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‘  ये तीन काले कानून किसानों को मार देंगे, हम इस कानून को नहीं मानते ’

आकाश पांडेय


 

तारीख 5 दिसम्बर , दिल्ली तीन तरफ से किसानों से घिरी हुई. केंद्र सरकार लगातार मीटिंग पर मीटिंग कर रही है लेकिन उसको समझ नहीं आ रहा कि इन किसानों को कैसे समझाया जाय. किसान अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं. उनका साफ कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगों को नहीं पूरा करती वे लोग दिल्ली को घेर कर ही बैठेंगे.

ये पूरा मामला शुरू तब होता है जब सितंबर 2020 में सरकार ने संसद में तीन कृषि सुधार विधेयक पास कराए और 27 सितंबर 2020 को राष्ट्रपति ने उन्हें कानून की शक्ल दे दी. किसान इन तीनों कानूनों का विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि ये कानून किसानों का हक मारने के लिए सरकार ने बनाया है.

सिंघु बार्डर पर बैठे किसान सुखविंदर सिंह कहते हैं कि सरकार ने जो ये तीन काले कानून पास किए हैं, ये किसान विरोधी हैं. ये किसानों को मार देंगे. हम इस कानून को नहीं मानते.

सिंघू बार्डर पर पटियाला से आए किसान लखविंदर बताते हैं कि “नरेंद्र मोदी झूठा है. इसने हम किसानों के साथ धोखा किया है. इसने हम किसानों को बर्बाद करने के लिए ये तीन कानून पास किए हैं.”

पंजाब के संगरूर जिले के रहने वाले दर्शन सिंह बताते हैं कि “ये जो कानून बनाए हैं वो हम छोटे किसानों को मार देगा. हमको खेती छोड़नी पड़ेगी. हम छोटे किसान बर्बाद हो जाएंगे.”

अब आइए उन तीन कानूनों के बारे में जानते हैं जिसका विरोध किसान कर रहे हैं.

पहला है ट्रेड और कॉमर्स बिल 2020. दूसरा है एग्रीमेंट ऑन प्राइस एस्योरेंस और तीसरा है इसेंसियल कॉमॉडिटी (संशोधन) बिल 2020. पहले APMC एक्ट के तहत सारे कृषि व्यापार मंडियों में हो सकते थे लेकिन इस कानून के आने के बाद अब कंपनियां कहीं भी सामान खरीद सकती हैं. पहले कंपनियों को मंडियों से कुल खरीद पर 6 प्रतिशत टैक्स देना होता था. इस कानून के बाद उनको अब मंडियों से सामान खरीदने की बाध्यता खत्म हो जाएगी और उनको टैक्स भी नहीं देना पड़ेगा.

दूसरा बिल एग्रीमेंट ऑन प्राइस एस्योरेंस ऐंड फार्म सर्विस बिल 2020 जिसमें किसानों और खरीददार के बीच फसल की बुआई से पहले एक कॉन्ट्रैक्ट साइन होगा. ये मूलत: कॉन्ट्रैक्ट वाली किसानी को बढ़ावा देने के लिए किया गया है.

तीसरा कानून आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 है जिसमें कहा गया है कि अनाज, दाल, आलू, प्याज, तेल और खाए जाने वाली तिलहन फसलों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से सरकार ने निकाल दिया है. सरकार इसमें तभी हस्तक्षेप करेगी जब इनकी कीमत दुगना हो जाएगी, युद्ध की स्थिति होगी या फिर भुखमरी की स्थिति होगी.

