(आसनसोल में रामनवमी जुलूस में शामिल लोगों के हमले में मारे गए हफीज सबितुल्ला के पिता नुरानी मस्जिद के इमाम मौलाना इमदादुल रशीदी ने एआईपीएफ और पीयूसीएल की टीम से बातचीत में एक बार फिर लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की है. एआईपीएफ और पीयूसीएल की टीम से उन्होंने जो कहा, वह यहाँ प्रस्तुत है )
वक्त बहुत बड़ा मरहम होता है, उस वक्त ने इस जख्म को भर दिया. दस रोज का अरसा गुजर रहा है, दस दिन में हमारा जख्म ऊपर से भर गया है. अंदर क्या है उसको छोड़ दीजिए, लेकिन ऊपर से मेरा जख्म बहुत भर गया है. अगर उन्हीं बातों को फिर से आपके सामने बयान करें तो वो जख्म हरा हो जाएगा, लेकिन ऊपर से मेराजख्म बहुत भर गया है, तो वो जख्म हरा हो जाएगा लेकिन जो आपका सवाल है, आप जो यहाँ आई हैं तो मैं समझता हूँ कि मैंने जो अमन का पैगाम दिया है, इस पैगाम को आगे ले जाने में आपका हमको साथ तो चाहिए, आपकी मदद चाहिए.
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आप मेरे पैगाम को दूर तक पहुँचायें कि आज से पहले जो एक 9/11 के बाद जो बात टी. वी. पे आई कि इस कलर का, इस लहजे का, इस पैटर्न का जो आदमी होता है वो अच्छा नहीं होता है, हालाँकि ऐसा नहीं है, सारे लोग जानते हैं कौन कैसा होता है, सबको पता है, लेकिन एक पैगाम दिया था उन्होंने. तो मेरा बेटा जो इस साल माध्यमिक का इम्तिहान दिया था, अच्छा स्टूडेंट था, हमको यकीन है कि उसका रिजल्ट आएगा तो अच्छा रिजल्ट आएगा, बहुत अच्छा, ये यकीन है, उसका कोई फायदा नहीं है. लेकिन एक बात है कि दिल में मोहब्बत थी उससे. वो लड़का हाफ़िज़-ए-कुरआन था, चला गया लेकिन एक बच्चा जो चला गया, वो बच्चा अपनी उम्र को पूरा करके गया हमारा यकीन है. इस्लाम ने हमको सिखाया है, हमारे प्रोफेट मोहम्मद सल्ललाहो अलैहे वसल्लम ने हमको बताया है कि तुम्हारी उम्र मुताइयन है. चाहे जवान, चाहे बच्चा, चाहे बूढ़ा हो, अपने वक्त पर जाएगा. न एक सेकंड आगे होगा न एक सेकंड पीछे होगा. तो मेरा ईमान है कि मेरे बच्चे की उम्र उतनी ही थी, ये ईमान है मेरा. लेकिन ये कौन सी अकलमंदी है कि एक बेटे के चले जाने पर सारे निज़ाम को हम तहस-नहस कर दें. नहीं हमने कोशिश किया, अब थोड़ा हम अपने आप को बर्दाश्त करेंगे, ये तो बेटा मेरा सोलह साल का है, मैं तीस साल से इमाम हूँ यहाँ, तो ये जो जवान औलाद है, ये सब मेरे बच्चे हैं. लिहाजा इनको एक ऐसा पैगाम दें कि ये महसूस करें. इसलिए जब मैंने, रात ही मालूम हो गया था मुझे कि मेरा बेटा नहीं है, तो मैंने रात भर किसी को नहीं बताया, कि रात का मौका है, किसी को मालूम हो जाएगा तो कोई बर्दाश्त नहीं करेगा. तो मैंने रात में अपने आपको बर्दाश्त कर लिया. अपने मौला के सामने, अपने रब के सामने अपने आपको रुला लिया कि हमको ताकत दें कि हम इसका मुकाबला कर सकें और इसके जरिए अमन का पैगाम दे सकें, तो ये मैं सोच रहा था.
सुबह में फज़ल की नमाज के बाद मैंने गाँव को जमा किया और मैंने कहा कि देखो भाई तुमको हमसे मोहब्बत है ? तो जी है. तो, अगर मोहब्बत है तो एक बात सुनो, मेरा बेटा इस दुनिया में नहीं है और मैंने सबर कर लिया, तुम भी सबर करो. तुम्हारे हाथ से, तुम्हारी जबान से अगर किसी को तकलीफ पहुँच जाएगा तो मैं मस्जिद भी और शहर भी छोड़ कर चला जाऊंगा. इसका मकसद कुछ नहीं था, इसका मकसद उन पर एक दबाव डालना था कि इनके दिल में जो मोहब्बत है, इस मोहब्बत का फायदा उठाकर के अमन को बढ़ाना था, मोहब्बत के जरिए नफरत को दबाना. और मैं कामयाब हुआ. उसके बाद फिर मैं लाश लाया और हमारे सी पी साहब ने कहा कि इमाम साहब हमारी ताकत भी चाहिए, आपकी ताकत नहीं है, अंदर जहाँ जनाजा होगा वो मेरे जिम्मे कर दीजिए, बाहर आपकी जिम्मेदारी, मैं आपके साथ हूँ. मैंने कहा ठीक है, बहुत अम्नो-अमान से, किसी किस्म की कोई बात नहीं, और उसके बाद धीरे-धीरे… आप जो आई हैं, आप जो देख रही हैं कि ये शहर जो अम्नो-अमान की तरफ है, ये उसी की बरकत है और इसलिए हम ये चाहते हैं कि इस्लाम ने अम्न का पैगाम दिया है, हर मजहब ने, ऐसा नहीं कि इस्लाम ने ही, तमाम मजहब अम्न का पैगाम देता है लेकिन ये मानने वालों पर डिपेंड करता है कि मानने वाले किस अंदाज़ से उसको मानेंगे. बच्चा चला गया. बनी इस्राइल में मूसा के ज़माने में एक बुढ़िया रो रही थी, पूछा क्या हुआ ? बुढ़िया ने कहा मेरे बच्चे का इंतकाल हो गया. कितनी उमर थी ? कहा तीन सौ साल. तीन सौ साल ! और बुढ़िया रो रही है, मेरे बच्चे की उमर पन्द्रह सोलह साल, समझे न, उसकी तीन सौ साल उमर थी तब भी वो बुढ़िया अपने बेटे के लिए रो रही थी. माँ का दिल तो रोता है लेकिन ये नहीं है कि उसके लिए हम …हम चाहते हैं कि मेरा बेटा अपने वक्त पर चला गया ठीक है, लेकिन इस पैगाम के जरिए हमारा मुल्क हिंदुस्तान, हमारा मगरिबी बंगाल, आसनसोल आपस में जिस तरह मिलकर मोहब्बत के साथ, दिल जुड़ा हुआ था, ये जो टूटा हुआ दिल है, ये आपस में जुड़ जाए, इसी पैगाम के लिए आपको आने दिया है. वरना आपको पता है कि मैं किसी लेडीज को यहाँ अलाऊ नहीं करता हूँ, जो सच्ची बात है, लेकिन मेरा एक पैगाम है, इस पैगाम को मैं दूर तक पहुँचाना चाहता हूँ कि इस्लाम का पैगाम अमन का पैगाम है, इस्लाम वाहिद मजहब है जो अमन की तरफ हमें बुलाता है और अमन से हटकर कभी नहीं कहता. मानने वाले गलत कर दें तो ये उनका कसूर हो सकता है, इस्लाम का कसूर नहीं है.