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अब इस मुल्क़ को अवाम ही बचा सकता है

सुशील मानव 


21 जनवरी । कल 100 से अधिक छात्र संगठनों ने ‘यंग इंडिया अगेंस्ट सीएए-एनआरसी’ के बैनर तले मंडी हाउस से जंतर मंतर तक डिक्लेयरेशन मॉर्च निकाला। ये मार्च जंतर मंतर पर पहुँचकर विरोध सभा में तब्दील हो गया।

दीपांकर भट्टाचार्य

सभी को संबोधित करते हुए सीपीआईएमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा- “एनआरसी मतलब लोगों को नागरिकता से वंचित करने की साजिश। यदि एनआरसी से अकेले असम में 19 लाख लोगों की नागरिकता जाती है तो पूरे भारत में एनआरसी लागू होने से कितने करोड़ लोग बाहर हो जाएगें ये बात हमें समझ में आती है। अब वो एनपीआर ला रहे हैं लेकिन एनपीआर में जो सबसे ख़तरनाक पहलू है वो ये कि सरकार और प्रशासन के पास ये अधिकार हो जाएगा कि वो किसी के भी नाम के आगे ‘डाउटफुल सिटीजन’ लिख देंगे। आपको हमें डाउटफुल घोषित करके मतदान करने का जो अधिकार है हमें उसे छीनकर हमें मतदान से वंचित कर देंगे। और फिर हमें डिटेंशन कैम्प में भेजेंगे। और इसीलिए हमने कह दिया कि तुम सीएए के नाम से आओ, तुम एनआरसी के नाम से आओ, तुम एनपीआर के नाम से आओ कोई भी नारा लगाओ हम तुम्हारी साजिश को पहचानते हैं। और संविधान के खिलाफ़ तुम्हारी कोई भी साजिश को हम चलने नहीं देंगे। 26 तारीख को हमारे गणतंत्र को 70 साल पूरा हो जाएगा। 70 साल में हमें कहां पहुँचना था लेकिन 70 साल में हम सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं। इस देश पर सबसे बड़ा ख़तरा आ गया है इसलिए हमें अब सबसे ज्यादा भरोसा अब आवाम पर है। संविधान को बचाने के लिए आवाम की इस संघर्ष और ताकत को सलाम करते हैं। तमाम यूनिवर्सिटी के छात्रों और शाहीन बाग़ की बहनों को सलाम करता हूँ। जिन्होंने ये मिसाल कायम कर दी कि देश के हर कोने में शाहीन बाग़ बनने लगा है। हमारी एकता को और मजबूत कीजिए। घर घर समझाना बेहद ज़रूरी है। घर घर समझाएंगे नारे को अब हकीकत में बदलने की ज़रूरत है। जिलों, कस्बों गांवों के घर घर जाकर लोगों को समझाना है कि कागज़ नहीं दिखाना है। ये आंदोलन हमें सच्ची आजादी और लोकतंत्र की ओर ले जाएगा। अब इस मुल्क़ को आवाम ही बचा सकती है।”


मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने सभा को संबोधित कर कहा – “ जब भी इतिहास लिखा जाएगा हम आप सभी लोग गर्व से कह सकेंगे कि हम इस देश के संविधान और हिंदू-मुस्लिम एकता को बचाने के लिए सड़कों पर लाखों की संख्या में सड़कों पर निकले थे। जब आप इतिहास देखिएगा कि इस देश में कब इतने लोग एक साथ सड़कों पर निकले थे हिंदू-मुस्लिम एकता की बात को लेकर। लोग पिछली बार सड़कों पर उतरे थे 73 वर्ष पहले। जब 18 जनवरी 1948 में गांधी ने हिंदू-मुस्लिम एकता और उनकी बराबरी के हक़ के लिए अपना आखिरी उपवास किया था उस समय गांधी के उपवास के समर्थन में दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए ऐसे ही लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर निकले थे। लेकिन फिर वो जन सैलाब अब उमड़ा है। इस बात के लिए नहीं कि हम पीड़ित हैं, बल्कि इसलिए कि हमारे देश के भाई बहनों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव न हो। आप सब मोहब्बत के सिपाही हैं संविधान के सिपाही हैं। आप सबको सलाम। हम कामयाब हो गए हैं क्योंकि हमने ये साबित किया है कि हमारी सरकार की जो साजिश थी कि हमें मजहब के आधार पर बांटेंगे ऐसा कानून लाएंगे और सिर्फ़ इस देश के मुसलमान इसका विरोध करेंगे। ये जब नहीं हुआ है तो हमने एक तरह से इस लड़ाई को जीत चुके हैं। और हमारी जीत हमारा मनोबल हम लड़ते रहेंगे। हमारी जो गैर भाजपा राज्य सरकारे हैं वो हमें हिट करने के बजाय हमारे स्त्रियों युवाओं का अनुसरण कर रहे हैं। वो कह रहे हैं कि हम अपने राज्यों में एनआरसी-एनपीआर लागू नहीं करेंगे। ये भी हमारी जीत है। इस लड़ाई का फैसला न संसद में होगा न सुप्रीमकोर्ट में होगा। इस लड़ाई का फैसला दो जगह होगा। एक तो सड़कों पर होगा जहां हम सब उतरे हैं और दूसरा और सबसे ज्यादा बड़ा फैसला हमारे दिलों में होगा। कि हमारे दिलों में नफ़रत भरने की जो कोशिश थी उनकी उसमें वो कामयाब हुए कि नहीं। क्योंकि लाखों लोगो ने सड़कों पर उतर कर ये साबित किया है कि हमारे दिलों में वो मोहब्बत आज भी है जो 1947 में थी।”


समाजसेवी सरफराज अहमद कहते हैं- “इस सरकार को भारत के बारे में कुछ नहीं मालूम। इंडिया की मिट्टी अलग है। इस देश में कोई नहीं बोलता कि इस देश को मजहब के हिसाब से चलाओ। देश धोखा खा गया है। ये लोग धोखे से प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री बन गए हैं। लेकिन ये लोग ही इन्हें भगाएंगे। ये जिस झोले का जिक्र बार बार करते हैं उस झोले को तैयार रखें। सीएए-एनआरसी इस देश को तोड़ रहा है। अल्लाह न करे कि मेरा मुल्क़ फिर से टूटे। 1856 में ब्रिटिश सरकार भी जब नाकाम होने लगी तो ऐसे ही एक्ट पर एक्ट लगाने लगी थी। जब कोई सरकार हताश हो जाती है तब ऐसे ही ऊल-जुलूलू कानून थोपने लगती है।”