किसानों का कहना है कि ये तीनों कानून किसानों और किसानी को बर्बाद करने के लिए बनाए गए हैं. सरकार क़ॉरपोरेट लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए हम किसानों को बर्बाद करना चाहती है. पंजाब के फतेहगढ़ जिले के रहने वाले लखबीर सिंह कहते हैं कि नरेंद्र मोदी अपने ही देश के लोगों से दुश्मनों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. हम कोई आतंकवादी नहीं हैं और ना ही हम किसी और मुल्क के रहने वाले हैं लेकिन जब हम अपना विरोध दर्ज कराने दिल्ली आ रहे थे तो नरेंद्र मोदी और भाजपा की सरकारों ने हमारे साथ जिस तरह का बर्ताव किया उसको देख कर यही लगा कि नरेंद्र मोदी ने किसानों को अपना दुश्मन मान लिया है.

पटियाला से आए शमशेर सिंह का कहना है कि जिस तरह से पुलिस ने कंटीले तारों से घेराबंदी की है, उसको देखकर हमें बाघा बार्डर याद आ रहा है. जिस तरह पुलिस लाठियां, आंसू गैस के गोले छोड़ रही है उसको देखकर लगता है कि हमारे शांतिपूर्ण प्रदर्शन को भी नरेंद्र मोदी पचा नहीं पा रहे हैं.

किसान जसपाल सिंह का कहना है कि नरेंद्र मोदी या अमित शाह जितना भी जोर लगा लें लेकिन कानून तो इनको वापस लेना ही पड़ेगा. अगर उनकी जिद है तो फिर हमारी भी जिद है. हम अपना 6 महीनों का राशन लेकर आए हैं. जब तक सरकार ये कानून वापस नहीं लेती, हम दिल्ली छोड़कर नहीं जाएंगे.

दरअसल किसान इस कानून का विरोध सितंबर से ही कर रहे थे लेकिन जब उन्हें लगा कि केंद्र सरकार उनकी सुन नहीं रही है तब उन्होंने दिल्ली आने का फैसला किया और तारीख तय की 26 और 27 नवंबर. किसान निकले पंजाब से लेकिन हरियाणा सरकार ने मानो उन्हें दिल्ली ना पहुंचने देने की कसम खा रखी थी. हरियाणा सरकार ने सड़कें खोद डाली, बड़े-बड़े बैरिकेड्स, बोल्डर लगा दिए . पुलिस जगह-जगह आंसू गैस के गोले और वॉटर कैनन से किसानों का स्वागत करती गई और किसान अपनी हिम्मत के साथ आगे बढ़ते गए और दिल्ली के सिंघू बार्डर पर आ गए. सरकार ने फिर इन्हें रोकने की कोशिश की तो किसान इस बार रुक गए. रुके तो ऐसा रुके कि फिर नेशनल हाइवे ही एक लंगर में तब्दील हो गया. जहां कोई मजहब, कोई जाति नहीं देखी जाती. किसानों ने भाईचारे की भी कमाल मिसाल पेश की है. सब एक दूसरे की मदद करने में लगे हैं.

ठीक यही हाल टीकरी बार्डर का भी है. किसानों ने दिल्ली को तीन तरफ से घेर लिया है. अब उनका कहना है कि अगर सरकार उनकी बात नहीं मानती है तो वे अब दिल्ली में आने वाली रसद भी बंद कर देंगे. किसानों ने दिल्ली से पंजाब का हाइवे , दिल्ली से राजस्थान और दिल्ली से उत्तर प्रदेश की तरफ जाने वाले रास्ते बंद कर दिए हैं.

सरकार और किसानों के बीच लगातार बातचीत भी चल रही है. शुरू में सरकार ने कुछ तेवर दिखाए लेकिन किसानों का रुख देखकर बातचीत के लिए राजी हो गई. छठवें राउंड की मीटिंग भी 9 दिसबंर को प्रस्तावित है.

किसानों का कहना है कि सरकार जितनी चाहे मीटिंगें कर ले लेकिन उसको कानून हर हाल में वापस लेना पड़ेगा. जब तक सरकार कानून वापस नहीं लेगी तब तक हम यहां से नहीं हटेंगे. पटियाला के मंडौली गांव के रहने वाले बलवीर सिंह कहते हैं कि सरकार चाहे जो हथकंडे अपना ले, चाहे जितनी मीटिंगे कर ले लेकिन मोदी को कानून तो वापस लेना ही पड़ेगा.

