आज गांधी के पुतले पर गोली चलाई जा रही है लेकिन चार साल पहले ही उनकी नज़र का चश्मा इज्जत घर की खूंटी पर टांग दिया गया था.
43 सौ करोड़ के बजट वाले दिव्य कुम्भ, स्वच्छ कुम्भ में दो ही बातों का ढिंढोरा जोर- शोर से पीटा जा रहा है. एक संघ मार्का हिंदुत्व और एक स्वच्छ कुम्भ. एक लाख बाईस हजार टॉयलेट, बीस हजार यूरिनल, सत्रह हजार डस्टबिन, साफ़ पानी पीने के लिए 50 वाटर एटीएम, उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का 35 हजार सफाईकर्मियों को नियुक्त किये जाने का दावा, 15 सौ स्वच्छाग्रहियों की एक माह की ट्रेनिंग के बाद उनकी मेला क्षेत्र में तैनाती, मुख्यमंत्री का शौचालय को लेकर जीरो लीकेज का दावा, टॉयलेट कैफेटेरिया का गूगल से लेकर अखबारों तक में भारी विज्ञापन के बावजूद यह कितना सच है, कितना जमीन पर उतरा है, इसे जानना हो तो सरकार का चश्मा उतारकर अपनी आँखों से ही देखना होगा.
चौदह जनवरी को मेला शुरू होने के पहले ही सफाईकर्मियों के मौत की ख़बरें आने लगी थीं. 24 दिसंबर 2018 को ही ननकाई पुत्र लोला, ग्राम- बरुआ, जिला- ग़ाज़ीपुर, एक जनवरी 2019 को सफाईकर्मी जगुआ, ग्राम- बेलगाँव, अतर्रा, बांदा की मौत हुई. दिसंबर 27, 2018 को एक सफाईकर्मी मातादीन उम्र 55 वर्ष ग्राम- चुरियारी, थाना- गोहरिया, जिला- छतरपुर, मध्यप्रदेश, से बाल्टी छू जाने पर साधु ने लाठियों से पीटकर हाथ तोड़ दिया. (स्रोत- https://samkaleenjanmat.in में विष्णु प्रभाकर की रिपोर्ट)
हिन्दू हित और स्वच्छता की इन न कही गयी कथाओं को लेकर मैं एक, दो और तीन फरवरी 2019 की रात मेले के सबसे वीवीआइपी कहे जाने वाले घाटों की तरफ़ गया. संगम नोज, अपर संगम मार्ग, किला घाट, नाव घाट पहुंचा. याद रखें कि तीन फरवरी की रात 11:15 से मेले का सबसे प्रमुख मौनी आमवस्या का स्नान शुरू होना था.
एक की रात संगम घाट पर ग्राम विकास विभाग की गाड़ी खड़ी थी. स्वच्छ कुम्भ, दिव्य कुम्भ- भव्य कुम्भ का बैनर टाँगे, शौचालय उपयोग का सन्देश देता बड़ा सा बैनर लगा था, जो नहीं था, वह था स्वच्छ शौचालय क्यूंकि अंदर पानी नहीं था. बाहर एक टैप वाला नल था जिस तक जाने के लिए पेशाब की नदी पार करनी थी.
2 फरवरी की रात मैं फिर से पहुंचा और आज तो यह कल से ज्यादा भयावह था. टॉयलेट ऊपर तक मल से भरे हुए थे. 20 से ज्यादा टॉयलेट एक साथ, एक पानी का टैप, वही पेशाब की नदी जिसे एक श्रद्धालु पार कर शौच के बाद हाँथ-पाँव धो रहा था. वह फिर वहां से निकला तो उसके लोटे में पानी था जिससे उसने फिर अपना पाँव-हाथ धोया.
तीन फरवरी की रात मैं फिर पहुंचा. मेला क्षेत्र में 3 किलोमीटर पैदल चलता हुआ कि शायद आज जरुर कुछ अच्छा होगा. लेकिन कथा वही पुरानी थी और आज जब मेले के केन्द्रीय उद्घोषणा कक्ष से डीआइजी मेला और डीएम मेला मौनी आमवस्या के स्नान की सवा 11 बजे घोषणा करते हुए श्रद्धालुओं का मेले में स्वागत कर रहे थे और उनको स्नान करने का निमंत्रण दे रहे थे, मेले में उनकी सुख-सुविधा और स्वच्छता का बखान कर रहे थे. ठीक उस वक्त अपर संगम मार्ग पर भूले-भटके कंट्रोल रूम के बगल के वाटर एटीएम में ताला बंद था. यह मुख्य मार्ग है जिसके सामने तमाम मीडिया चैनलों के शिविर भी है लेकिन इस मीडिया को भी मंदिर-मंदिर, मोदी-मोदी करने से फुरसत हो तब तो लोगों के दुःख तकलीफ पर नज़र जाए.
