हिंदी के जाने-माने कवि मंगलेश डबराल का 9 दिसंबर 2020 को कोरोना संक्रमित होने के कारण दिल्ली के एम्स में निधन हो गया मंगलेश डबराल जनता के कवि थे और लगातार हमारे समाज और देश में चल रहे मुद्दों से जुड़े रहते थे और सक्रिय रहते थे जो उनकी कविताओं और लेखों में स्पष्ट है ऐसे में इस दौर में उनका इस तरह से हम सब को अलविदा कहना हिंदी समाज और शोषण और दमन के खिलाफ डटे रहने वाले लोगों के लिए गहरी क्षति है।
रविवार को मंगलेश डबराल जी को याद करते हुए इलाहाबाद जन संस्कृति मंच (जसम) के सदस्यों ने श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। सभा का संचालन कृष्ण कुमार पांडेय और अध्यक्षता जसम के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर राजेंद्र कुमार ने की।
मंगलेश डबराल जी का कार्यक्षेत्र उनकी रूचियों का दायरा अलग-अलग वर्गों के प्रति उनकी विस्तृत समझ थी। उनके छः काव्य संग्रह प्रकाशित हैं और वह पूर्वाग्रह, अमृत प्रभात, जनसत्ता और सहारा समय पत्रिकाओं और अखबारों से भी जुड़े रहे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर और जनवादी लेखक संघ (जलेस) इलाहाबाद के सचिव बसंत त्रिपाठी जी ने उन्हें याद करते हुए कहा कि मंगलेश जी हमेशा हर मुश्किल वक्त में लोगों के साथ खड़े रहे फिर चाहे वह किसानों की समस्या हो सांप्रदायिकता हो या दलितों से जुड़ा कोई मुद्दा हो। इससे जुड़े हुए उन्होंने कविताएं लिखी और दुनिया भर के उन तमाम साहित्य का अनुवाद किया जो जनता से जुड़े रहे। हमेशा हर उस जगह पर जहां एक सचेत नागरिक को होना चाहिए अपनी आवाज और अपने कलम के माध्यम से जिंदा रहे। उनकी लगभग सभी काव्य संग्रह में मां-पिता, मित्रों और लड़ने वाले जुझारू साथियों के बारे में कविताएं हैं। इस दौर में उन्होंने तानाशाह और हत्यारों पर भी अनेक कविताएं लिखी और शोषित जनता के लिए हर बार अलग-अलग तरीकों से बेचैन करने वाली और उम्मीद भरी कविताएं लिखी।
समानांतर के संस्थापक और इप्टा के सदस्य अनिल रंजन भौमिक ने मंगलेश डबराल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि मंगलेश जी जुझारू कवि थे उन्होंने जनसत्ता और अमृत प्रभात के परिशिष्ट को समृद्ध किया और वे अपनी कविताओं में आज के समय को ही लिख रहे थे।
प्रलेस की संध्या नवोदिता ने को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि मंगलेश जी जनता के पक्ष में खड़े होने वाले कवि थे और जन पक्षधर योद्धा थे। उनकी कविताएं और लेख हमेशा हमें प्रेरित करते रहेंगे। उनके जीवन में बहुत विस्थापन रहा तमाम मुश्किलें आईं लेकिन उन्होंने उम्मीद की लालटेन जलाए रखी।
प्रियदर्शन मालवीय ने मंगलेश डबराल को याद करते हुए उनसे जुड़ी हुई जीवन की तमाम स्मृतियों को साझा करते हुए कहा- मंगलेश जी शास्त्रीय संगीत से जुड़े रहे। उन्होंने संगतकारों की स्थितियों पर विस्तार में अपनी बात की है। जिसके बारे में आमतौर पर लोग सोचते भी नहीं। वह बड़े फलक के कवि थे और आखिर तक सांप्रदायिकता और सामंती ताकतों से लड़ते रहे।
मजदूर संगठन ऐक्टू के जिला सचिव कमल उसरी जी ने मंगलेश जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि वे जीवन भर किसानों मजदूरों और शोषितों के लिए लड़ते रहे ऐसे में इस दौर में उनका जाना बहुत तकलीफदेह है।
