समकालीन जनमत
जनमतज़ेर-ए-बहस

संघ परिवार की सांस्कृतिक-आर्थिक नीति और एअर इंडिया  की घर-वापसी

जयप्रकाश नारायण 

गणतंत्र दिवस को स्टार्टअप दिवस घोषित करने के बाद 27 जनवरी की सुबह एयर इंडिया की शानदार घर वापसी संपन्न हो गई। टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने उत्साह और खुशी से लबरेज होकर कहा की 69 वर्ष बाद एयर इंडिया की टाटा घराने के हाथ में वापसी गौरवान्वित करने वाला अवसर है।

आज सुबह वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  से मिलने गए थे।  गणतंत्र दिवस के सैन्यवादी भव्य प्रदर्शन के चकाचौंध के दौरान जब धरती से अंबर तक तिरंगा ही तिरंगा दिख रहा था तो स्वाभाविक है कि एअर इंडिया  की अपने मूल घर वापसी का इससे बेहतर समय भला कब मिल सकता था।

चंद्रशेखरन ने कहा कि यह हमारे संस्थान और देश के लिए  गौरवान्वित होने का समय है। अब हम टाटा एयरलाइंस को  विश्व स्तरीय एयरलाइंस बनने की तरफ तेज गति से कदम बढ़ाएंगे। चंद्रशेखरन की आवाज में सुर से सुर मिलाते हुए नागरिक उड्डयन मंत्री सिंधिया ने भी लगभग इसी तरह के उद्गार व्यक्त किये हैं।

घर वापसी संघ परिवार का एक बहुप्रतीक्षित लक्ष्य है। जिसे हासिल करने के लिए पिछले 95 वर्षों से संघ परिवार लगातार कठिन, कठोर परिश्रम करता रहा है।  संघ परिवार के अदृश्य संरक्षक उसके  सत्ताधारी ताकतों के पक्ष में किए जा रहे कठिन परिश्रम को देखते हुए संघ के जन्मकाल से ही उसे पूर्णतया सहयोग संरक्षण देते रहे हैं। संघ परिवार के अनुसार भारत के हिन्दू तीन कारणों से धर्मांतरण करते रहे हैं।

पहला ,आतताई आक्रामक इस्लामी शासकों के तलवार के डर से।  दूसरा, लालच के वशीभूत होकर। जैसे आज गरीबों के साथ हो रहा है। उनको लालच और पैसे के बल पर धर्मान्तरित कराया जा रहा है। तीसरा, प्रेम, भाईचारा, सौहार्द, सहयोग और समन्वय का षड्यंत्र रच कर उन्हें धर्मान्तरित किया गया था। जैसे सूफी संतों द्वारा। या, अकबर ने दीन ए इलाही मत चला कर यही काम किया था।

एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि हिंदू धर्म में घर वापसी का नारा सिर्फ सांस्कृतिक नारा नहीं है, यह संघ परिवार के लिए एक आर्थिक सामाजिक लक्ष्य भी है।
संघ परिवार के अनुसार हिंदू राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए चाहे किसी कारण से हिंदुओं ने धर्मांतरण किया हो उनकी घर वापसी जरूरी है।

इसी संदर्भ में आज 69 साल बाद इंडियन एयरलाइंस  की घर वापसी हुई है । आजादी के समय भारतीय उद्योग जगत की वित्तीय क्षमता ऐसी नहीं थी, कि वह बड़े औद्योगिक संस्थानों जैसे रेलवे, एयरलाइंस, परिवहन आदि को चला सके।

1946 के टाटा-बिरला प्लान में भी मिश्रित अर्थव्यवस्था की वकालत की गई थी। क्योंकि उद्योगपति वर्ग के लोग समझते थे कि भारत की जरूरतों के अनुसार  इंफ्रास्ट्रक्चर की संरचना करने की क्षमता उनके पास नहीं है। इसलिए उस समय राज्य द्वारा संचालित औद्योगिक ढांचा भारतीय राज्य  और स्वयं उद्योग जगत के हित में था। यह मांग तत्कालीन उद्योग जगत की थी कि सरकार बड़े-बड़े संस्थानों को अपने हाथ में ले और उनका निर्माण और संचालन करे! इसलिए उस दौर में नेहरू के नेतृत्व में उद्योग जगत की सहमति से ही कई संस्थानों के राष्ट्रीयकरण किए गए और उन्हें सरकार के वित्तीय सहयोग से विकसित कर आगे ले जाने की योजना बनी। इसीलिए 69 साल पहले टाटा एयरलाइंस का अधिग्रहण कर एअर इंडिया  बनी थी।

