समकालीन जनमत
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‘ वह धर्म कहलाने योग्य नहीं जिसके सिद्धांत और आदेश किसी जाति या देश के अध:पतन के कारण हो ’

( आज गणेश शंकर विद्यार्थी का शहादत दिवस है. 23 मार्च 1931 की सुबह कानपुर में दंगे की आग को शांत करते और पीड़ित लोगों की सहायता पहुंचाते हुए उन्होंने शहादत दी. दो दिन बाद उनका जला हुआ शव मिला था. मजहबी कट्टरता और धर्मान्धता के खिलाफ गणेश शंकर विद्यार्थी आजीवन संघर्ष करते रहे. 9 नवम्बर 1913 को प्रकाशित उनके अख़बार ‘ प्रताप ’ के पहले अंक में उनका पहला संपादकीय ‘ प्रताप की नीति ‘ नाम से छपा था. उनकी स्मृति में प्रस्तुत है उनकी पहली संपादकीय )

 

प्रताप की नीति

आज अपने हृदय में नई-नई आशाओं को धारण करके आशाओं को धारण धारण को धारण धारण आशाओं को धारण धारण को धारण धारण करके और अपने उद्देश्य पर पूर्ण विश्वास रखकर ‘ प्रताप ’ कर्म क्षेत्र में आता है. समस्त मानव जाति का कल्याण हमारा परमोद्देश्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति का एक बहुत बड़ा और बहुत जरूरी साधन हम भारतवर्ष की उन्नति को समझते हैं.  उन्नति से हमारा अभिप्राय देश की कृषि, व्यापार, विद्या, कला,  वैभव,  मान, बल, सदाचार और सच्चरित्रता की वृद्धि है.

राजा और प्रजा में , एक जाति और दूसरी जाति में, एक संस्था और दूसरी संस्था में वैर और विरोध, अशांति और असंतोष ना होने देना हम अपना परम कर्तव्य समझेंगे. हम अपने देशवासियों को उन सब अधिकारों का पूरा हकदार समझते हैं जिन का हकदार संसार का कोई भी देश हो सकता है.

हमारे लिए वह धर्म कहलाने योग्य नहीं जिसके सिद्धांत और आदेश किसी जाति या देश की मानसिक, आत्मिक,  शारीरिक , या राजनीतिक अध:पतन के कारण हो. जो धर्मव्यवहार और आचरण से उदासीन होकर कोरी कल्पनाओं से लोगों का दिल बहलाया करता हो, उसे केवल धर्माभास समझते हैं.

हम जानते हैं कि हमें इस काम में बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और इसके लिए बड़े भारी साहस और आत्मबल की आवश्यकता है. हमें यह भी अच्छी तरह मालूम है कि हमारा जन्म निर्बलता, पराधीनता एयर अल्पज्ञता के वायुमंडल में हुआ है. तो भी हमारे हृदय में सत्य की सेवा करने के लिए आगे बढ़ने की इच्छा है और हमें अपने उद्देश्य की सच्चाई तथा अच्छाई का अटल विश्वास है.

लेकिन जिस दिन हमारी आत्मा में इतनी निर्बल हो जाए कि अपने प्यारे आदर्श से डिग जावें, जान-बूझकर असत्य के पक्षपाती बनने की बेशरमी करे और उदारता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता को छोड़ देने की भीरुता दिखाए, वह दिन हमारे जीवन का सबसे अभागा दिन होगा और हम चाहते हैं कि हमारी उस नैतिक मृत्यु के साथ-ही-साथ हमारे जीवन का भी अंत हो जाए.

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