गंगाधर पान तावड़े का जाना प्रतिरोध के एक महत्वपूर्ण स्तंभ का जाना है- जसम
सामाजिक कार्यकर्ता और प्रख्यात साहित्यकार रजनी तिलक का 30 मार्च 2018 को रात 11 बजे दिल्ली के सेंट स्टीफंस हॉस्पिटल में देहांत हो गया। पिछले दिनों एक यात्रा में स्लिप डिस्क हो जाने से जटिलता बढ़ गयी। अंततः उनका आधा से अधिक शारीर पैरालाइज हो गया। उन्हें सेंट स्टीफंस हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। ऑपरेशन के बाद भी हालात में कोई खास सुधार नहीं हुआ। अंततः उनको बचाया न जा सका।
आप का जन्म 27 मई 1958 को हुआ था। आप लगभग 60 वर्ष की थीं। लेखिका- कवयित्री , पत्रकार और स्त्री मुक्ति आंदोलन की अग्रणी कार्यकर्ता रही हैं। छात्र जीवन से ही महिला आंदोलन से जुड़कर लिंग भेद एवं स्त्री पुरुष असमानता के खिलाफ सामाजिक सांस्कृतिक व राजनैतिक कार्यक्रमों में सक्रिय रही हैं। दलित मानवाधिकार मुद्दों पर और खासकर सफाई कर्मचारियों की समस्याओं पर संजीदगी से हस्तक्षेप किया ।
आप सही मायने में सामाजिक आंदोलनों की नायिका रही हैं। यह सच है कि आप ने युवा पीढ़ी को न केवल प्रेरित किया बल्कि उनकी हर तरह से मदद भी किया। इसलिए आप का जाना अन्य लोगों के साथ युवा पीढ़ी के लिए खासतौर पर गहरा आघात है।
आप की तमाम साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित हुईं- ‘भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले’, ‘पदचाप कविता संग्रह’, ‘बुद्ध ने घर क्यों छोड़ा’, ‘डॉ. अम्बेडकर और महिला आंदोलन’, ‘दलित स्त्री विमर्श और पत्रकारिता’ आदि। अभी हाल ही में आप की आत्मकथा ‘अपनी जमीं अपना आसमां’ प्रकाशित होकर आयी थी।
पिछले दिनों 27 मार्च 2018 को मराठी दलित साहित्य के महान साहित्यकार गंगाधर पानतावड़े भी हमारे बीच नहीं रहे। आप का जन्म 28 जून 1937 में नागपुर में हुआ था। आप ‘अस्मितादर्श’ जैसी मराठी की लब्धप्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक रहे। आप का भी जाना प्रतिरोध की संस्कृति के एक महत्वपूर्ण स्तंभ का जाना है। जन संस्कृति मंच भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण साहित्यकार और विद्वान को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
रजनी तिलक ने समाज के हर जरूरी सवाल को संबोधित किया और नागरिक समाज को सोचने के लिए प्रेरित किया-
“देश में तीन लोग महत्वपूर्ण हैं. सफाई कर्मचारी- किसान और बॉर्डर पर सैनिक। किसान अन्न उगा कर देश का पेट भरता है और सफाई कर्मचारी देश के भीतर खुद अस्वच्छ प्रक्रिया से गुजर कर देश को साफ सुथरा रखता है। नाली, सीवर, सेप्टिक टैंक, गटर मैनहोल साफ रखता है।
बॉर्डर पर सैनिक को सम्मानजनक तनख्वाह, पेंशन, शहीद होने पर विधवा को कोटे से पैट्रोल पम्प आदि दिया जाता है ताकि उसका परिवार एक सम्मानजनक जिन्दगी जी सके और और उसके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके। पिछले वर्ष बॉर्डर पर 60 जवान शहीद हुए जबकि उनकी तुलना में देश के भीतर 1471 सफाईकर्मी मौत के घाट उतर गये।
यह दोगला व्यवहार क्यों? सफाईकर्मी को न यूनिफार्म है, न ईएसआई सुविधा, न नयूनतम वेतन, न सम्मानजनक व्यवहार, न ही मरने के बाद उनके बच्चों के भविष्य की सुरक्षा। ऐसा क्यों? क्या हम आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में पुश्तैनी धंधों को क्या जातिगत पेशे में सुरक्षित रखना चाहते हैं?
क्या सफाई कर्मचारी इस देश का नागरिक नहीं? सफाई कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गये ऑर्डर की अवहेलना क्यों की जा रही है ? आनंद विहार, लाजपत नगर और घिटोरनी में हुई लोगों की मौत के बाद उनकी पत्नियां जो विधवा हो गयी हैं, गोद में छोटे छोटे बच्चे जिन्हें अभी अपने पिता के होने न होने का अहसास भी नहीं है, तमाम उम्र बिना पिता के रहना पड़ेगा, इन सबका जिम्मेवार कौन है?
वर्तमान सरकार का दायित्व है कि इस पर अपनी पैनी नजर रख कर पीड़ितों को न्याय दिलाये और अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दिलाये।”
(रजनी तिलक)
अद्भुत जिजीविषा की प्रतीक सामाजिक आंदोलनों की नायिका को जन संस्कृति मंच विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
( राम नरेश राम द्वारा जन संस्कृति मंच की ओर से जारी)