ट्रेन हंगरी के शहर बुडापेस्ट से पेरिस जा रही है। एक अमेरिकन लड़का जेसी अपनी प्रेमिका से रिश्ता खत्म करके अमेरिका लौट रहा है और वियना से अगली सुबह फ्लाइट पकड़ने वाला है। पास की सीट पर एक यूरोपियन लड़की सेलिन बैठी हुई है, वह अपनी दादी से मिलकर लौट रही है और पेरिस जा रही है। दोनों अनजान यात्री कोई उपन्यास पढ़ रहे हैं, कि एक जर्मन दंपती लड़ते हुए गुजरते हैं। जेसी और सेलिन एकदूसरे को देखकर मुस्कराते हैं, जर्मन दंपती के बहाने बात होती है और फिर एकदूसरे की किताबों के बारे में बातें करते हैं और फिर ट्रेन के रेस्ट्रॉन्ट में कुछ खाने-पीने चले जाते हैं। वे एकदूसरे के लिए आकर्षण महसूस करते हैं। जेसी का स्टेशन वियना आ जाता है। वह ट्रेन से उतर जाता है और फिर लौटकर सेलिन के पास जाता है। उससे कहता है कि हमें और बातें करनी चाहिए। ऐसा न हो कि आने वाली जिंदगी में तुम पछताती रहो कि एक लड़का मिला था, जिससे बातें नहीं कर सकी। जेसी बताता है कि उसके पास ज्यादा पैसे नहीं हैं और वह होटल में नहीं ठहर सकता। वह रातभर वियना की गलियों में भटकता रहेगा। तुम अगर उतर आओ और साथ रहो तो यह रात खूबसूरत हो जाएगी। अब तक वे एकदूसरे का नाम नहीं जानते थे, लेकिन 16 जून, 1994 की उस शाम सेलिन ट्रेन से उतर जाती है। उस एक रात की कहानी है, ‘बिफोर सनराइज’…
दुनिया की तमाम भाषाओं में ऐसी कहानियां, ऐसी फिल्में मिल जाएंगी, जिनके किरदार ट्रेन या बस के अपने सहयात्रियों के प्रति आकर्षण महसूस करते हैं। वे एकदूसरे से बात करने लगते हैं और कई बार की सुनी-सुनाई बातें भी उन्हें जादुई लगती हैं। उन्हें लगता है कि वे एक तरह से सोचते हैं। वे अपने चारों तरफ एक सम्मोहन चक्र पाते हैं। वे प्रार्थनाएं करते हैं कि यह यात्रा कभी खत्म न हो। यात्रा के दौरान या बाद में पाते हैं कि वे एकदूसरे के प्रेम में हैं। यात्रा अंतत: खत्म हो जाती है, लेकिन कई बार जादू छाया रहता है देर तक। वे सोचते हैं कि काश उसके घर का पता या टेलीफोन नंबर होता तो वे अपने दिल की बात कह पाते। कुछ खुशनसीब और बदनसीब ऐसा कर भी लेते हैं और वे जिंदगी के सफर में भी सहयात्री हो जाते हैं और फिर जिंदगीभर उस पहली मुलाकात वाले जादू को ढूंढते रहते हैं। कुछ को लगता है कि ज्यादा जान लेने, साथ हो जाने से जादू टूट जाएगा। वे आकर्षण के रंगों और प्रेम के जादू को, जो उन्होंने उस वक्त महसूस किया था, उसे संभालकर हमेशा के लिए रख लेना चाहते हैं। वह कौन सी वजहें होती होंगी, जिनमें दो अनजान लोग एकदूसरे के लिए प्रेम महसूस करते हैं और उनके साथ होना चाहते हैं। अमेरिकन फिल्मकार रिचर्ड लिंकलेटर की ‘बिफोर ट्रायलॉजी’ इसे बहुत खूबसूरत ढंग से बयान करती है। इस ट्रायलॉजी की पहली फिल्म ‘बिफोर सनराइज’ 1995 के पहले महीने में आई थी। दूसरी फिल्म ‘बिफोर