नई दिल्ली. केन्द्र सरकार ने 9 फरवरी को लोकसभा में जानकारी दी कि देश के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी ) में सिर्फ 19 फीसदी ही विशेषज्ञ डाॅक्टर हैं।
लोकसभा सदस्य विनायक भाऊराव राऊत, डा. श्रीकांत एकनाथ शिंदे, डा प्रीतम गोपीनाथ मुंडे, धर्मेन्द्र यादव और श्रीरंग आप्पा बारणे द्वारा सीएचसी में विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि देश के सीएचसी में 22496 विशेषज्ञ चिकित्सकों की तुलना में सिर्फ 4156 विशेषज्ञ डाॅक्टर उपलब्ध हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 81.64 फीसदी विशेषज्ञ डाॅक्टरों की कमी है।
उन्होंने यह आंकड़े राज्यों व संघ शासित प्रदेशों से मिली जानकारी के आधार पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2016-17 (31 मार्च 2017) के हवाले से दिए।
राज्यों में यूपी के सीएचसी में जरूरत से 2804 विशेषज्ञ डाॅक्टर कम हैं। इसी तरह असम में 439, बिहार में 518, छत्तीसगढ़ में 617, गुजरात में 1360, हरियाणा में 432, हिमाचल में 344, झारखंड में 677, कर्नाटक में 326, केरल में 888, मध्यप्रदेश में 1056, महाराष्ट में 732, राजस्थान में 1819, तमिलनाडू में 1462 विशेषज्ञ डाॅक्टरों की कमी है।
निर्धारित मानक के अनुसार हर सीएचसी पर विशेषज्ञ चिकित्सक के रूप में सर्जन, स्त्री रोग विशेषज्ञ, फिजीशियन और बाल रोग विशेषज्ञ होने चाहिए।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 में डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट (भारत में स्वास्थ्य कार्यबल ) के मुताबिक देश में प्रति दस हजार की आबादी पर 7.96 डाॅक्टर हैं। इसके अलावा फाउंडेशन फार आर्गनाइजेशनल रिसर्च एंड एजुकेशन (फार) द्वारा प्राकशित भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य पत्रिका 2017 में भारत में डाॅक्टरों की समग्र उपलब्धता 2014-2030 अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2014 में भारत में प्रति दस हजार लोगों पर 4.8 चिकित्सक उपलब्ध थे।
उन्होंने यह भी बताया कि राज्य मेडिकल कांउंसिल और मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया में 30 सितम्बर 2017 तक 10,41,395 एलोपैथिक डाॅक्टर पंजीकृत थे। इसमें 80 फीसदी उपलब्धता मान लेने पर लगभग 8.33 लाख डाॅक्टर सक्रिय सेवा के लिए उपलब्ध हो सकते हैं। यह डाॅक्टर और आबादी के अनुपात 1: 1597 है जबकि डब्ल्यूएचओ डाॅक्टर और जनसंख्या का अनुपात 1:1000 निर्धारित करता है।
स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने कहा कि विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए मेडिकल कालेजों में पीजी की सीटें बढ़ाई जा रही हैं और राज्यों को डीएनबी व सीपीसी पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।