12 मई मंगलवार की रात साढ़े 10 बजे राजकोट, गुजरात के जूनागढ़ कस्बे में स्थित एक भोजनालय का शटर उठाकर 5 युवक भीतर घुसे. उन्होंने भोजनालय में रखा चावल उबाला और आलू कढ़ी बनाया। फिर पांचों ने एक साथ बैठकर इत्मिनान से भरपेट खाना खाया और खाने के बाद भोजनालय में पड़े किसी भी सामान या गल्ले को हाथ लगाए बिना चुपचाप निकल गए। उनका सारा क्रिया-कलाप भोजनालय में लगे सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गया।
जाहिर है वो पांचों युवक भूखे थे और भोजन के इरादे से ही भोजनालय में घुसे थे। अतः भरपेट भोजन के बाद उन्होंने भोजनालय में रखे किसी भी चीज को छूने की ज़रूरत ही न समझी।
Video: A group of five men breaks into an eatery in Gujarat's Junagadh town; cooks rice, potato curry to eat, leaves without stealing anything pic.twitter.com/3G6Ji8V31Y
— TOIRajkot (@TOIRajkot) May 15, 2020
‘टाइम्स ऑफ इंडिया राजकोट’ ने घटना का सीसीटीवी वीडियो अपने ट्विटर हैंडल पर साझा किया तो रिप्लाई में कई कथित आदर्शवादी, छद्म नैतिकतावादी लुटेरे टाइप के राष्ट्रवादी लोग टाइम्स ऑफ इंडिया की लानत मलानत करने लगे। इन फर्जी राष्ट्रवादियों और कथित नैतिकतावादियों पर कुछ टिप्पणी करने के बजाय मैं आप सबको हिंदी भाषा के वरिष्ठ कवि अरुण कमल की कविता ‘उधर के चोर’ पढ़ाना चाहता हूँ। यकीन मानिए यदि आपमें कोई संवेदना बची होगी तो ये कविता चोर के बारे में आपकी बनी-बनाई धारणा को बदल देगी। तो पेश है कविता ‘उधर के चोर’-
उधर के चोर भी अजीब हैं
लूट और डकैती के अजीबो-गरीब किस्से-
कहते हैं ट्रेन-डकैती सात बजते-बजते सम्पन्न हो जाती है
क्योंकि डकैतों को जल्दी सोने की आदत है
और चूँकि सारे मुसाफ़िर बिना टिकट
ग़रीब-गुरबा मज़दूर जैसे लोग ही होते हैं
इसलिए डकैत किसी से झोला किसी से अंगोछा चुनौटी
खैनी की डिबिया छीनते-झपटते
चलती गाड़ी से कूद रहड़ के खेत में ग़ुम हो जाते हैं;
और लूट की जो घटना अभी प्रकाश में आई है
उसमें बलधामी लुटेरों के एक दल ने दिनदहाड़े
एक कट्टे खेत में लगा चने का साग खोंट डाला
और लौटती में चूड़ीहार की चूड़ियाँ लूट लीं;
लेकिन इससे भी हैरतअंगेज़ है चोरी की एक घटना
जो सम्पूर्ण क्षेत्र में आज भी चर्चा का विषय है-
कहते हैं एक चोर सेंध मार घर में घुसा
इधर-उधर टो-टा किया और जब कुछ न मिला
तब चुहानी में रक्खा बासी भात और साग खा
थाल वहीं छोड़ भाग गया-
वो तो पकड़ा ही जाता यदि दबा न ली होती डकार।
भूखे हैं तो खाना चुराना अपराध नहीं : इटली सुप्रीम कोर्ट
मई 2016 में इटली के सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद मानवीय फैसला सुनाया था। कोर्ट ने फैसले में कहा था कि –“अगर आप बेहद भूखे हैं, तो ऐसी स्थिति में थोड़ी मात्रा में भोजन चुराने को अपराध नहीं माना जाना चाहिए”– और इस कथन के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के जजों ने यूक्रेन मूल के रोमन नागरिक ऑस्ट्रियाकोव के खिलाफ चोरी के अपराध में दोषी ठहराने के निचली अदालतों के फैसले को पलट दिया था।
