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जलियांवाला बाग नरसंहार को याद रखना ज़रूरी है ताकि सनद रहे! : प्रो. चमनलाल

आज से 99 साल पहले इसी दिन पंजाब के अमृतसर शहर में एक ऐसी घटना हुई जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक लोकगाथा बन गई थी ।यह घटना थी, 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के हँसी-खुशी के त्योहार के अवसर पर ब्रिटिश शासकों द्वारा एक ऐसा हत्याकांड , जिसकी बर्बरता ने पूरे विश्व में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के असली चेहरे को दिखा दिया । जलियावाला बाग हत्याकांड इसके बाद एक उदाहरण बन गया और आज भी देश में जब किसी भी जगह से पुलिस के भयानक अत्याचारों के समाचार आते हैं तो ‘एक और जलियावाला बाग’ या ‘एक और डायर’ की सुर्खियां देखने को मिलती हैं ।

आइए, अमृतसर शहर का 99 वर्ष पहले का माहौल देखें । 1919में पंजाब का शासन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकेल ओ’डायर के हाथ में था । इसकी राजधानी उस समय लाहौर थी । पंजाब की 5 कमिशनरियों में कुल 28 जिले थे ।मार्च 1919 में ब्रिटिश सरकार ने रौलेट ऐक्ट पास किया । कांग्रेस पार्टी ने इस अधिनियम के खिलाफ 30 मार्च से जन-आंदोलन का आह्वान किया । यह कानून मूलतः भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने की दृष्टि से बनाया गया था । इस कानून के अनुसार राष्ट्रवादियों पर ‘तुर्त्त फुर्त’ मुकदमे चलाकर उन्हें लंबी सजाएं दी जा सकती थीं ।इन निर्णयों पर कोई अपील भी नहीं हो सकती थी । यद्यपि रौलेट ऐक्ट अधिनियम की परंपरा में आज़ाद भारत में भी अनेक कानून बनाए गए, लेकिन रौलेट ऐक्ट ने भारतीय जनता के मन में दबे राष्ट्रवादी आक्रोश को ऐसी सामूहिक अभिव्यक्ति दी कि एक बार तो ब्रिटिश सत्ता भी दंग रह गई ।

रौलेट ऐक्ट के खिलाफ 6 अप्रैल 1919 को पंजाब में पूर्ण हड़ताल हुई । पंजाब ही क्या, पूरे देश में यह दृश्य अभूतपूर्व था । हिंदुओं, सिखों व मुसलमानों में पूरा भातृ-भाव था , लेकिन पंजाब के गवर्नर माइकेल ओ’डायर के लिए इस दृश्य को बर्दाश्त करना बेहद मुश्किल हो गया ।
मोहन दास करमचंद गांधी के पंजाब में प्रवेश पर रोक लगा दी गई ।पंजाब के दो अत्यंत लोकप्रिय नेताओं डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू व डॉ. सत्यपाल को अमृतसर में उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया ।
अमृतसर में भी 6 अप्रैल को हिंदुओं , सिखों व मुसलमानों ने पूरी हड़ताल रखी। शहर में कहीं भी, कुछ भी ऐसा नहीं हुआ , जिससे शांति भंग होने का खतरा हो ।
9 अप्रैल को रामनवमी का जुलूस निकाला गया, इसे हिन्दू-मुस्लिम एकता के रूप में आयोजित किया गया । डॉ. किचलू व डॉ. सत्यपाल दोनों ने इस जुलूस को अपने घर से देखा ।


