आरा. स्थानीय नागरी प्रचारिणी सभागार में आज वरिष्ठ आलोचक, कवि और संपादक रामनिहाल गुंजन के सम्मान में आयोजन हुआ। आयोजन की शुरुआत इप्टा के गायक-संगीतकार नागेंद्र पांडेय द्वारा गुंजन जी के गायन से हुई। स्वागताध्यक्ष के बतौर कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने लोगों का स्वागत किया और रामनिहाल गुंजन को जनता के पक्ष में खड़ा साहित्यकार बताया।
पहले सत्र ‘शब्द-यात्रा और सम्मान’ को संबोधित करते हुए बनारस से आए आलोचक अवधेश प्रधान ने कहा कि राजनीति समझती है कि उसने वक्त की बागडोर संभाल रखी है, पर साहित्य-संस्कृति की विरासत उससे बहुत बड़ी है। सभ्यता-संस्कृति की जितनी लंबी उम्र है, हम उतनी लंबी उम्र लेकर आए हैं। साहित्य में जुमला संभव नहीं होता। राजनीति में खोटे सिक्के चल जाते हैं, पर अर्थनीति और साहित्य-संस्कृति में खोटे सिक्के नहीं चलते। साहित्य में सम्मानीय होने के लिए एक पूरी उम्र देनी पड़ती है। राहुल सांकृत्यायन और रामविलास शर्मा पर रामनिहाल गुंजन जी की पुस्तकों का जिक्र करते हुए कहा कि हिंदी समाज और संस्कृति के लिए इन दोनों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। गुंजन जी ने उस महत्वपूर्ण विरासत को चिह्नित करने का काम किया है। गुंजन जी ने प्रगतिशील साहित्यकारों और विचारकों की उपलब्धियों पर लिखना ही जरूरी समझा है। वे एक जिम्मेदार आलोचक हैं। उन्होंने आरा शहर के साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों और नागरिकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह समाज जागरूक समाज माना जाएगा, जो सम्मानीय का सम्मान करता है।
दिल्ली से आए कवि और ‘अलाव’ पत्रिका के संपादक रामकुमार कृषक ने कहा कि आज के मनुष्य विरोधी समय में कला-साहित्य-संस्कृति का जो क्षेत्र है, वह मनुष्य होने की प्रेरणा देता है। गुंजन जी की आलोचना और रचना मनुष्यता के लिए समर्पित है। वे परंपरा में मौजूद और समकालीन रचनाओं का समग्रता में मूल्यांकन करने वाले आलोचक हैं।
रांची से आए आलोचक रविभूषण ने कहा कि आरा की जमीन बड़ी जरखेज है। गुंजन जी के सम्मान समारोह में पांच राज्यों के लेखकों का शामिल होना सामान्य बात नहीं है। गुंजन जी विश्व क्रांतिकारी कविता की विरासत, कविता और संस्कृति तथा कविता और जनतंत्र पर लिखा है। जिस दौर में भारतीय जनतंत्र आखिरी सांसें गिन रहा हो, उस दौर में प्रगतिशील-जनवादी साहित्य की क्या भूमिका होनी चाहिए, यह रामनिहाल गुंजन बार-बार बताते हैं। वे कट्टर आलोचक नहीं है। उन्होंने जो लिखा है, उसे ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए।
