गोरख स्मृति आयोजन के दूसरे दिन सत्रह कवियों और शायरों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया
पटना. ‘‘ किसान की मेहनत के महत्व का सम्मान करते हुए उसे राजनीतिक रूप से सचेत बनाने का काम भी कविता ने किया है। मातृभाषा में लिखी या कही गई कविताएं इस संदर्भ में ज्यादा कारगर रही हैं। गोरख की कविताएं किसानों के जीवन और उनके संघर्ष की कविताएं हैं। उनकी कविता में राजनैतिक रूप से सचेत और संघर्षरत किसान सामंतवाद और पूंजीवाद दोनों से मुक्ति चाहता है। मेहनतकश किसान महिलाओं के दुख-दर्द और उनकी आकांक्षा को उन्होंने अपनी कविता
में अभिव्यक्ति दी है। उनके किसान बैरी पैसे का राज मिटाने के लिए लड़ते हैं, वे दो टूक कहते हैं कि जो सरकार किसानों के दुख और तबाही के लिए जिम्मेवार है, उसकी उन्हें कोई दरकार नहीं है। आज देश में कारपोरेट और सरकार गठजोड़ के खिलाफ किसानों का जो संगठित आक्रोश उमड़ रहा है, उसके संदर्भ में गोरख पांडेय की कविताएं और अधिक प्रासंगिक हो गई हैं।’’-
प्रेमचंद रंगशाला में गोरख स्मृति आयोजन के दूसरे दिन के कार्यक्रम के मुख्य वक्ता हिंदी-भोजपुरी के कवि प्रो. बलभद्र ने ये बातें कहीं।
बलभद्र ने गोरख पांडेय की भोजपुरी कविताओं- ‘सपना’ और ‘मेहनत का बारहमासा’ की पारंपरिक लोकछंद और लोककाव्यशैली में पहली बार इस तरह की रचनाएं गोरख ने लिखीं और उसे किसान त्रासदी और उसके प्रतिरोध के नये अर्थ-संदर्भों से जोड़ दिया। बलभद्र ने 1933 में बलभद्र दीक्षित ‘पढ़ीस’ की किसान पर केंद्रित कविता से लेकर रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’, विजेंद्र अनिल, दुर्गेंद्र अकारी और बलराज पांडेय तक की कविताओं के जरिए किसान और कविता को रिश्ते पर विस्तार से उजागर किया। रमता जी की कविता ‘ हरवाह बटोही संवाद ’ के हवाले से उन्होंने कहा कि धरती पर जब किसान का पसीना चूता है, तभी उसमें नमी आती है, उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ती है। उनके किसान दगाबाजों को समझते हैं। मौजूदा किसान आंदोलन की चर्चा करते हुए उन्होंने अपनी बात बलराज पांडेय की कविता से समाप्त की-दिल्ली से लड़ते किसान को/ देश की धरती प्यारी।
हर वर्ष की तरह कवि राजेश कमल के संचालन में आज नई पीढ़ी के सत्रह कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया, जिसकी शुरूआत युवा कवि अंचित ने अपनी कविता ‘चुप मत होना’ और ‘शपथ’ के पाठ से हुई। उन्होंने कहा- मेरी कविता सत्ता के झूठ के खिलाफ खड़ी होगी।
चर्चित शायर संजय कुमार कुंदन ने एक नज्म और एक गजल कही। उन्होंने व्यंग्यपूर्ण लहजे में कहा- ‘ एक तख्तनशीं आज भी इतराया हुआ है/ वो ही खुदा है सबको ये समझाया हुआ है। ‘ प्रो. कुमकुम झा ने एक अनुत्तरित प्रश्न, ज्योति स्पर्श ने ‘और क्या चल रहा है?’, प्रियंका प्रियदर्शिनी ने ‘स्त्रियों की बात’ में स्त्री के अस्तित्व और उसके संघर्ष से जुड़े सवालों को उठाया। प्रियंबरा भारती की कविता ‘वे कौन हैं?’ नस्लभेद की समस्या पर केंद्रित थी। कृष्ण समिद्ध ने ‘हत्या के बाद’ और ‘शिकारी’, प्रशांत विप्लवी ने ‘बुनकरों का एक गांव’ और ‘विदा होने का समय’, युवराज ने ‘एक दिन’, ‘प्रियदर्शी मैत्री शरण ने ‘चाय और प्रकृति’ और एक गीत ‘मत उपजाओ गन्ना सुगर बहुत हो रक्खा है’, ‘गुंजन श्री ने एक मैथिली गजल, राजभूमि ने एक भोजपुरी कविता, प्रभात प्रणीत ने ‘मुल्क’ शीर्षक कविता, बालमुकुंद ने हिंदी-मैथली की एक-एक कविता, सदफ इकबाल ने एक नज्म और एक गजल तथा सिद्धार्थ बल्लभ ने ‘कोढ़ग्रस्त समय’ का पाठ किया। हिरावल के कलाकारों ने इस मौके पर गोरख के गीत ‘समय का पहिया’, गजल ‘रफ्ता-रफ्ता नजरबंदी का जादू घटता जाए है’, ‘हमारे वतन की नई जिंदगी हो’ और ‘जनता के आवे पलटनिया हिलेले झकझोर दुनिया’ को गायन किया।
इस मौके पर हिंदी-भोजपुरी के कवि-आलोचक तैयब हुसैन, वरिष्ठ साहित्यकार यादवेंद्र, उमेश सिंह, सरोज चौबे, गालिब, संतोष आर्या, आलोचक संतोष सहर, शाहनवाज, रंगकर्मी संतोष झा, राजन कुमार, प्रकाश, राजदीप कुमार, सम्राट, रवि, अंकित, मासूम, सुप्रिया, शांति, सृष्टि, कृष्णा, विकास, सौरभ, शुभम, मृत्युंजय, भारत, आदर्श आदि मौजूद थे। इस बार के आयोजन की थीम गोरख पांडेय की कविता ‘कविता युग की नब्ज धरो’ की पंक्ति ‘चरण चरण विप्लव की गति दो’ थी।