समकालीन जनमत
देसवा

सरसो का खेत और मोहम्मदीन का उदास चेहरा

( पत्रकार मनोज कुमार के साप्ताहिक कॉलम ‘देसवा’ की आठवीं क़िस्त  ) 

 

इसी हफ्ते खबर आयी कि कुशीनगर के हवाई अड्डे से सितम्बर महीने में उड़ान शुरू हो जाएगी। अफसरों ने 25 अगस्त को हवाई अड्डे के नए टर्मिनल बिल्डिंग का शिलान्यास किया। कहा गया कि 2600 वर्ग मीटर में 26 करोड़ की लागत से 100 दिन के अंदर नया टर्मिनल बिल्डिंग बन जाएगा।

यह खबर पढ़ते हुए कुशीनगर के किसानों के चेहरे दिखायी देने लगे जिनकी जमीन को एयरपोर्ट के लिए लिया गया। दस वर्ष पहले फरवरी के महीने में इन किसानों से मुलाकात हुई थी।

जमीन अधिग्रहण की कार्यवाही जोर-शोर से चल रही थी। एयरपोर्ट के लिए किसान अपनी जमीन देने को तैयार नहीं थे। वे आंदोलन कर रहे थे। कुशीनगर के शहरी इलाके के लोग किसानों के आंदोलन को फिजूल करार दे रहे थे और वे इस बात से खुशी जाहिर कर रहे थे कि एयरपोर्ट बनने से कुशीनगर का बहुत विकास होगा।

फरवरी 2010 के तीसरे हफ्ते में जब किसानों से मिलने पहुंचा तो वे सड़क के किनारे धरने पर बैठे थे। लाल रंग का एक बैनर लगा था जिस पर किसान एकता जिंदाबाद के साथ-साथ ‘ हवाई पट्टी भूमि अधिग्रहण विरोधी किसान मंच ‘ लिखा हुआ था।

हमारी मुलाकात राधेश्याम गोंड, शर्मानन्द, फूलमती देवी, शहाबुद्दीन अली, शर्मानन्द गोंड, फूलमती, मीर हसन, मोहम्मदीन से हुई। राधेश्याम गोंड किसान मंच की अगुवाई कर रहे थे।

अंग्रेजों के जमाने में 97.238 एकड़ में बने एयर स्ट्रिप को अन्तर्राष्टीय हवाई अड्डा में बदलने का निर्णय 2010 में लिया गया था। यहां पर 2100 मीटर लम्बी और 171 मीटर चौड़ी हवाई पट्टी और एक टर्मिनल बिल्डिंग मौजूद था। यहां पर आस-पास के गांव के किसान एयर स्ट्रिप पर अनाज सुखाते तो लड़के क्रिकेट खेलते या फर्राटा भरते। रामकोला से आने वाले वाहन भी एयर स्ट्रिप की टूटी चहारदीवारी से होते हुए कसया  पहुंचते थे।

एक बार जनवरी महीने रामकोला से आते हुए मैं इसी हवाई पट्टी में घने कोहरे में फंस कई घंटे तक गोल-गोल घूमता रहा था। बड़ी मुश्किल से हवाई पट्टी से बाहर कस्बे की तरफ निकल पाया था। जब कोई वीआईपी हेलीकाप्टर से आता तो यहां प्रशासनिक चहल-पहल बढ़ जाती। बाकी समय यह आम जन के ही उपयोग में रहता।

कुशीनगर तहसील प्रशासन ने अन्तराष्टीय हवाई अड्डे के लिए 13 गांवों के 3114 किसानों की कुल 238.728 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण का प्रस्ताव तैयार किया था। किसानों के अलावा ग्राम सभा व अन्य की जमीन मिला कर कुल 296.340 हेक्टेयर जमीन हवाई अड्डे के लिए ली जा रही थी। अधिग्रहण के दायरे में 10 पक्के मकान, 12 कटरैन व 8 फूस के घर भी आ रहे थे। सरकारी दस्तावेज में लिखा हुआ था कि अधिग्रहण से 17 दलित और 133 पिछड़े व अल्पसंख्यक किसान भूमिहीन होंगे।

