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अपनी विरासत के प्रति जागरूकता की पहल: विश्व विरासत दिवस

अभिषेक मिश्र


सभ्यता के प्रारम्भिक काल से मानव की विकासयात्रा के चिह्न विभिन्न माध्यमों से पिछली पीढ़ी से अगली पीढ़ी को हस्तांतरित होते रहे हैं।

इन माध्यमों में भित्ति चित्र, महापाषाण, धार्मिक स्थल, सामाजिक स्थल तथा ऐतिहासिक महत्व की अन्य संरचनाएँ आती हैं।

समय के साथ मानवीय ही नहीं अपितु प्रकृतिक विरासतों जिनकी महत्ता समझते हुये इनका संरक्षण आवश्यक है को भी इनमें शामिल किया गया है।

इन्हीं विरासतों को समझने और इनके संरक्षण की आवश्यकता को स्वीकारते हुये 18 अप्रैल, 1982 को ट्यूनीशिया में ‘इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ मोनुमेंट्स एंड साइट्स’ द्वारा ‘विश्व स्मारक और पुरातत्व स्थल दिवस’ का आयोजन किया गया।

उसी सम्मेलन में यह भी बात उठी कि विश्व भर में आम लोगों में अपनी विरासत के प्रति जागरूकता लाने हेतु किसी प्रकार के दिवस का आयोजन किया जाना चाहिए।

यूनेस्को के सम्मेलन में इसके अनुमोदन के पश्चात 18 अप्रैल को ‘विश्व विरासत दिवस’ के रूप में मनाने के लिए घोषणा की गई।

भारत वैश्विक विरासत स्थलों के दृष्टिकोण से काफी समृद्ध है। परंतु दुःखद है कि यहाँ इनके संरक्षण को लेकर आवश्यक संवेदनशीलता और जागरूकता का अभाव है।

ऐतिहासिक महत्व की ईमारतों पर अपना नाम लिखना, आपत्तिजनक चित्र बनाना या टिप्पणी आदि करना, तोड़-फोड़ आदि जैसे भौतिक नुकसान पहुंचाना आदि हमारी सांस्कृतिक निरक्षरता के ही प्रमाण हैं।

कोई देश अपनी सभ्यता इस मायने में भी दर्शा सकता है कि वह अपनी धरोहरों को कितना सम्मान देता है। इस संबंध में हमें अभी काफी प्रशिक्षण की आवश्यकता है।

धार्मिक महत्व के स्थलों और महलों आदि को लेकर तो फिर भी स्थानीय लोगों में एक दृष्टिकोण है परंतु इस देश में धरोहरें विविध रूपों में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं।

सभ्यता के प्रारम्भिक दौर जैसे महापाषाण काल और आदिवासियों से जुड़ी विरासत के संबंध में हम लगभग अनभिज्ञ ही हैं। जिन लोगों या संस्थाओं को भी इनके संदर्भ में जागरूक होना चाहिए था, दुर्भाग्य से वो भी उदासीन ही हैं।

: भारत में एक प्राकऐतिहासिक विरासत अपने अस्तित्व को खोने की ओर

नतीजा ये विरासतें एक-एक कर विलुप्त हो रही हैं। ऐसी प्रत्येक विरासत का लुप्त होना सभ्यता के विकास के अध्ययन की कड़ी का टूट जाना है। इस कड़ी को बिखरने से बचाने की जरूरत है। वर्ना हम अपनी विरासत ही नहीं इसके अकादमिक अध्ययन की संभावना को भी खो बैठेंगे।
युवाओं और बच्चों को अपनी विरासत से परिचित करवाने और उनके संरक्षण के प्रति सजग किए जाने की आवश्यकता है। यह ज़िम्मेदारी मात्र किसी सरकार या किसी संस्था की ही नहीं बल्कि हर आम नागरिक की भी है।

(अभिषेक कुमार मिश्र भूवैज्ञानिक और विज्ञान लेखक हैं. साहित्य, कला-संस्कृति, फ़िल्म, विरासत आदि में भी रुचि. विरासत पर आधारित ब्लॉग ‘ धरोहर ’ और गांधी जी के विचारों पर केंद्रित ब्लॉग ‘ गांधीजी ’  का संचालन. मुख्य रूप से हिंदी विज्ञान लेख, विज्ञान कथाएं और हमारी विरासत के बारे में लेखन. Email: abhi.dhr@gmail.com , ब्लॉग का पता – ourdharohar.blogspot.com)

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