समकालीन जनमत
ज़ेर-ए-बहस

चंदे का धंधा उर्फ हफ्ता-वसूली

हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। हांलाकि यह कोई अलग से कहने की बात नहीं है परंतु अब वह दौर आ गया है जब कि इस जुमले को बार-बार दुहराने की जरूरत आन पड़ी है। (वैसे हमारे प्रधानमंत्री तो इसे ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ कहते हैं, पता नहीं वह किस मां की बात करते हैं जो अपने बच्चे को ही खा जाना चाहती है।)

तो, लोकतंत्र है तो जनता के अलग-अलग राजनीतिक रुझान भी हैं, और उन रुझानों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टियां भी हैं। (हांलाकि कुछ लोग इस बात पर आमादा हैं कि देश में एकरूपता हो जाय, ये अलग-अलग रंग उन्हें नहीं सुहाते।) इन पार्टियों के सुचारु संचालन के लिए और खासतौर पर कुछ-कुछ अंतराल पर आनेवाले चुनावों के लिए धन की आवश्यकता होती है और इसके लिए ये पार्टियां लोगों से चंदा स्वीकार करती हैं।

पार्टियों को चंदा देने के दो रास्ते हैं: 1. नकदी में और 2. वस्तु या सेवा के माध्यम से, जैसे ऑफिस का फर्नीचर, गाड़ी या दूसरे सामान देना या समय-समय पर कार्यकर्ताओं के खाने, यात्रा या ठहरने की व्यवस्था कर देना या और भी बहुत कुछ। नकदी में अपनी मनपसंद किसी पार्टी को चंदा देना आता है। स्थापित मकसद यही है कि हम फलां पार्टी की नीतियों से सहमत हैं और उसी पार्टी की प्रगति और अंततः सरकार बनाने में मदद करना चाहते हैं। नकदी में नकद या बैंक के माध्यम से देना दोनों आता है। 2018 में इलेक्टोरल बाॅन्ड के आने के पहले किसी पार्टी को चंदे में सीधे अधिकतम रु. 19,999 तक ही दिया जा सकता था, इससे अधिक चंदा देने के लिए बैंक का माध्यम (यानी चेक, बैंक ड्राफ्ट, यूपीआई, डेबिट/क्रेडिट कार्ड आदि) अपनाना अनिवार्य था। इलेक्टोरल बाॅन्ड के आने के बाद यह सीमा घटाकर रु. 1,999 कर दी गई। इसके अलावा एक शर्त और भी थी कि कोई कंपनी अगर किसी पार्टी को चंदा देना चाहती है तो वह अपने पिछले तीन साल के मुनाफे के औसत के 7.5 प्रतिशत से अधिक चंदा नहीं दे सकती। कंपनी का पंजीकरण भारत में होना अनिवार्य था। व्यवस्था पूरी तरह पारदर्शी थी, कौन व्यक्ति या कंपनी किस पार्टी को कितना चंदा देती है, यह जानकारी एकदम खुली थी।

पर कुछ पूंजीपतियों के सामने दुविधा यह थी कि वे सार्वजनिक रूप से किसी एक पार्टी का समर्थन करते हुए दिखाई नहीं देना चाहते थे, सबको खुश रखना चाहते थे। 2013 में ऐसे लोगों के लिए इलेक्टोरल ट्रस्ट की व्यवस्था की गई थी। इसके अंतर्गत कंपनीज एक्ट 1961 में पंजीकृत कोई भी कंपनी अपना इलेक्टोरल ट्रस्ट बना सकती है और इसके माध्यम से कोई भी भारतीय नागरिक, भारत में पंजीकृत कोई भी कंपनी या अविभाजित हिंदू परिवार चंदा दे सकता है। किसी वित्तीय वर्ष में  इस माध्यम से जमा कुल धन का 95 प्रतिशत तक जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के अंतर्गत पंजीकृत पार्टी को चंदे में दिया जा सकता है। शुरू में 2013 में केवल 3 ट्रस्ट थे, पर 2021-22 तक इनकी संख्या बढ़कर 17 हो गई। लेकिन इनमें से कुछ ही ऐसे हैं जो नियमित रूप से हर साल चंदा देते हैं। यहां यह दुविधा थी कि किस पार्टी को कितना चंदा देना है यह पूरी तरह से ट्रस्ट के अधिकारियों को ही तय करना था, वास्तविक दाता की पसंद यहां अर्थहीन थी। वैसे इलेक्टोरल ट्रस्ट के माध्यम से भी सबसे अधिक चंदा भाजपा को ही मिलता रहा। चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार 2022-23 में भाजपा को इलेक्टोरल ट्रस्ट में संचित धनराशि के 70 प्रतिशत से कुछ अधिक ही प्राप्त हुई थी।