रांची (झारखंड) से ही आए चर्चित कथाकार और कवि रणेंद्र ने कहा कि आरा उन्हें हमेशा उद्वेलित करता है। गुंजन जी की आलोचना का वितान व्यापक है। वे मानते हैं कि रचना और आलोचना- दोनों जीवन की आलोचना हैं। निराला और शमशेर पर लिखी गई रामनिहाल गुंजन की आलोचना की विशिष्टताओं को रेखांकित करते हुए रणेंद्र ने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें अपनी पत्रिका ‘कांची’ में गुंजन जी को छापने का मौक़ा मिला।
गोरखपुर से आए जन संस्कृति मंच के महासचिव चर्चित पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने कहा कि आज सोचने, बोलने और सवाल उठाने की आजादी पर सर्वाधिक हमला है। लघु पत्रिकाओं की अपेक्षा डिजिटल माध्यम के जरिए कम समय में ज्यादा लोगों पर पहुंचना जरूर संभव है, पर इस माध्यम पर सत्ता प्रतिष्ठान कभी भी अंकुश लगा सकते हैं। इस वक्त का कश्मीर इस बात का साक्ष्य है। आज दस हजार से अधिक प्रकाशन रजिस्टर्ड हैं, 900 टीवी चैनल हैं, इंटरनेट है, पर सब पर सत्ता का नियंत्रण है। उससे अलग जनता का सच सामने नहीं आ रहा है। लघु पत्रिकाओं के एक लेखक के तौर पर गुंजन जी की भूमिका को ध्यान में रखते हुए हमें सारे पुराने तरीकों और नए तरीकों और अनुभवों को संयोजित करके काम करना होगा।
प्रगतिशील लेखक संघ, बिहार के महासचिव रवींद्रनाथ राय ने कहा कि उन्होंने रामनिहाल गुंजन को कभी भी प्रतिबद्धता से विचलित हुए नहीं देखा। हिंदी की रूपवादी कविता के वे विरोधी रहे हैं। उनकी आलोचना कृषक क्रांति और नक्सलबाड़ी विद्रोह से प्रेरित वैचारिक-राजनैतिक आंदोलन से गहरे तौर पर प्रभावित है।
आलोचक-संपादक अरविंद कुमार ने गुंजन जी की अप्रकाशित रचनाओं को प्रकाशित करने का सुझाव दिया। सुनील श्रीवास्तव ने रामनिहाल गुंजन के संपादकीय विवेक पर सुचिंतित पर्चा पढ़ा। कवि बलभद्र ने उनकी भोजपुरी कविताओं और आलोचना पर प्रकाश डाला तथा उनके संकलन के प्रकाशन की जरूरत पर जोर दिया। सुमन कुमार सिंह ने उनकी कविताओं के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि उनका मानना है कि कविता को कलावाद से मुक्त करके वैचारिक संघर्ष का वाहक बनाना होगा।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए कथाकार नीरज सिंह ने कहा कि गुंजन जी ने हमेशा प्रगतिशील मूल्यों के पक्ष में लिखा। उन्होंने एक साहित्यिक एक्टिविस्ट का जीवन जीया है। लेखन उनके लिए मिशनरी काम रहा है।
पहले सत्र के दौरान रामकुमार कृषक, रविभूषण, नीरज सिंह, अवधेश प्रधान और रणेंद्र ने गुंजन जी को सम्मानित किया। मान-पत्र का पाठ और सत्र का संचालन सुधीर सुमन ने किया।
दूसरे सत्र ‘जीवन-कर्म: संगी-साथी की जुबानी’ संस्मरण केंद्रित था। सत्र की शुरुआत रामकुमार कृषक द्वारा ‘अलाव’ पत्रिका’ में प्रकाशित गुंजन जी की ‘दिल्ली’ शीर्षक की तीन कविताएं सुनाईं।
