कश्मीर की जमीनी हकीकत की पड़ताल करके लौटी फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट
नई दिल्ली. सैन्य पहरे में क़ैद कश्मीर की जमीनी हकीकत की पड़ताल करके वहां से लौटी फैक्ट फाइंडिंग की टीम ने आजादी की पूर्व संध्या पर प्रेस कान्फेंस करके मीडिया से फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट साझा की। फैक्ट फाइंडिंग की टीम ने 100 से ज्यादा कश्मीरियों से बात करके उनके ऑडियो-विजुअल को प्रोजेक्टर पर दिखाना चाहा लेकिन प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इसके लिए मना कर दिया।
अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, कविता कृष्णन (सचिव ऐपवा), मैमुना अब्बास मुल्लाह (ऐडवा) और विमल भाई (एनएपीएम) इस फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा हैं।
पहले वक्ता के तौर पर मीडिया को संबोधित करते हुए कविता कृष्णन ने कहा- “हमने कश्मीर में पांच दिन (9 से 13 अगस्त तक) यात्रा करते हुए बिताये। जब हम 9 अगस्त को श्रीनगर पहुंचे तो हमने देखा कि शहर कर्फ्यू के चलते खामोश है और उजाड़ जैसा दिख रहा है और भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों से भरा पड़ा है। कर्फ्यू पूरी तरह लागू था और यह 5 अगस्त से लागू था। श्रीनगर की गलियां सूनी थीं और शहर की सभी संस्थायें (दुकानें, स्कूल, पुस्तकालय, पेट्रोल पंप, सरकारी दफ्तर और बैंक) बंद थीं। केवल कुछ एटीएम, दवा की दुकानें और पुलिस स्टेशन खुले हुए थे। लोग अकेले या दो लोग इधर-उधर जा रहे थे लेकिन कोई समूह में नहीं चल रहा था।
हमने श्रीनगर के भीतर और बाहर काफी यात्रायें कीं। भारतीय मीडिया केवल श्रीनगर के छोटे से इलाके में ही अपने को सीमित रखता है। उस छोटे से इलाके में बीच-बीच में हालात सामान्य जैसे दिखते हैं। इसी आधार पर भारतीय मीडिया यह दावा कर रहा है कि कश्मीर में हालात सामान्य हो गये हैं। इससे बड़ा झूठ और कुछ नहीं हो सकता।
हमने श्रीनगर शहर और कश्मीर के गांवों व छोटे कस्बों में पांच दिन तक सैकड़ों आम लोगों से बातचीत करते हुए बिताये। हमने महिलाओं, स्कूल और कॉलेज के छात्रों,दुकानदारों, पत्रकारों, छोटा-मोटा बिजनेस चलाने वालों, दिहाड़ी मजदूरों, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और अनय राज्यों से आये हुए मजदूरों से बात की। हमने घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों, सिखों और कश्मीरी मुसलमानों से भी बातचीत की।
इसके बाद मोमिना मुल्ला ने कहा – “हर जगह लोग गर्मजोशी से मिले। यहां तक कि जो लोग बहुत गुस्से में थे और हमारे मकसद के बारे में आशंकित थे उनकी गर्मजोशी में भी कोई कमी नहीं थी। भारत सरकार के प्रति दर्द, गुस्से और विश्वासघात की बात करने वाले लोगों ने भी गर्मजोशी और मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी। हम इससे बहुत प्रभावित हुए।
ज्यादातार लोग अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने के निर्णय और हटाने के तरीके को लेकर बहुत गुस्से में थे। सबसे ज्यादा हमे गुस्सा और भय ही देखने को मिला। लोगों ने अनौपचारिक बातचीत में अपने गुस्से का खुलकर इजहार किया लेकिन कोई भी कैमरे के सामने बोलने के लिए तैयार नहीं था। हर बोलने वाले को सरकारी दमन का खतरा था।
कई लोगों ने हमें बताया कि देर-सबेर (जब पाबंदियां हटा ली जायेंगी) बड़े विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत होगी। लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर भी दमन और हिंसा की आशंका है।
जम्मू कश्मीर के साथ सरकार के बर्ताव पर प्रतिक्रिया
श्रीनगर में पहुंचने के बाद हमें भारत सरकार के निर्णय के बारे में लोगों से सबसे ज्यादा जो शब्द सुनाई पड़े वे थे जुल्म, ज्यादती और धोखा। सफकदल (डाउन टाउन, श्रीनगर) में एक आदमी ने कहा कि ”सरकार ने हम कश्मीरियों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया है। हमें कैद करके हमारी जिंदगी और भविष्य के बारे में फैसला कर लिया है। यह हमें बंदी बनाकर, हमारे सिर पर बंदूक तानकर और हमारी आवाज घोंटकर मुंह में जबरन कुछ ठूंस देने जैसा है।”
भारतीय मीडिया के बारे में चारों तरफ नाराजगी है
लोग अपने घरों में कैद हैं, वे एक दूसरे से बात नहीं कर सकते, वे सोशल मीडिया पर अपने बात नहीं रख सकते और किसी भी तरह अपनी आवाज नहीं उठा सकते। वे अपने घरों में भारतीय टीवी चैनल देख रहे हैं जिनमें दावा किया जा रहा है कि कश्मीर भारत सरकार के फैसले का स्वागत करता है। वे अपनी आवाज मिटा दिये जाने के खिलाफ गुस्से से खौल रहे हैं। एक नौजवान ने कहा कि ”किसकी शादी है और कौन नाच रहा है?! यदि यह निर्णय हमारे फायदे और विकास के लिए है तो हमसे क्यों नहीं पूछा जा रहा है कि हम इसके बारे में क्या सोचते हैं?”