उदारीकरण के बाद बदले हुए ऐतिहासिक दौर में भारत के विकास के लिए अब निजी उद्योग घराने इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि वह सरकार से भी बड़े संस्थान बना और चला सकते हैं। इस मोड़ पर मोदी सरकार ने इंडियन एयरलाइंस का टाटा परिवार के हाथों घर वापसी करा दी।

निश्चय ही वसीम रिजवी भी जब घर वापसी के बाद जितेंद्र नारायण त्यागी हुए थे, तो उन्होंने गौरवान्वित महसूस किया था । वह उतने ही उत्साह के साथ बोले थे, कि मैंने  पूर्वजों के किए गए पाप से अपने को मुक्त कर प्रायश्चित कर लिया है। आज  यही प्रायश्चित भारत के वित्तीय संसाधनों के कारपोरेटीकरण के दौर में टाटा एयरलाइंस के  राष्ट्रीयकरण द्वारा बने एअर इंडिया  के मालिकाने का स्थानांतरण करके मोदी सरकार कर रही है। एअर इंडिया  के मालिकाने का सफलतापूर्वक टाटा घराने के हाथ में स्थानांतरण संपन्न हो जाने के बाद  मुझे लगता है कि संघ परिवार के लोग इस घर वापसी से बहुत खुश हुए होंगे।

एक ऐतिहासिक तथ्य इतिहास के पन्नों में दर्ज है की गुजरात  वाइब्रेंट कार्यक्रम के दौरान रतन टाटा  ने पहली बार कहा था या यह कहें कि उद्योगपतियों को समझाया था की नरेंद्रभाई भारत के प्रधानमंत्री होने के लायक सभी योग्यता रखते हैं। इसलिए इन्हें भारत का प्रधानमंत्री होना चाहिए।

बहुत पहले घनश्यामदास बिड़ला ने भूलाभाई देसाई को एक पत्र लिखा था कि हम उद्यमियों को दूरदर्शी होना चाहिए। इसलिए हमें नेहरू के समाजवाद से या ऐसे किसी विचार  से भयभीत ना होकर हमें राजनीतिक संगठनों पर अपना नियंत्रण और उनके नेताओं के साथ अपने संबंधों को मधुर बनाए रखना चाहिए। यह उद्योग जगत के हित में होगा ।

टाटा और गोयनका ग्रुप सहित सभी औद्योगिक घरानों ने हर समय भारत में सत्ता और विपक्ष के राजनीतिक दलों से अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाए रखा। उद्योग जगत सामान्य तौर पर बहुत ही दूर तक सोचने वाला एक सामाजिक वर्ग होता है, इसलिए इंदिरा गांधी के दौर में गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन के दौरान उन्होंने उस समय के बड़े राजनीतिक व्यक्तित्व को हर तरह का सहयोग दिया था।

यह बात उस दौर के राजनीतिक-सामाजिक जीवन का विश्लेषण करने पर साफ दिख जाएगी। 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण और पूर्व रियासतों के राजाओं का प्रीविपर्स  समाप्त करने के फैसले का उस समय की स्वतंत्र पार्टी और भारतीय जनसंघ ने कड़ा विरोध किया था। बाद के दिनों में इन दोनों का जनता पार्टी में विलय हो गया ।

अब सवाल यह उठता है नरेंद्र भाई ने जब एयर इंडिया की घर वापसी करा दी है तो इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। क्या टाटा जैसे बड़े औद्योगिक घरानों ने धमकी तो नहीं दी थी कि  हमारी एयरलाइंस सहित सभी संस्थान हमें वापस कर दो । अगर उसे वापस नहीं किया जाएगा  तो प्रधानमंत्री की घर वापसी हो सकती है ।

