भूपेन्द्र कुमार अस्थाना
कहते हैं कि एक अच्छा कलाकार वही बन सकता है जो एक अच्छा इंसान बन कर जीता है, लोगों के दुख दर्द को समझता है और अपने इंसान होने के उद्देश्य को अच्छे से समझता है। उसके संसार से विदा होने पर उसका व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही लोग सराहते हैं और पीढ़ियों दर पीढ़ियों उस कलाकार की मिसालें दी जाती हैं। उसका जीवन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती है। इसलिए युगों युगों से लोगों ने सर्वप्रथम इंसान बनने की ही बातें की हैं।
राजकुमार सिंह ने कला अध्यापन के साथ साथ कला छात्रों को लेकर 2008 में संभावना कला मंच – कला समूह की स्थापना की और कला प्रदर्शनी व सेमिनार की शुरुआत की। इस तरह अनेकों कार्यक्रमों का सिलसिला लगातार बना रहा है। उनके प्रयत्न से एक कलात्मक माहौल का निर्माण गाज़ीपुर में हुआ। राजकुमार जी के साथ इनके छात्र और इनकी जीवनसंगिनी सीमा सिंह ने भरपूर सहयोग दिया। इनकी पत्नी सीमा भी राजकुमार जी की तरह सकारात्मक और कलात्मक सोच की महिला हैं। संभावना कला मंच के बारे में संस्थापक राजकुमार सिंह कहते थे कि “कला के विविध विधाओं में आम जीवन की बातें ही अभिव्यक्त होती हैं। परंतु संकट यह है कि तमाम तरह की कलाएं आम लोगों की पहुँच से बाहर होती हैं। इन्हें आम लोगों की पहुँच के दायरे में आने के उद्देश्य के तहत ही यह अयोजन ग्रामीण इलाके में कला की संभावनाओं की तलाश है। हमारे कला आयोजन का मुख्य अभिप्राय यही है”।
कविता पोस्टर में कविता की पंक्ति के साथ आकृतियों और दृश्यों का संयोजन चुनौतिभरा काम है। कवि जिस भाव भूमि पर खडा़ है, उस भाव भूमि को समझना और फिर उसे दृश्य रूप में रचना आसान नहीं होता है। उनकी सृजनशीलता के बारे में दिवाकर जी ने लिखा है कि – ‘लूटपाट पर आधारित इस पूंजीवादी व्यवस्था में मौजूद घोर विषमता अन्याय गरीबी दुःख शोषण राजकुमार सिंह को व्यथित करते है। राजकुमार सिंह के चित्र इस शोषण व लूट का प्रतिकार करते हैं व बेहतर समाज बनाने के लिए किए जाने वाले संघर्ष को रूपायित करते हैं। उनके चित्र खुशगवार स्वप्न को अभिव्यक्त करते हैं। आकृतियों की गतिशीलता, आकृति का संयोजन, पृष्ठभूमि में अमूर्तन व मूर्तन का सटीक प्रयोग व विषयानुकूल वर्ण विन्यास, कथ्य को प्रभावशाली ढंग से सम्प्रेषित करते हैं । प्रयोग और विमर्श में राजकुमार की रचनाशीलता सामाजिक बेहतरी की आकांक्षी है। उनकी रचनाशीलता एक नये किस्म की सौन्दर्य शास्त्रीय व्याख्या प्रस्तुत करती है। यह सौन्दर्यबोध उस तूफान से उपजा है जो बेहतर समाज के निर्माण में लगे सृजनहारों के जेहन में है। यह सौन्दर्यबोध उन विचारको के जेहन में उपजे उस तूफान से उपजा है जो सुंदर संसार की रचना करना चाहते हैं।’
राजकुमार सिंह के निधन की यह उम्र नहीं थी। उन्होंने संभावना कला मंच की स्थापना की। उनमें अनन्त संभावना थी। उनसे कला जगत को बहुत मिलना था। वे बाजार के नहीं जमीन के थे। उन्होंने ऐसी ही टीम बनाई थी। इसीलिए उनके असमय जाने से कला और साहित्य जगत मर्माहत हो गया। अनेक साहित्यकारों, कलाकारों, कला साथियों तथा उनके छात्रों ने उन्हें मर्मस्पर्शी तरीके से याद किया। मशहूर कथाकार और इतिहासकार सुभाषचंद्र कुशवाहा याद करते हुए कहते है ‘अंततः प्रकृति ने हमसे साथी डॉ राजकुमार सिंह को छीन लिया। असमय। वह लोकरंग के रंग थे। लोकरंग उनसे था। उनके आने से लोकरंग के सैकड़ों कार्यकर्त्ता, दर्शक चहकते थे। वह प्रो मैनेजर पाण्डेय, प्रो केदारनाथ सिंह, प्रो चौथीराम यादव, आनंद स्वरूप वर्मा, पंकज बिष्ट, प्रेम कुमार मणि, प्रो दिनेश कुशवाह आदि के साथ मंच को गौरवान्वित करते रहे। उन्हें मेरे गाँव का बच्चा – बच्चा बेहद प्यार करता था। लोकरंग की 16 साल की यात्रा में 11 सालों से वह आते रहे थे।
इस तरह राजकुमार सिंह के निधन पर स्वेता राय, मोहम्मद अजाज, रविकुमार चौरसिया, आशीष त्रिवेदी, राजीव गुप्ता, सुरभि श्रीवास्तव, अभिषेक पंडित, आलोक श्रीवास्तव, कृष्णा गुप्ता आदि कला, रंगकर्म, साहित्य व संस्कृति कर्म से जुड़े लोगों ने उन्हें याद किया और उनके साथ की यादों को साझा किया। राजकुमार सिंह की पहली पुण्यतिथि पर 9 जनवरी को गाजीपुर जो उनकी कर्मभूमि रही है, वहां उनकी याद में स्मृति समारोह का आयोजन किया गया गया है। इस अवसर पर आरा, बिहार के चित्रकार व कला समीक्षक राकेश दिवाकर को मरणोपरांत डा राजकुमार सिंह कला स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इसके साथ पांच कलाकार संभावना कलारत्न सम्मान से भी सम्मानित होंगे। ये कलाकार हैं: डॉ रामबली प्रजापति (गाजियाबाद), भूपेन्द्र कुमार अस्थाना (लखनऊ), संजीव सिन्हा (आरा, बिहार), अनिल शर्मा (वाराणसी) और श्रीमती मीनाक्षी (कलबुर्गी, कर्नाटक)।