समकालीन जनमत
ज़ेर-ए-बहस

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए……..

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए

कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर भर के लिए

सत्ता में आने से पहले जो कई नारे भाजपा ने नरेंद्र मोदी को सत्ता में लाने के लिए दिये थे.  उनमें से एक नारा था- “बहुत हुई बेरोजगारी की मार, अब की बार मोदी सरकार.” मोदी सरकार बन गयी,लेकिन बेरोजगारी की मार कम नहीं हुई. आंकड़े तो बता रहे हैं कि बेरोजगारी की मार जितनी इस समय है,उतनी तो बीते साढ़े चार दशक में कभी नहीं थी.

अँग्रेजी अखबार- बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी सोमेश झा की खोजपरक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी की दर बीते 45 सालों में सर्वाधिक थी. यह दावा, उन्होंने नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाईजेशन(एन.एस.एस.ओ.) की एक रिपोर्ट के आधार पर किया है. अपनी रिपोर्ट में सोमेश ने दावा किया है कि एन.एस.एस.ओ. की यह रिपोर्ट केंद्र सरकार के पास मौजूद है,परंतु इसे सार्वजनिक नहीं किया गया है.  इसी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किए जाने के चलते, राष्ट्रीय सांख्यकी आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष समेत दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है.

उक्त रिपोर्ट के हवाले से  ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ ने लिखा है कि 1972-73 के बाद वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी की दर सर्वाधिक है.

वर्ष  2011-12 में ग्रामीण युवा पुरुषों (15-29 आयु वर्ग) में बेरोजगारी की दर 5 प्रतिशत थी जबकि 2017-18 में यह बढ़कर 17.4 प्रतिशत  हो गई.  उसी आयु वर्ग की ग्रामीण महिलाओं में बेरोजगारी दर 2011-12  में 4.8 प्रतिशत थी और  2017-18 में  बढ़  कर  यह 17.3 प्रतिशत  हो गई.

इसी तरह शहरी ग्रामीण पुरुषों (15-29 आयु वर्ग) में बेरोजगारी की दर वर्ष 2011-12 में 8.1 प्रतिशत थी,जो 2017-18 में बढ़ कर 18.7 हो गयी. उसी आयु वर्ग की शहरी महिलाओं में 2011-12 में बेरोजगारी दर 13.1 थी जो 2017-18 में बढ़ कर 27.2 हो गयी.

देश में बेरोजगारी की भयावह तस्वीर पेश करने वाले ये आंकड़े एन.एस.एस.ओ. ने जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच पिरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के दौरान एकत्र किए हैं. 2016 में नोटबंदी के बाद ये रोजगार के परिदृश्य पर किया गया पहला सर्वेक्षण है,जो चरम बेरोजगारी का खुलासा कर रहा है.

देश के सर्वाधिक युवा देश होने का, अपने भाषणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी चर्चा करते रहे हैं. लेकिन वह युवा, बेरोजगारी और असुरक्षित भविष्य का दंश झेलने की तरफ सरकारी नीतियों के चलते धकेला जा रहा है,इससे शायद मोदी जी और उनकी सरकार कोई सरोकार नहीं है. कोढ़ में खाज,यह कि बेरोजगारी के आंकड़े सामने लाने वाली रिपोर्ट को ही सार्वजनिक होने से रोकने की कोशिश है. यह शतुरमुर्ग वाला रवैया है. आंकड़ों से बेरोजगारी नहीं बढ़ रही है. बेरोजगारी है, तब उसके आंकड़े ऐसे भयावह है, जिन्हें सरकार किसी को दिखाना नहीं चाहती. पर सरकार बहादुर,आंकड़े सार्वजनिक नहीं होंगे तो भी बेरोजगारी तो दिखाई देगी ही ! और बेरोजगारी नजर आ रही है, प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार के बड़े-बड़े दावों की पोल खोल रही है.

प्रधानमंत्री जब एक टी.वी. चैनल के स्टुडियो में बैठ कर पकौड़ा बेच कर दो सौ रुपये कमाने को रोजगार बता रहे थे तो उसी से जाहिर हो गया था कि देश के युवाओं को देने के लिए उनके पास कुछ नहीं है. पकौड़ा रोजगार का वह जुमला भी आंकड़ों की कढ़ाई में जल-भुन गया है.

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