लेकिन असल बात यह कि कंपनियां सोचने लगी थीं कि बिलावजह चंदा क्यों दिया जाय। चंदे के बदले उन्हें भी कुछ मिलता तो ज्यादे ठीक लगता। यहीं से शुरू होता है खेल ‘क्विड प्रो को’ का, एक लगाओ दस पाओ, पर इसके खुलासे से डर भी लगता था। इसलिए व्यवस्था की गई ‘इलेक्टोरल बाॅन्ड’ की। जाइये बैंक में, जितना चाहें उतने मूल्य का बाॅन्ड खरीदिए, मनचाही पार्टी को दे दीजिए। वह पार्टी तुरत-फुरत में (15 दिन के भीतर) उसे भुना लेगी। बाॅन्ड पर जो नंबर पड़ा है वह आमतौर पर किसी को दिखाई नहीं देगा, उसे केवल पराबैंगनी रोशनी में पढ़ा जा सकता है। आपका नाम सिर्फ बेचने वाले बैंक में है, भुनाने वाले बैंक में केवल पार्टी का नाम है, पूरी तरह से अपारदर्शी व्यवस्था। ऊपर से तुर्रा यह कि इसकी घोषणा करते हुए तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा था इस व्यवस्था से पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। कोई ऊपरी सीमा नहीं, मुनाफे के 7.5 प्रतिशत वाली सीलिंग भी समाप्त। इन्हीं सब दलीलों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित किया है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ जाने पर ‘द न्यूज मिनट और न्यूज लाॅन्ड्री’ की टीम ने 30 कंपनियों का सर्वे करके कुछ तथ्य इकट्ठा किए हैं। इनमें से कुछ पर चर्चा हो जाना जरूरी है।

ऽ कम से कम 30 कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने वित्तीय वर्ष 2018-19 से लेकर 2022-23 के बीच भाजपा को 335 करोड़ रुपए का चंदा दिया और इसी अवधि में उन्हें केंद्रीय एजेंसियों – ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग आदि के छापे भी झेलने पड़े।

ऽ इनमें से 23 कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने 2014 से लेकर छापा पड़ने की तिथि के बीच भाजपा को कोई चंदा नहीं दिया था और छापे के बाद उनका कुल योगदन 187.58 करोड़ रुपए हो गया।

इनमें कम से काम 4 कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने छापे के 4 महीने के भीतर 9.05 करोड़ रुपए का चंदा दिया।

. कम से कम 6 कंपनियां ऐसी हैं जो पहले भी भाजपा को चंदा देती रही हैं परंतु छापे के बाद उनके चंदे में अप्रत्याशित उछाल आ गया।

. कम से काम 6 कंपनियां ऐसी हैं जो भाजपा को नियमित रूप से चंदा देती थीं, पर किसी साल उनसे चूक हो गई तो उन्हें केंद्रीय एजेंसियों – ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग आदि के छापे झेलने पड़े।

. इन 30 कंपनियों के अलावा कम से कम 3 कंपनियां ऐसी हैं जो भाजपा को चंदा देती रहीं और उन पर सरकार द्वारा अवांछित संरक्षण पाने का आरोप है।

. कुछ मामलों में छापा मारे जाने के दौरान ही या उसके तुरंत बाद कंपनी ने चंदा दिया।

. कुछ मामले ऐसे भी सामने आए जिनमें चंदा दिए जाने के तुरंत बाद कंपनी को लाइसेंस या दूसरी अनापत्तियां प्राप्त हो गईं।

. कुछ ऐसे भी मामले हैं जिनमें चंदा देने के बावजूद जांच एजेंसियों की कार्यवाही बंद नहीं हुई।

सर्वे टीम में कोरा अब्राहम, प्रतीक गोयल, नंदिनी चंद्रशेखर और बसंत कुमार शामिल थे। इस टीम की रिपोर्ट 21 फरवरी 2024 को प्रकाशित हुई थी।

तो आइए, देखते हैं कि इस टीम ने कुछ चुनिंदा कंपनियों के बारे में  क्या लिखा है।

1. सोम डिस्टिलरीज: भोपाल स्थित यह शराब कंपनी नियमित रूप से भाजपा को चंदा देती है। वर्ष 2018-19 में भी कंपनी ने भाजपा को 4.25 करोड़ रुपए चंदे में दिए थे। परंतु वर्ष 2019-20 में कांग्रेस को एक करोड़ का चंदा दे दिया तो इसके बुरे दिन आ गए। कोविड तालाबंदी के दौरान मई 2020 में सबसे पहले शराब की बिक्री पर से प्रतिबंध हटाया गया था, पर तब तक भी भाजपा का चंदा नहीं आया तो कंपनी पर जी.एस.टी. अधिकारियों को छोड़ दिया गया। जुलाई 2020 में अल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर की बिक्री एवं आपूर्ति में टैक्स चोरी के मामले में जी.एस.टी. के अधिकारियों ने अरोड़ा बंधुओं को गिरफ्तार कर लिया। इस समय वह जमानत पर रिहा हैं।

रिहाई के दस दिनों के भीतर ही कंपनी ने भाजपा को एक करोड़ का चंदा दे दिया। फिर उसी वित्तीय वर्ष में अक्तूबर और दिसंबर में भी एक-एक करोड़ का चंदा और दिया। मई 2021 में भी कंपनी ने भाजपा को 2 करोड़ का चंदा दिया था लेकिन इसके बावजूद 5 माह बाद ही कंपटीशन काॅरपोरेशन ऑफ इंडिया ने शराब के मूल्य निर्धारण में धोखाधड़ी करने के आरोप में कंपनी पर छापा मार दिया। जून 2022 में इस कंपनी ने फिर एक करोड़ का चंदा दिया था। फिर भी नवंबर माह में राज्य के विधानसभा चुनावों के दौरान कंपनी पर आयकर विभाग का छापा पड़ गया, जांच अभी तक लंबित है।

