अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच (अभाशिअम) ने खेती-संबंधी तीनों कानून और बिजली (संशोधन) विधेयक, 2020 के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लाखों किसानों व उनके संगठनों के साथ अपनी एकजुटता ज़ाहिर करते हुए किसान संगठनों द्वारा 8 दिसंबर को भारत बंद के आह्वान को समर्थन दिया है। मंच ने कहा है कि केंद्रीय सरकार ने इन कानूनों को पूरी तरह गैर-लोकतांत्रिक तरीके से देश पर जबरन थोपा है जिनमें कहीं दूर से भी यह सरोकार नहीं दिखता कि इनकी वजह से किसानों के आर्थिक हालात और साथ ही देश की अर्थव्यवस्था पर किस तरह के नुकसानदेह असर होंगे।
अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच (अभाशिअम) 22 राज्यों/यू.टी. के छात्र, शिक्षक और शैक्षिक अधिकारों के लिए संघर्षशील 80 से ज़्यादा संगठनों का लोकतांत्रिक मंच है।
मंच के अध्यक्ष प्रो. जगमोहन सिंह और संगठन सचिव डॉ. विकास गुप्ता
ने पाँच दिसम्बर को जारी एक बयान में कहा कि कोरोना महामारी का गलत फ़ायदा उठाते हुए सरकार ने तमाम लोकतांत्रिक मापदंडों व संसदीय नियमों की अनदेखी करके इन कानूनों को ताबड़तोड़ पारित करवाया है ताकि फसलों की खरीद-फ़रोख्त और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तयशुदा इंतज़ाम को खत्म करके निजी कंपनियों के लिए दरवाजे खोले जा सके। इन कानूनों को इस मकसद से बनाया गया है कि कृषि क्षेत्र का कारपोरेटीकरण किया जा सके और घरेलू व विदेशी कारपोरेट निवेशकों दोनों के फायदे के लिए ठेकेनुमा खेती (कांट्रेक्ट फ़ार्मिंग) की ख़तरनाक परिपाटी थोपी जा सके। इस तरह किसानों के अपनी खेती की कारपोरेट घरानों से हिफ़ाज़त करने के सभी रास्ते बंद हो जाएंगे और पूरे देश को एक भयानक खाद्य संकट की ओर धकेल दिया जाएगा।
गौरतलब है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) महज़ उत्पादन की लागत की कीमत है। इसके बावजूद किसानों को इससे भी कम कीमत पर अपने उत्पाद बेचने के लिए मजबूर किया जाता है जिसके चलते वे ज़िंदगीभर के लिए कर्ज़ में डूब जाते हैं। इसलिए किसानों के संदर्भ में सामाजिक न्याय के मायने हैं कि सरकार का काम केवल एमएसपी तय करना मात्र नहीं है बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि खेती के किसी भी उत्पाद को एमएसपी से कम कीमत पर कतई खरीदा ना जा सके। लेकिन ये कानून कारपोरेट व्यापारियों को केवल एमएसपी से कम कीमत पर खरीदारी करने की इज़ाजत ही नहीं देते वरन् साथ में लूट के लिए जमाखोरी और आवश्यक खाद्य पदार्थों के निर्यात को भी बढ़ावा देते हैं। बेशक, आज ये किसान कारपोरेट लूट के लिए बनाए गए कानूनों के खिलाफ़ संघर्ष करके करोड़ों आम उपभोक्ताओं के हकों की भी लड़ाई लड़ रहे हैं।
इन कानूनों को बगैर किसी किसान संगठन से सलाह-मशविरा किए बनाया गया है। इसके अलावा ये कानून संविधान-विरोधी भी हैं चूंकि अनुच्छेद 246 (7वीं अनुसूची, सूची क्र. 2 व 3) के मुताबिक खेती, राज्य और समवर्ती सूची का विषय है जिसके चलते खेती-संबंधी कोई भी कानून बगैर राज्य/यू.टी. सरकारों के सलाह-मशविरे के नहीं बनाया जा सकता। लेकिन केंद्रीय सरकार ने किसी भी राज्य/यू.टी. सरकार की सहमति लेने की ज़रूरत नहीं समझी। वैसे भी इस सरकार के द्वारा संविधान का यह उल्लंघन अब आम बात हो चुकी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को भी इसी तर्ज़ पर संविधान की संघीय रचना का उल्लंघन करके ही बनाया गया है। यह एक प्रमुख वज़ह है कि अभाशिअम ने इस शिक्षा नीति को पूरी तौरपर वापिस लेने की मांग की है।
बयान में कहा गया है कि दरअसल, संविधान का उपरोक्त उल्लंघन करके इन कानूनों को विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन (वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाईज़ेशन) के ‘जनरल एग्रीमेंट् ऑन ट्रेड इन सर्विसेज़’ (डब्ल्यूटीओ-गैट्स) के दबाव में बनाया गया है ताकि सरकार खेती को दी जानेवाली सभी तरह की सब्सिडी को हटा दे। किसानों व देश के हित में इन दबावों का जमकर प्रतिरोध करने की बजाय केंद्रीय सरकार ने खेती के नए कानूनों के बहाने उनके हुक्मों को लागू करने इरादा बना लिया है। ज़ाहिर है कि यह मामला केवल किसानों का ही नहीं वरन् देश की आज़ादी व संप्रभुता का भी है गोया कि ईस्ट इंडिया कंपनी को वापस बुलाया जा रहा हो।
अभाशिम का गहरा सरोकार है कि बड़ी तादाद में किसानों के बच्चे अपने-अपने गांवों से निकलकर दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए मजबूर हुए हैं। आखिरकार, जब उनके परिवारों की रोज़ी-रोटी ही खतरे में पड़ गई हो तो वे सुकून से अपने गांवों में कैसे रह सकते हैं। गौरतलब है कि महामारी की वजह से बच्चों की शिक्षा का पहले से ही भारी नुकसान हो चुका है। अगर किसानों की मांगें नहीं मानी गईं और विरोध-प्रदर्शन चलता रहा तो बच्चों की शिक्षा और भी खतरे में पड़ जाएगी। यह नुकसान केवल किसानों के बच्चों का ही नहीं वरन् पूरे देश का होगा।
इस पृष्ठभूमि में हम किसानों की मांग – खेती संबंधी तीनों कानून तुरंत वापिस लिए जाएं – का पुरजोर समर्थन करते हैं। आमजन भी अब यह समझने लग गए हैं कि इन कानूनों को वापिस लेने का मसला महज़ किसानों का नहीं है वरन् सभी नागरिकों का भी है कि देश के प्रशासन व निर्णय-प्रक्रिया का संचालन संविधान के मुताबिक लोकतांत्रिक तौर-तरीकों से किया जाए।
अभाशिअम अपने सभी सदस्य/बिरादराना संगठनों से अपील करता है कि वे इस ऐतिहासिक किसान संघर्ष के समर्थन में न केवल ऑनलाइन बयान, पोस्टर व अन्य सोशल मीडिया के संदेश ज़ारी करें बल्कि जहां भी मुमकिन हो वहां इस संघर्ष में सक्रिय रूप से हर हाल शामिल भी हों।