हमारे देश में मूर्तिकला की बहुत ही समृद्ध परंपरा रही है. शास्त्रीय स्तर की बात करें या लोक शैली की या फिर आधुनिक कला या समकालीन कला जगत की, मूर्तिकारों की अनथक मेहनत और रचनात्मकता हमें बहुत प्रभावित करती है. यद्यपि मूर्तिकला की सीमा यह है कि उसका स्वरूप मूल रूप से स्थूल होता है. मानवीय मष्तिष्क की जटिलता बढ़ने के साथ कला की रचनात्मक जटिलता का विस्तार बहुत स्वभाविक है जिसमें मूर्तिकला का स्थूल स्वरुप आड़े आता है.
दक्ष मूर्तिकार निरंतर अभ्यास, प्रयोगधर्मिता और प्रतिबद्धता के बदौलत, सृजनात्मक विस्तार को पाते हैं. वे बहुत ही खुबसूरती से इस सीमा को अपने निजी शैली से विस्तृत तो करते ही हैं इसे एक तरह से तोड़ते भी हैं . ( शायद इंस्टालेशन की लोकप्रियता का यह भी एक कारण रहा) लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह सीमा विस्तार को असंभव बना दे. बल्कि कहीं कहीं तो विलक्षण मूर्तिकारों ने इस मामले में इस विधा को नया ही आयाम दे दिया है. खासकर कर फाइबर के प्रयोग ने मूर्तिकारों को नया वितान दिया है.
बहरहाल हम कृष्णा कुमार पासवान की कलाकृतियों पर बात करेंगे.
कृष्णा कुमार पासवान का जन्म 15-06-1993 में गाजीपुर जिले के मुहम्मदाबाद में हुआ। उनके पिता ओमप्रकाश पासवान छोटे से व्यवसायी हैं और माता बुधा देवी गृहणी हैं. जब कृष्णा कुमार पासवान किशोरावस्था में पहुंचे तो उन्होंने वहां संभावना कला मंच की प्रदर्शनी देखी. उनके अंदर की कला प्रतिभा ने जोर मारा और धीरे-धीरे संभावना कला मंच से जुड़ाव बनता चला गया.
समय के साथ यह जुड़ाव गहरा होता गया. यद्यपि हमारे यहां की स्कूलिंग सिस्टम कुछ इस तरह की है कि आम तौर किसी एक ही विशिष्ट क्षेत्र के प्रतिभावान को आम तौर इसमें असफल होना होता है. खैर जैसे-तैसे उन्होंने इस औपचारिक बाड़ेबंदी को पार किया. चित्रकार राजकुमार सिंह जैसे कला गुरु के देख रेख में इन्होंने कला की प्राथमिक और मौलिक शिक्षा प्राप्त की.
अब समस्या आगे की पढ़ाई की थी. सबसे बड़ी समस्या तो आर्थिक ही थी. पिता के छोटे से व्यवसाय से कला की दुनिया में जाना कठिन तो था ही. दृढ़ निश्चय और लगन की बदौलत उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दृश्य कला संकाय की प्रवेश परीक्षा पास की. वहां से उन्होंने 2015 में स्नातक तथा 2017 में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की और फिलहाल कला की दुनिया में अपनी जगह पाने को प्रयासरत हैं.
वैसे देखा जाए तो कृष्णा कुमार पासवान ने कला की दुनिया में अभी कदम ही रखा है. उनको अभी लंबा सफर तय करना है. कृष्णा कुमार पासवान के दो कंटेंट के काम बड़े प्रभावशाली हैं. एक आॅक्टोपस को लेकर और दूसरा कुर्सी को लेकर. अॉक्टोपस पहले शिकार को अपने चंगुल में जकड़ता है और धीरे-धीरे यह जकड़न इस कदर बढ़ती जाती है कि अंततः शिकार जान से हाथ धो बैठता है.
इस कंटेट को लेकर उन्होंने धातु में कई मूर्तिशिल्प की ढलाई की है. इसी तरह का धातु में ढला एक मूर्तिशिल्प बहुत प्रभावशाली है जिसमें तीन किताबें दिख रही जिस पर आॅक्टोपस है. किताबों पर कुछ फेसबुक जैसा लिखा हुआ भी दिख रहा है.
कृष्णा कहते हैं हमारे समाज पर एक नशा तारी है, यह नशा मादक पदार्थों का ही नहीं है बल्कि कई तरह का नशा है, जैसे- सत्ता का नशा, धन का नशा, पावर का नशा, धर्म का नशा, सोशल नेटवर्किंग का नशा, या और भी तरह का नशा, यह सब एक आॅक्टोपस की तरह है, जो धीरे-धीरे हमारे समाज को खत्म करते जा रहा है.
विषय सम्प्रेषण के लिहाज से कृष्णा कुमार पासवान बहुत सजग मूर्तिकार हैं. धातु में ही ढली एक मूर्ति जिसमें एक कुर्सी है और उस पर एक आॅक्टोपस बना है जो कुर्सी को जकड़े हुए है, उस कुर्सी के पीछे के दो पांव बने हैं और आगे वाले पांव के स्थान पर दो आदमी के पैर दिख रहे हैं एक पैर जमीन पर है और दूसरा पैर मोड़ कर दूसरे पैर पर रखा हुआ है जैसे कुर्सी पा लेने के बाद कोई एकदम से ऐसी मुद्रा में आ गया है कि अब जीवनपर्यंत कुर्सी छोड़ने का इरादा ही नहीं है.
जहाँ इस कुर्सी के ऊपरी भाग में आॅक्टोपस का दानवीय जकड़न है वहीं निचले हिस्से में मानवाकृति के पैर आराम से जमी हुई मुद्रा में, इस मूर्ति शिल्प के माध्यम से कृष्णा ने हमारी सत्ता संस्कृति को बड़े प्रभावशाली तरीके से अभिव्यक्त किया है.
कुर्सी , आॅक्टोपस और मानवाकृति के पैर के सतह के टेक्सचर में भावानुकुल विविधता इस मूर्ति को और भी प्रभावशाली बनाता है. यद्यपि इसमें और भी विविधता की जरूरत और गुंजाइश बरकरार है.
धातु के अलावे कृष्णा कुमार पासवान लकड़ी और अन्य विधाओं में भी दक्षता से काम करते हैं। इसके अलावे इंस्टालेशन में भी उनका रुझान है।
प्रगतिशील वैचारिक प्रतिबद्धता और प्रभावशाली सम्प्रेषणीयता कृष्णा कुमार पासवान की सबसे बड़ी विशेषता है। कृष्णा का मेहनत, लगन और प्रतिबद्धता समकालीन कला क्षेत्र के लिए सुखद संकेत है।
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