2. एस.एन.जे. डिस्टिलरीज: अगस्त 2019 में इस कंपनी पर आयकर अधिकारियों का छापा पड़ा था। छापे के चार माह बाद कंपनी ने भाजपा को 1.05 करोड़ का चंदा दिया। अगले वित्तीय वर्ष में मार्च 2021 में भी कंपनी ने भाजपा को 6 करोड़ का चंदा दिया था, फिर भी अप्रैल 2021 में आयकर अधिकारियों का छापा पड़ गया। 2022-23 में तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के ठीक पहले इस कंपनी ने प्रुडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को 5 करोड़ का चंदा दिया। ज्ञातव्य है कि यह ट्रस्ट अपना अधिकांश चंदा भाजपा को ही देती है।

3. आई.आर.बी. इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपर्स लि.: मुंबई स्थित यह कंपनी पिछले दस सालों से भाजपा को खुलकर चंदा देती आ रही है। 2013-14 में इसने भाजपा को 2.3 करोड़ और 2014-15 में 14 करोड़ का चंदा दिया था। सूचना के अधिकार कार्यकर्ता सतीश रेड्डी की शिकायत और उनकी हत्या के तुरंत बाद सी.बी.आई. ने इस कंपनी के पुणे और मुंबई स्थित ठिकानों पर छापा मारा था। तब से इस कंपनी के चंदे की राशि में बढ़ोत्तरी होती ही जा रही है। 2014 से लेकर 2023 तक इस कंपनी ने अपनी सहायक कंपनियों – माॅडर्न रोड मेकर्स और आइडियल रोड बिल्डर्स के साथ मिलकर भाजपा को 84 करोड़ का चंदा दिया है।

4. श्री सीमेंट्स: कोलकाता स्थित यह कंपनी भारत में सीमेंट उत्पादन में तीसरे नंबर पर है। इस कंपनी ने 2020-21 और 2021-22 में भाजपा को 12-12 करोड़ रुपए दिए थे। 2022-23 में यह कंपनी चंदा देने से चूक गई तो पिछले साल जून में कंपनी पर आयकर अधिकारियों का छापा पड़ा और इसके एक माह बाद 11 जुलाई को काॅरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनी की टैक्स फाइलिंग और लेनदेन की जांच के आदेश दिए। साथ ही इस छापे के एक सप्ताह के अंदर ही अडानी समूह की अंबुजा सीमेंट्स लि. ने इस कंपनी का अधिग्रहण कर लिया था। इसी साल जनवरी में आयकर विभाग ने श्री सीमेंट्स को 4000 करोड़ के बकाए की नोटिस दी है।

5. यू.एस.वी. प्राइवेट लि.: डाॅक्टरों को इस कंपनी की दवा लिखने के एवज में कमीशन देने के आरोप में कंपनी के 20 ठिकानों पर आयकर विभाग का छापा पड़ा था। इसके एक माह के भीतर ही 17 अक्तूबर को इस कंपनी ने भाजपा को 9 करोड़ का चंदा दिया।

6. क्रिस्टी फ्रीडग्रैम: मध्याह्न-भोजन की आपूर्ति में संलग्न इस कंपनी ने 2017-18 में भाजपा को 1 करोड़ का चंदा दिया था। जुलाई 2018 में कंपनी पर आयकर विभाग का छापा पड़ा। छापे में 1300 करोड़ रुपए की अघोषित आय और नेताओं और नौकरशाहों को 2400 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का मामला सामने आया। इसके बाद कंपनी ने भाजपा को 1.96 करोड़ का चंदा दिया। इसी प्रकार 2021-22 और 2022-23 में भाजपा को कुल मिलाकर 3.82 करोड़ का चंदा दिया गया है।

7. यशोदा हाॅस्पिटल्स: हैदराबाद के इस हाॅस्पिटल ग्रुप की शृंखला में 4 अस्पताल, 4 हृदयरोग संस्थान और एक कैंसर संस्थान हैं। इस समूह की स्थापना अस्सी के दशक में हुई थी। इसके मालिकान रवेंदर, सुरेंदर और देवेंदर राव तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के पारिवारिक सदस्य हैं। इस कंपनी ने 2019-20 में भाजपा को 2.5 लाख चंदा दिया था। दिसंबर 2020 में इस कंपनी के तमाम तेलंगाना में फैले हुए ठिकानों पर छापे मारे गए। अगले साल 2021-22 में इस समूह ने भाजपा को 10 करोड़ और 2022-23 में 5 लाख रुपए चंदे में दिए।

8. फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड: यह भारत की सबसे बड़ी लाॅटरी कंपनी है। इसका कुल व्यवसाय 7,000 करोड़ रुपए का है। इसके मालिक हैं सदा सुर्खियों में रहनेवाले व्यवसायी सैंटियागो मार्टिन। मई 2019 में इनके 70 ठिकानों पर आयकर के छापे पड़े। अगले वित्तीय वर्ष में इस समूह ने प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट के माध्यम से 100 करोड़ रुपए का चंदा दिया। उस साल 2022-23 में प्रूडेंट ने अपने कुल चंदे (245 करोड़ रुपए) में से 84 प्रतिशत भाजपा को दिए। उसी वर्ष फ्यूचर गेमिंग ने भाजपा को 5 करोड़ रुपए सीधे भी चंदे में दिए थे।

