समकालीन जनमत
स्मृति

जिंदादिली और जीवटता की अद्भुत मिसाल थे कामरेड अखिलानंद पांडेय

ओम प्रकाश सिंह

 

23 अप्रैल 2020 को जब अचानक खबर मिली कि मऊ जनपद के वरिष्ठतम कामरेड अखिलानंद पांडेय जी नहीं रहे तो मन बहुत ही उद्वेलित हो गया और उनके साथ बिताए गए समय और उनके जीवन संघर्ष की यादें दिमाग में घुमड़ने लगीं. उनके जीवन और संघर्षों के बारे में उनसे, उनके समकालीनों से और खुद के अनुभव से जितना जानने समझने को मिला उसे आपसे शेयर करने की कोशिश कर रहा हूं.

1950 और 1960 के दशक में देश व प्रदेश के साथ साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी सी पी आई के नेतृत्व में कम्युनिस्ट आंदोलन उभार पर था तो युवा अखिलानंद पांडेय भी उसमें कूद पड़े. 1952 में ही पार्टी से जुड़ गए। उनके ऊपर झारखन्डे राय, सरयू पांडेय, नर्बदेश्वर लाल, अब्दुल बाकी आदि बड़े कम्युनिस्ट नेताओं का गहरा प्रभाव पड़ा। शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही पार्टी आंदोलनों और कार्यक्रमों में वे भाग लेने लगे. कामरेड अखिलानंद पांडेय तो उसी समय पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनना चाहते थे किन्तु उनके चाचा जो इलाके के कांग्रेस के महत्त्वपूर्ण कार्यकर्ता थे, ने दबाव डालकर उन्हें नौकरी में लगा दिया।

अखिलानंद ग्राम विकास अधिकारी (ग्राम सेवक) की नौकरी करने लगे। जैसी कि उनकी समझ और कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रति प्रतिबद्धता थी, नौकरी के दौरान भी पार्टी आंदोलन और कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे। स्थिति यहां तक थी कि जब वह छुट्टी पर घर आते तो घर न रुककर मऊ शहर स्थित पार्टी कार्यालय पर रहते एवं पार्टी गतिविधियों में हिस्सेदारी करने लगते। एक बार उस समय के बड़े कम्युनिस्ट नेता डॉ जेड ए अहमद मऊ से चुनाव लड़ रहे थे तो पांडेय जी छुट्टी लेकर घर आये और चुनाव प्रचार में लग गए। बाद में उनकी शिकायत हुई और किसी तरह नौकरी बची।

1970 के दशक में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चलाए जा रहे हरी, बेगारी, नजराना के विरुद्ध एवं बंजर व बचत की जमीनों पर भूमिहीन गरीबों के अधिकार और कब्जे के संघर्षों में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. सामंती हमला झेले और घायल भी हुए. उक्त सभी संघर्षों में नौकरी की परवाह किए बगैर बेझिझक और बेहिचक भागीदारी की.

कामरेड अखिलानंद के गांव के बगल में रेकवारेडीह में जब जमींदारों के विरुद्ध दलित बस्ती के गरीबों का संघर्ष हुआ तो उन्होंने वहां के स्थानीय कार्यकर्त्ता बालचंद राम के साथ दिन रात एक कर दिया. पूरी बस्ती पर जुल्म हुआ और पांडेय जी पर भी हमला हुआ. अभी कुछ वर्षों पूर्व जब उन्होंने उस इलाके में भाकपा माले की गतिविधियां शुरू की तो कामरेड बालचंद राम भी सक्रिय हो गए. मऊ के दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थित पलिगढ़ एवं वर्तमान आजमगढ़ के सठियांव व्लाक के महुआ मुरारपुर में भूमि के सवाल पर हुए संघर्षों में सामंतों ने उन्हें बुरी तरह मारा था और सिर में कई कई टांके लगाने पड़े थे. इतना ही नहीं छुट्टी से वापस जाकर झूठ बोलना पड़ा था कि दुर्घटना में चोट लगी है. ऐसे थे कामरेड अखिलानंद पांडेय.

1980-90 का दशक आते-आते कामरेड अखिलानंद को लगने लगा था कि सीपीआई अब मजदूरों- गरीबों के संघर्षों से पीछे हट रही है और वही वह समय था जब भाकपा माले के जन राजनीतिक संगठन इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आई पी एफ) के आंदोलनों की गूंज सुनाई दे रही थी. कामरेड अखिलानंद पांडेय भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. उस दौर में वे गोरखपुर जिले में नियुक्त थे और कामरेड जयप्रकाश नारायण जो आई पी एफ के प्रांतीय सचिव थे, उनसे भी इनका मिलना-जुलना शुरू हुआ. पांडेय जी भी आई पी एफ एवं इस तरह भाकपा माले के प्रभाव में आ गए.

