( युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम की श्रृंखला ‘उर्दू की क्लास’ की चौथी क़िस्त में “ख़ुलासा” और “बेग़म” के मायने के बहाने उर्दू भाषा के पेच-ओ-ख़म को जानने की कोशिश . यह श्रृंखला हर रविवार प्रकाशित हो रही है . सं.)
“आज होगा बड़ा ख़ुलासा!” ऐसा हमने लोगों को अक्सर बोलते हुए सुना है या फिर ये भी पढ़ने/सुनने में आता है कि : पेश है इस मामले में अब तक का “सबसे बड़ा ख़ुलासा” ।
यहाँ “ख़ुलासा” शब्द का इस्तेमाल “रहस्योद्घाटन” (expose/revelation) के लिए होता है जबकि ख़ुलासा का अर्थ होता है : सार, संक्षेप, निचोड़ या सारांश।
“रहस्योद्घाटन” के लिए उर्दू में जो शब्द है वो है: इंकिशाफ़।
उदाहरण: एक ताज़ा स्टडी रिपोर्ट में इसका इंकिशाफ़ हुआ। अमुक व्यक्ति ने ये बड़ा इंकिशाफ़ किया। जाँच के दौरान इस बात का इंकिशाफ़ हुआ।
जब कि ख़ुलासा शब्द का इस्तेमाल कुछ इस तरह होता है। मज़मून (लेख) का ख़ुलासा ये है कि कोरोना एक जानलेवा बीमारी है। मुझे पूरी कहानी नहीं सुननी, आप तो ख़ुलासा बताईये। इसको हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि पंडित चंद्रचूड़ नामक एक लेखक ने उर्दू में एक किताब लिखी थी जिसका नाम था : “ख़ुलासा-ए-रामायण”। ये रामायण का सार था।
“बेग़म” और “बेगम” का फ़र्क़
आस-पास (1981) फ़िल्म का ये गाना तो आपने सुना ही होगा : “हमको भी ग़म ने मारा, तुमको भी ग़म ने मारा। हम सबको ग़म ने मारा, इस ग़म को मार डालो”। यहाँ “ग़म” मतलब तो आपको पता ही है, दुःख और शोक। लेकिन अगर इस “ग़म” में से नुक़्ता हटा दें तो वो हो जाएगा “गम”।
ऐसे तो “ग़म” को “गम” बोलने /लिखने से कुछ ज़्यादह फ़र्क़ नहीं पड़ता लेकिन अगर हम “#बेग़म” को “#बेगम” पढ़ने, लिखने या बोलने लगें तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। वो इसलिए क्योंकि “बेग़म” का अर्थ होता है “जिसको कोई दुःख न हो”।
इसको हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि संत रैदास/रविदास ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जहाँ कोई दुःख /शोक न हो और इसका नाम दिया था “बेग़मपुरा” या “बेग़मपुर”। आपको इसके बारे में अधिक जानकारी Gail Omvedt की किताब “Seeking Begumpura : The social vision of Anti caste Intellectuals” में मिल सकती है।
वहीं “बेगम” का अर्थ होता है : श्रीमती, महोदया और पत्नी। जैसे बेगम हज़रत महल, बेगम अख़्तर, बेगम नूर जहाँ, आदि। इन सब में बेगम का इस्तेमाल “श्रीमती और महोदया” सेंस में है।
लेकिन हम ये भी सुनते हैं : “अरे वो तो उनकी बेगम हैं” या फिर “आपने हमें अपनी बेगम से नहीं मिलवाया”। यहाँ बेगम का इस्तेमाल “बीवी/पत्नी ” के सेंस में किया गया है।
आख़िर में एक और बात : उर्दू की एक मशहूर किताब है “बेगमात के आँसू”। इसके लेखक हैं, ख्वाजा हसन निज़ामी। ये किताब 1857 के “ग़दर” और महिलाओं के बारे है और हिंदी में भी उपलब्ध है।
(महताब आलम एक बहुभाषी पत्रकार और लेखक हैं। हाल तक वो ‘द वायर’ (उर्दू) के संपादक थे और इन दिनों ‘द वायर’ (अंग्रेज़ी, उर्दू और हिंदी) के अलावा ‘बीबीसी उर्दू’, ‘डाउन टू अर्थ’, ‘इंकलाब उर्दू’ दैनिक के लिए राजनीति, साहित्य, मानवाधिकार, पर्यावरण, मीडिया और क़ानून से जुड़े मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं। ट्विटर पर इनसे @MahtabNama पर जुड़ा जा सकता है ।)
( फ़ीचर्ड इमेज क्रेडिट : सोशल मीडिया )
इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों के लिंक यहाँ देखे जा सकते हैं :
उर्दू की क्लास : नुक़्ते के हेर फेर से ख़ुदा जुदा हो जाता है