अनुच्छेद 370 मंगलसूत्र था, भारत ने मंगलसूत्र तोड़कर भारक-कश्मीर का रिश्ता ही तोड़ दिया
अनंतनाग जिले के गौरी गांव में एक व्यक्ति ने कहा ”हमारा उनसे रिश्ता अनुच्छेद 370 और 35 ए से था। अब उन्होंने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार दी है। अब तो हम आजाद हो गये हैं।” इसी व्यक्ति ने पहले नारा लगाया ‘हमें चाहिए आजादी’ और उसके बाद दूसरा नारा लगाया ‘अनुच्छेद 370 और 35 ए को बहाल करो।” कई लोगों ने अनुच्छेद 370 और 35 ए को कश्मीरियों की पहचान बताया। वे मानते हैं कि अनुच्छेद 370 को खत्म करके कश्मीरियों के आत्म सम्मान और उनकी पहचान पर हमला किया गया है। उन्हें अपमानित किया गया है। अनुच्छेद 370 के खात्मे ने ‘भारत समर्थक पार्टियों’ को और भी बदनाम कर दिया है। उन्हें लगता है कि कश्मीर की भारत से ‘आजादी’ की बात करने वाले लोग सही थे। बातामालू में एक व्यक्ति ने कहा कि ”जो इंडिया के गीत गाते हैं, अपने बंदे हैं, वे भी बंद हैं।”
एक कश्मीरी पत्रकार ने कहा कि ”मुख्यधारा की पार्टियों से जैसा बर्ताव किया जा रहा है उससे बहुत से लोग खुश हैं। ये पार्टियां भारत की तरफदारी करती हैं और अब जलील हो रही हैं।” लोगों की एक टेक यह भी थी कि ”मोदी ने भारत के अपने कानून और संविधान को नष्ट कर दिया है।” जो लोग यह कह रहे थे उनका मानना था कि अनुच्छेद 370 जितना कश्मीरियों के लिए जरूरी था उतना ही उससे कहीं ज्यादा भारत के लिए जरूरी था ताकि वे कश्मीर पर अपने दावे को कानूनी जामा पहना सकें। मोदी सरकार ने केवल कश्मीर को ही तबाह नहीं किया है बल्कि अपनी ही देश के कानून और संविधान की धज्जियां उड़ा दी हैं। श्रीनगर के जहांगीर चौक के एक होजरी व्यापारी ने कहा ”कांग्रेस ने पीठ में छुरा भोंका था, भाजपा ने सामने से छुरा भोंका है।
”हालात सामान्य” हैं – या क़ब्रिस्तान जैसी शांति है ?