प्रोफेसर अली अहमद फातमी ने मंगलेश जी को याद करते हुए उन्हें बेधड़क और बेबाक कवि बताया। उन्होंने कहा कि मंगलेश जी कवि होने के साथ-साथ पत्रकार अनुवाद जन कार्यकर्ता भी रहे। जिसकी वजह से उनका फलक बहुत विस्तृत था वह संघर्षशील शख्सियत के व्यक्ति थे जो उनकी कविताओं में भी स्पष्ट दिखता है।
समकालीन जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय ने मंगलेश जी को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि मंगलेश जी बहुत ही मामूली लोगों की घनीभूत पीड़ाओं के कवि थे। उनकी कविताओं के भीतर से दुर्बलताओं की आवाज उसकी पीड़ा और उनका लड़ाकूपन नजर आता है। जिसको समझने की जरूरत है। वह हमेशा समकालीन मुद्दों पर सचेत रहें। बिहार चुनाव में भी उन्होंने मतदाताओं के लिए पत्र लिखा। गुजरात दंगों पर भी उन्होंने कविता लिखी। उनका जाना जसम, हिंदी कविता और साहित्यिक पत्रकारिता के लिए गहरी क्षति है। रामजी राय ने मंगलेश जी की कविता ‘बार-बार कहता था मैं’ और ‘मां का नमस्कार’ का पाठ किया।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी राजन विरूप जी ने भी मंगलेश जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और उन्हें जनता के लिए लड़ने वाला जुझारू कवि बताया।
अंत में सभा की अध्यक्षता कर रहे जसम के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर राजेंद्र कुमार जी ने मंगलेश जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनसे जुड़ी जीवन की तमाम स्मृतियों को साझा किया। उन्होंने बताया कि मंगलेश जी ने अपना जीवन समाज और लोगों की पीड़ा से जोड़कर जिया। पत्रकारिता में उनका अहम योगदान रहा। मंगलेश जी का विविध कलाओं में विस्तृत ज्ञान और रुचि रही। सामान्यता हिंदी समाज में कलाओं के बीच अबोलापन है, मंगलेश की कविता वह जगह देती है जहां की कलाएं एक दूसरे से संवाद करती हैं। ऐसे में मंगलेश का होना हिंदी समाज को समृद्ध करता है। राजेंद्र जी ने मंगलेश डबराल जी की एक पंक्ति से अपनी बात को खत्म किया कि सुंदर पठनीय गद्य कविता में ही बचता है।
विभिन्न वक्ताओं के वक्तव्य के पश्चात मंगलेश डंगवाल की कविताओं के ऑडियो-वीडियो को प्रदर्शित किया गया।
सभा ने राघव सक्सेना, प्रसिद्ध चित्रकार विभास दास और हिंदी के वरिष्ठ लेखक विष्णुचंद्र शर्मा को श्रद्धांजलि दी गई।
सभा के अंत में कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन को लेखक संगठनों का समर्थन और आंदोलन में साहित्यकारों-रंगकर्मियों के सक्रिय भागीदारी का प्रस्ताव पास हुआ।
सभा का समापन और धन्यवाद ज्ञापन जसम की सुधा शुक्ला ने किया सभा में शायर असरफ अली बेग, प्रयागपथ के संपादक हितेश सिंह, आनंद मालवीय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विवेक तिवारी, असिस्टेंट प्रोफेसर अंशुमान कुशवाहा, ऐक्टू के प्रदेश सचिव अनिल वर्मा, जनमत की प्रबंध संपादक मीना राय, ऐपवा से चारुलेखा और शिवानी, आइसा से अंतस सर्वानंद, शक्ति रजवार, सौम्या, यश सिंह, विवेक सुल्तानवी, आरवाईए से प्रदीप कुमार, डेमोक्रेटिक लॉयर्स एसोसिएशन से माता प्रसाद पाल समेत शहर के कई साहित्यकार, बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी और छात्र-युवा मौजूद रहे।