हर पार्टी को चंदा देने वाले मार्टिन को 2007 में कर्नाटक में एक लाॅटरी घोटाले के मामले में जेल की हवा खानी पड़ी थी। 2011 में सिक्किम सरकार को 4,500 करोड़ रुपए का चूना लगाने के 30 मामलों में सी.बी.आई. ने उन्हें नामजद किया था, इसके अलावा उसी साल कोयंबटूर में उनके खिलाफ गुंडा एक्ट में भी कार्रवाई की गई थी। इतने सारे विवादों में संलिप्तता के बावजूद उनके बेटे चाल्र्स जोसेफ मार्टिन को भाजपा के वरिष्ठ नेता राम माधव के नेतृत्व में 2011 में पार्टी में शामिल किया गया था।

9. के.ए.एल.एस. डिस्टिलरीज एंड प्रोपराइटरशिप: इस कंपनी के मालिक एस. वासुदेवन हैं। यह कंपनी तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग काॅरपोरेशन को सस्ती शराब की आपूर्ति करती है। इस कंपनी पर अगस्त 2019 में आयकर विभाग का छापा पड़ा और 300 करोड़ रुपए की अघोषित आयकर योग्य सम्पत्ति का खुलासा हुआ। अगले साल कंपनी ने भाजपा को 5 करोड़ और 2021-22 में भी 3 करोड़ रुपए का चंदा दिया।

10. चिरीपाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड: अहमदाबाद स्थित यह कंपनी एशिया की सबसे बड़ी डेनिम निर्माता कंपनी है। वेदपाल चिरीपाल इसके मालिक हैं। 2019-20 में इस कंपनी ने भाजपा को 2.5 करोड़ रुपए का चंदा दिया था, फिर दो साल तक कुछ नहीं दिया। जुलाई 2022 में कंपनी पर आयकर विभाग का छापा पड़ा जिसमें 10 करोड़ रुपए की अलेखित नकदी पाई गई। 2022-23 में कंपनी ने भाजपा को 2.61 करोड़ का चंदा दिया।

11. आरोबिंदो रियल्टी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि.: यह श्री वी. रामप्रसाद द्वारा 1986 में हैदराबाद में स्थापित फार्मा कंपनी की सहायक कंपनी है। इस कंपनी ने 2020-21 में भाजपा को 9 करोड़ रुपए का चंदा दिया था। अगले साल यह कंपनी चंदा देने में चूक गई। ई.डी. ने नवंबर 2022 में इस कंपनी के डायरेक्टर शरत चंद्र रेड्डी पिनाका को दिल्ली शराब नीति के मामले में उनका हाथ होने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया।

माहिरा वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड ने, जो बाद में आरोबिंदो फार्मा की रियल स्टेट कंपनी आरो इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड बन गई, 2021-22 में भाजपा को एक करोड़ का चंदा दिया था। शरत माहिरा/आरो इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड के भी डायरेक्टर हैं। (यही अरविंद केजरीवाल के खिलाफ पहले सरकारी गवाह बने हैं)।

12. महालक्ष्मी समूह: असम स्थित इस कंपनी के मालिक नवीन सिंघल हैं। 2011 में इस कंपनी पर सीबीआई का छापा पड़ा और आरोप लगाया गया कि कंपनी और नवीन सिंघल ने उनको आवंटित कोयला खुले बाजार में बेच दिया। इस मामले में 2012 में पहला आरोप-पत्र दाखिल कर दिया गया। 2016 में दूसरा आरोप-पत्र भी दाखिल किया गया। इस दूसरे आरोप-पत्र में असम के हैलाकांडी में कोयले की खरीद में अनियमितता के अभियोग थे। यह मामला अभी भी अदालत में लंबित है।

दिसंबर 2020 में कोयला घोटाले को ही लेकर सिंघल के विभिन्न् ठिकानों पर आयकर विभाग द्वारा छापे मारे गए। इस समूह ने भाजपा को 2020-21 में 2.85 करोड़, 2021-22 मंे 7.45 करोड़ 2022-23 में 1.49 करोड़ रुपए चंदे में दिए। इसके एवज में पिछले साल इस समूह को अरुणाचल प्रदेश में कोयले के सबसे बड़े प्रोजेक्ट का ठेका दे दिया गया, जबकि सीबीआई ने कोयले की अनियमितता के दो मामलों में उन्हें पहले ही नामजद कर रखा है।

13. पैसिफिक एक्सपोर्ट्स: उदयपुर की यह खनन कंपनी पैसिफिक इंडस्ट्रीज लि. की सहायक कंपनी है और मध्यप्रदेश के जबलपुर में काम करती है। बी.आर. अग्रवाल और जे.पी. अग्रवाल इसके प्रमोटर हैं। यह कंपनी पैसिफिक ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस और गीतांजलि विश्वविद्यालय, गीतांजलि मेडिकल काॅलेज एंड हाॅस्पिटल, गीतांजलि इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल स्टडीज आदि नामों से शिक्षा के क्षेत्र में भी काम करती है।