बता दें कि ऑस्ट्रियाकोव यूक्रेन मूल के एक बेघर व्यक्ति हैं। वह बेहद भूखे थे। और उन्होंने अपनी भूख मिटाने के लिए एक सुपरमार्केट से चीज और सॉस चुराए थे। जिसकी कीमत करीब 4.50 डॉलर थी। वहां मौजूद एक ग्राहक ने स्टोर सिक्यॉरिटी को 2011 में यह शिकायत की थी। उसने बताया था कि यह शख्स जिनोआ सुपरमार्केट से चीज के 2 पीस और सॉस के 1 पैकेट के साथ बाहर आया और उसके पैसे नहीं दिए। इसके बाद 2015 में ऑस्ट्रियाकोव पर चोरी का आरोप सिद्ध हुआ। उन्हें 6 महीने की जेल की सजा हुई। साथ ही उस पर 100 यूरो का जुर्माना भी लगाया गया।
लेकिन इटली की सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जीवन के अधिकार को संपत्ति से ऊपर मानते हुए निचली कोर्ट के फैसले को बदलते हुए आस्ट्रियाकोव को सजा से मुक्त कर दिया।
चोरी बनाम लूट
युवा कहानीकार मनोज कुमार पांडेय की एक कहानी है ‘चोरी’। कहानी का नायक एक जगह कहता है- “एक और अंतर था उनमें और मुझमें। मैं ऐसे ही झूठ-मूठ का चोर था। वे असली के चोर थे। मेरी चोरी में एक कला थी। उनकी चोरी इतनी खुली थी कि उसे चोरी कहना ही गलत था।
वह लूट थी। खुली लूट। इसके लिए कला नहीं ताक़त की ज़रूरत थी। ऐसे ताक़त की जो किसी के भी प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही से मुक्त हो। ऐसी ताकत जो न्याय के दूसरी तरफ ही अपना मुँह करके चलती हो। बल्कि न्याय जिसके चरण धोता हो। ”
6 बैंकों के 414 करोड़ लेकर भागा चावल कारोबारी
लॉकडाउन के दौरान ही मई के पहले सप्ताह में मीडिया द्वारा एक सूचना देशवासियों से साझा की गई कि भारतीय स्टेट बैंक ने दिल्ली स्थित बासमती चावल निर्यात फर्म के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पास शिकायत दर्ज़ कराई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उसके प्रवर्तक, जिन्होंने छह बैंकों के कंसोर्टियम को 414 करोड़ रुपये का धोखा दिया, वे देश से फरार हैं। एसबीआई द्वारा एक निरीक्षण के बाद राम देव इंटरनेशनल लिमिटेड के मालिक 2016 से लापता बताए जा रहे हैं।
जांच में लगे अधिकारियों ने ये भी बताया कि आरोपी ने देश छोड़ने से पहले अपनी अधिकतर संपत्तियां बेच दी थी। जब SBI को लगा कि उसका बकाया वापस नहीं आएगा, तब उसने सीबीआई को शिकायत दी है।
केंद्रीय एजेंसी ने 28 अप्रैल 2020 को फर्म मालिकों के नाम के साथ मामला दर्ज किया। इसमें सुरेश कुमार, नरेश कुमार और संगीता के नाम हैं और उनके खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी किए गए हैं। जबकि साल 2018 में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के आदेश के अनुसार, यह बताया गया कि ये राम देव इंटरमनेशनल लिमिटेड के प्रवर्तक दुबई भाग गए हैं। कंपनी के लोन को 2016 में एनपीए के बट्टे खाते में डाल दिया गया था।
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के पास मौजूद दस्तावेजों से पता चला है कि मुस्सदी लाल कृष्णा लाल नामक कंपनी की डिफॉल्टर होने के बाद रामदेव इंटरनेशनल लिमिटेड को ट्रिब्यूनल में लाया गया था। ट्रिब्यूनल ने रामदेव इंटरनेशनल लिमिटेड के तीनों निदेशकों को तीन बार नोटिस भेजा, लेकिन उनका पता नहीं चला। दिसंबर, 2018 में ट्रिब्यूनल को जानकारी दी गई कि आरोपी दुबई भाग गए हैं और उनका पता नहीं लगाया जा सकता। चौकसी, माल्या, नीरव ललित मोदी के लूटने और भागने की कथा तो आप जानते ही हैं।
लॉकडाउन में भूख से बिलखते बच्चों को देख दिहाड़ी मजदूरों द्वारा आत्महत्या की कुछ घटनाएं