अब सवाल यही है कि सरकार अपनी जिद पर क्यों अड़ी हुई है? सरकार कह रही है कि ये कानून किसानों के पक्ष में है, किसानों के भले के लिए है लेकिन किसान साफ मना कर रहा है. किसान कह रहा है कि ये सरकार हमारे भले के लिए नहीं बल्कि अंबानी-अडानी के भले के लिए काम कर रही है. इन कानूनों के जरिए सरकार मंडियां खत्म करा कर फसलों को औने-पौने दामों पर कंपनियों को बेचने के लिए किसानों को मजबूर करेगी.

शुरू में निजी कंपनियां मंडियों के बाहर स्टॉल लगाकर किसानों से ऊंचे दामों में फसलों को खरीदेंगी लेकिन जब दो-चार साल में मंडियां बर्बाद हो जाएंगी तो वही निजी कंपनियां किसानों से मनमाने दामों पर अनाज खरीदेंगी और किसान उनको बेचने के लिए मजबूर भी होगा. सरकार ने ये प्रयोग BSNL क साथ भी किया जिसका नतीजा है कि आज BSNL बर्बाद हो चुका है और उसकी कब्र पर खड़ा है अंबानी के जिओ का साम्राज्य.

दूसरा बिल मूलत: किसानों को अपने ही खेत में बंधुआ मजदूर बनाने की सरकार की योजना का हिस्सा है जिसमें मोदी सरकार देश के सारे संसाधनों पर अंबानी-अडानी का कब्जा चाहती है. इस कानून में कॉन्ट्रैक्ट खेती का प्रावधान है वह मूलत: किसानों को पूंजीपतियों का गुलाम बनाना चाहता है. अंग्रेजों के समय जिस तरह किसान उनके कहने पर या कर्ज में दब कर नील की खेती करते थे और बाद में भूमि के बंजर हो जाने पर फिर कहीं नौकर बन जाते थे. अब आजाद भारत में भी मोदी सरकार देश के किसानों की हालत बद से बदतर कर देना चाहती है. मोदी सरकार ने पहले ही पिछले चार सालों से कितने किसानों ने आत्महत्या की, इसका आंकड़ा तो जारी ही नहीं किया, इस कोविड जैसी वैश्विक महामारी के दौर में कितने किसानों, कितने मजदूरों ने आत्महत्या की इसका आंकड़ा तक तो दिया नहीं और चले हैं बड़े किसानों के हितैषी बनने.

तीसरे कानून के जरिए मोदी ने जमाखोरी को कानूनी मान्यता दे दी है. इस तरह बाजार में आवश्यक, दैनिक उपयोग की वस्तुओं की पहले कमी हो जाएगी और फिर महंगे दाम पर बेचकर जमाखोर बड़ा मुनाफा कमाएंगे. जिससे महंगाई भी बहुत बढ़ जाएगी. तब गरीब की थाली से रोटी और नमक भी उड़ जाएगा और गरीब भूखे मरने के लिए मजबूर होगा. 2020 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़ों के मुताबिक 107 देशों में भारत का स्थान 94वां हैं. हम बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल से भी पीछे हैं.

क्या मोदी सरकार इन सारी परिस्थितियों को जाने बिना ही ये कानून लाई है? असल में मोदी सरकार स्थिति से पूरी तरह से अवगत है लेकिन चूंकि मोदी अंबानी-अडानी के पैसों के नीचे इतना दब चुके हैं कि उनको अब भारत की जनता नहीं बल्कि अंबानी और अडानी का साथ देना है और उनसे अपनी वफादारी निभानी है.

(आकाश पाण्डेय स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क :  6393 198 875)

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