लखनऊ, 18 फरवरी। ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ के सिलसिले का आरम्भ करते हुए 17 फरवरी को लखनऊ में डाक्यूमेन्ट्री फिल्म ‘वी हैव नाॅट कम हियर टू डाई’ का प्रदर्शन किया गया। प्रतिभावान दलित छात्र रोहित वेमुला की शहादत पर केन्द्रित इस फिल्म का निर्माण मशहूर फिल्मकार दीपा धनाराज ने किया है। इस साल 17 जनवरी, जो रोहित वेमुला का चौथा शहादत दिवस था, को इस फिल्म का देश भर में प्रदर्शन हुआ। लखनऊ में इसका यह पहला प्रदर्शन था। कार्यक्रम का आयोजन प्रगतिशील महिला एसोसिएशन और आइसा के सहयोग से जन संस्कृति मंच ने नरही, हजरतगंज स्थित लोहिया भवन में किया गया। इसे बड़ी संख्या में लोगों ने देखा।
यह फिल्म उन स्थितियों और परिस्थितियों को सामने लाती है जिसमें रोहित वेमुला को आत्महत्या करने को बाध्य किया गया। फिल्म उन घटनाओं को बड़े तार्किक व यथार्थपरक तरीके से सामने लाती है जो रोहित की हत्या के बाद घटित हुई।
हैदराबाद सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति, केन्द्रीय सरकार के मंत्री, प्रशासन, संघ परिवार, एबीवीपी व भाजपा की साठगांठ और साजिश को बेनकाब करती है। प्रशासन लगातार झूठ गढ़ता रहा तथा यह साबित करने में लगा रहा कि इसके लिए रोहित जिम्मेदार है और उसे जो दलित कहा जा रहा है, वह वास्तव में दलित समुदाय से नहीं आता। फिल्म सत्ता के इस सांठगांठ और उसकी साजिश को बेनकाब करती है और पूरी घटना के सच को सामने लाती है।
रोहित एक विज्ञान लेखक बनना चाहता है, वह वैज्ञानिक बनना चाहता है, वह सपने देखता है। पर उसके सपने की हत्या कर दी जाती है। वह मरना नहीं जीना चाहता है, पर हालात ऐसे बनाये गये जहां उसने मौत का रास्ता चुना। अर्थात व्यवस्था ने उसे मारा। उसकी हत्या की गयी, सांस्थानिक हत्या। इसीलिए देश के छात्रों और नौजवानों ने उसे शहीद का दर्जा दिया। वे उस व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़े हुए। न सिर्फ हैदराबाद बल्कि कैम्पसों से लेकर सड़कों तक एक जुझारू संघर्ष उठ खड़ा हुआ। आंदोलन को सत्ता के दमन का सामना करना पड़ा। रोहित की मां को यदि सबमें अपना रोहित नजर आता है तो अस्वाभाविक नहीं।
कितने जटिल और प्रतिकूल हालात हैं, जिसमें समाज के दलित जातियों के नौजवान उच्च शिक्षा तक पहुंच पाते है। कहने को तो भारत का संविधान सभी को बराबरी का अधिकार देता है लेकिन अन्दर खाते बहुत गहरी खाई है और तब और गहरी हो जाती है जब दलित और कमजोर जातियों के नौजवान बराबरी पर पहुंचने लगते हैं, अपने अधिकार की बात करते हैं। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद शैक्षणिक संस्थानों के भगवाकरण तथा ब्राहमणवाद, जातिवाद और मनुवाद को स्थापित करने के माध्यम से जो पटकथा लिखी जा रही है, वह फिल्म के माध्यम से सामने आती है।
फिल्म प्रदर्शन से पहले गीतेश ने सभी का स्वागत किया और कहा कि लखनऊ मे ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ को रोहित वेमुला पर बनी इस फिल्म से शुरू कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि यह सिलसिला आगे बढ़े। जल्दी ही हम लखनऊ में फिल्म समारोह भी करेंगे। उन्होंने कहा कि हैदराबाद विश्वविद्यालय में जो रोहित के साथ घटित हुआ, आज कैम्पसों में वैसा ही हो रहा है। छात्रों के जनतांत्रिक अधिकारों को दमित किया जा रहा है।
आइसा के नितिन राज का कहना था कि शैक्षिक संस्थानों में ब्राहम्णवादी व मनुवादी सोच हावी है। यह सामान्य स्थिति में बहुत ज्यादा नहीं दिखता लेकिन जब दलित छात्र अपने अधिकरों की बात करते हैं, दावेदारी जताते हैं और अपने साथ होने वाले भेदभाव का विरोध करते हैं, उन्हें निशाना बनाया जाता है। उन पर हमले बढ़ जाते हैं।
इस मौके पर भगवान स्वरूप कटियार ने रोहित वेमुला पर लिखी कविता ‘टूटना एक तारे का’ सुनाई। कविता में वे कहते है ‘तुम्हारी शहादत की धमक से/हुकूमत इतनी बेचैन हो गयी/कि शहंशाह को भी रोने का अभिनय करना पड़ा/जबकि शहंशाह कभी रोया नहीं करते’। और आगे वे कहते हैं ‘इस संभावनाहीन समय में/तुम एक बड़ी संभावना थे रोहित/एक वैज्ञानिक, लेखक और एक यो़द्धा के बीज/फूट रहे थे तुम्हारे अन्दर’।
यह कार्यक्रम हिन्दी के मशहूर कथाकार अमरकान्त की स्मृति को समर्पित था। ज्ञात हो कि 17 फरवरी को ही उनकी पांचवीं पुण्यतिथि थी। उन्हें याद करते हुए जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष व कवि कौशल किशोर ने कहा कि अमरकान्त प्रेमचंद की यथार्थवादी परम्परा को आगे बढ़ाते हैं। वे ‘नयी कहानी’ आंदोलन की त्रयी हैं जिसमें माकण्डेय और शेखर जोशी शामिल हैं। इनका कथा साहित्य आम आदमी की जिन्दगी, संघर्ष और जीजिविषा का सृजनात्मक उदाहरण है। इस आयोजन में आरंभ से ही सक्रिय भूमिका निभा रही एपवा लखनऊ की संयोजक मीना सिंह ने उपस्थित दर्शकों को धन्यवाद दिया और आगामी समय में नियमित स्क्रीनिंग की योजना भी साझा की ।