एक मजदूर जिसने अपनी जीवनसंगिनी को किसी बहुत ही अच्छे पल में एक साड़ी खरीदकर दी थी। 13 मई बुधवार की शाम उस मजदूर ने जीवनसंगिनी की उसी साड़ी को फांसी का फंदा बनाकर आत्महत्या कर लिया। घटना उत्तर प्रदेश, जिला कानपुर, थानाक्षेत्र काकादेव के राजपुरवा की है।
राजापुरवा निवासी विजय बहादुर उम्र 40 साल दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पाल रहा था। लॉक डाउन के कारण उसे काम और परिवार को खाना मिलना बंद हो गया था। उसके बच्चे कभी सूखी रोटी खाके सोते तो कभी निखालिश पानी पीके। विजय बहादुर की जीवनसंगिनी रम्भा ने आस-पास के घरों में जाकर झाड़ू-पोछा, चूल्हा-बर्तन-खाना करने की पेशकश की लेकिन कोरोना संक्रमण के आतंक के चलते किसी ने उसे काम नहीं दिया। थक हारकर रम्भा ने अपने जेवर बेंचने का निर्णय लिया लेकिन लॉकडाउन के चलते वो भी न बिक सका।
भूख के चलते बिटिया अनुष्का की तबीअत बिगड़ी तो मजदूर दंपत्ति बेहाल हो उठे। बुधवार की शाम रम्भा अपनी बिटिया के साथ रोटी की खोज में घर से बाहर निकली थी उसी समय विजय बहादुर ने खुद को फांसी पर टांग दिया। क्योंकि उससे अब अपने भूखे बच्चों की पीड़ा बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी। विजय के परिवार में जीवनसंगिनी रम्भा खए अलावा 4 बच्चे शिवम, शुभम, रवि और अनुष्का हैं।
17 अप्रैल को हरियाणा में एक प्रवासी मजदूर मुकेश कुमार ने आत्महत्या कर लिया था। आत्महत्या करने से दो दिन पहले ही मुकेश ने अपना 12 हजार का मोबाइल महज ढाई हजार रुपये में बेचकर खाने की सामग्री खरीदकर ले आया था। चूँकि इन दिनों छोटे से घर में चार बच्चों और पत्नी के साथ दोपहर बिताना असहनीय हो रहा था, इसलिए एक टेबल पंखा भी खरीद लाया था। मुकेश अपने परिवार के साथ सरस्वती कुंज डीएलएफ फेज 5 की झुग्गियों में रहता था।
लॉकडाउन की वजह से मुकेश की जमा-पूंजी खत्म हो गई थी। हालात इतने खराब थे कि उनके पास खाने तक के लिए पैसे नहीं थे। लॉकडाउन की वजह से रोजगार भी नहीं बचा, ऐसे में वो अपने बीवी बच्चों को खाना कहां से खिलाए, ये सोच-सोच कर परेशान हुआ जा रहा था।
मरहूम मजदूर मुकेश है बिहार के मधेपुरा का रहने वाला था। मुकेश अपने पीछे चार बच्चे सोनी (7 साल) गोलू (4 साल), काजल (2 साल) रवि (5 माह) और जीवनसंगिनी पूनम को छोड़ गया है।
अप्रैल के पहले सप्ताह (4 या 5 तारीख) में असम के ग्वालपारा जिले में अगिया पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में आने वाले अंबारी कोचपारा गाँव के 35 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर गोपाल बर्मन उनकी पत्नी और तीन बच्चे लॉकडाउन से पहले से ही गरीबी से जूझ रहे थे, लेकिन जब भोजन और आवश्यक चीजें भी नहीं जुटा पाए और आय का कोई जरिया न दिखा तो बर्मन ने खुद को अपने बच्चों का पेट भरने में असमर्थ पाया।
बर्मन का परिवार एक अप्रैल को भोजन जुटाने के लिए बाहर निकला था लेकिन तीन दिन तक कोई इंतजाम नहीं हुआ तो उसकी पत्नी के जोर देकर व्यवस्था करने के लिए कहा इस पर दोनों के बीच बहस हुई तो पत्नी ने कुछ रिश्तेदारों से मदद लेने का फैसला किया। इसके बाद बर्मन बाहर निकल गया लेकिन वापस नहीं लौटा। उऩके नाबालिग बच्चे घर पर अकेले थे क्योंकि दोनों पति पत्नी खाना जुटाने की तलाश में निकले थे। जब माता पिता घर नहीं लौटे तो बच्चों ने पड़ोसियों को सूचित किया जिसके बाद वे उनकी तलाश में निकले। पड़ोसियों ने बर्मन को एक पेड़ पर लटका हुआ पाया।
