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युवाओं की जेब और संघियों का औरंगज़ेब

आजकल आरएसएस ने अपने आनुसांगिक संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा  औरंगजेब की कब्र के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। जिसकी कमान  बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों के हाथ में है। इन‌‌ संगठनों द्वारा तैयार की गई युवाओ की  फौज इस अभियान की अगुवाई कर रही  है।

नागपुर के शिवाजी प्रतिमा पर पिछले दिनों औरंगजेब  की कब्र हटाने की मांग को लेकर आयोजित विभाजनकारी कार्यक्रम  से महाराष्ट्र को आग में झोंकने की कोशिश की गई । इसका असर देश  के अन्य खित्तों में भी दिखाई दे रहा है।

चूंकि संघ द्वारा प्रायोजित धार्मिक और राजनीतिक अभियानों में अधिकतर युवाओं की भागीदारी होती है। जिसमें हिंदुत्व के नाम पर अर्ध बेरोजगार और  अस्मिता तलाश रहे दलितों-पिछड़ों का‌ शहरी युवा संघ प्रक्षिशित नेताओं के खेल का शिकार हो जाते हैं।

लेकिन उसी समय उच्च शिक्षा और रोजगार के लिए गांवों, कस्बों, छोटे शहरों से आए हुए हजारों-लाखों नौजवान इन अभियानों से खुद को अलग रखते  हैं। जिसमें अधिकांश या तो तटस्थ होते हैं या सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ रहते हैं । जो भविष्य के लिए विभाजनकारी सांप्रदायिक अभियानों को अवरोध ही नहीं, एक खतरा मानते हैं। इसलिए हमें भारत के युवा वर्ग के इस विभाजन और वर्गीय चिंता को नोट करने की जरूरत है।

‌इस समय जब औरंगजेब की कब्र भाजपा और आरएसएस की  विघटनकारी सत्ता के सर पर चढ़कर बोल रही है और संघ प्रायोजित उन्माद द्वारा हवाओं में जहर घोल रही है। तो हमें सभी प्रकार के शिक्षित और तकनीकी रूप से दक्ष युवाओं के रोजगार की स्थिति और देश में सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं में नियोजन की  हकीकत को समझने की जरूरत है ।

2023 से 2025 के  दरमियान सरकार सभी मोर्चे पर  फेल हुई है । इसलिए वह  खतरनाक रास्ते पर आगे बढ़ रही है। इस बीच रोजगार के अवसर घटे हैं। महंगाई और गरीबी  पांव पसारती जा‌ रही है। सामाजिक और पारिवारिक तनाव लगातार बढ़ रहे हैं ।

आत्महत्या  का भौगोलिक सामाजिक दायरा लगातार फैल रहा है। उद्योग धंधे, कारोबार, कृषि और मैन्युफैक्चरिंग की स्थिति दिनोंदिन बिगड़ रही है।

शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग संस्थाओं से लेकर सभी तरह के सेवा क्षेत्रों की दक्षता और गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गई है। न्यायिक संस्थाओं से लेकर सभी सत्ता संस्थानों में एक अदृश्य भय व्याप्त  है।

सरकारी क्षेत्र का निजीकरण जिस पैमाने पर हो रहा है, वह आने वाले समय में देश के युवाओं के लिए कठिन स्थिति खड़ा करेगा। ऐसी परिस्थितियां फासीवादी निजाम के लिए उपयुक्त माहौल निर्मित करती है।

आर्थिक संकट, सामाजिक विघटन, राजनीतिक अराजकता तथा युवाओं के भविष्य की अनिश्चिता के बीच से ही फासीवाद को वैधता मिलती है।

कोविड महामारी के समय लगाये गये लॉकडाउन ने भारत की अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठा दिया। लाॅकडाउन  हटाने  के बाद 2021-22 से धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में गति आना शुरू हुई। लेकिन 2023 के अंत तक आकर  ठहर गई।

आज कृषि को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां ग्रोथ दर्ज की जा रही हो। सरकार के बड़े-बड़े दावों के बाद भी वास्तविक जीडीपी 5 से 6% के बीच में ही झूल रही है। ऐसी स्थिति में देश में उद्योग धंधों, रोजगार और खपत में वृद्धि की कल्पना करना मुश्किल है। क्योंकि  बढ़ती जनसंख्या मध्यवर्ग की बढ़ती जरूरतों  निवेश और देश के अन्य तरह के सरकारी खर्चों के लिहाज से आमदनी  नाकाफी है।