आपको याद होगा रतन टाटा और बजाज ने एक बार गृह मंत्री सहित अन्य मंत्रियों और उद्योगपतियों के समूह की मीटिंग के दौरान सरकार को असहज कर देने वाली टिप्पणी की थी। यानी टाटा  के साथ अन्य  कारपोरेट समूहों ने मिलकर सरकार को डराने की कोशिश तो नहीं की थी, जब ‘हम दो, हमारे दो’ की आर्थिक ताकत तेजी से बढ़ने लगी थी। मोदी के अडानी-अंबानी से मित्रता के चलते यह दोनों कारपोरेट  घराने पूंजी केंद्रीकरण की होड़ में सभी उद्योगपतियों को पछाड़कर आगे निकल गए तब टाटा ने एक ऐसी टिप्पणी की थी, जो उद्योग जगत के अंदर मौजूद अंतर्विरोध को व्यक्त कर रहा था। रतन टाटा ने कहा था, कि हम उत्पादक उद्योगपति हैं ।

यह सभी जानते हैं कि वीपी सिंह की सरकार के गिरने में अंबानी के रिलायंस समूह और बॉम्बेडाइंग के बीच का झगड़ा एक बड़ा कारण था। उस समय यह खबर आई थी कि अंबानी ने आडवाणी की रथ यात्रा को प्रायोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । इस जटिल टकराव से बाहर निकलने के लिए वीपी सिंह ने ऐसा राजनीतिक मुद्दा उठा दिया कि आज तक भारतीय राजनीति मंडल और मंदिर  के बीच लडी जा रही है। जो आज विकसित होकर भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतंत्रिक  संस्थाओं के क्षरण की कहानी लिख रही है।

अंबानी और अडानी ग्रुप द्वारा मीडिया पर नियंत्रण  के बाद ऐसी खबरें आने लगी  कि स्वतंत्र मीडिया के नाम पर चलने वाले गैर कारपोरेट घरानों के मीडिया समूहों को टाटा और अजीम प्रेम जी जैसे उद्योगपतियों ने अपने ट्रस्टों के माध्यम से फंडिंग शुरू कर दी है। जो मीडिया समूह सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक हैं।

सफल किसान आंदोलन से उपजी जटिल परिस्थितियों से मोदी सरकार की लोकप्रियता को भारी क्षति पहुंची है और उसकी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है । तो, ऐसा लगता है कि कुछ औद्योगिक घरानों द्वारा मोदी सरकार के  विपरीत परिस्थिति में उन्हें कोई आश्वासन या लालच दी गई होगी। जैसे संघ परिवार को हिंदुत्व  फासीवादी राष्ट्र निर्माण की परियोजना के लिए समर्थन देने आदि ।

इंडियन एयरलाइंसलाइंस की घर वापसी कर्मचारियों  के विगत  दिनों चले आंदोलन के कारण  दंड देने के लिए भी हो सकता है । लंबे समय से इंडियन एयरलाइंस के कर्मचारी निजीकरण के सरकारी प्रस्ताव का बहुत मजबूती से विरोध कर रहे थे।  मोदी सरकार कई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को अडानी को देने के लिए कटिबद्ध थी और अब उसने ऐसा कर भी  दिया है।

इस संदर्भ में एक बात और ध्यान में रखना चाहिए कि कोरोना के आपदा काल में कई तरह की घर वापसी शुरू हुई थी।
एक, औद्योगिक क्षेत्रों में प्राचीन अमानवीय  श्रमसंस्कृति की  वापसी  के लिए श्रम कानूनों को बदलकर चार श्रम संहिताएं  बनाई गई है। जिसके द्वारा मजदूर वर्ग को प्राचीन दौर के अमानवीय श्रम के शोषण की  स्थितियों में वापस लौटा दिया गया है।

दूसरा,   हम जानते हैं कि भारत में , सबै भूमि गोपाल की,  कहीं जाती थी। राजा भूदेव  कहलाते थे और संपूर्ण धरती पर उनका राज और नियंत्रण होता था । अंग्रेजों ने भी भूमि बंदोबस्त कानून लाकर अपने दलाल पुराने राजे रजवाड़ों सहित नए जमीदारों की नई श्रेणी तैयार की थी।