3 अप्रैल को राजस्थान के बारां के कच्ची बस्ती कुजबिहार कॉलोनी में रहने वाले दिहाड़ी मजदूर रामविलास के तीन छोटे-छोटे बच्चे दो दिन से खाना नहीं मिलने से भूखे थे। लॉकडाउन के कारण काम धंधा बंद था । जबकि प्रशासन और स्वंयसेवी संस्था द्वारा खाने के पैकेट या खाद्द्य सामग्री नहीं मिल पा रही थी। इसके कारण सभी दो दिन से भूखे थे।
बच्चे लगातार अपने पिता से खाना मांग रहे थे, इससे परेशान राम विलास ने अपने घर में ही 3 अप्रैल शुक्रवार को फांसी लगाने का प्रयास किया, लेकिन समय पर पहुँचे आसपास के लोगों ने बचा लिया।
चोरी और अपराधबोध
इस लेख का अंत मैं चोरी की एक ताजातरीन घटना के जिक्र के साथ करना चाहता हूँ। एक दूसरा वाकया राजस्थान-उत्तर प्रदेश सीमा स्थित ‘रारह’ गांव में सामने आया। जहाँ 13 मई बुद्धवार की सुबह साहब सिंह सोकर उठे तो बरामदे में खड़ी अपनी साईकिल को नदारद पाया, चिंता हुई, खोजबीन भी की। थोड़ी देर बाद झाड़ू लगाते वक़्त उन्हें उसी बरामदे में एक कागज का टुकड़ा मिला। दरअसल वो कागड का टुकड़ा साईकिल मालिक के नाम साईकिल चोर द्वारा छोड़ा हुआ ख़त था।
ख़त में लिखा था-
“मैं आपका कसूरवार हूं। लेकिन, मजदूर हूं और मजबूर भी। मैं आपकी साइकिल लेकर जा रहा हूं। मुझे माफ कर देना। मेरे पास कोई साधन नहीं है और विकलांग बच्चा है। मुझे बरेली तक जाना है।”
साईकिल चोर ने ख़त के नीचे अपना नाम ‘ मोहम्मद इक़बाल’ भी दर्ज़ किया था।
साईकिल चोर का ख़त पढ़ने के बाद साईकिल चोरी होने का जो गुस्सा दिल में था वह आत्मसंतोष में बदल गया। साईकिल मालिक साहेब सिंह मजबूर चोर का ख़त पढ़ने के बाद कातर गले से कहते हैं- मेरी साईकिल किसी मजबूर के काम आई मुझे इस बात की तसल्ली है।
साईकिल चोर द्वारा ख़त छोड़कर जाना इस बात का सबूत है कि वो साईकिल चोरी करने के लिए किस हद तक विवश था कि उसके पास अपने विकलांग बेटे को ले जाने के लिए साईकिल चुराने के सिवा और कोई विकल्प ही नहीं था। बावजूद इतनी मजबूरी के वो अपनी इस चोरी के प्रति अपराधबोध व ग्लानिबोध से भरा हुआ था और इसी ग्लानिबोध से भरने के चलते ही उसने साईकिल मालिक साहेब सिंह के लिए ख़त लिखकर छोड़ा।
साहेब सिंह बताते हैं कि बरामदे में और भी सामान थे लेकिन साईकिल के अलावा और किसी भी चीज को उस मजबूर चोर ने हाथ नहीं लगाया।
राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बीच ‘रारह’ नामक सीमाई ग्राम पंचायत है। लॉकडाउन के बाद से प्रवासी मजदूर यहां से पैदल ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल, झारखंड आदि राज्यों के लिए बॉर्डर क्रॉस करते रहे हैं। मोहम्मद इकबाल भी मंगलवार की रात पास के सहनावली गांव में आकर रुका था। जो बुधवार की अलसुबह साईकिल लेकर और ख़त छोड़कर चलते बना। मोहम्मद इकबाल कहां से आया था। क्या करता था। कौन साथ में था। बरेली में कहां जाना था। फिलहाल इसका अता-पता नहीं चल सका है।
क्या आपने किसी अडानी, अंबानी, माल्या, मोदी, टाटा, बिड़ला को किसी अपराधबोध या ग्लानिबोध से भरे देखा, सुना है क्या ?