इसलिए भारत जैसे विकासशील देश के लिए जीडीपी का औसतन वृद्धि न्यूनतम 7 से 8% के बीच होना अनिवार्य है। नहीं तो विकास का पहिया ठहर जाएगा।

जीडीपी की दर  के प्रभाव पर एक अमेरिकी अध्ययन के अनुसार अगर वृद्धि दर 2% होगी तो बेरोजगारी पांच प्रतिशत हो जाएगी। दो से नीचे है तो 10% बेरोजगारी होगी 5% जीडीपी पर

इंप्लायमेंट कंट्रोल यानी 5% तक रह सकता है।8 से 10% जीडीपी पर बेरोजगारी पांच प्रतिशत के नीचे आ जाएगी। ईएमआई के अनुसार इस समय भारत में बेरोजगारी  9% के स्तर पर है।

भारत में डेमोग्राफी डिविडेंड की चर्चा बार-बार होती है। यानी हमारी “जनसंख्या ही हमारी संपदा है।” आमतौर पर गरीब मजदूर परिवारों की यह समझ है कि जितने बच्चे होंगे, उतने हाथ कमाने वाले होंगे। लेकिन सवाल तो यह है कि  हाथ कहां और किस  सेक्टर में काम करेंगे। आमतौर पर 15 से 24 वर्ष  के युवा भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में रोजगार की तलाश में बाजार में आते हैं।

आईएलओ के अनुसार 2000 में 39% लोग रोजगार पा जाते थे। 2004 में 36% अब 2025 में यह 25% रह गया है। यानी 39 %प्रतिशत से घटकर 25 वर्षों में 25% पर आ गया है । कोविड में यह 22 % था । लेकिन अभी थोड़ा ऊपर जाकर 25% पर ठहरा हुआ है । भारत दुनिया में सबसे युवा देशों में है । जिनकी औसत उम्र 28 वर्ष है। जो किसी भी मुल्क के विकास के क्षेत्र में छलांग लगाने के लिए सबसे बेहतरीन आयु वर्ग होता है। यह स्थि‌त किसी मुल्क में लंबे समय बाद आती है ।

मोदी सरकार के लिए यह एक अवसर था कि उन्हें एक ऐसा युवा देश मिला था। अगर इस दौर में सही ढंग से  श्रम शक्ति का नियोजन हुआ होता तो मुल्क दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकत बन सकता है । चीन में यह समय इस सदी के शुरुआत में आ गया था और अब वह धीरे-धीरे सैचुरेशन की तरफ बढ़ रहा है। जहां औसत आयु 44 वर्ष के करीब पहुंचने वाली है। लेकिन चीन ने इस अवसर के महत्व को समझा और देश को एक विशाल कारखाने में बदल दिया। आज दुनिया के उपभोक्ता बाजार का लगभग 37% उत्पादन चीन करता है।

लेकिन हमारे मुल्क में सत्ता में बैठे लोगों की क्षुद्र राजनीतिक लिप्सा, दृष्टिहीनता और हिंदुत्व तानाशाही प्रवृत्तियों के चलते भारत  इस  अवसर को गँवा सकता है और फिर हम हाथ मलते रह जाएंगे ।

1990 के दशक की शुरुआत में जब दुनिया कंप्यूटर क्रांति के क्षेत्र में प्रवेश कर रही थी ।तो भारत में भी एक समय ऐसा आया था कि हम कंप्यूटर  जगत के सर्वश्रेष्ठ मुल्क बनने जा रहे थे।

लेकिन इस बीच हिंदुत्व के नाम पर चले आंदोलनों ने नौजवानों के हाथ से कंप्यूटर लैपटॉप आधुनिक तकनीक के औजार छीन कर उनके हाथ में पत्थर त्रिशूल तलवार गैंचा सब्बल तथा मूर्तियां पकड़ा दी गई । जिससे वह हिंदू धर्म की रक्षा कर सके। जिसका परिणाम हुआ हमारे देश की विकास यात्रा हिचकोले खाने लगी है।