एक स्नानार्थी अपने संग साथ के लोगों से चलते हुए बोले “इस बार बहुत अच्छी व्यवस्था है, बहुत सुंदर, बीस किलोमीटर पैदल चलकर नहाए संगम पहुंचे हैं.”
ये है मिस्टर मोदी और महंत योगी जी का स्वच्छ स्वस्थ दिव्य कुम्भ. इसके परदे के पीछे की कथा विस्तार से फिर कभी. फिलहाल जो जानकारियाँ छनकर थोड़ी बहुत हम तक आ पा रही हैं उसके पीछे लूट के पैसे का भारी खेल नज़र आता है. इसके दो उदाहरण ही काफी होंगे- पहले वाटर एटीएम को ही लें. स्मार्ट सिटी के तहत पूरे शहर में दो सौ वाटर एटीएम लगने थे जिसमें से 50 मेला क्षेत्र में, बाकी शहर के भीड़ वाले सार्वजनिक स्थानों जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, ऐतिहासिक स्थल आदि.
कुछ तो इन जगहों पर लगे लेकिन शहर के सबसे महंगे इलाके सिविल लाइन्स एमजी मार्ग पर ही 10 से अधिक एटीएम लगे हैं. ये उस जगह पर लगे हैं जहाँ अगस्त सितम्बर 2018 में एडीए द्वारा स्वयं आबंटित गुमटियां इसलिए तोड़ दी गयी थीं क्यूंकि ये अतिक्रमण क्षेत्र में आती हैं और उच्च न्यायालय द्वारा इन्हें हटाने का आदेश था. इस इलाके में वाटर एटीएम लगने का मतलब आज और बाद में अच्छी कमाई का धंधा. मेला क्षेत्र से चलकर चाहे श्रद्धालुओं को प्रयाग स्टेशन से ट्रेन पकड़नी हो या फाफामऊ से बस, इस पूरे रास्ते में एक भी वाटर एटीएम नहीं लगाया गया है . जानकार बताते हैं कि इसके लिए दस-दस लाख तक की बोली लगी है जोकि इस इलाके के लिहाज से कम ही है. वाटर एटीम का ठेका कानपुर की कम्पनी डिसेंट्रिक टेक्नोलॉजी को मिला है.
दूसरा, जिन एक लाख बीस हजार शौचालयों को लेकर देश दुनिया में इतना गुणगान हो रहा है उसपर बजट का कितना हिस्सा खर्च हो रहा है इसकी कोई जानकारी कहीं उपलब्धनहीं है. झूंसी में जहाँ ये बन रहे थे वहां भी जाकर पूछने पर कोई कुछ नहीं बताया न ही तस्वीर खींचने दी. ठेके किसको मिले हैं यह भी बताने वाला कोई उपयुक्त व्यक्ति वहां नहीं मिला. अभी तो जो जानकारी मिल रही है कि ये शौचालय सरकार द्वारा किराए पर लेकर लगाये गये हैं. सूत्र बताते हैं कि जितना पूरे मेले के दौरान इन शौचालयों का किराया होगा उससे कम लागत में ही बनकर ये स्थायी हो जाते. हवाओं में यह खबर भी तैर रही है कि बाद में सरकार इनको सार्वजनिक उपयोग की जगहों और स्कूल इत्यादि में लगवा देगी.
मेले के इस भारी बजट के पीछे पैसे के लूट का खुलना अभी बाकी है लेकिन जिस तरह से ये सबकुछ गोपनीय- अपारदर्शी है उससे शक गहरा होता जाता है. जब इस तथ्य पर नज़र जाती है कि तैतालीस सौ करोड़ में से स्थायी निर्माण पर मात्र तीन हजार उन्नीस करोड़ ही मेला क्षेत्र और पूरे शहर पर खर्च होना है. तो दिव्य-भव्य-स्वच्छ-स्वस्थ कुम्भ कराने की नीति और नीयत दोनों में खोट नज़र आता है.
क्या 2019 में इज्जत घर की खूंटी पर टंगा गांधी का चश्मा हम उन्हें लौटा पायेंगे.
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