सोवियत संघ के पतन के बाद वैश्वीकरणकरण ही एकमात्र सच नहीं है। पूंजी के हमलावर होने के साथ उसके प्रतिरोधों का सिलसिला चल पड़ा। इस प्रतिरोध आंदोलन के आरम्भ में विश्व सामाजिक मंच का गठन हुआ, फिर लैटिन अमेरिकी देशों में वाम सरकारों का गठन होने लगा।अमेरिका में सिएटल में जो प्रतिरोध शुरू हुआ वह ऑक्यूपाई वाल स्ट्रीट तक पहुँचा। जार्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद होने वाले हाल के प्रदर्शनों पर भी मार्क्सवादी होने के आरोप दक्षिणपंथी लोग लगा रहे हैं। इस पूरे दौर ने बदलाव की चाहत वाली युवा पीढ़ी को जन्म दिया है।
उनको ध्यान में रखते हुए इस विचार माला का निर्माण किया गया है। आगे भी इसे जारी रखा जाएगा।
प्रो. गोपाल प्रधान इस शृंखला में अपना सहयोग देंगे। हम आशा करते हैं कि समकालीन जनमत के हमारे पाठकों को यह प्रयास पसन्द आएगा।