इस समय युवाओं को कब्र खोदने के पवित्र कार्य में नियोजित किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार औरंगजेब की कब्र के बाद विश्व हिंदू परिषद हुमायूं के मकबरे का सर्वेक्षण करने निकल पड़ी है। वीएचपी की घोषणा के अनुसार ऐसे कई हजार स्थल है जिनकी नवईयत बदली जानी है।जिसके लिए युवा शक्ति के प्रशिक्षण  का अभियान चल रहा है।

‌‌आइए मुल्क की जीडीपी में विभिन्न क्षेत्रों  की हिस्सेदारी से जुड़े कुछ तथ्यों पर गौर करते हैं। भारत की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 2020 के पहले 27% था, जो घटकर 25% पर आ गया है । कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 17 %से घटकर लगभग 13%पर आ ग‌ई है। वही सर्विस सेक्टर की भागीदारी  44 से बढ़कर 50% तक पहुंच गई है । शेष अन्य क्षेत्रों से आता है। इसी समय 22 करोड़ 60 लाख लोग सेल्फ एंप्लॉयड हैं। जिसमें 33% लोग ऐसे हैं जो अपने घरों में बिना वेतन के काम करते हैं।  20% कैजुअल लेबर है। जिनकी संख्या 11 करोड़ के आसपास है। जिसमें 13% यानी 7 करोड़ दुकान आदि में काम करते हैं। ठेका  लेबर भी इसी में शामिल है। ईपीएफ और पीएफ आज जिन लोगों का कटता है वे 9% है। जिनकी संख्या 5 करोड़ 10 लाख है। अगर इस संदर्भ में दूसरे देशों का उदाहरण लें तो रूस में 93%, ब्राजील में 68 %, चीन में 54%, बांग्लादेश में 42% लोग सैलरी और ईपीएफ के दायरे में आते हैं।

नौकरी देने वाले सेक्टर का आकार घट रहा है। 46% रोजगार कृषि से आता है। जिसका 20 13 में जीडीपी में 17% योगदान था। अब घटकर 13% रह गया है । विनिर्माण में 28% से  घटकर  25% पर आ गया है। ग्रीग वर्कर की संख्या बढ़कर 25% हो गई है। संपूर्ण सर्विस सेक्टर में 2 करोड़ वर्कर काम करते हैं। बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में रोजगार में गिरावट दर्ज हुई  है। जैसे  इंफोसिस में 2023 में 3लाख43 हजार से घटकर 25 में 3लाख23 हजार रह गई है।रिलायंस का भी यही हाल है। वहां  3लाख 79  से घटकर 3 लाख 66हजार पर आ गई है। शीर्ष 50 बड़ी कंपनियां  जिन्हें लीडर कम्पनी कहा जाता है, उनमें 1हजार कामगारों की छंटनी‌ हुई है। इन कंपनियों में 36लाख 61 हजार कामगार काम करते हैं जिसका मार्केट कैप 190 लाख करोड़ है। रेलवे में 13 लाख 30 हजार कर्मी थे। जो घट कर 12 लाख 30हजार‌ रह गए हैं। इसमें ठेका मजदूर की संख्या बढ़ती जा रही है।

इसी तरह पब्लिक सेक्टर में जॉब ग्रोथ लगातार निगेटिव ग्रोथ दिखा रही है। एसबीआई,  एलआईसी, एनटीपीसी, ओएनजीसी, पावर ग्रिड, कोल सेक्टर, एचसीएल,  बीईसी, इंडियन ऑयल सभी में रोजगार घटे हैं। भारत हेवी इलेक्ट्रिकल कंम्पनी में रोजगार कम हुआ है। सिर्फ कोल सेक्टर में 10 हजार कर्मचारी बाहर हुए हैं । इस दौरान  एलआईसी (23-24 )में सिर्फ 98 नियुक्तियां हुई है।

सिर्फ डिफेंस पुलिस डाक तथा टैक्स वसूली क्षेत्र में कर्मचारियों की संख्या बढ़ी है। डाक क्षेत्र में 4.6 लाख से बढ़कर 5.6 लाख कर्मचारी हो गए हैं। टैक्स वसूली में तीन गुना रोजगार बढ़ा है। इससे आप अर्थव्यवस्था की स्थिति का आकलन कर सकते हैं। यानी‌ सुरक्षा तथा जनता से पैसा निचोड़ने के लिए कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