2013 में सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने इस कंपनी की जबलपुर स्थित शाखा में छापा मारकर भारतीय खनन ब्यूरो के कर्मचारियों से मिलीभगत करके अवैध खनन के मामले में कंपनी के एक कर्मचारी को नामजद किया था। इसके बाद अगस्त 2015 में इस समूह के विभिन्न् शिक्षण संस्थाओं पर कर-चोरी के आरोप में छापे मारे गए। टैक्स चोरी और टैक्स की रकम-अदायगी को लेकर 2019 में एक बार फिर छापे डाले गए।

2021-22 में  पैसिफिक समूह की सहायक कंपनियों – पैसिफिक एक्सपोर्ट्स एवं पैसिफिक आयरन मैन्यूफैक्चरिंग लि. ने भाजपा को कुल मिलाकर 12 करोड़ रुपए का चंदा दिया। पर उसी वित्तीय वर्ष के अंतिम माह में बी.आर. अग्रवाल के बेटे राहुल अग्रवाल की पैसिफिक इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज पर मार्च 2022 में सी.बी.आई. का छापा पड़ा, आरोप था प्रवेश एवं वित्तीय प्रबंधन में अनियमितता।

2022-23 में पैसिफिक एक्सपोर्ट्स ने भाजपा को 6 करोड़ रुपए का चंदा दिया था फिर भी इसी वित्तीय वर्ष की समाप्ति के दो माह पहले गीतांजलि मेडिकल काॅलेज एंड हाॅस्पिटल पर पिछले साल फरवरी माह में प्रवेश शुल्क में अनियमितता के आरोप में छापे डाले गए।

14. माइक्रोलैब्स: बंगलुरू स्थित इस दवा कंपनी के मालिक दिलीप एवं आनंद खुराना हैं। इस कंपनी ने 2015-16 में भाजपा को 21 लाख का चंदा दिया था। पर अगले दो साल तक, 2016-17 एवं 2017-18 में इस कंपनी का चंदा अप्रत्याशित रूप से 43 गुना ज्यादा बढ़ गया – 9 करोड़। 2018-19 में 3 करोड़ एवं 2019-20 में 50 लाख का चंदा दिया गया।

कोविड-19 के दौर में, 2020 से 2022 तक इस कंपनी की सिर्फ एक दवा, डोलो-650 ही 350 करोड़ की बिक गई और कंपनी का कुल राजस्व 400 करोड़ हो गया। पर इस दौर में 2020-21 और 2021-22 में इस कंपनी ने भाजपा को कोई चंदा नहीं दिया। जुलाई 2022 में कंपनी के 40 ठिकानों पर एकसाथ आयकर विभाग का छापा पड़ा और 300 करोड़ रुपए की टैक्स चोरी पकड़ी गई। इस कंपनी पर एक आरोप यह भी आया कि डाॅक्टरों द्वारा दवा-पर्ची पर यह दवा लिखने के एवज में 1000 करोड़ रुपए कमीशन में बांटे गए हैं। नतीजतन इस कंपनी ने सितंबर 2022 में भाजपा को 2 करोड़ रुपए चंदे मंे दे दिए।

15. सलारपुरिया सत्व: बंगलुरू के बिजय अग्रवाल की यह कंपनी संपत्तियों के विकास, प्रबंधन एवं सलाहकार का काम करती है। इस ग्रुप की कई कंपनियां पिछले कई सालों से भाजपा को चंदा देती रही हैं। 2018 में ईडी ने हीरा ग्रुप के खिलाफ एक मामला दर्ज किया और एक निवेश घोटाले के मामले में एस.एस. ग्रुप की भूमिका की जांच करने लगी। 2020-21 में एसपीपीएल डेवलपर्स ने भाजपा को चंदे मंे 50 लाख और एसएस डेवलपर्स सलारपुरिया विंडसर ने 3 करोड़ रुपए दिए। ये दोनों एस.एस. ग्रुप की सहायक कंपनियां हैं। 2021-22 में सैटर्न गृह निर्माण लि. (एस.एस. ग्रुप की एक और सहायक कंपनी) ने भाजपा को 4 करोड़ का चंदा दिया। उसी साल आर.एल.एम. इंफ्रा प्रमोटर्स (बिजय अग्रवाल की भागीदारी वाली कंपनी) ने भाजपा को 50 लाख रुपए दिए। नवंबर 2022 में इस समूह पर ईडी का छापा पड़ा और उसके 316 बैंक खातों के 49.99 करोड़ रुपए फ्रीज कर दिए गए। उसी साल एसएस डेवलपर्स ने भाजपा को 4 करोड़ और सैटर्न गृह निर्माण लि. ने 1.5 करोड़ रुपए भाजपा को चंदे में दिए।

16. के.पी.सी. प्रोजेक्ट्स लि.: आंध्र प्रदेश की इस निर्माण कंपनी के चेयरमैन के. अनिल कुमार हैं। यह कंपनी बड़े-बड़े निर्माण कार्यों के सरकारी ठेके लेती है। दिसंबर 2021 में कांगे्रस नेता रेवंत रेड्डी (वर्तमान मुख्यमंत्री) ने शहीद स्मारक प्रोजेक्ट में अधिकारियों को घूस देकर प्रोजेक्ट का खर्च बढ़ाने का आरोप लगाकर मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की थी। उसी साल 2021-22 में इस कंपनी ने भाजपा को 1 करोड़ का चंदा दे दिया। कंपनी ने 2022-23 में भी भाजपा को चंदा दिया था परंतु उसकी राशि घटाकर 5 लाख कर दी थी। नतीजतन दिसंबर 2023 में इस कंपनी पर फिर छापा पड़ गया।

