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प्रतिरोध के बिना कोई कविता समकालीन नहीं हो सकती : डॉ. राकेश शर्मा

सातवें गोरख स्मृति आयोजन में कविताओं और गीतों का पाठ
पटना। ‘‘जो कविता सत्ता और व्यवस्था से तथा अंधेरे से समझौता करके चलती है, वह प्रतिरोध की कविता नहीं हो सकती। बड़ा कवि सवाल भी करता है और उसका हल भी सुझाता है। जैसे ब्रेख्त अपनी कविता में सवाल करते हैं- क्या जुल्मतों के दौर में गीत गाये जाएंगे ? और उसी में आगे यह कहते हैं कि हां, जुल्मतों के बारे में। आज प्रतिरोध के बिना कोई कविता समकालीन नहीं हो सकती। ऐसे काव्य-बिंब जिनसे समाज का कुछ लेना-देना नहीं है, वे निरर्थक हैं। हमें देखना होगा कि कितने कवि आज अभिव्यक्ति के खतरे को स्वीकार कर रहे हैं।’’
कालिदास रंगालय में हिरावल द्वारा 29 जनवरी को आयोजित सातवें गोरख स्मृति आयोजन में ‘समकालीन कविता में प्रतिरोध’ विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए डॉ. राकेश शर्मा ने ये विचार व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि आज भूख, रोजी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, हवा के सवाल जरूरी सवाल हैं। इस देश की हालत यह है कि बच्चे आक्सीजन के बिना मर जाते हैं। विडंबना है कि हत्यारे हमारे हो गये हैं और हम उन्हें माफ करते चले जाते हैं। संवेदनाएं तो सारे कवियों के पास होती हैं, पर देखना होगा कि क्या वे उनका सही तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं ? अपने समय की जरूरी चिंताओं से बेखबर रहने से प्रतिरोध नहीं हो सकता। डॉ. राकेश शर्मा ने पाब्लो नेरूदा, ब्रेख्त, शमशेर, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, धूमिल, गोरख पांडेय, पाश, आलोक धन्वा, कुमार अंबुज और विहाग वैभव आदि कवियों के काव्यांशों के जिक्र करते हुए अपना वक्तव्य दिया।
आयोजन के आरंभ और अंत में हिरावल के राजन कुमार ने गोरख की गजल ‘रफ्ता रफ्ता नजरबंदी का जादू घटता जाए है’ और गीत ‘वतन का गीत’ को गाकर सुनाया।
विचार सत्र का संचालन करते हुए सुधीर सुमन ने कहा कि आज के कवियों में जैसा अंसतोष, उब, गुस्सा और मोहभंग है, उसी तरह के अहसास से सत्तर के दशक में गोरख पांडेय की पीढ़ी भी गुजरी थी। लेकिन वे उस उहापोह से मुक्त होते हैं। उनकी डायरी इसका साक्ष्य है, गोरख के क्रांतिकारी जनकवि बनने की प्रक्रिया को समझने के लिए उनकी डायरी को भी पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने लिखा- हवाएं पूरब से चल पड़ी हैं/ ऐ हाथ वालों थमे कहां हो।’ विचार और क्रिया की जो दूरी है, उसे मुक्तिबोध की तरह ही गोरख भी मिटाना चाहते हैं और इसमें वे सफल होते हैं। उन्होंने लिखा- कविता युग की नब्ज धरो, और युग की नब्ज को ठीक से धरने के कारण ही उनकी कविता आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। हर तरह के जनतांत्रिक आंदोलनों के दौरान गोरख की कविताएं नजर आती हैं। वे सच्चे साथी की तरह हैं।
कविता-गीत पाठ के सत्र का संचालन युवा कवि राजेश कमल ने किया। इस अवसर पर जकी आलम, दीपांकर, मनीष कुमार यादव, सत्यम शिवम सत्यार्थी, आदित्य रंजन, गुंजन उपाध्याय पाठक, उपांशु, चंद्रबिंद, नरेंद्र कुमार, बालमुकुंद, प्रशांत विप्लवी, प्रियदर्शी मातृशरण, कृष्ण सम्मिद्ध, अंचित, राकेश शर्मा और राजन कुमार ने अपनी रचनाएं सुनाई।
अध्यक्षता शायर संजय कुमार कुंदन ने की। इस मौके पर आयोजन में कवि श्याम अंकुरम, चित्रकार मंजु प्रसाद, कवि कौशलेंद्र, पत्रकार और रंगकर्मी प्रीति प्रभा,, फिल्मकार कुमुद रंजन,, रंगकर्मी राम कुमार, प्रकाश कुमार आदि भी मौजूद थे।

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