सनसेट’ 2004 और तीसरी ‘बिफोर मिडनाइट’ 2013 में आई थी। पहली फिल्म एक रात की कहानी है, दूसरी एक दोपहर से शाम तक की। यह ट्रायलॉजी एक तरह से वास्तविक अनुभवों की बुनियाद पर खड़ी है। इसका आइडिया ट्रायलॉजी के डायरेक्टर रिचर्ड लिंकलेटर के साथ घटी एक घटना से आया है। रिचर्ड एक अनजान महिला से एक खिलौनों की दुकान पर मिलते हैं और रातभर उसके साथ बातें करते रहते हैं। इन बातों को ही वे अपनी साथी लेखिका किम क्रिजान के साथ लिखते हैं और इस ट्रायलॉजी में आगे बढ़ाते हैं।
इस ट्रायलॉजी में दो ही किरदार हैं। इनके अलावा अगर कोई आता भी है तो वह कुछेक सेकंड्स या मिनट भर के लिए आता है। ये फिल्में जेसी और सेलिन की प्रेम कहानी हैं। अमेरिकन ऐक्टर, लेखक और डायरेक्टर ईथन हॉक ने जेसी का किरदार निभाया है, जबकि सेलिन का किरदार फ्रेंच-अमेरिकन अभिनेत्री, पटकथा लेखक, डायरेक्टर, गीतकार और गायिका जूली डेल्पे ने निभाया है। करीब 300 मिनट की तीन फिल्में। इन फिल्मों में न तो मां-बाप हैं, न दोस्त, न रिश्तेदार, न कोई नायक और न खलनायक। इस फिल्म की स्ट्रैंथ इसके संवाद हैं। इतनी बातें, इतनी बातें, इतनी बातें कि जिनका कोई अंत नहीं है। एक करीब बीस साल की लड़की और इसी उम्र का लड़का एकदूसरे से अपनी जिंदगी के बीस साल की बातों, तजुर्बों को कह देना चाहते हैं। इसे निर्देशकीय हुनर माना जाएगा कि दस-दस, पंद्रह-पंद्रह मिनट लंबे सीन के बीच कोई बोरियत पैदा नहीं होती और दर्शक जेसी और सेलिन की बातों को सुनता रहता है। ऑस्ट्रिया की राजधानी और सबसे बड़े शहर वियना की इमारतें, नदी, रेस्ट्रॉन्ट, सड़कें, गलियां, घर, क्लब, शराबखाने निकलते जाते हैं, लेकिन जेसी और सेलिन की बातों में अवरोध पैदा नहीं होता। वे अपने जीवन के बारे में बातें कर रहे हैं। उसकी फिलॉसफी एकदूसरे को बता रहे हैं। रिश्तों में वे क्या चाहते हैं। अपने प्रेमियों और प्रेमिकाओं के बारे में बता रहे हैं, उन्हें लगातार बदलते रहने की वजह बता रहे हैं। सेलिन शुरू में ही कहती है कि वह फेमिनिस्ट है और अपने जीवन पर किसी का अधिकार नहीं चाहती। वह एक इनडिपेंडेंट लड़की है और अगर किसी से शादी करेगी तो चाहेगी कि वे दोनों एकदूसरे की जिंदगी में ज्यादा हस्तक्षेप न करें और निजता का सम्मान करें। जेसी कहता है कि यह एक रात की मुलाकात है और हम इस अनुभव को अपनी जिंदगियों में याद रखेंगे, लेकिन न तो एकदूसरे का पता पूछेंगे और न फोन नंबर। इस फिल्म का एक किरदार यह खूबसूरत शहर भी है। इसकी जिंदादिली और इसकी संस्कृति हर मोड़ पर खड़ी दिखाई देती है। यूरोप के कुछ देशों में प्रचलित ‘बर्थ डांस’ भी देखने को मिलता है। प्रेग्नेंट स्त्रियां एक खास तरह का डांस इसलिए करती हैं, जिससे कि वे आसानी से बच्चों को जन्म दे सकें। नदी के किनारे से गुजरते हुए जेसी