हवाई अड्डे के लिए भलुही मदारी पट्टी, शाहपुर, विशुनपुर विन्दवलिया, बेलवा दुर्गाराय, नीवी, खोराबार, नरायनपुर, नरकटिया खुर्द, मिश्रौली, बेलवा रामजस दुबे, परसहवां, नकहनी और पतया गांव की जमीन ली जा रही थी।

यह जमीन बेहद उपजाऊ थी। किसानों का कहना था कि वे इन खेतों से साल में तीन से चार फसल लेते हैं। हवाई अड्डे के लिए उनकी जमीन अधिग्रहीत करने के बारे में उनसे आज तक बातचीत नहीं की गई है। गुपचुप तरीके से सर्वे करा लिया गया।

हवाई पट्टी भूमि अधिग्रहण विरोधी मंच के अध्यक्ष राधेश्याम गोंड ने बताया कि बड़ी मुश्किल से उन्होंने तहसील से वह कागज निकलवाया जिसमें अधिग्रहीत जमीनों का ब्यौरा है। नहीं तो किसी को पता नहीं चल पा रहा था कि किसका जमीन व घर अधिग्रहण के दायरे में आ रहा है।

 

कुशीनगर के किसान जिनकी जमीन पर आज हवाई अड्डा बन गया है । तस्वीर दस वर्ष पुरानी है ।

राधेश्याम गोंड नरकटिया गांव के रहने वाले थे। नरकटिया में करीब 200 परिवार है। कोई ऐसा घर नहीं था जिसकी जमीन हवाई अड्डे के लिए न जा रही हो। फूलमती देवी का 15 कट्ठा, शहाबुद्दीन अली का आठ कट्ठा, शर्मानन्द गोंड का 24 कट्ठा जमीन ली जा रही थी। फूलमती देवी तो किसी भी सूरत में अपनी जमीन देने को तैयार नहीं थी। उन्होंने कहा कि -जमीन ना दिआई, चाहे त गोली चला के मुआ दें।

शर्मानन्द कहते हैं कि हमारी जमीन ऐसी जगह है जहां कभी बाढ़,से सूखा का प्रकोप नहीं है। हम जमीन से तीन-तीन फसल खाते है। जमीन चली जाएगी तो हम कहां जाएंगे ?

60 वर्षीय शहाबुद्दीन का सवाल था कि आठ कट्ठा जमीन जाने के बाद उनके पास सिर्फ दो कट्ठा जमीन बचेगी। इतने में पांच बच्चो के परिवार का कैसे गुजर-बसर होगा ? युवा मीर हसन की 31 कट्ठा जमीन जा रही थी।

मदारी पट्टी गांव के किसान भी हवाई अड्डे के लिए जमीन देने को तैयार नहीं थे। युवा मुहम्मद फिरोज ने कहा कि हम चुपचाप नहीं बैठे हैं। अधिग्रहण के विरोध में सभी 13 गांव के लोग एकजुट हैं।

उनके साथ खड़े एक बुजुर्ग किसान ने कहा कि सरकार क्यों नहीं कुड़वा इस्टेट की सीलिंग की जमीन हवाई अड्डे के लिए ले रही है। उसे हम गरीबों की जमीन ही क्यों भा रही है ?

