धनबाद-झरिया के बहुत ही सक्रिय और जन मूल्यधर्मी कवि तैयब खान अब हमारे बीच नहीं हैं।01 मार्च 2019 को किडनी की बीमारी के चलते उनका देहांत हो गया। यही कोई हप्ता दिन पहले रात के 10 बजे के करीब उनका फोन आया था। बहुत बुझे स्वर में कहा था कि ‘हालत बहुत खराब हो चली है।’ यह सुनकर अफसोस और दुख व्यक्त करने के सिवा मेरे पास दूसरा कोई उपाय नहीं था। उनसे मिलने जाना था, पर मेरे जाने से पहले ही वे इस दुनिया से चल बसे।
बहुत भारी अफसोस है। हम सब का यह प्रिय कवि हम सब से बिछड़ गया। झरिया-धनबाद का क्या चला गया तैयब खान के साथ, हम सब महसूस रहे हैं। एक संवेदनशील इंसान,हर साहित्यिक कार्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल होने वाला, शामिल होने वाला ही नहीं बल्कि आयोजनों को बढ़-चढ़कर संभव करने वाला, कविता का जिम्मेवार कार्यकर्ता चला गया।
तैयब खान का जीवन लगातार आर्थिक दबावों में गुजरा।बीमारी तो एक तात्कालिक तौर पर दिखता हुआ कारण है।सच कहा जाए तो आर्थिक दबावों ने ही अनेक लोगों की तरह तैयब खान को भी निगल लिया।
इनका जन्म 07 मई 1952 को झरिया (झारखण्ड)में हुआ था।जीवन यापन के लिए इन्हें मजदूरी भी करनी पड़ी।कुछ दिनों तक ट्यूशन पढ़ाया।कई दैनिक स्थानीय समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में भी कार्य किया।स्थानीय रूप से इनकी पहचान एक कवि के साथ साथ साहसी मूल्यनिष्ठ पत्रकार की भी थी। तैयब खान वैचारिक रूप से वामपंथी थे और जनवादी लेखक संघ से जुड़े हुए थे। जलेस से पहले ये जन संस्कृति मंच से जुड़े हुए थे।ताज़िन्दगी इनका संबंध इन लेखक संगठनों से रहा।
तैयब खान की एकमात्र काव्य पुस्तिका है -‘बात कहीं से भी शुरू की जा सकती है’। यह 2016 में प्रकाशित हुई थी।इसमें कुल 23 कविताएँ प्रकाशित हैं।इनकी अधिकांश कविताएँ अप्रकाशित हैं। तैयब खान की कविताओं के प्रकाशन को लेकर हमसब योजना शीघ्र बनाएंगे।उनके निधन से हमसब दुखी हैं। झारखंड जन संस्कृति मंच की तरफ से तैयब खान की स्मृति को नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।
3 comments
Comments are closed.