और सेलिन को एक कवि मिलता है। वह कहता है कि आप मुझे कोई शब्द दीजिए, मैं उस शब्द पर कविता लिख दूंगा। दोनों उसे एक शब्द देते हैं और एक सिगरेट खत्म करते-करते कवि एक शानदार कविता लिख देता है। वे दोनों आधी रात के बाद तक वियना की गलियों में घूमते रहते हैं और रात के आखिरी पहर में एक पार्क में रेड वाइन पीते हुए एकदूसरे की बाहों में सो जाते हैं। सुबह जेसी सेलिन को पेरिस की ट्रेन में छोड़ने जाता है और वहां दोनों पाते हैं कि वे प्यार में हैं। उन्हें लगता है कि उन दोनों को फिर से मिलना चाहिए। वे अपने पते और नंबर शेयर नहीं करते, लेकिन वादा करते हैं कि ठीक छह महीने बाद 16 दिसंबर को इसी जगह मिलेंगे। यहां फिल्म का पहला हिस्सा खत्म होता है। इसके बाद हम देखते हैं कि दिन के उजाले में वियना शहर की वे तमाम जगहें दिखाई जाती हैं, जहां सेलिन और जेसी रातभर घूमे हैं। जो जगहें इन दोनों के साथ से बेहद खूबसूरत लग रही थीं, अब सूनी और उजाड़ दिखती हैं। फिल्म का यह सिंबॉलिक दृश्य भी जीवन की फिलॉसफी को चुपके से दर्शा जाता है। फिल्म के दूसरे और तीसरे हिस्से की कहानी पर यहां बात करना गैरजरूरी जान पड़ता है, लेकिन बस इतना ही कि दोनों 9 साल बाद मिलते हैं और 9 साल बाद ही फिल्म का अगला हिस्सा ‘बिफोर सनसेट’ बनाया जाता है। इस दौरान जेसी शादी भी कर लेता है और सेलिन भी रिश्तों में रहती है, लेकिन दोनों की स्थायी याद वियना की वही एक रात होती है। इसकी वजह कहीं न कहीं जेंडर इक्वालिटी को लेकर एकदूसरे की समझ, एकदूसरे की डिग्निटी और निजता का सम्मान है।
इस ट्रायलॉजी की छाप हिंदी की दो ‘बड़ी’ फिल्मों पर जान पड़ती है। ‘बिफोर सनराइज’ का कुछ-कुछ असर या आइडिया उसी साल के आखिर में आई हिंदी फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ पर दिखता है। यूरोप की यात्रा पर निकली सिमरन जब ट्रेन में कोई उपन्यास पढ़ रही होती है तब राज का किरदार निभा रहे शाहरुख खान सिमरन को छेड़ते हैं। एक अनजान लड़की की मर्जी जाने बगैर वे उसकी गोद में सोने का अधिकार पा लेते हैं। नायिका को ‘छेड़कर’ ‘पटाने’ वाली मानसिकता का यह सिनेमा उस साल हिंदुस्तानी सिनेमा में तूफान ले आता है। दर्शकों की ट्रेनिंग भी राज की हरकतों वाली है और यही कारण है कि इस फिल्म के बाद से शाहरुख खान सितारों के सितारे हो जाते हैं। इस ट्रायलॉजी के असर में बनाई गई दूसरी फिल्म इम्तियाज अली की 2015 में आई ‘तमाशा’ है। विचार और जेंडर के स्तर पर यह फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ से बहुत बेहतर है, लेकिन यह रिचर्ड की इन तीनों फिल्मों का मिक्सचर लगती है। इम्तियाज ने ‘तमाशा’ को तीन पार्ट में दिखाया है और ये तीनों पार्ट जगह और ट्रीटमेंट बदलकर ट्रायलॉजी के ही तीन पार्ट लगते हैं।
(चित्र गूगल से साभार)