अमृतसर में 30 मार्च को भी हड़ताल हुई थी व इस दिन करीब पचास हजार लोगों की जनसभा को डॉ. किचलू व डॉ. सत्यपाल ने संबोधित किया ।
10 अप्रैल को बिना किसी उत्तेजना के पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने डॉ. किचलू व डॉ. सत्यपाल को पंजाब से निर्वासित करने का आदेश दिया और उसी दिन दोनों को अमृतसर से बाहर अज्ञात स्थान की ओर भेज दिया गया । यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई और तत्काल लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई ।
ये लोग डिप्टी कमिश्नर को अपने नेताओं की रिहाई की मांग के लिए ज्ञापन देने चले । शहर की मुख्य सड़कों से गुजरता हुआ , जब यह जुलूस रेलवे ओवर ब्रिज पहुंचा तो फौजी गार्ड ने उसे रोक दिया । भीड़ के बढ़ने पर फौजी गार्ड ने गोली चला दी, जिससे कुछ लोग मरे व कुछ लोग घायल हो गए ।
इस बीच कुछ वकीलों ने बीच बचाव की भी कोशिश की ,लेकिन फौजी गार्ड ने गोली चलाना बन्द नहीं किया । जब घायलों को अस्पताल ले जाया गया तो लेडी डॉक्टर श्रीमती ईसडन ने घायलों और भारतीय जनता की खिल्ली उड़ाने वाली बातें कहीं ।
क्षुब्ध और क्रुद्ध भीड़ ने तब उत्तेजित होकर कुछ अंग्रेजों की हत्या कर दी । 10 अप्रैल को ही ये दुर्घटनाएं घटीं ।
इसके बाद शुरू हुआ ब्रिटिश शासकों के आतंक का दौर । 11 अप्रैल को उन भारतीयों का अंतिम संस्कार हुआ, जो फौजी गार्ड की गोलियों से मारे गए थे । 12 अप्रैल को शहर में घोषणा की गई कि 13 अप्रैल को जलियावाला बाग में शहीदों की याद में आम सभा होगी ।
माइकेल ओ’ डायर ने सुबह साढ़े नौ बजे शहर में प्रवेश किया और ऐलान करवा दिया कि कोई सभा नहीं होने दी जाएगी । 13 अप्रैल को वैशाखी होने से शहर में चहल-पहल और भीड़-भाड़ थी । 4 बजे जलियावाला बाग में लोग आम सभा के लिए एकत्र हुए । करीब बीस हजार लोग सभा के लिए आए । उन दिनों जलियावाला बाग में आने-जाने के रास्ते बहुत संकरे थे । यदि मुख्य दरवाजा बंद कर दिया जाता तो बाग से बाहर निकलने में बहुत मुश्किलें थीं ।
सभा शुरू होने से पहले एक हवाई जहाज ने उस जगह के ऊपर चक्कर लगाए । जब जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ सभास्थल पर पहुंचा तो हंसराज का व्याख्यान हो रहा था । सभा में हिन्दू, सिख व मुसलमान तीनों धर्मों के लोग बड़ी संख्या में आए हुए थे । श्रोताओं में बहुत से बच्चे भी थे । जनरल डायर ने बाग में आते ही गोली चलाने के आदेश दिए । 10 मिनट के अंदर उन्होंने 1650 गोलियां चला दीं । भीड़ में भगदड़ मच गई, लेकिन कहीं से निकलने का रास्ता नहीं था । सरकार की ओर से मृतकों या घायलों को उठाने की भी व्यवस्था नहीं की गई थी ।
अविश्वसनीय रूप से आतंकित कर देने वाली इस गोलीबारी में कितने आदमी मरे, घायल हुए, इसके अलग-अलग अनुमान हैं ।कांग्रेस कमेटी, जिसमें महात्मा गांधी, चितरंजन दास, एम. आर. जयकर व अब्बास एस तैयब जी शामिल थे, के अनुसार 1210 से ज्यादा लोग इस गोलीबारी में मरे । सरकार द्वारा स्थापित हंटर कमेटी की रिपोर्ट में 379 लोगों के मरने की बात मानी गई ।
लेकिन यह तो आतंक की महज शुरुआत थी । इसके बाद पंजाब में कई जगह मार्शल ला लागू कर दिया गया । कांग्रेस कमेटी की रिपोर्ट में पांच जिलों के अनेक शहरों, कस्बों व गांवों में मार्शल ला के आतंक की स्थिति बयान की गई है ।
खुद अमृतसर में लोगों को पेट के बल रेंगकर चलने पर मजबूर किया गया । शहर के सम्मानित नागरिकों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया ।