17 फरवरी 2010 को जमीन अधिग्रहण को लेकर जनसुनवाई हुई थी। जनसुनवाई में एक अफसर ने किसानों को समझाते हुए कहा कि हवाई अड्डा बन जाएगा तो रोजगार के अवसर पैदा होंगे। लोग टैक्सी चलाकर, चाय की दुकान खोल कर पैसा कमाएंगे। एक किसान ने उन्हें वहीं करारा जवाब दिया। किसान ने कहा कि तीन हजार किसानों की जमीन से 15-20 हजार लोगों का पेट पल रहा है। गाढे वक्त पर यही खेती काम आती है। हवाई अड्डे से इतने लोगों का पेट भरने का इंतजाम हो जाएगा क्या ? अफसर हक्का-बक्का होकर किसान का चेहरा देखता रह गया था।

किसानों का आंदोलन चलता रहा और उधर सरकार कार्यवाही आगे बढ़ाती रही। जब किसानों की जमीन अधिग्रहीत की जा रही थी तब लखनऊ में बहुजन सरकार थी। उसके बाद आयी समाजवादी सरकार ने अधिग्रहण की कार्यवाही में तेजी ला दी। आंदोलन को तोड़ दिया गया और थोड़ा मुआवजा बढ़ाकर जमीन ले ली गयी।

इस रनवे पर दस वर्ष पहले हरे-भरे खेत हुआ करते थे

 

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी दलों के नेताओं ने कुशीनगर के हवाई अड्डे को जल्दी बनवाने को अपना सबसे प्रमुख एजेंडा बताया। सभी सहमत थे कि जल्द से जल्द हवाई अड्डा बनना चाहिए।

चुनाव के बाद किसानों से ली गयी जमीन पर चहारदीवारी खड़ी हो गयी। हवाई अड्डा बनने लगा।

फिर 2017 का विधानसभा चुनाव का वक्त आया। प्रधानमंत्री ने इसी हवाई अड्डे की जमीन पर सभा का सम्बोधित किया। देश में नोटबंदी हो चुकी थी। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में विस्तार से बताया कि कैसे अब किसान डिजिटल पेमेंट करने लगे हैं।

विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बदल गयी और समाजवादियों की जगह राष्टवादी आ गए। राष्टवादियों ने घोषणाा की कि उनके राज में अब हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाई जहाज में उड़ेंगे। हवाई अड्डे के काम में ओर तेजी लायी जाएगी।

इसी साल जून में केन्द्रीय कैबिनेट ने कुशीनगर एयरपोर्ट को अन्तर्राष्टीय एयरपोर्ट का दर्जा दे दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे पूर्वांचल में विकास और रोजगार के नए द्वार खुलेंगे।

अगले एक-दो महीने में कुशीनगर से हवाई जहाज उड़ने लगेंगे। अखबारों में टर्मिनल, हवाई पट्टी की तस्वीरें आ रही है। बताया जा रहा है कि अब कुशीनगर में थाईलैण्ड, जापान, वियतनाम, म्यांमार, श्रीलंका, ताईवान सहित विश्व के अनेक देशों के बौद्ध धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में आ सकेंगे। उनकी संख्या दस गुना बढ़ जाएगी। कुशीनगर व आस-पास के जिलों सहित बिहार से हर वर्ष मध्य पूर्व के देशों में जाने वाले डेढ लाख कामगारों को जहाज पकड़ने मुम्बई व दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा। उन्हें बड़ी सहूलियत हो जाएगी।

मीडिया में उकेरी जा रही इन सुहानी तस्वीरों में मुझे मदारी पट्टी के मोहम्मदीन का उदास चेहरा और उनके सरसो की फसल दिख रही है। मोहम्मदीन की आठ कट्ठा जमीन हवाई अड्डा बनाने के लिए बलिदान हुई। उन्होंने अपने सरसो की फसल को दिखाते हुए मुझसे कहा था-ऐसी उपजाऊ जमीन मिलेगी कहीं ? पंजाब, हरियाण से हमारी जमीन कब उपजाऊ नहीं है। चना, केराव जो चाहे बो दीजिए। अधिकारी कहते हैं कि गांव को नहीं लेेगे सिर्फ जमीन लेंगे। मै पूछता हूं कि हमारे खेत चले जाएंगे तो हम गांव में रहकर क्या करेंगे ?

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