क्रिएटर इकोनामी, स्टार्टअप में सिर्फ 4% कंपनियां सफल हो पाई हैं। 2050 तक काम करने वालों में 40% रोजगार से बाहर हो जाएंगे।इसका असर ग्रामीण जीवन पर पड़ेगा। हमारा डेमोग्राफी डिविडेंड भी तब तक बदल चुका होगा। परिणाम स्वरूप भारत के विकसित राष्ट्र बनने की संभावनाएं क्षीण हो जाएंगी।

चूंकि  2011 से भारत में जनगणना नहीं हुई है। इसलिए सही आंकड़े दे पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। सरकार के  अनुसार इस बीच 98 लाख लोगों को रोजगार दिया गया। लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि इस बीच में कितने लोग रोजगार क्षेत्र में दाखिल हुए। जिससे संकट की विभीषिका का पता चल सके।

सरकार के ई-श्रम पोर्टल में 30 करोड़ नाम दर्ज हैं। लेकिन यहां गोलमाल है। क्योंकि काम करने वाला श्रमिक  लगातार गतिशील है। वह स्थान परिवर्तित करता रहता है । एक सेक्टर से दूसरे सेक्टर में उनका आवागमन जारी  है। इसलिए वह कहां-कहां रजिस्टर्ड है, इसका कोई सटीक आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। यही हाल पीएफ या ईपीएफ का भी है। पीएफ के कितने खाते एक्टिव हैं। ईपीएफ कार्ड धारकों के नंबर बदलते जाते हैं। जबकि जाब वही रहता है। वैसे श्रम कार्ड धारकों को 162 रुपए ही तो मिलते हैं। 2019 से 25 के बीच में सैलरी क्लास की आमदनी ठहरी हुई ही नहीं है, बल्कि जून 2024 तक 1.7% घट गई, लेकिन इस बीच दिहाड़ी मजदूरों की मजदूरी में 13.3%की वृद्धि हुई है। जो कृषि क्षेत्र में हुई  वृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।

हमारे यहां  मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर लगातार सिकुड़ रहा है । कोविड में अमानवीय तालाबंदी के कारण बंद हुए लघु और मध्यम उद्योग अभी तक गति नहीं पकड़ सके हैं। पिछले दिनों  आए आंकड़े डरावने‌ थे।  सबसे अधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र आज संकटग्रस्त है। जिस कारण से बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है। जबकि दक्षिण कोरिया में 70% जाब एमएसएमई में मिलता है। जो एक्सपोर्ट का‌ मजबूत क्षेत्र है और  अभी इसमें विस्तार जारी है । उन्नत तकनीक के कारण यहां पूंजी  लागत बहुत कम होती है। हमारे यहां इसका ठीक उलट है। यहां रोजगार घट रहे हैं और लघु तथा मध्यम उद्योग बड़ी तादात में बंद हो चुके हैं।

भारत में रोजगार का सबसे बड़ा क्षेत्र ऑटोमोबाइल सेक्टर रहा है। जहां 15 लाख कर्मचारी काम करते हैं और जीडीपी का 40% ऑटोमोबाइल से आता है। इसमें रिफाइनरी, पेट्रोल पंप, छोटे-छोटे सहायक उद्योग,  तेल कंपनियां आदि शामिल हैं। 6लाख 40हजार करोड़ का कारोबार इस क्षेत्र में होता है । आज 2820 छोटी-बड़ी  मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां ऑटोमोबाइल सेक्टर में काम कर रही हैं। जिसमें  इंजन और मोटर के 600 से 800  छोटे बड़े ‌पार्ट  बनाए जाते हैं। अब खबर आ रही है कि एलन मस्क के टेस्ला के साथ भारत सरकार करार करने जा रही है। टेस्ला मुंबई में अपने शोरूम के लिए जमीन भी खरीद चुकी है। इधर अमेरिकी दबाव में भारत सरकार ने टेरिफ में भारी कटौती की है । जिस कारण से भारतीय बाजार में नए संकट खड़े होने हैं। ट्रंप ने तो भारत के खिलाफ टैरिफ युद्ध ही छेड़ दिया है। जिसके सामने मोदी सरकार घुटने टेकती हुई दिख रही है।