17. बी.जी.आर. माइनिंग इंफ्रा: हैदराबाद स्थित इस कंपनी के संस्थापक बी.जी. रेड्डी हैं। 2017 में सीबीआई ने इस कंपनी के डायरेक्टर और उनके सहायक प्रभात कुमार पर एनटीपीसी के किसी वरिष्ठ अधिकारी को हवाला चैनल के माध्यम से रिश्वत देने के आरोप में मामला दर्ज किया था। जुलाई 2019 में एनटीपीसी ने इसी मामले का हवाला देकर कंपनी के छत्तीसगढ़ और झारखंड में खनन के ठेके रद्द कर दिए। 5 माह बाद 31 अक्तूबर 2019 को कंपनी ने भाजपा को 5 करोड़ का चंदा दिया। नतीजा यह हुआ कि एनटीपीसी ने ही पिछले साल फरवरी में इस कंपनी को झारखंड का 20,400 करोड़ का सबसे बड़ा खनन ठेका दे दिया गया।

18. विसाका इंडस्ट्रीज: यह कंपनी पूर्व कांग्रेसी नेता जी. विवेक वेंकटस्वामी की है जिन्होंने अगस्त 2019 में भाजपा का दामन थाम लिया और बाद में 1 नवंबर 2023 को उसे भी छोड़ दिया। उनके ऊपर तेलंगाना चुनाव के पहले हैदराबाद से चेन्न्ाूर रुपए पहुंचाने का आरोप लगाकर ईडी ने छापा मारा। जिस दौर में विवेक भाजपा में थे उस दौर में 2020-21 में इस समूह ने भाजपा को 3.005 करोड़ और 2021-22 में 3 करोड़ चंदा दिया था।

चंदे के एवज में अवांछित पक्षपात

ऐसी और भी कई कंपनियां हैं जिन्हें भाजपा को चंदा देने के एवज में अवांछित लाभ उपलब्ध कराए गए। मणिपुर के सेनापति जिले की एस.एन. पवई एवं गुजरात की एग्रोसेल इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड ऐसी ही कम्पनियां हैं।

एस.एन. पवई को नेशनल हाइवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट काॅरपोरेशन द्वारा किसी सड़क के निर्माण के लिए फर्जी बैंक गारंटी जमा करने के आरोप में 2016 में 5 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। परंतु बाद में 2019 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में उसे एक साथ आठ ठेके मिल गए। बाद में 2021-22 में भाजपा को इस कंपनी से 3.47 करोड़ का चंदा मिल गया।

सीएजी ने एग्रोसेल इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड को कच्छ में कंपनी और अधिकारियों की मिलीभगत से बिना कोई टेंडर आमंत्रित किए ही 18000 एकड़ जमीन सरकार के 2006 के निर्णय की अवहेलना करके आवंटित किए जाने के मामले में आरोपी बनाया था। इस कंपनी के मालिक दीपक श्राफ भाजपा को नियमित रूप से चंदा देते हैं, विवरण इस प्रकार है: 2019-20 में 95 लाख, 2020-21 में 5 लाख, 2021-22 में 3 करोड़ और 2022-23 में 1.72 करोड़।

गुवाहाटी स्थित घनश्याम धानुका की घनश्याम फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड का भी हाल कुछ ऐसा ही है। इस कंपनी ने भाजपा को 2020-21 में 75 लाख और 2021-22 में 1.25 करोड़ रुपए चंदे में दिए थे। कोविड-19 के दौरान असम की भाजपा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हेमंत बिस्वसरमा की नजदीकी कंपनियों को ही दवा की आपूर्ति के ठेके दिए गए थे, इनमें से एक घनश्याम धानुका की घनश्याम फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड भी थी। हेमंत बिस्वसरमा के बेटे का वशिष्ठ रियल्टर्स मंे बड़ा हिस्सा है। इस कंपनी के पूर्णकालिक डायरेक्टर अशोक धानुका, घनश्याम धानुका के पिता हैं।

ऊपर दी गई 30 कंपनियों के अलावा भी अनेक ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने केंद्रीय एजेंसियांे के छापे के बाद ही भाजपा को चंदा देना शुरू किया। उनमें से कुछ नीचे दी जा रही हैं:

हिंडालको इंडस्ट्रीज लिमिटेड:

2005 में ओडिशा में कोल ब्लाॅक के आवंटन में भ्रष्टाचार के मामले में 2013 में इस कंपनी पर सीबीआई का छापा पड़ा था और उसमें 25 करोड़ रुपए की नकदी भी मिली थी। इस मामले में कंपनी के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला और कोयला सचिव पी.सी. पारेख के खिलाफ मामला भी दर्ज हुआ था। 2014 में मामले में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी और दोनों आरोपियों को क्लीन चिट भी मिल गयी थी। हांलाकि मामला अभी तक लंबित है।

2017 में आदित्य बिड़ला समूह ने अपने ही एबी इलेक्टोरल ट्रस्ट के माध्यम से राजनीतिक दलों को 21.8 करोड़ रुपए दान किए थे जिसमें से 13.5 करोड़ भाजपा को, 1 करोड़ कांग्रेस को और बीजेडी को 8 करोड़ रुपए मिले। इस दान का 6.75 करोड़ हिंडालको से आया था। 2018-19 में इसी ट्रस्ट के माध्यम से 57.25 करोड़ रुपए चंदे में दिए गए जिसमें से हिंडालको का हिस्सा 13.5 करोड़ था। 57.25 करोड़ में से भाजपा को 28 करोड़, बीजेडी को 27 करोड़ कांग्रेस को 2 करोड़ और जनता दल (सेकुलर) को 25 लाख रुपए मिले थे। 2019-20 में भी इसी ट्रस्ट के माध्यम से इस समूह ने 10 करोड़ रुपए दान किए जिनमें से हिंडालको का हिस्सा अकेले 9.5 करोड़ का था। इसमें से भाजपा को 9 करोड़ और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 1 करोड़ रुपए मिले थे। 2021-22 में केवल हिंडालको से 10 करोड़ रुपए आए थे और पूरा का पूरा भाजपा के खाते में चला गया। इस प्रकार 2017 से 2022 के बीच भाजपा को इस समूह से 60.5 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे।

बधावन ग्लोबल कैपिटल लि.

यह बधावन ग्रुप की सहायक कंपनी है। इसी ग्रुप की कंपनी दीवान हाउसिंग फाइनेंशियल लिमिटेड (डीएचएफएल) है जिसने सार्वजनिक धन का 31,000 करोड़ अंडरवल्र्ड के इकबाल मिर्ची की मुंबई में 3 संपत्तियां खरीदने में लगाया था और तथाकथित रूप से 2010 से 2019 के बीच 2000 करोड़ रुपए उसी गैंग्स्टर को उपलब्ध कराया था जिसका निवेश आतंक के लिए किया गया था। उ.प्र. पावर काॅरपोरेशन के साथ धोखाधड़ी के मामले में ईडी ने इस कंपनी की 578 करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली थी। इस पूरे वाकए को कोबरापोस्ट ने छापा था।

इस समूह ने 2014 से 2019 के बीच भाजपा को 578 करोड़ रुपए का दान दिया है। कोबरापोस्ट में रिपोर्ट छपने के 10 माह के अंदर इस कंपनी ने भाजपा को 10 करोड़ रुपए दिए हैं।

इसके अलावा भी कई उदाहरण ऐसे हैं जो शक को और गहरा कर देते हैं। जैसे बारिक इंटरप्राइजेज इंडिया, प्राइवेट लिमिटेड का ही उदाहरण ले लीजिए। इस कंपनी की स्थापना अप्रैल 2020 में हुई थी, इसका घोषित व्यवसाय कूड़े की रीसाइक्लिंग और वेस्ट मैनेजमेंट था। 2021-22 इस कंपनी ने 10 किश्तों में कुल मिलाकर भाजपा को 2.79 करोड़ का चंदा दिया जबकि कंपनी की कुल अधिकृत शेयर पूंजी मात्र 1 लाख रुपए थी। कंपनी के मालिकान थे बिकास कुमार पारिक और प्रवास मार्था। कंपनी का चेन्नई का जो पता घोषित किया गया था वहां उसका दफ्तर था ही नहीं, इसलिए यह कंपनी बाद में डीलिस्ट कर दी गई।

इन कंपनियों के खिलाफ चल रहे मामलों की अद्यतन स्थिति के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। आयकर विभाग, ईडी, सीबीआई सभी से जानकारी मांगी गई है परंतु अभी तक किसी ने कुछ नहीं बताया है। ‘द न्यूज मिनट और न्यूज लाॅन्ड्री’ की टीम की इस रिपोर्ट के बाद बार-बार उच्चतम न्यायालय द्वारा अपनी भद्द पिटवाने के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने थक-हार कर अपनी पुरानी रिपोर्ट के आगे बाॅन्डों के छिपे नंबर भी जारी कर दिए हैं और इसके बाद अलग-अलग एजेंसियों ने उनका विश्लेषण करके कुछ चैंकाने वाले तथ्य उजागर भी कर दिए हैं पर अभी भी भारतीय स्टेट बैंक को बहुत कुछ देना बाकी है और एजेंसियों को उनका विश्लेषण भी करना है।

फर्जी कंपनियों का फर्जीवाड़ा

नई फर्मों ने खरीदे करोड़ों के बाॅन्ड

बाॅन्ड खरीदने वाली कंपनियों के डाटा का काॅरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के डाटा से मिलान करने पर एक हैरतअंगेज बात यह सामने आती है कि कई कंपनियां ऐसी हैं जो एकदम नई-नई पंजीकृत हुईं और उन्होंने करोड़ों के बाॅन्ड खरीद डाले। इनमें से कुछ तो ऐसे सेट में आती हैं जिनके पते एक ही हैं तो कुछ ऐसे सेट में भी हैं जिनके मालिकान एक ही हैं। कम से कम 43 कंपनियां ऐसी हैं जिनकी स्थापना ही 2018 में या उसके बाद हुई परंतु उन्होंने 384.5 करोड़ रुपए के बाॅन्ड खरीदे हैं। इनमें से भी 4 हैदराबाद की कंपनियां हैं जिनकी स्थापना 2023 में हुई और उसके कुछ माह के भीतर ही उन्होंने करोड़ों के बाॅन्ड खरीदे। 2020 में 9 और 2021 में 11 ऐसी कंपनियों की स्थापना कोविड-19 महामारी के दौरान हुई थी जिन्होंने केवल एक या दो साल के भीतर ही कुल मिलाकर 100 करोड़ रुपए के आसपास के बाॅन्ड खरीद लिए।