1988-89के आस पास मऊ के काटन मिल मजदूरों का आंदोलन उभार पर था. सीपीआई के तत्कालीन नेतृत्व ने प्रबंध तंत्र से समझौता कर लिया जिससे छुब्ध होकर उक्त आंदोलन के नेता धनराज सेठी ने अलग यूनियन बनाने की कोशिश की तो पांडेय जी ने पूरा सहयोग किया और यूनियन पंजीकरण का सारा खर्च वहन किया। इतना ही नहीं धनराज सेठी को अपने घर ले गए एवं परिवार के सदस्य की तरह रखा. आज भी सेठी उसी गांव में रहते हैं.

यही वह समय था जब भाकपा माले के काम काज की शुरुआत मऊ में करने का प्रयास शुरू हुआ और धनराज सेठी उनके सभी साथी और कामरेड अखिलानंद पांडेय सीपीआई छोड़ भाकपा माले से जुड़ गए। तब से लेकर अंतिम सांस लेने तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

अवकाश प्राप्त करने के बाद पूरी तरह से पार्टी काम में लिप्त हुए और पेंशन का बड़ा हिस्सा पार्टी में देने लगे. अस्सी के पार पहुंचने के बाद भी पैदल चलना हो, झंडा लेकर आंदोलन एवं जुलूस का नेतृत्व करना हो कहीं कोई हिचक नहीं नजर आयी. अभी लगभग डेढ- दो वर्षों पूर्व 2018 में वाराणसी- गोरखपुर हाइवे में किसानों व दुकानदारों की जमीनें और मकान अधिग्रहीत हो गए और उनके मुआवजे में बड़ा गड़बड़ घोटाला हुआ तो अ.भा.किसान महासभा की तरफ से चार महीने से अधिक समय तक धरना स्थानीय बाजार बढुवा गोदाम में चला. कामरेड अखिलानंद जी 85 पार की उम्र के बावजूद अकेले शख्स थे जो लगातार धरने पर रहे और उसका नेतृत्व किया.

कामरेड अखिलानंद पांडेय एक अच्छे और तर्कपूर्ण तरीके से बात करने वाले वक्ता और अध्ययनशील साथी थे।इस उम्र में भी पार्टी कार्यालय पर या घर पर रहने के दौरान पढ़ते रहते थे. युवा कार्यकर्ताओं को शिक्षित प्रशिक्षित करने पर बराबर जोर देते रहते थे और जब लगता था कि इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है तो नेताओं पर झुंझला भी जाते थे. पार्टी की राजनीति व विचारधारा की उनकी समझ एकदम स्पस्ट थी कहीं किसी तरह का द्वंद या भ्रम नहीं था. इतना ही नहीं सीपीआई, सीपीएम और माले के बीच फर्क क्या है इस पर भी उनका नजरिया बिल्कुल साफ था. हालांकि उनके व्यवहार में एक स्तर की अराजकता जीवन पर्यन्त मौजूद रही फिर भी कुछ चीजें थीं जो हमेशा बनी रहीं वो थीं- पार्टी कार्यकर्ताओं की आर्थिक या अन्य किसी भी तरह की समस्याओं को सीमा से बाहर जाकर हल करने की कोशिश , कम्युनिस्ट आंदोलन एवं पार्टी के अतिरिक्त जीवन में और दूसरा कुछ इतना महत्वपूर्ण नहीं है इस समझ पर मजबूती से डटे रहना

यही वजह रही कि पुरानी कम्युनिस्ट पार्टियों से मोहभंग होने पर भाकपा माले से जुड़ने में उन्हें वक्त नहीं लगा और मृत्यु के पूर्व तक संयुक्त कार्यक्रमों में शामिल रहते हुए भी उनके साथ निर्मम तरीके से बहसों में भी रहते रहे. कामरेड अखिलानंद पांडेय के अंदर मजदूरों गरीबों की दशा को लेकर जितनी पीड़ा थी उतनी ही शासक वर्गों के प्रति घृणा भी. यही कारण था कि उम्र की सारी हदों को तोड़ कर वे आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी करते अगली कतार में दिखाई देते थे.ऐसे प्रतिबद्ध, जिंदादिल एवं अद्भुत जीवट वाले बहादुर कम्युनिस्ट योद्धा का हमारे बीच से जाना समूचे कम्युनिस्ट व मजदूर आंदोलन और खासकर भाकपा (माले) की भारी क्षति है. ऐसे योद्धा को नमन एवं लाल सलाम !

( ओमप्रकाश सिंह भाकपा माले के उत्तर प्रदेश की राज्य कमेटी के सदस्य हैं )

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