46 वें शहादत दिवस पर याद किये गये चारू मजूमदार
लखनऊ. भारतीय जनता के महानायक और भाकपा माले के संस्थापक महासचिव कामरेड चारू मजूमदार की 46 वें शहादत दिवस को लखनऊ के लेनिन पुस्तक केन्द्र में संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया.
इस मौके पर माले के राज्य कार्यालय सचिव अरूण कुमार, जन संस्कृति मंच के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष एवं कवि कौशल किशोर तथा जसम लखनऊ के संयोजक श्याम अंकुरम ने उन्हें याद किया तथा उनके वैचारिक, राजनीतिक और सांगठनिक योगदान की चर्चा की. कार्यक्रम का संचालन माले के लखनऊ जिला प्रभारी रमेशसिंह सेंगर ने किया.
कामरेड चारू मजूमदार को याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि वे सीएम के नाम से लोकप्रिय थे. उनका बड़ा योगदान है कि उन्होंने न सिर्फ कम्युनिस्ट आंदोलन के अन्दर चल रही राष्ट्रीय जनवाद और जनता के जनवाद के बीच की तीखी बहस को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाया बल्कि उन्होंने क्रान्तिकारी कम्युनिस्टों को एकल पार्टी में संगठित किया.
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वक्ताओं ने कहा कि उनके आठ दस्तावेज भारत में क्रान्तिकारी बदलाव का वैचारिक और राजनीतिक आधार प्रदान करता है. उनकी समझ थी कि भूमिहीन और गरीब किसान क्रान्ति की धुरी हैं. इसीलिए इन्हें संगठित करने के लिए नौजवानो का आहवान किया कि वे गांवों की ओर जायें और किसानों के साथ अपने को एकरूप करें. हजारों नौजवान गांवों की ओर गये, कठिइनाइयां झेली. उनमें कई शहीद हुए. महाश्वेता देवी का उपन्यास ‘हजार चौरासीवें की मां’ इसी जन उभार पर लिखा गया. भारतीय भाषाओं में ऐसी ढ़ेर सारी रचनाएं लिखी गईं.
वक्ताओं का कहना था कि नक्सलबाड़ी भारत के किसान आांदोलन का ही क्रन्तिकारी विकास है. इसे तेलंगाना, तेभागा, वायलर-पुनप्रा आदि की परम्परा में देखा जाना चाहिए. जहां अन्य किसान आंदोलन आत्म समर्पण या समझौते में समाप्त हुए वहीं नक्सलबाड़ी की विशेषता रही कि उसने शहादतें झेली लेकिन समर्पण नहीं किया. वह अखिल भारतीय प्रभाव सृजन करने तथा कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों को एकल पार्टी में संगठित करने में सफल हुआ. यही कारण है कि भारी दमन के बाद भी नक्सलबाड़ी जिन्दा है अैार उसने क्रान्तिकारी धारा को व्यापक व लोकतांत्रिक आयाम दिया है. आज वह कॉरपोरेट फासीवाद के विरोध के मार्चे की अगली कतार में है.ऐसा सीएम की वैचारिक व राजनीतिक दिशा से संभव हुआ है जिसे विनोद मिश्र और अन्य नेतृत्वकारी कामरेडों ने आगे बढ़ाया.
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इस मौके पर कौशल किशोर ने सीएम को याद करते हुए अपनी दो कविताओं का पाठ किया. पहली कविता थी ‘गाते हुए’. यह 1972 में लिखी गई. यह दौर था जब अमरीकी साम्राज्यवाद के खिलाफ वियतनामी जनता का मुक्ति संग्राम चल रहा था. कविता का आरम्भ ही होता है ‘एक वियतनाम अंगड़ाई ले रहा है/मेरे देश में/वियतकांग बन रहे हैं/मेरे गांव के किसान’. नक्सलबाड़ी किसान आंदोलन ने किसानों को परिवर्तन की नई चेतना से किस कदर लैस किया, वह कविता में यूं आता है: ‘वे पहले की तरह ‘चुप चुप’ होकर नहीं/फौज की तरह कतारबद्ध हो/श्रीकाकुलम और नक्सलबाड़ी के/किसान आंदोलन की चर्चा करते/शहीदों को याद करते/या ‘मुक्त होबो मातृभूमि’ गीत दोहराते गुजरते हैं/जिसे गाते हुए/संघर्षों में हमारे अनगिनत कामरेड/शहीद हो अमर हो गये हैं’.
कौशल किशोर की दूसरी कविता थी ‘स्वप्न अभी अधूरा है’. यह 18 मार्च 1974 को पटना में छात्रों पर हुए बर्बर गोलीकाण्ड पर लिखी गई. यह उन तमाम शाहीदों की स्मृति को ताजा ही नहीं करती बल्कि आज के संघर्ष के प्रेरक के रूप में उनके महत्व को भी सामने लाती है: ‘वे दर्ज होंगे इतिहास में/पर मिलेंगे हमेशा वर्तमान में/लड़ते हुए/और यह कहते हुए कि/स्वप्न अभी अधूरा है. ’