एनआरसी-सीएए पर कई महिला संगठनों ने प्रतिक्रियाएं दी है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन (NFIW) की जनरल सेक्रेटरी एनी राजा कहती हैं – “ सीएए माइनोरिटी के खिलाफ़ छेड़ा गया युद्ध है। जबकि एनआरसी के जरिए सरकार पूरे आवाम के खिलाफ़ युद्ध लड़ रही है। इनको फैज के गाने से भी दिक्कत हो रही है तो इसका मतलब है कि ये आवाम से डरते हैं? क्योंकि इस गाने में जनता की ही बात है। इसका अर्थ ये हुआ कि ये जनता के खिलाफ़ काम कर रहे हैं इसलिए ये जनता से डरते हैं। ये हमारे पंथनिरपेक्ष जनतांत्रिक देश से मुस्लिम, दलित, आदिवासी, महिला सब छांट कर उन्हें दोयम बनाकर इस देश को ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक देश बनाना चाहते हैं। लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे।”
समलैंगिक समुदाय की गरिमा कहती हैं- “ये सरकार इस्लामोफोबिक है। लेकिन सिर्फ़ इस्लामोफोबिक नहीं ये डिफरेंसफोबिक भी है। मुसलमानों के बाद दलित आदिवासी, समलैंगिक स्त्री सबके पीछे पड़ेंगे ये।”
समलैंगिक समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कृषायु कहते हैं- “ एनआरसी-सीएए बुनियादी तौर पर गलत है। क्योंकि ये अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ है। हम स्त्रियां, समलैंगिक किन्नर और दूसरे अल्पसंख्यों समुदाय एक साथ आकर अपनी आवाज़ को उठा रहे हैं। हम कश्मीर का विभाजन, जामिया और एएमयू में हुए बर्बरता और ट्रांस बिल के खिलाफ़ भी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।”
किन्नर बिरादरी के देशदीप कहते हैं – “ हम लोग समावेशी भारत बनाना चाहते हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत अल्पसंख्यक मुस्लिमों की च्वाइस थी। हम इसे हर हाल में मेनटेन रखना चाहते हैं। सरकारे तो आती जाती रहेंगी हमें इस देश के स्ट्रक्चर को बचाना है जिसे इन्होंने 6 साल में तोड़ने की कोशिश की है। ये कानून मुस्लिम विरोधी नहीं मनुष्य विरोधी है। किसी भी देश में डिटेंशन सेंटर होना ही शर्म की बात है। ये भारतीयता के ‘अतिथि देवो भव’ की रवायत के खिलाफ़ है। अतिथि देवो भव में एक टाइप के अतिथि की संकल्पना नहीं की गई है। अतिथि देव की संकल्पना देश, धर्म, जाति, रंग, लिंग से परे हटकर की गई थी।”
अनहद की शबनम हाशमी – “पहली बार हिंदुस्तान की महिलाएं किसी मुद्दे पर बाहर निकली हैं। और वो किसी महिला मुद्दे पर नहीं बल्कि देश के संविधान बचाने के लिए निकली हैं। वो हर तरह के हिंसा के प्रतिकार के लिए बाहर निकली हैं। हमें लगातार इस सरकार के खिलाफ़ संघर्ष करना होगा ताकि हम इन मनुष्यविरोधी, संविधान विरोधी, देश विरोधी, विविधता विरोधी लोगो को सत्ता से बाहर उखाड़ फेकें।”
एलजीबीटीक्यू संगठन की प्रतिनिधि के तौर पर बिट्टू कहती हैं- “हम इसलिए इस कानून के खिलाफ़ हैं क्योंकि हम जानते हैं कि भेदभाव क्या है क्योंकि हम समलैंगिक, ट्रांसजेंडर्स और किन्नर समुदाय के लोगो को रोजाना भेदभाव झेलना पड़ता है। और सीएए एनआरसी तो भेदभाव पर ही आधारित हैं। ये कानून हर माइनोरिटी के जीवन को प्रभावित करती है। फिर वो किन्नर हो, समलैंगिक हो, हिंजड़ा हो, हमारे डॉक्युमेंट में बहुत से डिफरेंसेंस मिलेंगे क्योंकि देश में अभी भी लैंगिक माइनोरिटी के डॉक्युमेंटेशन के लिए लिए कोई आधारभूत ढांचा नहीं हैं। ”