इन जमींदारों, तालुकेदारों  और राजे-रजवाड़ों को एक हद तक स्वायत्तता देकर जमीन का मालिकाना उन्हीं के हाथों में केंद्रित किया गया था। लेकिन आजादी के बाद और कम्युनिस्टों द्वारा चलाए जा रहे जमींदारी उन्मूलन , जमीन जोतने वाले की  आन्दोलन और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बदल रही वैश्विक परिस्थितियों से निपटने के लिए  नेहरू ने जमींदारी उन्मूलन कानून बनवाया। उससे राजे-रजवाड़ों और जमींदारों की कुछ भूमि वास्तविक किसानों के पास स्थानांतरित हुई है।

उस स्थानांतरित भूमि को  फिर से उन्हीं बड़े घरानों, जिसमें राजे-रजवाड़े और कारपोरेट पूंजी के मालिक शामिल हैं के हाथ में  वापसी के लिए कृषि कानून  लाए गए थे। लेकिन गुस्ताख और जिद्दी किसानों ने घर वापसी के इस अभियान को सफल नहीं होने दिया। चूंकि सरकार अभी भी अपने इस लक्ष्य से पीछे नहीं हटी है, वह सिर्फ फौरी तौर पर एक कदम पीछे आई है। इसलिए शायद औद्योगिक घरानों को आश्वस्त किया गया होगा कि समय आने पर सरकार दो कदम आगे बढ़ेगी।

संघ परिवार और भाजपा सरकार की ताकत को समझते हुए  राजे-रजवाड़े जो कभी बड़े-बड़े भू-क्षेत्रों के मालिक  और भूदेव हुआ करते थे । अब उनके वंशज फिर से संघ परिवार में वापस लौट रहे हैं।

हिंदुत्ववादी राज की वापसी के सपने दिखाकर राजे-महाराजों को भाजपा में शामिल करने के चल रहे अभियान के पीछे उनके प्रीवीपर्स सहित राजशाही के पुराने अधिकारों की वापसी का एक ख्वाब भी दिखाया गया हो सकता है। पिछले दिनों हमने देखा कि कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के संरक्षण  में पलने वाले राजे-रजवाड़ों की तीसरी पीढ़ी  वापस फिर अपने  पुराने विश्वसनीय घर की तरफ जा रही है।

उस घर की ओर जो मराठा पद पादशाही की वापसी के लिए बना था।  आज वही संस्था हिंदूराष्ट्र के मॉडल के तहत पुराने राजे रजवाड़ों के दिन वापस लाने के लिए घर वापसी का अभियान चला रही है। ताजा घर वापसी अभी-अभी कुशीनगर के एक राज परिवार की हुई है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में  छोटे-मोटे जमीन के टुकड़ों के मालिक ‌  किसान जो पिछड़े दलित आदिवासी समूहों से आते हैं, जिन्हें जमींदारी उन्मूलन के चलते कुछ जमीन हासिल हुई थी। उनकी भी भूमि पुराने मालिकों के पास वापस जा सकती है।

एन चंद्रशेखर ने जिस घमंड के साथ घोषणा की है कि यह एक महान क्षण है । एअर इंडिया  की टाटा एयरलाइंस के रूप में वापसी से उत्साहित भविष्य में राजे-महाराजे, बड़े जमींदार और कारपोरेट घराने एकजुट होकर संघ परिवार के साथ गठजोड़ बनाकर जमीनों की घर वापसी की लड़ाई को पुनः जीतने का सरकारों के सहयोग से अभियान  चला सकते हैं। साथ ही अपना वर्चस्व वापस पा सकते हैं।

कई इलाकों में भाजपा की सरकारों ने ग्राम समाज से लेकर अतिरिक्त जमीन का भूमि  बैंक बनाने के नाम पर यह अभियान शुरू भी कर दिया था। यही नहीं योगी सरकार आने के बाद भूमाफिया के नाम पर लाखों गरीब परिवारों को उजाड़ने  की नोटिस पहले ही दे चुकी है।

यह सब घटनाएं उस संकेतक की तरफ से हैं जिसे भावी रंगमंच पर प्रकट होने वाले विराट विध्वंसक नाट्य के रूप में हम देख सकते हैं।

संघ परिवार द्वारा चलाए जाने वाला घर वापसी का अभियान अब अपने चरम पर पहुंचने वाला है।  इंस्ट इंडिया‌ कंपनी के समय भारतीय रेलवे के निर्माण की शुरुआत हुई थी। अब अंग्रेजों द्वारा पाली-पोषी औलादों की नई संतानें बड़े कारपोरेट घरानों को भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के सभी  उपक्रम पुनः वापस करने पर आमादा है। जिसमें रेलवे, स्टील, कोयला, परिवहन, गेल, भेल, सेल, एलआईसी, बैंक यहां तक कि स्कूल, विश्वविद्यालय, अस्पताल सब कुछ घर वापसी के रास्ते पर विनिवेश के द्वारा सरपट दौड़ पड़े  हैं।  जितनी भी संस्थाओं का कांग्रेस सरकार के समय राष्ट्रीयकरण किया गया था, उन सभी संस्थानों का महान मोदी जी घर वापसी कराकर उनके पुराने मालिकों का   कर्ज उतार देंगे।

औद्योगिक कंपनियों का पवित्र घर वापसी कराने के बाद  चंद्रशेखरन की तरह से यह घोषणा होगी कि भारत विश्व स्तरीय क्षमता का  प्रदर्शन करने वाले संस्थानों वाला देश बन गया है । शीघ्र ही कांग्रेसोत्तर भारत महान शक्ति बनते हुए विश्व गुरु होने का पुरस्कार हासिल कर अपने ‘टैलेंट’ और ‘टेंपरामेंट’ का दुनिया में  डंका बजा देगा।

बैंकों के निजीकरण का अभियान तीव्र गति से चल रहा है। कांग्रेस नेत्री और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी  के समय किए गए 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण  को शीघ्र ही दुरुस्त करते हुए पुराने मालिकों के हाथ में बैंक दिए जाने वाले हैं। साथ ही एलआईसी को, जो मुनाफे वाली संस्था है, पूंजी बाजार में लिस्टेड कर और इसकी पूंजी को शेयर बाजार में निवेश के नाम पर इसे विश्व स्तरीय क्षमता वाली संस्था बनाने के लिए भी निजी कंपनियों को इसके अंदर प्रवेश दे  दिया गया है और एलआईसी का सुरक्षित धन धीरे-धीरे चूस भी लिया गया है।

बस गुस्ताख जनता को एक बार पूरी तरह से फासिस्ट तानाशाही के हाथ में कैद कर लेने दीजिए। नौजवानों, छात्रों, किसानों,  मजदूरों, छोटे-मोटे कर्मचारियों होश में आ जाओ नहीं तो तुम्हें प्रयागराजी पुलिस के द्वारा जो सुख-सम्मान इलाहाबादी छात्रों को दिया गया है  तुम्हें भी भविष्य में वही सुख भोगना  पड़ेगा।

अभी रेलवे का टुकड़ों-टुकड़ों में टुकड़े-टुकड़े गैंग द्वारा निजीकरण शुरू हुआ है। अदानी रेल के नाम से निजीकरण की पहली डोज देते ही  बेरोजगार छात्र-नौजवान इतना तिलमिला गए और वह मोदीशाही के खिलाफ गुस्ताखी करते हुए  सड़क पर आ गए हैं। जो कुफ्र से किसी भी तरह कम नहीं है।

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर ही विनिवेश जैसे महान राष्ट्रभक्ति के उत्सव में खलल डालने वाले गुस्ताख बेरोजगार छात्रों-नौजवानों के साथ प्रयागराज की पवित्र धरती पर जो सद् व्यवहार किया गया है, वहीं भारतवर्ष के सारे नर-नारियों के साथ भविष्य में किया जाएगा।इसलिए चेतावनी को ध्यान में रखो और घर वापसी के इस महान अभियान को पूरा करने में किसी तरह की बाधा पैदा करने की गुस्ताखी मत करो!