दुनिया में ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में इलेक्ट्रिक व्हीकल के आ जाने से भारी उथल-पुथल देखी जा रही है । क्योंकि इलेक्ट्रिक व्हीकल में पेट्रोल और डीजल व्हीकल की तुलना में ‌15 से 20% पार्ट ही रह जाते हैं। इसलिए मोटर और इंजन में लगने वाले 80%  पार्ट्स की जरूरत इलेक्ट्रिक व्हीकल में नहीं होगी। भारत में 15 लाख कर्मचारी  ऑटोमोबाइल सेक्टर में काम करते हैं। अगर सम्पूर्ण ऑटोमोबाइल क्षेत्र में इलेक्ट्रिक व्हीकल ही रह जाये तो 12 से 13 लाख कर्मचारी बाहर हो जाएंगे। वैसे इस वर्ष एक जानकारी के अनुसार 1 लाख के आसपास फोर व्हीलर इलेक्ट्रिक व्हीकल भारत में आए हैं। इसमें 80 हजार  टू व्हीलर  अलग से जोड़ लीजिए। तो ऑटोमोबाइल सेक्टर का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। इसलिए आने वाले समय में तेल  और मोटर उद्योग दोनों के सामने भारी संकट खड़ा होने वाला है। यही नहीं, पेट्रोलियम और ऑटोमोबाइल सेक्टर से होने वाले राजस्व की क्षति देश को अलग से उठानी पड़ेगी।

युवाओं के रोजगार का संकट का एक लक्षण  पिछड़े राज्यों से विकसित राज्यों की तरफ पलायन  में दिखाई देता  है। इसको लेकर भारत में  बहस छिड़ी हुई है। शिक्षा  में राज्य प्रायोजित अव्यवस्था ने युवाओं के भविष्य को अंधकार के घर में डाल दिया है। नियमित होने वाली परीक्षाओं में भ्रष्टाचार,  शिक्षा का निजीकरण, प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक और भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रमुखों और कुलपतियों की स्पष्ट पक्षपात ने कोढ़ में खाज का काम किया है। सरकारी क्षेत्र में लाखों पद खाली हैं। राज्य तथा केंद्र के विभागों में नियुक्तियां बंद है। इसलिए उच्च शिक्षित छात्रों की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है। वे हताशा में जी रहे हैं। जो कुछ रोजगार शिक्षा क्षेत्र में मिलता भी है । वह विचारधारा और लॉयल्टी पर निर्भर करता है । दिल्ली विश्वविद्यालय से लेकर बनारस विश्वविद्यालय तक इस पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। इस समय पी.एचडी में प्रवेश चाहने वाला दलित छात्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छठे दिन भी अनशन पर  है । जबकि  सामान्य मेरिट में दूसरे स्थान पर होने के बावजूद उसे प्रवेश मिला। रोजगार का संकट कितना गहरा है। इसका प्रमाण इस घटना से मिल जाता है। चंडीगढ़ म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में 47 सफाईकर्मी की जगह निकली । जिसमें ₹15हजार सैलरी थी। 1लाख70 हजार आवेदन आए। जिसमें 40हजार ग्रेजुएट और 5हजार पोस्ट ग्रेजुएट नौजवानों ने आवेदन किया था।

इसे आप औरंगजेब की कब्र खोदने और कुणाल कामरा का वेन्यू गिरने वाले नौजवानों के साथ जोड़ कर भारत की बदतर  होती स्थिति की जटिलता को समझ सकते हैं।

दूसरी तरफ ड्रग की लत नौजवानों में बढ़ रही है।सरकार के अनुसार पंजाब के बाद हरियाणा,  दिल्ली, गुजरात जैसे राज्यों में नशीले पदार्थों का प्रयोग बढा है। गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से आने वाली खबरें डराने वाली है। पिछले कुछ वर्षों में काशी क्षेत्र मादक द्रव्यों के व्यापार का गढ़ बन गया है। आए दिन अखबारों की सुर्खियों में देसी-विदेशी शराब, गांजा, चरस अफीम जैसे मादक द्रव्यों के पकड़े जाने की खबरें भरी रहती हैं।  28 मार्च 2025 की एक खबर के अनुसार 5  करोड़ की चरस वाराणसी में पकड़ी गई है ।राजधानी दिल्ली  इस समय ड्रग की चपेट में  है। क्या यह सिर्फ तस्करों और ड्रग माफियाओं के  स्तर का ही मामला है या नौजवानों  की एक पूरी पीढ़ी को बर्बाद कर देने की साजिश है!

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