विमल भाई ने बताया कि सोपोर में एक नौजवान ने हमसे कहा, ”यह बंदूक की नोंक पर खामोशी है, क़ब्रिस्तान की खामोशी”। पुलिस की गाडि़यां पूरे श्रीनगर शहर में पेट्रोलिंग करके लोगों को चेतावनी दे रही थीं कि ”घर में सुरक्षित रहिए, कर्फ्यू में बाहर मत घूमिये।” और दुकानदारों से दुकानें बन्द करने को कह रही थीं। बाहर घूमने वालों से वे कर्फ्यू पास मांग रहे थे। पूरे कश्मीर में कर्फ्यू है। यहां तक कि ईद के दिन भी सड़कें और बाजार सूने पड़े थे। श्रीनगर में जगह जगह कन्सर्टिना तार और भारी संख्या में अर्धसैन्य बलों की मौजूदगी में आना जाना बाधित हो रहा था. ईद के दिन भी यही हाल रहा. कई गांवों में अजान पर पैरामिलिट्री ने रोक लगा दी थी और ईद पर मस्जिद में सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ने के स्थान पर लोगों को मजबूरी में घरों में ही नमाज पढ़नी पड़ी। अनन्तनाग, शोपियां और पम्पोर केवल बहुत छोटे बच्चे ही ईद के मौके पर उत्सवी कपड़े पहने दिखे। मानो कि बाकी सभी लोग शोक मना रहे हों। अनन्तनाग के गुरी में एक महिला ने कहा कि ”हमें ऐसा लग रहा है जैसे कि हम जेल में हैं”।
नागबल (शोपियां) में कुछ लड़कियां कहने लगीं कि जब हमारे भाई पुलिस या सेना की हिरासत में हैं, ऐसे में हम ईद कैसे मनायें ? ईद से एक दिन पहले 11 अगस्त को शोपियां में एक महिला ने बताया कि वह कर्फ्यू में थोड़ी देर को ढील मिलने से बाजार में ईद का कुछ सामान खरीदने आयी है। ”पिछले सात दिनों से हम अपने घरों में कैद थे, और मेरे गांव लांगट में आज भी दुकानें बंद हैं इसलिए ईद की खरीदारी करने सोपोर शहर आई हूँ और यहां मेरी बेटी नर्सिंग की छात्रा है उसकी कुशल क्षेम भी ले लूंगी” उसने कहा।
सेना के हवाले कश्मीरियों की ज़िंदग़ी
अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कश्मीर में हर दस आदमी पर एक शस्त्रधारी सैनिक तैनात है। बांदीपुरा के पास वतपुरा में बेकरी में एक युवक ने बताया कि ”यहां मोदी नहीं, सेना का राज है”। उसके दोस्त ने आगे कहा कि ”हम डरे हुए रहते हैं क्योंकि पास में सेना के कैंप से ऐसे कठिन नियम कायदे थोपे जाते हैं जिन्हें पूरा कर पाना लगभग असंभव हो जाता है। वे कहते हैं कि घर से बाहर जाओ तो आधा घंटे में ही वापस लौटना होगा। लेकिन अगर मेरा बच्चा बीमार है और उसे अस्पताल ले जाना है तो आधा घंटा से ज्यादा भी लग सकता है। अगर कोई पास के गांव में अपनी बेटी से मिलने जायगा तो भी आधा घंटा से ज्यादा ही लगेगा। लेकिन अगर थोड़ी भी देर हो जाय तो हमें प्रताड़ित किया जाता है।” सीआरपीएफ सभी जगह है, कश्मीर में लगभग प्रत्येक घर के बाहर।
कर्फ्यू के चलते आर्थिक समस्याओं से गुजर रहे हैं कश्मीरी लोग
कविता कृष्णन ने बताया कि हमें भेड़ों के व्यापारी और चरवाहे वहां अनबिकी भेड़ों व बकरियों के साथ दिखाई दिये। जिन पशुओं पर साल भर निवेश किया अब वे बिक नहीं पा रहे। उनके लिए इसका अर्थ भारी आर्थिक नुकसान उठाना है। दूसरी ओर जो लोग काम पर नहीं जा पा रहे, उनकी कमाई बंद है और वे ईद पर कुर्बानी के लिए जानवर नहीं खरीद पा रहे। बिजनौर (उ.प्र.) के एक दुकानदार ने हमें अपनी बिना बिकी मिठाईयों का ढेर दिखाया जो बरबाद हो रहा था क्योंकि लोगों के पास उन्हें खरीदने के पैसे ही नहीं हैं। श्रीनगर में एस्थमा से पीडि़त एक ऑटो ड्राइवर ने हमें अपनी दवाईयों, सालबूटामोल और एस्थालिन, की आखिरी डोज दिखाते हुए बताया कि वह कई दिनों से दवा खरीदने के लिए भटक रहा है परन्तु उसके इलाके में केमिस्ट की दुकानों और अस्पतालों में इसका स्टॉक खत्म हो चुका है और वह बड़े अस्पताल में जा नहीं सकता क्योंकि रास्ते में सीआरपीएफ वाले रोकते हैं। उन्होंने एस्थालिन इनहेलर का एक खाली कुचला हुआ कवर दिखाते हुए कहा कि उस कवर को जब सीआरपीएफ के एक जवान को दिखा कर दवा खरीदने के लिए आगे जाने देने की गुजारिश की तो उसने वह कवर ही अपने बूटों से रौंद डाला। ”उसको रौंद क्यों डाला ? क्योंकि वह मुझसे नफरत करता है”- ऑटो ड्राइवर ने कहा।
