इन्द्रेश मैखुरी
कल 21 दिसंबर को उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर बांसवाड़ा में पहाड़ के मलबे में दब कर 7 मजदूरों की मौत हो गयी और 3 मजदूर घायल हो गए. घायल मजदूरों में से 2 की हालत गंभीर है और उन्हें एयर लिफ्ट करके एम्स,ऋषिकेश ले जाया गया है. मृतक एवं घायल सभी मजदूर जम्मू-कश्मीर के बारामूला के हैं.ये मजदूर चार धाम परियोजना में काम कर रहे थे. सड़क चौड़ा करने के लिए पहाड़ की खुदाई की जा रही थी.खुदाई के दौरान ही पहाड़ से मलबा आया,जिसके चलते यह दुर्घटना हुई.
चार धाम परियोजना,उत्तराखंड के राष्ट्रीय राजमार्गों को चौड़ा करने की केंद्र सरकार की योजना है,जिस पर 11700 करोड़ रुपया खर्च किया जाना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2017 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले देहारादून आए थे, तब उन्होंने इस परियोजना की घोषणा की थी. उस समय इसे ऑल वैदर रोड परियोजना कहा गया था. फिर अचानक सारे बोर्डों पर से ऑल वैदर पर कालिख पोत दी गयी और नया नाम लिखा गया-चार धाम परियोजना. परियोजना कुल जमा इतनी ही है कि पहले से मौजूद सड़क को बेतरतीब तरीके से काट कर थोड़ा और चौड़ा करना है. हालांकि जितनी धनराशि इस पर खर्च की जा रही है,उससे पूरे उत्तराखंड को जोड़ने वाला एक और समानान्तर हाईवे बनाया जा सकता था. परंतु इस पर ज्यादा मेहनत लगती,इसलिए शॉर्ट कट अपनाया गया है. जो काम अभी चल रहा है,उसमें तो मलबा नदी में फेंकना है,धन अंदर समेटना है !
पर्यावरणीय दृष्टि से इस परियोजना पर लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं. उत्तराखंड 2013 में एक भीषण आपदा की मार झेल चुका है. उस समय जल विद्युत परियोजना निर्माण के लिए हुई बेतरतीब खुदाई और खोदे गए मलबे को नदियों में डाले जाने ने, आपदा की विभीषिका की तीव्रता को बढ़ाने का काम किया था. चार धाम परियोजना का भी सारा मलबा नदी तटों पर ही डाला जा रहा है. दिखाने के लिए डम्पिंग ज़ोन बनाए गए हैं, पर ये नदी तटों के अत्याधिक निकट हैं.
पूरी परियोजना के लिए लगभग 40000 हजार पेड़ काटे जाने हैं,जिसमें से लगभग 25000 पेड़ काटे जा चुके हैं. एक तरफ यह अंधाधुंद पेड़ों का कटान है और दूसरी तरफ उत्तराखंड के वन क्षेत्र में बढ़ोतरी के कोई चिन्ह नहीं हैं. सैंड्रप(साउथ एशियन नेटवर्क फॉर डैम्स,रिवर एंड पीपल) की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के वन क्षेत्र में पिछले दो सालों में एक प्रतिशत की भी वृद्धि नहीं हुई है. यही रिपोर्ट कहती है कि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने 2017 के अपने सर्वेक्षण में पाया है कि उत्तराखंड में 2015 से वन क्षेत्र में केवल 23 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है. वन क्षेत्र में नगण्य वृद्धि और चार धाम परियोजना के नाम पर काटे जा रहे हजारों पेड़ों के मामले को मिला कर देखें तो भविष्य में होने वाली तबाही के चिन्ह साफ देखे जा सकते हैं.
सड़क को चौड़ा करने के इस काम के मामले में केंद्र सरकार इस कदर हड़बड़ी में थी कि उसने 900 किलोमीटर लंबी परियोजना के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (ई.आई.ए.) तक नहीं करवाया. ई.आई.ए. करवाने की अनिवार्य कानूनी बाध्यता से बचने के लिए केंद्र सरकार 900 किलोमीटर की पूरी परियोजना को एक न मानते हुए इसे 100 किलोमीटर से कम के 53 हिस्सों में बंटी हुई परियोजना बता रही है.
लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में खुदे हुए पहाड़ों को देख कर कोई भी बता सकता है कि यह केवल कानून की बांह मरोड़ने का पैंतरा है. केंद्र सरकार ही जब कानून की आँख में धूल झोंकने पर उतारू हो तो फिर मजदूरों की सुरक्षा के लिए मानकों के पालन करवाने की अपेक्षा किससे की जाये ?
मजदूरों के मलबे में दब कर मरने के मामले में रुद्रप्रयाग पुलिस ने माना है कि यह दुर्घटना निर्माण एजेंसी की लापरवाही का परिणाम है. पुलिस के अनुसार निर्माण एजेंसी द्वारा सुरक्षा मानकों को ताक पर रख कर काम करवाया जा रहा था.यह तो साफ ही है कि मानकों को ताक पर रख कर काम हो रहा था. ऋषिकेश से ऊपर की तरफ यात्रा करते हुए,इस सड़क के चौड़ा किए जाने के चलते लगने वाले जाम में फँसने वाला कोई भी यात्री यह बता सकता है कि किस तरह मजदूरों और लोगों के जीवन को जोखिम में डाला जा रहा है.
लेकिन प्रश्न तो यह उठता है कि इस परियोजना का निर्माण कार्य रात-दिन चल कैसे रहा है ? यह प्रश्न इसलिए उठता है क्यूंकि इस परियोजना के निर्माण कार्य पर उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाई गयी थी.
दरअसल सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून नाम की एक संस्था, सड़क चौड़ा किए जाने की इस परियोजना में पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन किए जाने को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एन.जी.टी.) में गयी.26 सितंबर 2018 को एन.जी.टी. ने इस परियोजना को हरी झंडी दे दी. परियोजना के बारे में जताई जा रही पर्यावरणीय चिंताओं पर गौर करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के विशेष सचिव की अध्यक्षता में सात सदसीय कमेटी बनाने का आदेश भी एन.जी.टी. ने दिया.
एन.जी.टी. के आदेश की कुछ प्रक्रियागत खामियों पर सवाल उठाते हुए सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की. 22 अक्टूबर 2018 को न्यायमूर्ति रोहिनटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की खंडपीठ ने चार धाम परियोजना को हरी झंडी देने के एन.जी.टी. के फैसले पर रोक लगा दी. परंतु इस सड़क पर यात्रा करने वाला कोई भी व्यक्ति बता सकता है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा लगाई गयी रोक,एक दिन भी जमीन पर प्रभावी नहीं दिखी.जब किसी ठेकेदार या निर्माण एजेंसी के हित, देश के कानून और अदालतों से भी ऊपर हो जाएँ तो फिर आम लोगों या मजदूरों की जान की कीमत की परवाह, कौन करेगा ?
2 comments
Comments are closed.