बाँदा से प्रकाशित ‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका एवं जनवादी लेखक मंच बाँदा के संयुक्त तत्वाधान में बाबू केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में प्रतिवर्ष दिये जाने वाला सम्मान ‘जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान 2021’ वरिष्ठ़ कवि कौशल किशोर को दिया जाना सुनिश्चित हुआ है। यह निर्णय केदार सम्मान समिति की आनलाइन बैठक में लिया गया। इससे पूर्व यह सम्मान वरिष्ठ कवि शम्भु बादल और सुधीर सक्सेना को प्रदत्त किया जा चुका है। वर्ष 2020 का सम्मान वरिष्ठ़ कवि विजय सिंह को दिया जाना घोषित हुआ था । लेकिन कोरोना महामारी के दो सम्मान पर कोई आयोजन नहीं सम्पन्न हो सका। अतः स्थिति समान्य होते ही विजय सिंह ( 2020) और कौशल किशोर ( 2021) को बाँदा में भव्य आयोजन में सम्मानित किया जायेगा ।
कौशल किशोर कवि के साथ संस्कृतिकर्मी, पत्रकार और एक्टिविस्ट हैं। वे तमाम जनान्दोलनों और संगठनों से जुड़े रहे हैं और विभिन्न जिम्मेदारियों का वाहन किया है। विचारधारा के प्रति निरन्तर समर्पित एवं पक्षधर रहे है। उनके लेखन और सामाजिक गतिविधियों का आरम्भ 1967 में हुआ। इस दौर के क्रान्तिकारी वाम आन्दोलन का प्रभाव रहा। यह उनके सृजन में व्यक्त होता है। उनकी सांप्रदायिकता विरोधी सांस्कृतिक आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी रही है। लखनऊ से अयोध्या की सांस्कृतिक यात्रा आयोजित करने वालों में शामिल थे। बाबरी मस्जिद ध्वंस के दौरान सांप्रदायिकता विरोधी आन्दोलन में गिरफ्तारी हुई और कई दिन बनारस जेल में रहे।
1978 में लखनऊ में साथियों के साथ मिलकर कौशल किशोर ने कलम सांस्कृतिक मंच का गठन किया। लखनऊ में नुक्कड़ नाटक शुरू करने का श्रेय इसी संस्था को जाता है। 1981 में लखनऊ में गठित नवचेतना सांस्कृतिक संगठन के संयोजक मंडल में शामिल होने के साथ उन्होंने स्कूटर्स इंडिया के निजीकरण विरोधी श्रमिक आन्दोलन के दौरान संस्थान के श्रमिकों को लेकर ‘मशाल’ नुक्कड़ नाटक टीम का गठन किया। इसके द्वारा ‘हल्ला बोल’, ‘इंकलाब जिन्दाबाद’, ‘रंगा सियार’ आदि कई नाटकों का मंचन किया गया।
कौशल किशोर जन संस्कृति मंच के संस्थापकों में प्रमुख रहे तथा मंच के पहले राष्ट्रीय संगठन सचिव बनाये गये। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने युवालेखन (1972 से 74), ‘परिपत्र’ (1975 से 78) तथा ‘जन संस्कृति’ (1983 से 90) का संपादन किया। दैनिक जनसंदेश टाइम्स के साहित्यिक पृष्ठ ‘सृजन’ को संपादन सहयोग (2014 से 2017) किया। संप्रति वे लखनऊ से प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘रेवान्त’ के प्रधान संपादक हैं।