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन्स एसोसिएशन (AIDWA) की मैमुना मुल्लाह कहती हैं- “मोशा के न्यू इंडिया में कन्सेंट्रेशन कैम्प है लेकिन पानी नहीं है, बिजली नहीं है, शिक्षा नहीं है, सुरक्षा नहीं है। क्या आप गैस चैंम्बर चाहते हैं। नागरिकता संशोधन बिल को अशवीकार करें जो धर्म को नागरिकता का आधार बनाता है। यह भारत के संविधान को पलट देता है। डिटेंशन कैम्प इतने लोग चलें कि पूरा हिंदुस्तान ही डिटेंशन कैम्प बन जाए।”
ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमेन एसोसिएशन (AIPWA) सचिव कविता कृष्णन- “ लड़ाई बहुत कठिन है और हमें इसे लंबे संघर्ष के लिए लड़ना होगा। हमें सरकार के आगे झुकना नहीं है औऱ ये हमारे हाथ में है। हमें बतौर नागरिक एनआरसी –एनपीआर सीएए के खिलाफ़ भागीदारी न करें, ये हमारे हाथ में हैं। हमें अपने उन भाई बहनों के साख खड़ा होना है। हमें अपने कागज नहीं दिखाना है न ही एनआरसी एनपीआर में कागज जमा करवाकर भागीदारी करनी है।”
समाजिक कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज- “हमें हर तरह के नफ़रत के खिलाफ़ एकजुट होना होगा। ये सरकार हमें एनआरसी-एनपीआर-सीएए के मुद्दों पर बाँट रही है। हमें बँटना नहीं है। ये सरकार हमारे बुनियादी मुद्दों स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा से हटाकर हमें एनआरसी-एनआरपी में फँसाकर हममें डिवीजन पैदा कर रही है। ताकि हम हम बँटकर कमजोर पड़े और सरकार हमें बारी बारी से दमन करे। ज़रूरी बात ये है कि महिलाओं और हिंजड़ा, समलैंगिक समुदाय, आदिवासी, अंत्योदय के गरीब और अंतर्र्जातीय विवाह करने के चलते परिवार से त्यागे गए लोग दस्तावेज कहां से लाएंगे। आधार बनाने के समय भी ये लोग बाहर छोड़ दिए गए थे।”
मशहूर फेमिनिस्ट कमला भसीन कहती हैं एनआरसी सीएए संविधान विरोधी है। संविधान क्या है, संविधान हमें क्या देता है और संविधान को बचाना क्यों ज़रूरी है उसे आप हमारे साथ संविधान के इस नारे से समझिए- –
“चमकता सितारा- हमारा संविधान,
शोषितों का सहारा- हमारा संविधान,
सीमांतो का सहारा – हमारा संविधान,
बहुत हमको प्यारा हमारा संविधान,
इसे बहुतों ने सँवारा हमारा संविधान,
बाबा साहेब का दुलारा हमारा संविधान,
बहुत हमको प्यारा हमारा संविधान,
है देश की शान हमारा संविधान,
इसको प्यारे सब संविधान,
सबको देता ये सम्मान- हमारा संविधान,
गैर मज़हब का करता मान- हमारा संविधान,
बहुत हमको प्यारा हमारा संविधान,
है औरतों का रखवाला हमारा संविधान,
ये दलितों का रखवाला हमारा संविधान,
आदिवासियों का रखवाला हमारा संविधान,
अब तो एलजीबीटीक्यू का भी रखवाला हमारा संविधान,
एकलव्यों का रखवाला हमारा संविधान,
आज़ाद सोच का देता अधिकार हमारा संविधान,
आजाद बोलने का देता अधिकार हमारा संविधान,
सवाल करने का देता अधिकार हमारा संविधान,
जवाब माँगने का देता अधिकार हमारा संविधान,
आरक्षण का देता अधिकार हमारा संविधान,
संरक्षण का देता अधिकार हमारा संविधान,
डायवर्सिटी बचाने वाला हमारा संविधान,
सेकुलरिज्म को पनपाने वाला हमारा संविधान,
समानता दिलवाने वाला हमारा संविधान,
इंसाफ़ दिलवाने वाला हमारा संविधान,
बहुत हमको प्यारा हमारा संविधान,
संविधान को कौन बचाए? हम बचाएँ हम बचाएँ
फासीवाद से कौन बचाए? हम बचाएँ हम बचाएँ
सीएए और एनआरसी से कौन बचाए? हम बचाएँ हम बचाएँ
तानाशाहों से कौन बचाए? हम बचाएँ हम बचाएँ
छप्पन इंच की छाती से कौन बचाए? हम बचाएँ हम बचाएँ
कट्टरपंथियों से कौन बचाए? हम बचाएँ हम बचाएँ
बता दें कि 45 से ज़्यादा संगठन मिलकर देश के 10 शहरो में 3 जनवरी को देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले के जन्मदिन पर महिला संगठनों, किन्नरों और समलैंगिकों ने मिलकर एनआरसी-सीएए के खिलाफ़ राष्ट्रीय प्रतिरोध मॉर्च निकाला।
प्रदर्शन की कुछ तस्वीरें: