जाता हूं’ पर अभी मुकुल को ख़ुद को और मांजना होगा। “मेरी आवाज़ में है तू शामिल” वक़्त की एक ज़रूरी किताब है। इसे जन-जन तक पहुंचना चाहिए।”

शायर और पत्रकार मुईन शादाब ने कहा, “इस किताब के शीर्षक में बहुत व्यापकता है। ये आवाज़ सिर्फ़ मुकुल सरल की आवाज़ नहीं है। ये पूरी दुनिया की आवाज़ है। मुकुल सरल अन्याय के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाते हैं। उनमे सच बोलने का साहस है।”

लेखक-अनुवादक स्वदेश कुमार सिन्हा ने कहा, “मुकुल जी का रचना संसार बड़ा है। हमें हर तरह के भाव पर इस पुस्तक मे उनकी रचनाएं मिल जाती हैं।”

पत्रकार-रंगकर्मी सत्यम तिवारी ने उनकी किताब को आशा की किताब कहा। उन्होंने इस किताब से एक नज़्म भी पढ़ी।

सामाजिक कार्यकर्ता सुलेखा सिंह ने कहा, “मैं इन ग़ज़लों और नज़्मों को मुद्दों से जोड़ने की कोशिश करती हूं। “मज़दूर के बच्चे” का हमने कई कार्यक्रमों में पाठ किया है। मुकुल की सफ़ाई कर्मचारियों के मुद्दों पर लिखी ग़ज़लें झकझोरती हैं।”

पत्रकार नाज़मा ख़ान ने कहा कि, “मुकुल ने जो महसूस किया है वो लिखा है। उनकी रचनाओं मे एक बेचैनी दिखती है। मुझे उनकी ग़ज़ल ‘अखलाक़ का बेटा’ ने बहुत प्रभावित किया।”

कार्यक्रम का संचालन कर रहीं पत्रकार और कवि भाषा सिंह ने अपनी टिप्पणी में कहा, “आज के दौर में क्या लिखा जाए ये बड़ी चुनौती है। आज विचलन का दौर है। ऐसे में खरी कविता लिखना ख़तरे से खाली नहीं। पर मुकुल में यह साहस है। उनका ये संग्रह आज के समय में गंभीर हस्तक्षेप है। मुकुल का लेखन पितृसत्ता का जो नोशन है उसे डी-कास्ट करता है। मुकुल मोहब्बत के कवि हैं। उनमे प्रेम का सहज-सरल बहता हुआ भाव दिखता है। मुकुल की चिंता है कि दुनिया कैसे सुंदर बने। कैसे बेहतर बने। और उसका जवाब है – प्रेम। जो उनकी रचनाओं मे दिखता है।”

नाटककार राजेश कुमार ने कहा, “मुकुल के शब्द ज़मीनी हैं। उनमे कथ्य और रूह का अच्छा संतुलन है। मुकुल जी ने अपनी रचनाओं मे जो सवाल उठाएं हैं उनसे अक्सर लोग बचते हैं। रचनाओं में आज के दौर को पकड़ा गया है।”

कवि और राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह ने कहा, “मुकुल की रचनाएं समावेशी रचनाशीलता का उदाहरण हैं। इनमें समय को दर्ज करने की कोशिश की गई है। उनकी ‘अख़लाक़ का बेटा’ रचना अच्छी लगी। आज के दौर में जब नफ़रत की राजनीति चल रही है ऐसे मे मुकुल प्रेम और सद्भाव की बात करते हैं जो सराहनीय है।” साथ ही उन्होंने एक मशवरा दिया कि, “मुकुल पर पुराने शायरों का असर ज़्यादा दिखता है, इससे उन्हें मुक्त होने की ज़रूरत है।”

कवि और पत्रकार कुलदीप कुमार ने अजय सिंह की टिप्पणी के संदर्भ उर्दू अदब की रवायत का ज़िक्र करते हुए कहा कि “हमारी बहुत लंबी परंपरा है, हम उससे विछिन्न न हों, उससे जुड़े रहें, उसमें से जो ग्रहण करने लायक है, उसे ग्रहण करें, जो लायक नहीं लगता उसे छोड़ दें।”

शायर ओमप्रकाश नदीम, अशोक रावत, रूपा सिंह और वाजिदा खान अपरिहार्य कारणों से कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके। इसलिए उनके संदेश पढ़कर सुनाए गए।

मुकुल सरल की बेटियों सखी और सहर ने भी अपने पिता के कुछ रोचक प्रसंग साझा किए। सहर ने अपनी प्रतिक्रिया एक कविता के रूप में दी।

इसके अलावा पत्रकार उपेंद्र स्वामी, महेंद्र मिश्र, सोनिया यादव, सामाजिक कार्यकर्ता धम्म दर्शन, सना सुल्तान, खिलखिल आदि कई सहभागियों ने मुकुल सरल की रचनाओं पर अपनी टिप्पणी की। इस मौके पर पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी, अनिल जैन, श्रीराम शिरोमणि, डॉ. द्रोण कुमार, अखिलेश कुमार शर्मा आदि समेत कई प्रतिष्ठित जन मौजूद रहे।

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