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कोविड-19 से निपटने के सरकारी तरीकों की आलोचना पर पत्रकारों पर कहर

दानिश रज़ा

( दानिश रज़ा की यह रिपोर्ट ‘ द गार्जियन ’ से साभार ली गयी है। हिन्दी अनुवाद दिनेश अस्थाना का है )

 

कोविड-19 के मामलों के लगातार आसमानी उछाल और इस महामारी से निपटने में नाकामी की आलोचना करने पर सरकार का क़हर मीडिया पर बरपा हुआ है। 50 से अधिक भारतीय पत्रकारों की गिरफ्तारी हुयी है, या उनके खिलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज करायी गयी है, या उनके ऊपर हिंसक हमले किये गये हैं। इनमें से अधिकांश स्वतंत्र पत्रकार हैं जिनका कार्यक्षेत्र ग्रामीण भारत है जहाँ भारत की 1.35 अरब की आबादी के 60 प्रतिशत से अधिक लोग निवास करते हैं।

उत्तर भारत के पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के एक हिन्दी अखबार के पत्रकार ओम शर्मा का कहना है, ‘‘इसका अप्रत्यक्ष संदेश यह है कि हम सरकार के स्याह पक्ष को नही दिखा सकते। हमने जो खुद देखा है उसपर अपनी आँखें बन्द कर लें तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।’’ लाॅक डाउन के दौर में फँसे हुये भूखे मजदूरों पर फेसबुक लाइव करने पर पुलिस ने उनपर मुकदमा क़ायम किया है। शर्मा को झूठी खबरें फैलाने, एक सरकारी अधिकारी के आदेशों की अवहेलना करने और अपनी लापरवाही से एक ख़तरनाक रोग फैलाने के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है।

दुनिया की सबसे बड़ी आबादी पर थोपा गया लाॅकडाउन 10 हफ्ते बाद पिछले हफ्ते आंशिक रूप से हटाया गया। इस दौरान देश की अनेक सामाजिक और आर्थिक असमानतायें तीव्रतर रूप में उभरी हैं, सबसे कमजोर तबके सबसे अधिक प्रभावित हुये हैं, उन्हें अपने रोेजगार से हाथ धोना पड़ा है। वृहस्पतिवार तक 15 लाख 80 हजार लोग कोरोना वायरस से संक्रमित थे और 38,000 जानें जा चुकी थीं।

लाॅकडाउन की घोषणा किये जाने के ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया संगठनों के 20 मालिकों और सम्पादकों के साथ एक वीडियों कांफ्रेंस किया था। उन्होंने उनसे कहा था कि, ‘‘बढ़ते हुये निराशावाद, नकारात्मकता और अफ़वाहों से निपटना बहुत महत्वपूर्ण था।’’ इस महामारी से निपटने की मोदी की कवायद लगातार आलोचना का विषय रही क्योंकि उन्होंने वायरस से निपटने की अपनी नीतियों में बार-बार परिवर्तन किया और नाकाम होते रहे और इस समय भारत अमेरिका और ब्राजील के बाद कोरोना वायरस से सबसे अधिक प्रभावित तीसरा देश बन गया है।

एक ऐसे देश में जहाँ सोशल मीडिया पर अर्धसत्य घूमते रहते हैं- कुछ मामलों में तो राजनेता ही उन्हें फैलाते हैं- और सन्देहास्पद इलाज़ का प्रचार किया जाता है, वहाँ सरकार उच्चतम न्यायालय में दलील देती है कि ‘‘झूठी खबरों’’ के चलते ही शहरों से मजदूरों का पलायन हुआ। इसपर न्यायालय ने मीडिया को निर्देश दिया कि ‘‘वह किसी घटना को प्रकाशित करते समय सरकारी पक्ष को ही सन्दर्भित करे।’’

पत्रकारों की शिकायत है कि उनकी स्वतंत्रता पर आघात किया जा रहा है। स्थानीय प्रशासन ने शर्मा को कर्फ्यू पास जारी करने से मना कर दिया था। तो उनके पास सोशल मीडिया और स्थानीय लोगों द्वारा साझा किये जा रहे मुद्दों पर भरोसा करके घर से काम करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा था।

इस महीने की शुरुआत में पत्रकार रक्षा समिति ( कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स) ने हिमाचल प्रदेश सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी जिसका नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री को शर्मा और पाँच दूसरे पत्रकारों के खिलाफ़ दायर मुकदमे वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी।

जम्मू और कश्मीर में पत्रकारों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनपर शारीरिक हमले किये थे। 11 अप्रैल को पुलिस ने कश्मीर आब्जर्वर के श्रीनगर संवाददाता मुश्ताक अहमद गनाई की गिरफ्तारी से पहले थप्पड़ मारा था और उनकी डंडों से पिटाई की थी। उस समय गनाई लाॅकडाउन की रिपोर्ट भेज रहे थे।

123 साल पुराने संचारी रोग कानून (एपीडेमिक डिज़ीज़ एक्ट) के उल्लंघन की धाराओं में गनाई को 48 घंटे तक जेल में रखा गया था। गनाई ने बताया कि वापस किये जाने से पहले उनकी कार से ‘‘प्रेस’’ का स्टिकर उतार दिया गया था। अगले दिन वह अपने कार्यालय में वापस आ गये थे।

मीडिया पर ढाये जा रहे क़हर से आवागमन की चुनौतियाँ दोगुनी हो गयी हैं। इसके अलावा वकीलों तक पहुँच सीमित हो गयी है और अदालतों में आज भी केवल बहुत जरूरी मुकदमों की सुनवाई की जा रही है। फ्री स्पीच कॅलेक्टिव की गीता सेशु ने बताया कि पाबंदियों के चलते समाचार देने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही थी। उनका कहना है कि, ‘‘महामारी के दौरान सरकार ने पर्यावरण और रेलवे को लेकर कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले किये हैं। इन फैसलों की समीक्षा न करके अधिकतर मीडिया संगठनों ने सुरक्षित खेल खेला है।’’

180 देशों के वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (ग्लोबल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स) में भारत का स्थान दो अंक गिरकर 142 पर आ गया है। इसका उत्तर देते हुये मई में भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने ट्वीट किया कि ‘‘भारत में प्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है। हम बहुत जल्दी ऐसे सर्वेक्षणों को बेनकाब कर देंगे जो भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की खराब तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।’’

‘द गार्जियन’ से साभार

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