हमें इस संकेत को 8 साल पहले ही समझ लेना चाहिए था। जब स्वतंत्रता दिवस सहित सभी राष्ट्रीय पर्वों पर  जनता के मत से चुना हुआ लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री निरंकुश राजाओं की वेशभूषा में अवतरित होकर प्रजा को तोहफा बांटने लगा था। 2014 के महा निर्वाचन के बाद  हमारा लोकतंत्र जिस दिशा में आगे बढ़ा उसके बाद  हमारे लोकतांत्रिक संस्थाओं का ध्वंस होना ही था। आज हम लोकतंत्रिक संस्थानों के भग्नावशेष पर खड़े हैं। मोदी जी पहले ही कह चुके हैं, कि राजा या सरकार का काम व्यापार करना नहीं होता। पवित्र कर्तव्य है, कि मंदिर-मठ बना कर महान सांस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा करें और प्रजा की आध्यात्मिक चेतना को संतुष्ट करें। महान भारतीय संस्कृति के वर्ण व्यवस्था आधारित सामाजिक ढांचे को पुनः स्थापित करें। साथ ही राजा-प्रजा के बीच के पिता-पुत्र संबंधों को प्रगाढ़ बनाकर  हिंदू संस्कृति के गौरव  वापसी की गारंटी करें।

राजा यानी सरकार का काम है अपनी प्रजा से कर वसूल करें। साथ ही  राजदंड की शक्ति का प्रयोग करते हुए प्रजा की  गुस्ताखी पर दंडित करने का अपना कर्तव्य निभाकर  कानून व्यवस्था को नियंत्रित करे।
प्रयागराज के भारतीय रक्षकों के शौर्य को देखते हुए हम दृढ़ता के साथ कह सकते हैं कि संघ की महान गौरवशाली भारतीय संस्कृति की परंपरा अपने चरम पर पहुंच चुकी है। हालांकि इसके पहले जामिया मिलिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालय में भारतीय पुलिस का शौर्य हम देख चुके हैं। लेकिन तब हमने  इन संस्थाओं का अल्पसंख्यक की पहचान होने के  कारण इसे नजरअंदाज कर दिया था। अब संगम की पवित्र धरती पर वही सब कुछ दोहराया जा चुका है। यह सब देखकर छात्र और नागरिक भौचक हैं।

भारतीय लोकतंत्र का प्रधान सेवक शहंशाहों की तरह से भारत की जनता को तोहफे  उपहार, कृपा और 5 किलो मुफ्त राशन  बांटते हुए अब अपने संरक्षक कारपोरेट घरानों के लिए सब कुछ कर लेने पर आमादा है। इसलिए भारत के लोकतंत्र के प्रति समर्पित , नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाले एक अरब से ज्यादा भारतीय जन गण को समय रहते सचेत हो जाने की जरूरत है । संघ परिवार के विध्वंसक घर वापसी के  अभियान को तत्काल शिकस्त देते हुए हमें यह नारा बुलंद करना होगा कि
सभी सार्वजनिक संपत्ति पर जनता का अधिकार है ।
इसका दुरुपयोग करने वालों को हम कभी भी बर्दाश्त नहीं करेंगे और आने वाली पीढ़ी के भविष्य और रोजगार के लिए हम सभी मिलकर एकजुट संघर्ष चलायेंगे ।

हमारे सामने हमारे बहादुर किसानों के संघर्ष की मिसाल है। जिससे प्रेरणा लेते हुए उत्तर भारत में बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों युवाओं ने संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है। सभी  भारत के मेहनतकश वर्गों, मध्यवर्गीय समूहों, बौद्धिक लोकतांत्रिक नागरिकों को भविष्य की आने वाली स्थितियों की गंभीरता को शीघ्र ही समझ लेना चाहिए और उसके अनुरूप भविष्य की तैयारी में लग जाना चाहिए। हमारा नारा हो,

निजीकरण बंद करो। सार्वजनिक संपत्ति जनता की संपत्ति है। इसकी रक्षा करो।
कारपोरेट घरानों की दलाली बंद करो। कारपोरेट घरानों को राष्ट्रीय संपत्तियों को सौंपना बंद करो।
जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का सम्मान करो ।
सार्वजनिक संपत्ति और भूमि पर गरीबों, आदिवासियों, मजदूरों, किसानों के अधिकार की गारंटी करो।

छात्रों युवाओं के रोजगार की व्यवस्था करो और सम्मान सहित जीवन जीने की गारंटी करो।

(फीचर्ड इमेज गूगल से साभार )

Fearlessly expressing peoples opinion