जामिया के इंजमाम उल हसन चार्ली चैपलिन का आउटकट लेकर घूमते हैं – “ चार्ली चैप्लिन को कई देशों से निकाल दिया गया था तो वो खुद को विश्व का नागरिक बताते थे। वो सिर्फ़ एक बेहतरीन एक्टर ही नहीं एक्टिविस्ट भी थे। मैं उनके जरिए ये संदेश देना चाहता हूँ कि चार्ली चैप्लिन की तरह हम भी एक दूसरे का दिल जीतेंगे। मोदी-शाह चाहे हमें बांटने की चाहे जितनी कोशिश कर लें हम एक दूसरे मजहब के लोगों के प्रति अपने दिलों में मोहब्बत भरकर उनके दिलों को जीतेंगे। और आपको ये एनआरसी-एनपीआर-सीए वापिसलोना ही होगा।”
शायर गौहर रज़ा कहते हैं- “ मैं उम्र के जिस लपेटे में हूँ उसमें मैं लगातार यही सुनता रहा कि पिछले दस पंद्रह वर्षों में कि इस मुल्क़ की नई पीढ़ी बहुत बिगड़ी हुई है। उसे अपने फ्री पैकेज के अलावा, उसे अपनी सहूलियतों के अलावा, उसे अपने वॉट्सअप के अलावा सेलफोन और म्युजिक सिस्टम के अलावा कोई मतलब नहीं है इस देश से। आपको सलाम को आपने उन सबको गलत साबित किया यहां खड़े होकर। आज हालत ये है कि पोलिटिकल पार्टियां और हमारी उम्र के लोग उन्हीं नौजवानों के पीछे पीछे चल रहे हैं। इस देश के इतिहास में जेपी मूवमेंट में भी ऐसा नहीं हुआ। जेपी आंदोलन हिंसा से शुरु हुआ था और हिंसा पर ही खत्म हुआ। यूनिवर्सिटी के अंदर और बसों में आग लगाई जा रही थी। लेकिन आज के युवा ने गांधी के रास्ते पर चलते हुए अपने आंदोलन को आगे बढ़ाया है। हिंसा सिर्फ़ वहीं हो रही है जहां बीजेपी के सरकार है। इनके गुडें और पुलिस हिंसा कर रही है। यंग इंडिया बता रहा है कि हम अपनी मांग पर डटे रहेंगे और न तो हिंसा करेंगे न ही तुम्हें हिंसा करने देंगे। बहुत कुछ पहली बार हो रहा है। इस आंदोलन में यंग इंडिया पहले उठा बाकी सब उसके पीछे आए। देश के पिछले साढ़े चार साल के इतिहास में देश की मां, बहनें बेटियां इतनी बड़ी तादात में सड़कों पर कभी नहीं आईं, आज़ादी आंदोलन के दौरान भी नहीं। मोदी-शाह जान लें कि ये बदला हुआ हिंदोस्तान उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे रहा है और ये पीछे हर्गिज नहीं हटेगा। बल्कि तुम्हें पीछे धकेल देगा।”
आंदोलन में भी अपना चरखा साथ लेकर चलने वाले और बैठे-सुनते बोलते हुए भी सूत काटते रहने वाले गांधीवादी मुसद्दी लाल कहते हैं- यदि इस देश में आजादी के बाद ग्राम स्वराज आया होता तो आज ये सब न होता। अगर ग्राम स्वालंबन होगा तो दिल्ली और पटना की नहीं ग्राम की सुनवाई होगी। आज के समय में बिहारी मजदूर देश के कोने कोने में हैं। लेकिन उन्हें घुसपैठिया बताकर बाहरी बताकर गुजरात महाराष्ट्र से मारकर भगाया जा रहा है। क्यों भाई? आखिर जब वो मजदूर बनकर आया तो हमें अच्छा लगा लेकिन जब वो वहीं बसने लगा तो आपको बुरा क्यों लगा? आज देश में तीन समस्या है। पूंजीवादी, राज्यवाद और पुलिस प्रशासन की हिंसा। पूंजीवाद को खादी ग्रामोद्योग से, राज्यवाद को ग्रामदान से और पुलिस फोर्स को शांति सेना से स्थानांतरित करके हल किया जा सकता है। पुलिस और सेना में तो सीना नापकर भर्ती होती है लेकिन शांति सेना में सीना नहीं मानवीय करुणा, क्षमा और दया के भाव देखकर भर्ती किया जाएगा। बिनोबा जी ने भी ग्राम स्वराज के तंत्र, जय जगत के सूत्र और विश्व शांति का लक्ष्य दिया था। लेकिन हम अपने लक्ष्य से भटककर आज इस मुसीबात में घिरे हैं।


युवा सैय्यद जव्वाद कहते हैं- “हम गांधी के मानने वाले लोग हैं। कोई एक गाल पर एक थप्पड़ मारेगा तो हम उसके सामने अपना दूसरा गाल भी पेश कर देंगे। हम मोदी शाह को भी गले से लगकार उनके दिलों की नफ़रत को मोहब्बत में बदल देंगे। समस्य ये है कि ये लोग झूठ बहुत बोलते हैं। जिस चीज पर बल देते हैं खुद भी उसे नहीं मानते। ये कृष्ण को ग्वाला और कमतर भी साबित करेंगे और गीता पर जोर देंगे लेकिन खुद गीता नहीं पढ़ेंगे उसमें कही बातों का अनुसरण नहीं करेंगे।”

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