मऊ। शहीदे आजम भगत सिंह के शहादत दिवस की पूर्व संध्या 22 मार्च को भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के जीवन पर आधारित सुप्रसिद्ध अभिनेता लेखक पियूष मिश्रा द्वारा लिखित नाटक ‘ गगन दमामा बाज्यो ‘ का मंचन राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ स्थित भगत सिंह मंच पर ब्लैक पर्ल आर्ट कल्चरल एंड वेलफेयर सोसायटी के कलाकारों द्वारा किया गया। नाटक का निर्देशन श्री अमोल सागर नाथ ने किया।
यह नाटक उस सदी का साक्षात्कार करवाता है जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सभी क्रांतिकारियों एवं उनके स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों का चित्रण है। इस नाटक में जहां एक तरफ महात्मा गांधी के आजादी के तरीकों की बात की गई है वहीं दूसरी ओर भगत सिंह, अशफाक उल्ला, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारी विचारधारा के लोगों के संघर्ष का भी व्याख्यान है। कहानी का हर पात्र अपने आप में एक अहम भूमिका में है। भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त, शिव वर्मा आदि क्रांतिकारियों द्वारा आजादी से पूर्व और आजादी के पश्चात जो हुआ उसका सार है यह नाटक। किस तरह की हड़तालें, आंदोलन ,कार्रवाहियां, आदेश ,खुलासे इत्यादि उस दौर में हुए।किस प्रकार शहीदों ने हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
नाटक में सम्मिलित लोकगीत जहां एक तरफ देशभक्ति से ओतप्रोत है वहीं कुछ दृश्य इतने मार्मिक थे कि वह आज लोगों को दूसरा भगत सिंह या यूं कहें कि एक सच्चा देशभक्त बनने का जज्बा जगाते हैं। उस समय का आज के वर्तमान भारत को लेकर दृष्टिकोण कितना स्पष्ट था इसकी छवि भी हमें इस नाटक में देखने को साफ मिलती है। यह नाटक देशभक्ति का भी आभास करवाता है और साथ ही दर्शकों के मन में एक गंभीर सवाल छोड़ जाता है कि आज का यह हिंदुस्तान वही है जिसका तस्सवुर वो शहीद अपनी आंखों से करना चाहते थे।
नाटक में विद्यावती की भूमिका में रितिका मल्होत्रा, भगत सिंह की भूमिका में नयनदीप, चंद्रशेखर आजाद की भूमिका में जयप्रकाश आवाना और बूढ़ा मारकंड की भूमिका निभा रहे स्थानीय कलाकार रतन लाल ने अपने जीवंत अभिनय से नाटक में जान डाल दी।
नाटक की शुरुआत बटुकेश्वर दत्त (मृनमोय डेका ) व मार्कण्ड (रतन लाल) नाम के सूत्रधार से शुरू होती है। जल्लिआंवाला बाग की घटना से आहत लाहौर में जन्मे नौजवान भगत सिंह के आज़ादी हासिल करने के प्रण का ज़िक्र होता है। इसी के साथ कहानी वापिस १९२२ में छलांग मारती है जहाँ बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह व साथियो के हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में आने से लेकर काकोरी कांड, लाला लाजपत राय की मृत्यु के बदले सांडर्स वध व असेम्ब्ली बम काण्ड तक की मुख्य घटनाओं की याद दिलाता है। अंत में नाटक का सूत्रधार मार्कण्ड, १९९४ में शिव वर्मा (अर्चित मालकोटी) के पास जाकर इन बीती स्मृतियों का आभास करता है व शिव वर्मा आज भी भगत सिंह जैसे नौजवानों की मुल्क में ज़रूरत को महसूस करवाते हैं।
नाटक में भगत सिंह की भूमिका नयनदीप सिंह, सुखदेव की भूमिका संचित शर्मा, राजगुरु की भूमिका अभिमन्यु सिंह , जवान मार्कण्ड – दीप जैस्वाल, बूढा मार्कण्ड रतन लाल, शिव वर्मा अर्चित मालकोटी, लड़की – प्रीति कुमारी , औरत – छवि, भगवती भाई – अजय देशवाल, बटुकेश्वर दत्त – मृनमोय डेका, चंद्रशेखर आज़ाद – जे पी अवाना, रामप्रसाद बिस्मिल – संजीव, अशफ़ाक़ उल्लाह खान – सौरव सिंह, जज – जयंत राजपूत, वकील – तरुण मुद्गल, फणीन्द्र नाथ घोष – अभिजीत श्रीवास्तव, यतीन्द्रनाथ दास – मानस त्रिपाठी,यशपाल – अभिषेक झकड़ , ललित मोहन बनर्जी – विकास कुमार यादव, जयदेव – संदीप , मुईन – वैभव मिश्रा, सरदार किशन सिंह – मुकुल मिश्रा, विद्यावती – रितिका मल्होत्रा, खान बहादुर – नीरज भट्ट, मन्ना वाले – ध्रुव यादव ने अभिनीत की। प्रकाश व्यवस्था में सौरव सिंह थे जबकी , संगीत संयोजन अमृता ने किया।
कार्यक्रम के शुरूआत में नाटक के निर्देशक अमोल सागर नाथ और मुख्य अतिथि डॉक्टर एसएन खत्री व नगर पालिका परिषद के चेयरमैन तैय्यब पालकी को बुके देकर सम्मानित किया गया।आए हुए सभी मेहमानों व कलाकारों को राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ के तरफ से जयप्रकाश धूमकेतु ने धन्यवाद दीया और आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से जिला सूचना अधिकारी डा० धर्मपाल सिंह, राम अवतार सिंह,अजीम खां, अर्चना उपाध्याय, शिवचन राम,ओमप्रकाश सिंह, बसंत कुमार, ओम प्रकाश गुप्ता, मुन्ना यादव , रामजी सिंह, अनुभवदास,रामूप्रसाद, वीरेंद्र कुमार,राम प्यारे राय,बाबूराम पाल, आदि शामिल रहे।