विरोध, दमन और बर्बरता –
9 अगस्त को श्रीनगर के शौरा में करीब 10000 लोग विरोध करने के लिए जमा हुए। सैन्य बलों द्वारा उन पर पैलट गन से फायर किये गये जिसमें कई घायल हुए। हमने 10 अगस्त को शौरा जाने की कोशिश की लेकिन सीआरपीएफ के बैरिकेड पर रोक दिया गया। उस दिन भी हमें बहुत से युवा प्रदर्शनकारी सड़क पर रास्ता जाम किये दिखाई दिये। दो युवकों वकार अहमद और वाहिद के चेहरे, बांहों और शरीर के ऊपरी हिस्से में पैलट के निशान भरे हुए थे। उनकी आंखेां में खून भरा हुआ था, वे अन्धे हो चुके थे। वकार को कैथेटर लगा हुआ था जिसमें शरीर के अंदरुनी हिस्सों से निकल रहे खून से उसकी पेशाब लाल हो गई थी। दुख और गुस्से में रोते हुए उनके परिवार के सदस्यों ने बताया कि ये दोनों ही युवक पत्थरबाजी आदि नहीं, केवल शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे। 6 अगस्त को अपने घर के पास मांदरबाग इलाके में एक वृद्ध व्यक्ति को रास्ते में न जाने देने पर ‘राइजिंग काश्मीर’ समाचार पत्र में ग्राफिक डिजायनर 25 वर्षीय समीर अहमद को सीआरपीएफ वालों को टोक दिया। बाद में उसी दिन जब समीर अहमद ने अपने घर का दरवाजा खोल रहे थे तो अचानक सीआरपीएफ ने उन पर पैलट गन से फायर कर दिया. उनकी बांह में, चेहरे पर और आंख के पास कुल मिला कर 172 पैलट के घाव लगे हैं। खैर है कि उनकी आंखों की रोशनी नहीं गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि पैलट गन से जानबूझ कर चेहरे और आंखों पर निशाना लगाया जा रहा है, और निहत्थे शांतिपूर्ण नागरिक वे चाहे अपने ही घर के दरवाजे पर खड़े हों, निशाना बन सकते हैं।
नेताओं को चुन चुनकर गिरफ्तार किया गया
मैमुना अब्बास मुल्लाह ने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा- “600 से ज्यादा राजनीतिक दलों के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता गिरफ्तार किये जा चुके हैं। इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि किन धाराओं या अपराधों में वे गिरफ्तार हैं और उन्हें कहां ले जाकर बंद किया गया है। हमने सीपीएम के विधायक मो. यूसुफ तारीगामी से मुलाकात करने की कोशिश की, लेकिन हमें श्रीनगर में उनके घर के बाहर ही रोक दिया गया जहां वे हाउस अरेस्ट में हैं।
गिरफ्तारियों का कहीं रिकॉर्ड नहीं, गैरकानूनी हिरासत में लिए जा रहे युवा, लड़कियों से छेड़खानी
अर्थ शास्त्री ज्यां द्रेज ने बताया- “हरेक गांव में और श्रीनगर के मुख्य इलाकों में जहां भी गये, हमने पाया कि कम उम्र के स्कूल जाने वाले लड़कों को पुलिस, सेना या अर्धसैन्य बल उठा ले गये हैं और वे गैर कानूनी हिरासत में हैं। हमें पम्पोर में एक ऐसा ही 11 साल का लड़का मिला जो 5 से 11 अगस्त के बीच थाने में बंद था। वहां उसकी पिटाई की गई। उसी ने बताया कि उसके साथ आस पास के गांवों के उससे भी कम उम्र के लड़के भी बंद किये गये थे। आधी रात को छापेमारी करके सैकड़ों लड़कों व किशोरों को उठा लिया गया। ऐसी छापेमारियों का एकमात्र