कौशल किशोर के दो कविता संग्रह ‘वह औरत नहीं महानद थी’ तथा ‘नयी शुरुआत’ है। कोरोना त्रासदी पर लिखी कविताओं का संकलन ‘दर्द के काफिले’ का संपादन किया। वैचारिक व सांस्कृतिक लेखों का संग्रह ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ तथा ‘शहीद भगत सिंह और पाश – अंधियारे का उजाला’ प्रकाशित है। 16 मई 2014 के बाद की कविताओं का संकलन ‘उम्मीद चिन्गारी की तरह’ और प्रेम, प्रकृति और स्त्री जीवन पर लिखी कविताओं का संकलन ‘दुनिया की सबसे खूबसूरत कविता’ प्रकाशनाधीन है। समकालीन कविता पर आलोचना पुस्तक की पाण्डुलिपि प्रकाशन के लिए तैयार है। कुछ कविताओं का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद तथा सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ।
कौशल किशोर के रचनाकर्म और संस्कृति कर्म पर वरिष्ठ कवि व अनुवादक अजय कुमार कहते हैं कि वे कल्चरल एक्टिविस्ट हैं। सुकान्त भट्टाचार्य की तरह यह दावा नहीं करते कि ‘कवि होने से पहले मेरा परिचय यह है कि मैं कम्युनिस्ट हूं’, हालां कि वे हैं। उन्होंने राजनीति के बजाय संस्कृति का मैदान चुना है। मानव मुक्ति की लड़ाई में उन्होंने कविता का हथियार उठाया है। प्रसिद्ध कवि रामकुमार कृषक की टिप्पणी है कि प्रगतिशीलता कौशल किशोर की कविता का केंद्रीय जीवन मूल्य है। सामाजिकता उसकी परिधि, और संप्रेषण उसकी कलाधर्मिता का निकष।
वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव का कहना है कि कौशल किशोर की कविताओं में राजनीतिक अनुभव और इतिहास की प्रतिध्वनियां दर्ज हैं। वे जो कुछ अपनी कविताओं में कहते हैं, उसमें समाज के बदलने के भाव हैं। वे उन बर्बर घटनाओं को हमारे सामने लाते हैं जो सत्ता में निर्ममता के साथ घटित हो रही हैं। इस तरह कवि सत्ता के प्रतिपक्ष में खड़ा है। कौशल किशोर सावधान कवि हैं। उनके पास स्पष्ट वैचारिकी है। यह उन्होंने आंदोलनों और अपनी चेतना से हासिल किया है ।
युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार कहते हैं कि कौशल किशोर अपने समय की शिनाख्त करते हुए वाजिब तर्कों और विषयों के माध्यम से ‘समकाल’ को रूपायित करते हैं। वे पहले ही पाठ से पाठक की चेतना को बाँध देने वाले कवियों में हैं। भाषा जहाँ बातचीत के अन्दाज में है, वहीं संवेदना आम आदमी की हैं। यह गुण एक्टिविस्ट का है। कार्यकर्ता की भाषा संरचना ऐसी ही होती है। इनकी कविताओं मे आप कहीं भी अप्रचलित शब्द नही खोज सकते हैं। फिर भी गहरी ध्वन्यात्मकता, ओज, अर्थसामर्थ्य की तमाम सम्भावनाएं सांगीतक रचाव के साथ कविता की भाव सम्पदा को प्रदीप्त करती है। बिम्ब विधान ने जटिलता को खत्म किया है, अलंकारिकता और अमूर्तन है ही नहीं।
कवि- आलोचक सुशील कुमार की टिप्पणी है कि कवि जितना अधिक समकालिक होगा, वह उतना ही समय से आगे जाकर रचेगा। वह वर्तमान से जुड़ कर भविष्णुता का आख्यान रचेगा। इस दृष्टि से कौशल किशोर आज के एक महत्वपूर्ण कवि हैं। 1970 से, यानी लगभग पचास वर्षों के दीर्घ कविता-काल में उन्होंने अपनी कविताओं में इसी ‘समकाल’ का कथाक्रम रचा है और उसे लोकसौन्दर्य की उन आभाओं से दीप्त किया है, जो धूसर, धवल, काईदार और जीवनसंघर्षों के अनेकवर्णी लोकरंगों में विन्यस्त दिखती है।
प्रद्युम्न कुमार सिंह
सचिव
जनवादी लेखक मंच, बाँदा
12 जून 2021 को जारी।