समकालीन जनमत
कविता

‘ मृत्युंजय की कविताएं आम अवाम की बेचैनी, क्षोभ, अवसाद, दुख, पीड़ा और गुस्से का इजहार हैं ’

पटना में युवा कवि मृत्युंजय के काव्यपाठ का आयोजन

पटना , 30 मई. आज जन संस्कृति मंच की ओर से छज्जूबाग, पटना में युवा कवि मृत्युंजय के काव्यपाठ और बातचीत का आयोजन हुआ।

मृत्युंजय ने ‘यां’, ‘नश्वर-सी सुंदरता’, ‘ पिया हाजी अली’ ‘किमोथैरेपी’, ‘अजनबीयत’, ‘शहादत इस फलक के बीच जगमगाती है’, ‘मणिपुर एक तिरछी गड़ी वर्णमाला है राष्ट्र के कलेजे में’ आदि कविताएं सुनाई। नज्म, पद, सवैया आदि काव्य-शैलियों में रची गई कविताएं भी उन्होंने सुनाई। उनकी कुछ कविताएं काफी लंबी भी थीं। शिल्पगत और रूपगत विविधता के बावजूद कथ्य के स्तर पर मृत्युंजय की कविताएं समकालीन समाज और देश में कत्लगाह, उत्पीड़न, शोषण, बर्बरता को बढ़ाने वाली प्रवृत्तियों के विरुद्ध आम अवाम की बेचैनी, क्षोभ, अवसाद, दुख, पीड़ा और गुस्से का इजहार हैं।

भारत राष्ट्र जिस आम जनता से बनता है, उन सबके दिलों की थाह लेने की कोशिश कवि ने की है। हुकूमत कातिलों के हाथों में है, इसे उनकी कविता बेबाकी से कहती है। ‘शहादत इस फलक के बीच जगमगाती है’ कविता की कुछ पंक्तियों में व्यक्त यथार्थ ने श्रोताओं के हृदय को झकझोर दिया। जैसे- जम्हूरी भेख धरे आए पुराने कातिल… तरह-तरह के कातिल हैं हरसूं… हुकूमत के लचकदार नुकीले नाखून, आदर्श बिंधा, लोग बिंधे, मुल्क बिंधा… जिधर से गुजरो हजार किरचे हैं… यहां हर नजर के आगे सख्त कोहरा है.. सवाल कत्ल हुए और ईमान कत्ल हुए।

 

आज के आयोजन में युवा कवियों और काव्यप्रेमियों की अच्छी मौजूदगी ने मृत्युंजय की कविताओं की लोकप्रियता की बानगी पेश की। काव्यपाठ के बाद बातचीत करते हुए मृत्युंजय ने कहा कि कविता दुख से उपजती है। युवा कवियों और कुछ रंगकर्मियों ने उनसे देर तक हिंदी कविता के विभिन्न पक्षों के बारे में बातचीत की।

कार्यक्रम का संचालन कवि राजेश कमल ने किया।

आयोजन में प्रमुख रूप से शायर संजय कुमार कुंदन, अंचित, शशांक मुकुट शेखर, सुधीर सुमन, धर्मेंद्र सुशांत, निखिल, सुशील सुमन, नवीन कुमार, बालमुकुंद, शुभम, सुधाकर रवि, नीरज मिश्रा, गुंजन श्री , अविनाश मिश्र, सत्यम, नीरज प्रियदर्शी, वसुधा, सदफ, संदली, राजन कुमार, शिवम झा, प्रशांत विप्लवी, संतोष आर्या, सुमन कुमार, प्रीति प्रभा, रौशन कुमार, समीर कुमार, नीलेश कुमार, प्रभात रंजन, राम कुमार, अभिनव आदि मौजूद थे।

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