उद्देश्य डर पैदा करना ही हो सकता है। महिलाओं एवं लड़कियों ने बताया कि उनके साथ इन छापेमारियों के दौरान छेड़खानी भी हुई। उनके माता-पिता बच्चों की ‘गिरफ्तारी’ (अपहरण) के बारे में बात करने से भी डर रहे थे। उन्हें डर था कि कहीं पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट के तहत केस न लगा दिया जाय। वे इसलिए भी डरे हुए थे कि बोलने से कहीं बच्चे ‘गायब’ ही न हो जायं – जिसका मतलब होता है हिरासत में मौत और फिर किसी सामूहिक कब्रगाह में दफन कर दिया जाना, जिसका कि कश्मीर में काफी कड़वा इतिहास है। इसी तरह से गिरफ्तार किये गये एक लड़के के पड़ोसी ने हमसे कहा, ”इन गिरफ्तारियों का कहीं रिकॉर्ड नहीं हैं। यह गैरकानूनी हिरासत है। इसलिए अगर कोई लड़का ”गायब” हो जाता है, यानि हिरासत में मर जाता है, तो पुलिस/सेना आसानी से कह सकती है कि उन्होंने तो कभी उसे गिरफ्तार ही नहीं किया था”। सोपोर में एक नौजवान ने कहा, ”जितना जुल्म करेंगे, उतना हम उभरेंगे”। विभिन्न जगहों पर एक ही बात बार बार सुनने को मिली, ”कोई चिन्ता की बात नहीं कि नेता जेल में डाल दिये गये हैं। हमें नेताओं की जरूरत नहीं है। जब तक एक अकेला कश्मीरी बच्चा भी जिन्दा है प्रतिरोध चलता रहेगा।”
मीडिया पर पाबंदी –
ज्यां द्रेज ने कहा- एक पत्रकार ने हमें बताया कि इतना कुछ होने के बाद भी अखबार छप रहे हैं। इंटररनेट न होने से एजेन्सियों से समाचार नहीं मिल पा रहे हैं। यह अघोषित सेंसरशिप है। अगर सरकार पुलिस को इंटरनेट और फोन की सुविधा दे सकती है और मीडिया को नहीं तो इसका और क्या मतलब हो सकता है ?” कश्मीरी टीवी चैनल पूरी तरह से बंद हैं। कश्मीरी समाचार पत्र जो वहां के विरोध प्रदर्शनों की थोड़ी सी भी जानकारी देते हैं, जैसा कि शौरा की घटना के बारे में हुआ, तो उन्हें प्रशासन की नाराजगी का शिकार होना पड़ रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रेस रिपार्टरों ने हमें बताया कि अधिकारी उनकी आवाजाही को भी प्रतिबंधित कर रहे हैं। इंटरनेट न होने के चलते वे अपने मुख्यालयों से भी संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। एक पत्रकार ने बताया कि वहां कोई भी अखबार कम से कम 17 अगस्त से पहले तो नहीं छप सकता क्योंकि उनके पास न्यूजप्रिंट का कोटा खत्म हो चुका है जोकि दिल्ली से आता है। एक समाचार पत्र में काम करने वाले ग्राफिक डिजायनर को बगैर किसी उकसावे सीआरपीएफ ने पैलट गन से घायल कर दिया था।
भाजपा प्रवक्ता की ”चेतावनी”
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने बताया- कश्मीर मामलों पर भाजपा के प्रवक्ता अश्वनी कुमार च्रुंगू हमें ‘राइजिंग कश्मीर’ समाचार पत्र के कार्यालय में मिले। वो कश्मीरी लोगों को अनुच्छेद 370 खत्म करने के समर्थन में तैयार करने आए थे। उनका प्रमुख तर्क था -चूंकि भाजपा को जम्मू व कश्मीर में 46 प्रतिशत वोट मिले हैं और संसद में अप्रत्याशित रूप में बहुमत मिला है, तो अब यह उनका अधिकार ही नहीं बल्कि कर्तव्य है कि वे अनुच्छेद 370 खत्म करने के अपने वायदे को पूरा करें। उनका कहना था कि ”46 प्रतिशत वोट शेयर – यह हमारा लाइसेन्स है’। तब क्या किसी सरकार को एक अलोकप्रिय निर्णय कश्मीर की जनता के ऊपर बंदूक की नोक पर थोपना चाहिए इस बात से चिढ़कर वो अचानक उठे और ज्यां ड्रेज़ की ओर उंगली उठा कर कहने लगे ”हम आप जैसे देशद्रोही को यहां काम नहीं करने देंगे। ये मेरी चेतावनी है।”
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