हैदराबाद में 2023 में स्थापित दो कंपनियों के डायरेक्टर और मैनेजिंग डायरेक्टर एक ही निकले।

टीशाक्र्स इंफ्रा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना 26 मार्च 2023 को हुई थी। इसके ठीक तीन माह बाद टीशाक्र्स ओवरसीज एजुकेशन कंसल्टेंसी प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना 29 मई 2023 को और उसके बमुश्किल डेढ़ माह के बाद 12 जुलाई 2023 को इन दोनों फर्मों ने कुल मिलाकर 7.5 करोड़ रुपए के बाॅन्ड खरीद डाले। कंपनी की वेबसाइट के अनुसार ये दोनों कंपनियां रियल स्टेट के कारोबार में संलग्न हैं।

ठीक यही प्रवृत्ति कई दूसरी कंपनियों और साझेदारियों में भी दृष्टव्य है। हैदराबाद में ही पंजीकृत एक दूसरी फर्म है बैन ग्लोबल रिसोर्सेज एलएलपी। इसकी स्थापना 26 मई 2023 को हुई थी और स्थापना के चार माह बाद 9 अक्तूबर 2023 को इस कंपनी ने 5 करोड़ के बाॅन्ड खरीदे। हैदराबाद में ही पंजीकृत एक और फर्म है वसावी एवेन्यूज एलएलपी। इसकी स्थापना 6 अप्रैल 2023 को हुई थी और स्थापना के केवल 3 माह बाद 12 जुलाई 2023 को उसने भी 5 करोड़ के बाॅन्ड खरीद लिए। इस प्रकार इन चारों कंपनियों ने कुल मिलाकर 17.5 करोड़ रुपए के बाॅन्ड खरीदे हैं।

कुछ फर्मों ने अपनी स्थापना के एक या दो सालों में 20 करोड़ से अधिक के बाॅन्ड खरीदे हैं जैसे 25 नवंबर 2021 को उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल की आस्कस लाॅजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड। इस कंपनी ने 12 अप्रैल 2023 और 10 जनवरी 2024 के बीच 22 करोड़ के बाॅन्ड खरीदे हैं। इनमें से पहली खरीद स्थापना के एक साल और चार महीने के भीतर ही हो गई थी। 18 अगस्त 2020 को हैदराबाद में स्थापित अपर्णा फाम्र्स एंड स्टेट्स एलएलपी ने 12 अक्तूबर 2023 और 20 नवंबर 2023 को दो बार मंे 30 करोड़ (दोनों बार 15-15 करोड़) के बाॅन्ड खरीदे। इनमें से पहली खरीद स्थापना के तीन साल के भीतर ही हुई थी। और दिसंबर 2020 में स्थापित हैदराबाद की अक्षत ग्रीनटेक प्राइवेट लिमिटेड ने अपनी स्थापना के तीन साल के भीतर ही 5 करोड़ के बाॅन्ड खरीदे।

अभी खुलासे की क्रम में ढेरों ऐसे मामले आ रहे हैं। 2जी घोटाला जिसको लेकर यूपीए-2 की सरकार को घेरा गया था उससे बड़ा घोटाला अभी भारती एयरटेल का सामने आया, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित नियमों को दरकिनार करते हुए बिना नीलामी, बिना टेंडर निकाले इस्पेक्ट्रम का ठेका दे दिया गया। इसने भाजपा को 150 करोड़ रूपए का चंदा दिया है। जिस कंपनी की बनाई उत्तराखंड के टनल में मजदूरों की जान महीनों फंसी रही जिन पर घटिया सामग्री के कारण पुल बह जाने और लागों की हत्या के आरोप हैं वह सब भाजपा के दान दाता हैं और उन्हें हजारों करोड़ के ठेके मिल रहे हैं। क्या यह सिर्फ एक पार्टी जो अपार धन एजेंसियों के दुरूपयोग और कंपनियों को अवांछित लाभ पहुंचाकर हासिल कर रही है और विपक्ष पर हमलावर है सिर्फ इतने भर का ही मामला है या फिर इस देश को, इसके लोकतांत्रिक ढांचे को और इसके संसाधनों को धर्म और राष्ट्रवाद का मुखौटा लगाकर हड़प जाने की सुनियोजित योजना का विभत्स सच है। इसने चुनावी मैदान को असमतल, सत्ताधारी वर्ग और काॅरपोरेट के पक्ष में झुका दिया है। 2024 में यह कितना चुनावी मुद्दा बनेगा नहीं कह सकते। लेकिन इसका जवाब और प्रतिपक्ष लोगों को ही बनना होगा।

(‘द न्यूज मिनट-न्यूज लाॅन्ड्री’ की रिपोर्ट, ‘द हिंदू’ दिनांक 17.03.2024 में छपी रिपोर्ट पर आधारित)

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