समकालीन जनमत
ख़बरग्राउन्ड रिपोर्ट

‘ हम मुल्क़ बचाने निकली हैं , अब हम पीछे नहीं हटेंगी ’

निजामुद्दीन में सीएए -एनआरसी विरोधी धरने के ग्राउंड रिपोर्ट

नई दिल्ली. भारी पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के बीच बरसते आसमान के नीचे तीन दिन से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठी हैं निजामुद्दीन की स्त्रियां और बच्चे। जबर्दस्त उत्साह से भरे दूसरी, तीसरी चौथी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे चार्ट में नारे और मांगे लिखकर उसे पोस्टर बैनर में तब्दील कर देते हैं। वहीं बगल में ही कुछ बड़ी कक्षा के छात्र प्रदर्शनकारियों के शरीर के अंगों पर तिरंगा पेंट कर रहे हैं।

एक बुजुर्ग और फिर बच्चियां मंच से नारे लगाती हैं —

आजाद देश में ………आजादी

है हक़ हमारा ……….आजादी

जो तुमने जागे …….आजादी

हम छीन के लेंगे……. आजादी

अशफाक वाली……….आजादी

बिस्मिल वाली…….आजादी

जीने वाली………..आजादी

मांएं भी माँगे……आजादी

वो ममतावाली…….. आजादी

मेरी बहने भी मांगे…….आजादी

वो इज्जतवाली…… आजादी

मेरा भाई भी मांगे…….आजादी

वो गैरत वाली………. आजादी

 

निजामुद्दीन की शाह जहाँ कहती हैं – हम यहां सरकार को अपना गुस्सा दिखा रही हैं। हम लोगों की मांग है कि सीएए वापिस ले लिया जाए क्योंकि हमारे बच्चों के भविष्य पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। हम आज तक अपने घरों से बाहर नहीं निकले थे। आज हमें निकलना पड़ा है अपनी आवाज़ उठाने के लिए। इससे पहले हमारे पुरखे- पुरखिनें 1947 की आजादी में बाहर निकले थे। हम बहुत दिलेर लोग हैं लेकिन हम अपनी तकलीफें दिखाने के लिए ही बाहर निकले हैं कि देखिए आज हमारे साथ क्या क्या हो रहा है। हम भले ही मर जाएं, मिट जाएं लेकिन जब तक ये कानून वापिस नहीं होता हम यहां से नहीं हटेंगे। हमारी बस्ती की सारी औरतें अपने छोटे छोटे बच्चों के लेकर बैठी हैं। आपने देखा सुना होगा कि पहली बार औरतें और बच्चे इकट्ठा होकर नारे लगा रहे हैं। सीएए और एनआरसी हमारे खिलाफ़ प्लान किया गया है इसे फौरन रोक दिया जाए।”

शाह जहाँ आगे कहती हैं- “तीन तलाक के वक्त मोदी जी हमारे भाई बन गए थे। हम लोगो ने उस वक्त अपने घरवालों तक से झगड़ा कर लिया था कि ये कानून ठीक है आने दीजिए। इससे हमें प्रोटेक्शन मिलेगा। लेकिन ऐसा प्रोटेक्शन मिलेगा कि बचाव में हमें सड़कों पर आना पड़ेगा तो नहीं चाहिए हमें। हमने बहुत से मुद्दों पर सवाल नहीं उठाए। लेकिन हम पर हमारे बच्चों के भविष्य पर बन आई है। अब हम चुप नहीं बैठेंगे। हम डंडे-गोली सब खाने के लिए तैयार हैं। जेल जाना पड़े या मरना पड़े लेकिन अब हम पीछे नहीं हटेंगी। ये हमारा हिंदुस्तान है और इस पर हमारा हक़ है हमसे हमारा हक़, हमारा हिंदुस्तान कोई नहीं छीन सकता। ”

नजमा शफीक़ कहती हैं- “इसके सबको मिलकर लड़ना पड़ेगा। हम हिंदू हो या मुसलमान या सिख या दलित या कुछ भी हमें एकजुट होकर इसके खिलाफ़ आना पड़ेगा। हम औरतें इसीलिए आज बाहर निकली हैं। जो पर्दें से नहीं निकली आज वो पूरे हिंदुस्तान के हक़ के लिए सड़कों पर उतरकर लड़ रही हैं। हमारे बच्चें बूढ़े औरतें सब लड़ेंगे जब तक कि ये वापिस नहीं लिया जाता। सरकार के पास भी अब झुकने के अलावा और कोई चारा नहीं है।”

सायरा कुरेशी कहती हैं- “दिल्ली में आज कितने शाहीन बाग़ बन चुके हैं। क्या सरकार को दिख नहीं रहा। सरकार बार बार हमसे सवाल क्यों पूछ रही है। क्या उनको नहीं पता कि हम लोग किसलिए सड़कों पर निकले हैं। सरकार को शर्म आना चाहिए कि इतनी सारी औरतों को सड़क पर आने के लिए उन्होंने मजबूर कर दिया है। जो कल तक घर गृहस्थी सम्हालती थीं औज वो मुल्क़ को बचाने के लिए बाहर निकली हैं। सरकार से यही कहना है कि अब झुक जाओ। क्योंकि जब औरतें सड़कों पर उतरती हैं तो आदमियों को झुकना ही पड़ता है, और आप हो आखिरकार एक आदमी ही।”

नसीमा कहती हैं- “ हमारे खिलाफ़ जो नाइंसाफियां हो रही हैं हम उसके खिलाफ़ उतरी हैं। हर बर्दाश्त की एक इन्तहाँ होती है जो कि हो चुकी है। हम अपना हक़ लेने के लिए बैठी हैं औऱ लेकर ही उठेंगे।”

कुछ युवा मिलकर एकसाथ नारा लगाते हैं-

सीएए को नहीं मानते

एनआरपी को नहीं जानते

 मोदी को भी नहीं जानते

आरएसएस पर हल्ला बोल

बुजुर्ग रजी अहमद कहते हैं- “ इन्होंने आरएसएस के एजेंडे को लागू करने के लिए आँखों में पट्टी बाँध ली है, कानों में रुई ठूँस ली है। इन लोगों को ये पता ही नहीं कि मुल्क़ चलता कैसे है। जिन लोगों के अपने घर नहीं बसा वो मुल्क़ को क्या खाक सम्हालेंगे। जिन्होंने कभी अपनी घर गहस्थी नहीं सँजोई वो मुल्क़ को खाक संजोएंगे। घर चलाने के लिए भी बहुत अकल, जजबा, जद्दोजहद और फिक्र चाहिए होती है। मुल्क़ चलाना बच्चों का खेल नहीं है। ये कोई खेल नहीं है कि आप जो चाहो मुल्क़ के साथ करते रहो। आप ही बताओ आपकी आमदनी है 10 हजार और आप 50 हजार खर्च कर दोगे तो 40 हजार कहां से आएंगे। आखिर आप को कोई कब तक उधार देगा भाई। तुमने मुल्क को कंगला कर दिया है। 192 टन सोना तुमने बेंच दिया। सारी सरकारी कंपनियां सरकारी बेंच रहे हो जबकि ये सब मुनाफे की कंपनियाँ हैं। सरकार तो कल चली जाएगी, भुगतना इस मुल्क़ और इसकी आवाम को पड़ेगा।”

 

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