जिस सड़क पर कुछ अंग्रेज मारे गए थे, उस सड़क पर लोगों को सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाए गए । सब भारतीयों को छोटे से छोटे अंग्रेज को सलाम करने पर विवश किया गया ।
शहर के सब वकीलों को विशेष पुलिस-सिपाही बनने पर मजबूर किया गया । अंधाधुंध गिरफ्तारियां कर, अवर्णनीय रूप से यंत्रणाएं दी गईं और यह सब करते हुए जनरल डायर को गर्व महसूस होता रहा । शहर के संभ्रांत व्यक्ति -75 वर्षीय लाला कन्हैया लाल, वकील मकबूल महमूद, बैरिस्टर गुरदयाल सिंह सलारिया सब को अपमानित व परेशान किया गया ।
लाहौर शहर में ‘ट्रिब्यून’ के संपादक कालीनाथ राय को गिरफ्तार किया गया । कर्नल जानसन ने लाहौर में भी अमृतसर के बराबर अत्याचार किए । कालिज के 500 विद्यार्थियों और अध्यापकों को चिलचिलाती धूप में मीलों दौड़ाया गया । ‘ट्रिब्यून’, ‘प्रताप’ और ‘पंजाबी’ अखबारों को अपना प्रकाशन बन्द करना पड़ा ।
कसूर शहर में मनमाने ढंग से दंड दिए गए । पट्टी, खेमकरण, गुजरांवाला, वजीराबाद, निज़ामाबाद, हाफिजाबाद, लायलपुर, सांगलाहिल, मोमन, मनियाँवाला, नवां पिंड, चूहड़खाना, शेखूपुरा, गुजरात, जलालपुर, जट्टामलकवाल आदि अनेक ऐसे गांव कस्बे थे जहां पर मार्शल ला के अधीन अवर्णनीय अत्याचार किए गए । इन अत्याचारों को कांग्रेस कमेटी की करीब 200 पृष्ठों की रिपोर्ट में दर्ज किया गया है । कांग्रेस कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘मार्शल ला के अंतर्गत 5 जिलों में जो कदम उठाए गए थे, सर्वथा अनावश्यक क्रूरतापूर्ण और दमनकारी थे ।’ रिपोर्ट में यह भी कहा गया ‘जलियावाला बाग में जो नरमेध हुआ , वह सर्वथा निर्दोष और निहत्थी जनता, बच्चों पर जानबूझकर किया गया एक ऐसा अमानवीय कृत्य था, जिसकी निर्दयता की कोई मिसाल आधुनिक ब्रिटिश शासन के इतिहास में ढूंढे नहीं मिलती ।’
भारत के एक मित्र अंग्रेज सी. एफ. एंड्रयूज ने जलियावाला बाग के हत्याकांड की तुलना 1692 में विलियम व मेरी के शासन काल में स्कॉटलैंड में हुए कत्लेआम से की ।
इस आंदोलन और ब्रिटिश अत्याचारों के दौरान लोगों को देखें तो पता चलता है कि हिन्दू, सिख व मुसलमान तीनों मिलजुल कर विदेशी शासकों के खिलाफ लड़ रहे थे ।
ला. चिंत राम थापर, ला. बोधराज, सरदार सन्त सिंह, सरदार अमर सिंह, जौहर सिंह, मौलवी अलीमदीन, गोसाईं मायाराम, जमीयत सिंह, बूटा सिंह, ला. उशनायक राय, मंगल सिंह, हरनाम सिंह, शान सिंह, काशीराम, मुरैन सिंह, सोहन सिंह, लछमन दास, सोहनमल, हेडमास्टर ला. राम सहाय, सरदार मेवा सिंह,उपसंपादक दीवान सिंह, ला. बलिराम कपूर, सैय्यद हकीम शाह, मनोहर लाल एम.ए., ला.हरिकिशन लाल, मो. इस्माइल, गुल मोहम्मद, मो. अमीन, डॉ. केदारनाथ भंडारी, काहन चंद, अब्दुल्ला ला. मेधा मल इत्यादि कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने पंजाब में 1919 की खूनी वैशाखी के दिनों में भारतीय होने के नाते अनेक कष्ट सहे ।
ऐसे हजारों नाम हैं और वे सभी धर्मों से आते हैं ।
अमृतसर और पंजाब की इस शानदार विरासत को भुला देना संभव नहीं है । भले ही कुछ दिनों के लिए कुछ धार्मिक उग्रवादी लोगों की साझी संस्कृति में जहर घोलने की कोशिश करें, लेकिन उनकी विरासत उन्हें फिर एक साथ जीने मरने की प्रेरणा देगी ।

(जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर चमनलाल 50 से भी अधिक पुस्तकों के लेखक और संपादक रहे हैं. भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों पर लेखन के लिए विश्व भर में जाने जाते हैं।)

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