इस सत्र में लखनऊ से आए कौशल किशोर ने कहा कि स्नेह-प्रेम और संवाद आदमी गुंजन जी की पहचान है। 1970 के वाम क्रांतिकारी आंदोलन का उन पर गहरा असर रहा है। गुंजन जी की वैचारिक निर्मिति उसी दौरान हुई है। बक्सर से आए शायर कुमार नयन ने कहा कि गुंजन जी सहज-सरल व्यक्तित्व के धनी है। धीमे और शांत स्वर के वे प्रखर आलोचक है। बर्नपुर से आए शिवकुमार यादव ने कहा कि गुंजन जी की रचनाएं उनकी संगी-साथी हैं। कवि जनार्दन मिश्र ने कहा कि गुंजन जी का व्यक्तित्व प्रेरणादायी है।
प्रो. पशुपतिनाथ सिंह ने कहा कि उनका गुंजन जी से तीन दशक का संपर्क है, पर पहली बार उनकी सृजनात्मकता के कई आयामों से परिचय हुआ। पारिवारिक और प्राकृतिक कष्टों से जूझते हुए वे निरंतर लिखने-पढ़ने का काम करते रहे हैं। जनपथ संपादक कथाकार अनंत कुमार सिंह ने कहा कि गुंजन जी के साहित्य की विरासत को समझना और सम्मान देना जरूरी है। डाॅ. विंध्येश्वरी और कवि ओमप्रकाश मिश्र ने कहा कि वे रचनाओं के प्रकाशित होने पर नोटिस लेकर नये साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने वाले आलोचक हैं। सुनील श्रीवास्तव ने अपने पिता विजेंद्र अनिल और रामनिहाल गुंजन के बीच के दोस्ताना रिश्ते को याद करते हुए कहा कि वे उनके अभिभावक की तरह हैं। चित्रकार राकेश दिवाकर ने कहा कि तीसरी धारा की संस्कृति की समृद्धि में इनकी बड़ी भूमिका है।
सम्मानित साहित्यकार रामनिहाल गुंजन जी ने कहा कि उनका सम्मान दरअसल एक पूरी परंपरा का सम्मान है। उन्होंने कहा कि वे अपने आप को बहुत सामान्य व्यक्ति मानते हैं, जो इस देश गरीब देश का नागरिक है। उन्होंने जनवादी-क्रांतिकारी शक्तियों को आगे बढ़ाने का आह्वान किया।
दूसरे सत्र के अध्यक्ष सुरेश कांटक ने कहा कि गुंजन जी कभी समझौता न करने वाले साहित्यकार रहे हैं। उनमें कभी कोई वैचारिक विचलन नहीं आया।
दूसरे सत्र का संचालन कवि बलभद्र ने किया।
आयोजन में जनपथ पत्रिका के संपादक और कथाकार अनंत कुमार सिंह पर भविष्य में सम्मान समारोह आयोजित करने का प्रस्ताव लिया गया। इस मौके पर चित्रकार राकेश दिवाकर की पेंटिंग और रविशंकर सिंह द्वारा बनाए गए पोस्टर लगाए गए थे। धन्यवाद ज्ञापन आशुतोष कुमार पांडेय ने किया। आयोजन स्थल पर एक बुक स्टाॅल भी लगा था।
आयोजन में कवि जगतनंदन सहाय, लक्ष्मीकांत मुकुल, कथाकार सिद्धनाथ सागर, प्रो. दिवाकर पांडेय, कवि अरविंद अनुराग, अरुण शीतांश, संतोष श्रेयांश, शायर इम्त्यिाज अहमद दानिश, कुर्बान आतिश, सिद्धार्थ वल्लभ, कवि आरपी वर्मा, अविनाश रंजन, विशाल, सुनील चौधरी, प्रकाशक अशोक गुप्त, रंगकर्मी सुनील सरीन, श्रीधर, अंजनी शर्मा, अशोक मानव, अमित मेहता, सूर्य प्रकाश, रंजन यादव, श्री जगत भूषण, धनंजय कटकैरा, रविप्रकाश सूरज, का. सुदामा प्रसाद, संतोष सहर, जवाहरलाल सिंह, शोभा मंडल, अजीत कुशवाहा, बालमुकुंद चौधरी, दिलराज प्रीतम, दीनानाथ सिंह, अमित कुमार बंटी, सुजीत कुमार, हरिनाथ राम, सत्यदेव, जज वर्मा, सबीर, चंदन, डाॅ. नवीन कुमार, आजाद कुमार भारती, कृष्णा जी, महेंद्र सिंह, रामकुमार नीरज, पत्रकार शमशाद, प्रशांत और नेहा गुप्ता आदि मौजूद थे।