भारत के निर्वाचन आयोग ने अपराधिक पृष्ठिभूमि वाले उम्मीदवारों को अपने मुकदमों की जानकारी जनता को देने के लिए एक नायाब आदेश निकाला है. चुनाव आयोग का कहना है कि उम्मीदवार चुनाव से दो दिन पहले तीन बार स्थानीय टीवी चैनलों और समाचार पत्रों को विज्ञापन देकर अपने मुकदमों की सूचना जनता को दे.
क्या चुनाव आयोग का यह फैसला टीवी चैनल और समाचार पत्र के मालिकों को सीधे अनुचित आर्थिक लाभ पहुंचाने वाला नहीं है ?
क्या यह फैसला चुनाव को और भी महँगा और सिर्फ बड़ी पूंजी के मालिकों और सचमुच के अपराधी – माफिया ताकतों के लिए सुरक्षित करना नहीं है ?
जब उम्मीदवार को हलफनामें में अपने सभी मुकदमों की जानकारी चुनाव आयोग को देने का प्रावधान पहले से है, तो फिर इस जानकारी को जनता के बीच प्रचारित करना चुनाव आयोग का काम है न कि सम्बंधित उम्मीदवार और सम्बंधित राजनीतिक पार्टी का. चुनाव आयोग अपने इस फैसले से अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है.
चुनाव आयोग मोदी सरकार के इशारे पर जन आंदोलनों के दौरान सरकारों द्वारा राजनीतिक विद्वेष से लादे गए मुकदमों से पीड़ित ईमानदार और जनपक्षीय नेताओं को भी चुनाव प्रक्रिया से बाहर करने का रास्ता बना रहा है. सब जानते हैं कि सचमुच की अपराधी-माफिया ताकतें विज्ञापनों पर पैसा खर्च कर सकती हैं, पर जनता के हितों के लिए संघर्षरत ताकतों के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वे एक बार भी समाचार पत्रों या टीवी चैनलों को विज्ञापन दे सकें.
चुनाव आयोग का यह फैसला अलोकतांत्रिक और कुछ ताकतों को अनुचित लाभ पहुँचाने वाला है. इस फैसले का चौतरफा विरोध किया जाना चाहिए.
चुनाव आयोग से भी अपील है कि अपने इस फैसले पर पुनर्विचार कर इसे तत्काल वापस ले.
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